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Vice President चुनाव एक असामान्य चुनाव
भारत के Vice President की कुर्सी पर होने वाला यह चुनाव अपने आप में कुछ खास था, क्योंकि यह बिल्कुल आम हालातों में नहीं हुआ। दरअसल, देश के पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ साहब, जो राज्यसभा के सभापति यानी चेयरमैन की जिम्मेदारी भी संभाल रहे थे, उन्होंने अपनी सेहत की वजह से 2027 से पहले ही इस्तीफ़ा दे दिया।

उनके इस अचानक उठाए गए कदम से एक तरह की अनिश्चितता (बे-यक़ीनी) का माहौल बन गया। लेकिन हमारे संविधान की धारा 68 बिल्कुल साफ़ कहती है कि – जैसे ही Vice President की कुर्सी खाली हो, वैसे ही जल्द से जल्द नया चुनाव करवाना ज़रूरी है। यही वजह रही कि इस बार का चुनाव कराना पड़ा।
यह चुनाव महज़ एक औपचारिक प्रक्रिया नहीं था, बल्कि ये हमारे लोकतांत्रिक उसूलों और संवैधानिक ज़िम्मेदारी का जीता-जागता सबूत भी था। सात जुलाई 2025 के बाद यह पहला Vice President चुनाव हुआ, और इसने फिर से ये साबित किया कि भारत का लोकतंत्र हर हालात में अपनी राह ढूँढ लेता है और देश की रूह (आत्मा) को ज़िंदा रखता है।
Vice President चुनाव प्रक्रिया
भारत के नए Vice President के चुनाव की मतदान तिथि 9 सितंबर 2025 तय की गई थी। उस दिन संसद भवन में सुबह से ही एक अलग ही रौनक और जोश देखने को मिला। सभी सांसद इस ऐतिहासिक प्रक्रिया का हिस्सा बनने के लिए पहुँचे। मतदान का समय सुबह 10 बजे से शुरू होकर शाम 5 बजे तक चला। जैसे ही घड़ी ने शाम के 5 बजाए, मतदान प्रक्रिया खत्म हुई और थोड़ी देर के इंतज़ार के बाद शाम 6 बजे मतगणना शुरू कर दी गई।
इस चुनाव का मतदाता मंडल बेहद खास होता है, क्योंकि इसमें सीधे जनता वोट नहीं करती, बल्कि जनता के चुने हुए प्रतिनिधि यानी सांसद मतदान करते हैं। इस मंडल में लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों के सदस्य शामिल थे, और राज्यसभा के वे सदस्य भी जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा नामित किया गया है।
कुल मिलाकर इस बार 781 सांसदों के पास वोट डालने का अधिकार था। इनमें से 767 सांसदों ने अपने वोट डाले, जबकि 14 सांसदों ने वोट डालने से परहेज़ किया या यूँ कहें कि उन्होंने चुनाव का बहिष्कार किया। अगर प्रतिशत में देखें तो करीब 98.2% मतदान हुआ, जो वाक़ई बहुत ऊँचा और काबिले-तारीफ़ माना जाता है। यह दिखाता है कि सांसदों ने इस चुनाव को कितनी गंभीरता और जिम्मेदारी से लिया।
एक और खास बात ये रही कि इस पूरे चुनाव में गुप्त मतदान (सीक्रेट बैलेट) की प्रक्रिया अपनाई गई। इसका मतलब है कि हर सांसद को पूरी आज़ादी मिली कि वो अपनी अंतरात्मा की आवाज़ और अपनी समझ के अनुसार वोट करे। इस चुनाव में पार्टी व्हिप यानी पार्टी का दबाव या बंधन लागू नहीं होता। वजह साफ़ है—उपराष्ट्रपति का पद बेहद अहम और हस्सास (संवेदनशील) होता है। यहाँ किसी पार्टी लाइन से बँधकर नहीं, बल्कि देशहित और लोकतांत्रिक सोच से फ़ैसला लिया जाता है।
यही कारण है कि इस चुनाव को सिर्फ़ एक राजनीतिक प्रक्रिया नहीं माना जाता, बल्कि इसे लोकतंत्र का असली इम्तिहान कहा जाता है| जहाँ सांसद अपनी पार्टी नहीं, बल्कि अपनी ज़मीर और सच्चाई के साथ खड़े होते हैं।
चुनाव मुकाबले की शुरुआत
इस बार के Vice President चुनाव में देश की राजनीति के दोनों बड़े धड़ों ने अपने-अपने उम्मीदवार उतारे। NDA (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) की ओर से मैदान में थे सी. पी. राधाकृष्णन। वो महाराष्ट्र के राज्यपाल रह चुके हैं और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में गिने जाते हैं। उनका राजनीतिक अनुभव लंबा है और पार्टी उन्हें हमेशा से भरोसेमंद चेहरा मानती रही है।
दूसरी तरफ़ विपक्षी गठबंधन INDIA ब्लॉक ने अपनी तरफ़ से एक बिल्कुल अलग पहचान वाले उम्मीदवार को खड़ा किया। ये उम्मीदवार थे न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी, जो सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हो चुके जज हैं। वे अपने साफ-सुथरे काम, पारदर्शिता और संविधान की मूल भावना की रक्षा करने वाली सोच के लिए जाने जाते हैं। विपक्ष ने उन्हें इस चुनाव का प्रतीक बनाकर पेश किया—जैसे कि वो सिर्फ़ एक उम्मीदवार नहीं, बल्कि संविधान की आत्मा और लोकतांत्रिक मूल्यों की आवाज़ हों।
यही वजह रही कि इस चुनाव को केवल एक पद पाने की दौड़ नहीं कहा गया, बल्कि इसे एक संवैधानिक जंग का नाम दिया गया। एक ओर सरकार और सत्ता पक्ष के समर्थन से मज़बूत NDA का उम्मीदवार था, जबकि दूसरी ओर विपक्ष इस लड़ाई को लोकतंत्र की रक्षा और संविधान की असली ताक़त को बचाने की लड़ाई बता रहा था।
कुल मिलाकर माहौल कुछ ऐसा था कि ये चुनाव सिर्फ़ दो उम्मीदवारों के बीच का नहीं, बल्कि दो विचारधाराओं और दो सोच के बीच का टकराव बन गया| जहाँ एक तरफ़ सत्ता का दमख़म था, वहीं दूसरी तरफ़ लोकतंत्र की आत्मा और न्याय की आवाज़ को बुलंद करने का दावा था।
Vice President चुनावऔर राजनीतिक बारीकियाँ
Vice President चुनाव के दिन मतदान की शुरुआत खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की। उन्होंने सबसे पहला वोट डालकर इस पूरी औपचारिक प्रक्रिया को एक तरह से शुभारंभ दिया। जैसे ही प्रधानमंत्री ने वोट डाला, संसद भवन का माहौल और भी ज़्यादा गंभीर और ऐतिहासिक हो गया।
हालाँकि, इस मतदान के दौरान हर दल ने हिस्सा नहीं लिया। कुछ पार्टियों ने चुनाव से दूरी बना ली और बहिष्कार किया। इनमें बीजेडी (बिजू जनता दल), बीआरएस (भारत राष्ट्र समिति) और शिरोमणि अकाली दल (SAD) जैसी पार्टियाँ शामिल थीं। उनके इस कदम से राजनीतिक हलकों में काफ़ी चर्चा हुई।
भाजपा के पास इस चुनाव में पहले से ही भारी बहुमत था, लेकिन फिर भी पार्टी ने किसी भी तरह की ढिलाई नहीं बरती। उन्हें अंदाज़ा था कि कुछ सांसद पार्टी लाइन से हटकर वोट कर सकते हैं। इसलिए सत्तापक्ष पूरी तरह सतर्क रहा और हर वोट पर नज़र बनाए रखी।
दूसरी ओर, विपक्ष ने इस चुनाव को सिर्फ़ नंबरों की लड़ाई नहीं बताया। विपक्षी नेताओं ने खुलकर कहा कि ये चुनाव किसी पार्टी लाइन का मामला नहीं है, बल्कि ये ज़मीर और आत्मा की आवाज़ का सवाल है। उन्होंने सांसदों से अपील की कि वो अपने दिल और अंतरात्मा की सुनें और वोट डालते समय सोचें कि वो संविधान और लोकतंत्र के लिए किस तरफ़ खड़े हैं।
इस तरह पूरा माहौल सिर्फ़ राजनीतिक टकराव तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसमें एक तरह की जद्दोजहद (संवैधानिक जंग) भी नज़र आई—जहाँ एक ओर सत्ता का दबदबा था और दूसरी ओर लोकतंत्र की रूह को बचाने का दावा।
Vice President Election कौन जिता और क्यों
जब शाम को मतगणना शुरू हुई तो सबकी नज़रें नतीजों पर टिकी हुई थीं। कुछ ही घंटों में तस्वीर साफ़ हो गई और रिज़ल्ट सामने आ गया।
एनडीए (NDA) के उम्मीदवार CP Radhakrishnan ने शानदार जीत दर्ज की। उन्हें कुल 452 वोट मिले। दूसरी तरफ़ INDIA ब्लॉक के उम्मीदवार, पूर्व जज बी. सुदर्शन रेड्डी को 300 वोट हासिल हुए।
मतगणना के बाद कुल 752 वोट प्रमाणित पाए गए। इसमें CP Radhakrishnan को करीब 60.1% वोट मिले, जबकि सुदर्शन रेड्डी को लगभग 39.9% वोट मिले। यानी साफ़ शब्दों में कहें तो नतीजा एकतरफ़ा रहा।
इस चुनाव में कुल 767 सांसदों ने मतदान किया, जबकि 14 सांसदों ने वोट डालने से परहेज़ किया और चुनाव का बहिष्कार किया। वोटिंग का प्रतिशत भी काफ़ी ऊँचा रहा—करीब 98.2%, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिहाज़ से बेहद महत्वपूर्ण है।
नतीजों ने साफ़ कर दिया कि इस बार भी संसद में एनडीए का दबदबा और राजनीतिक रणनीति पूरी तरह कारगर साबित हुई। विपक्ष ने भले ही इसे “संविधान की लड़ाई” बताया हो, लेकिन संख्याओं के हिसाब से सत्ता पक्ष की पकड़ मज़बूत रही।
कुल मिलाकर नतीजों ने एक बार फिर दिखा दिया कि राजनीति में सिर्फ़ दावे और भाषण नहीं, बल्कि गठबंधन की शक्ति और नंबर गेम ही अंतिम फैसला करते हैं।
Election Result का प्रभाव
इस चुनाव के नतीजों ने सिर्फ़ एक विजेता तय नहीं किया, बल्कि देश की राजनीति और लोकतंत्र की तस्वीर को भी साफ़ कर दिया।
सबसे पहले बात करें राजनीतिक संतुलन की—तो CP Radhakrishnan की जीत ने एनडीए को एक तरह से और भी मज़बूत बना दिया। इससे सरकार को न सिर्फ़ ताक़त मिली, बल्कि संवैधानिक स्थिरता भी बरकरार रही। उपराष्ट्रपति जैसा अहम पद एनडीए के पास रहने का मतलब है कि आने वाले समय में सरकार की रणनीतियाँ और फैसले और भी आसान तरीके से आगे बढ़ सकेंगे।
संसदीय संदेश भी इस चुनाव से साफ़ दिखाई दिया। विपक्ष ने पूरी कोशिश की कि वो एकजुट और मज़बूत दिखे, उन्होंने न्यायमूर्ति सुदर्शन रेड्डी जैसे ईमानदार और पारदर्शी छवि वाले उम्मीदवार को सामने रखकर लोकतंत्र की आवाज़ बुलंद करने की कोशिश की। लेकिन आखिरकार बहुमत की ताक़त ने नतीजों पर गहरा असर डाला और सरकार के पक्ष में परिणाम आ गया।
अब अगर नज़र डालें लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर—तो इस चुनाव ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि भारत का लोकतंत्र अभी भी पूरी तरह से मज़बूत है। गुप्त मतदान की व्यवस्था, 98% से ज़्यादा का भारी मतदान प्रतिशत और संवैधानिक नियमों का पालन—इन सबने इस चुनाव को बेहद भरोसेमंद और पारदर्शी बना दिया। हर सांसद को अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनने और अपने हिसाब से वोट डालने की पूरी आज़ादी मिली, और यही तो असली लोकतंत्र की ख़ूबसूरती है।
यह भी याद रखना ज़रूरी है कि उपराष्ट्रपति सिर्फ़ देश का दूसरा सबसे बड़ा पद नहीं होता, बल्कि वही राज्यसभा के सभापति भी होते हैं। इस वजह से सांसदों में यह धारणा भी बनी रही कि नए उपराष्ट्रपति के आने से संसद के कामकाज पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ेगा, बल्कि कार्यकारिणी और विधायिका के बीच तालमेल और भी मज़बूत होगा।
आख़िर में कहा जा सकता है कि यह चुनाव हमें संविधान की अहमियत, लोकतंत्र की रक्षा और हमारे संवैधानिक संस्थानों की गंभीरता की याद दिलाता है। चाहे जीत किसकी भी हुई हो, लेकिन सबसे बड़ी बात यह रही कि पूरा चुनाव पारदर्शिता (शफ़ाफ़ियत) और ईमानदारी के साथ सम्पन्न हुआ। यही हमारी लोकतांत्रिक परंपरा की असली ताक़त है।
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