भारत की बहादुर महिलाओं में से एक नाम Laxmi Bai Kelkar जी का है। लक्ष्मी बाई केलकर एक महान समाज सुधारक थी।
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Laxmi Bai Kelkar का जन्म
लक्ष्मी बाई केलकर का जन्म जुलाई 1905 में हुआ था। इन्होंने अपने जीवन काल में कई महान समाज सुधारक काम किए हैं।
Laxmi Bai Kelkar द्वारा राष्ट्रीय सेविका समिति की स्थापना
लक्ष्मी बाई केलकर ने राष्ट्र सेविका समिति की स्थापना की जो भारतीय संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखने के लिए समर्पित की गई। यह सबसे बड़ी और सबसे महत्वपूर्ण हिंदू महिला संगठन है।
उनका यह विचार कि, एक महिला अपने परिवार और राष्ट्र के लिए प्रेरणा शक्ति है, इसलिए जब तक यह शक्ति जागृत नहीं होगी समाज प्रगति की दिशा में आगे नहीं बढ़ सकेगा।
Laxmi Bai Kelkar की शुरुआती जीवन और परिवारिक पृष्ठभूमि
लक्ष्मी बाई केलकर का जन्म नागपुर में हुआ था। इनका पूर्व नाम कमल था। इनके पिता एक महान देशभक्त थे। उनके पिता का नाम भास्कर राव दाते और उनकी मां का नाम यशोदा बाई था।
बाल कमल अपने माता-पिता से अत्यधिक प्रभावित थी। उनकी मां, लोकमान्य तिलक द्वारा संपादित समाचार पत्र ‘केसरी’ को गुप्त रूप से पढ़ा करती थी। यह देखकर युवा कमल के दिल में भी देशभक्त की भावना जाग उठी।
प्लेग नियंत्रण जैसे अभियानों में उनकी शुरुआती भागीदारी ने उन्हें धीरज, विनम्रता और सामूहिक कार्यवाही करने की शक्ति के गुणों से भर दिया।
Laxmi Bai Kelkar की विवाह और जीवन की कठिनाइयाँ
लक्ष्मी बाई केलकर का विवाह पुरुषोत्तम राव केलकर से हुआ। विवाह के बाद वह वर्धा चली गई। जो बाद में गांधी के सेवाग्राम आश्रम के साथ राजनीतिक गतिविधियों का एक केंद्र बन गया।
उनके जीवन का दुखद काल वह था जब उन्होंने अपने पति और अपनी बड़ी बेटी को तपेदिक बीमारी के कारण खो दिया।
इस दुर्घटना ने लक्ष्मीबाई केलकर के इरादों को और मजबूत कर दिया।
Laxmi Bai Kelkar की शिक्षा और महिला सशक्तिकरण की ओर कदम

लक्ष्मी बाई केलकर ने केसरीमल कन्या विद्यालय की स्थापना की यह वर्धा में लड़कियों के लिए बनाया गया प्रथम विद्यालय था। इस विद्यालय के द्वारा महिला साक्षरता और सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया गया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और इसके संस्थापक से प्रेरित होकर लक्ष्मीबाई केलकर ने 1936 में राष्ट्रीय सेविका समिति की स्थापना की इसका प्रारंभ इन्होंने विजयदशमी के दिन किया। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य महिलाओं को शारीरिक प्रशिक्षण, संस्कृत शिक्षा और सामाजिक सेवा के माध्यम से सशक्त बनाना था। इस समिति में कई गतिविधियां जैसे योग, सांस्कृत शिक्षा और वंचितों के लिए आत्मनिर्भरता के उद्देश्य शामिल थे।
Laxmi Bai Kelkar का महिला शक्ति के प्रति दृष्टिकोण
लक्ष्मीबाई केलकर जी ने, अपने पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारियों के बीच का संतुलन बनाए रखा। उन्होंने ऐसी कई परियोजनाओं की शुरुआत की जिस में व्यावसायिक पाठ्यक्रम, नर्सरी स्कूल और महिलाओं के लिए लघु उद्योग शामिल है । भारत के विभाजन के दौरान हिंदुओं का समर्थन करने के लिए सिंध की उनकी यात्रा ने सांप्रदायिक सद्भाव और सामाजिक सेवा के प्रति उनकी सद्भावना को प्रदर्शित करती है।
धार्मिक चेतना और आध्यात्मिक प्रेरणा
लक्ष्मीबाई केलकर जी के जीवन में एक ऐसी घटना ने उनके जीवन में एक नया मोड़ दिया। एक दिन लक्ष्मीबाई केलकर के सपने में एक ऋषि ने उन्हें रामायण भेंट की थी। जिसने उन्हें शांति और सद्भावना की प्रेरणा दी और धार्मिक प्रवचनों का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया। उनके प्रभावशाली भाषणों ने श्री राम के कर्तव्य और बलिदान के आदर्शों पर रोशनी डाली। और महिलाओं को साहस और पवित्रता का अनुकरण करने के लिए कहा।
Laxmi Bai Kelkar की व्यक्तित्व की विशेषताएं और लोकप्रियता
लक्ष्मी बाई केलकर को लोग प्यार से मौसी जी कहकर बुलाते थे। इन्होंने केवल शिक्षा और सशक्तिकरण ही नहीं अच्छे स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती की प्रेरणा दी। उन्होंने योग आसन और सूर्य नमस्कार को शामिल करने के लिए कई कार्यक्रमों को नया स्वरूप दिया। इन्होंने सेविका पत्रिका और महिलाओं की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए श्री विद्या निकेतन की स्थापना की।
Laxmi Bai Kelkar की निधन और शाश्वत विरासत
अपनी व्यापक जिम्मेदारियों के बावजूद लक्ष्मी बाई केलकर भक्ति और स्वच्छता की एक मिसाल बन गई। उनकी विनम्रता और तेज याददाश्त ने इन्हें सभी लोगों का प्रिय बना दिया। लोग इन्हें मां के रूप में मानते थे।
1978 में उनके स्वास्थ्य असंतुलित रहने लगा। दिल का दौरा पड़ने के कारण 27 नवंबर 1978 को उनकी मृत्यु हो गई।
लक्ष्मी बाई केलकर का जीवन उनके साहस दूरदर्शिता और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने तथा हिंदू सांस्कृतिक मूल्यों को जीवित रखने के लिए एक बड़ा योगदान है। उनकी यह विरासत पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती रहेगी।
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