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Vote Chori पर Rahul Gandhi का Attack किया 2025 का दूसरा प्रेस कॉन्फ्रेंस कहा Gen Z के हाथों में है Constitution

Vote Chori पर Rahul Gandhi का Attack किया 2025 का दूसरा प्रेस कॉन्फ्रेंस कहा Gen Z के हाथों में है Constitution

Rahul Gandhi की प्रेस कॉन्फ्रेंस लोकतंत्र की पुकार

नई दिल्ली में कांग्रेस के लीडर और लोकसभा में विपक्ष के सरदार Rahul Gandhi ने कल एक अहम और ख़ास प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इस पूरी बातचीत में उन्होंने बड़ा संगीन इल्ज़ाम लगाया कि मुल्क में “वोट चोरी” (Vote Chori) का खेल चल रहा है।

उन्होंने यह भी कहा कि मतदाता सूचियों (voter rolls) से लोगों के नाम जान-बूझकर मिटाए जा रहे हैं, जिसे वह “वोट डिलीशन” कह रहे हैं।

Rahul Gandhi के इस बयान ने राजनीतिक हलक़ों में हलचल मचा दी है। पार्टी दफ़्तरों से लेकर सोशल मीडिया तक हर जगह यही चर्चा छिड़ी है। सबसे अहम बात यह है कि ये इल्ज़ाम सीधे-सीधे भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India, ECI) पर और इसके मुखिया यानी चीफ़ इलेक्शन कमिश्नर ज्ञानेश कुमार पर लगाए गए हैं।

असल में यह पूरा मामला महज़ एक बयान नहीं है, बल्कि इसमें कई तरह के सबूतों, दावों और सवालों की परतें छुपी हुई हैं। राहुल गांधी ने इस कॉन्फ्रेंस में न सिर्फ़ “वोट चोरी” का मुद्दा उठाया बल्कि यह भी दिखाने की कोशिश की कि किस तरह से सिस्टम में गड़बड़ी करके आम लोगों का हक़ छीना जा रहा है।

उन्होंने जो बातें कहीं, उन पर अब विपक्षी दलों, मीडिया और ख़ुद चुनाव आयोग की तरह-तरह की प्रतिक्रियाएँ आ रही हैं।

यह पूरा मुआमला सिर्फ़ सियासी नहीं है, बल्कि इसका ताल्लुक़ सीधे तौर पर लोकतंत्र, इंसाफ़ और जनता के भरोसे से भी है। इस लेख में हम तफ़्सील से जानेंगे कि राहुल गांधी ने आख़िर कहा क्या, उनके पास किस तरह के सबूत हैं, राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों ने इस पर कैसी प्रतिक्रिया दी और इन सब बातों के संवैधानिक मायने क्या हो सकते हैं।

प्रेस कॉन्फ्रेंस की Background

Rahul Gandhi पिछले कई महीनों से लगातार “वोट चोरी” का मसला उठाते आ रहे हैं। उनका कहना है कि मुल्क भर में जगह-जगह पर मतदाता सूचियों (voter list) के साथ गड़बड़ की जा रही है। यानी वोटर लिस्ट से लोगों के नाम जान-बूझकर गायब किए जा रहे हैं।

ख़ास तौर पर ऐसे इलाक़ों और बूथों से, जहाँ परंपरागत तौर पर कांग्रेस को मज़बूती मिलती है और जनता पार्टी के साथ खड़ी दिखाई देती है।

Rahul Gandhi का इल्ज़ाम है कि ये सब कुछ यूंही इत्तेफ़ाक़ से नहीं हो रहा, बल्कि इसके पीछे एक सोच-समझकर बनाई गई साज़िश है। उनका कहना है कि इस तरह की हरकतें विपक्ष को नुक़सान पहुँचाने के लिए की जा रही हैं, ताकि चुनाव का नतीजा सत्ताधारी पार्टी के हक़ में जाए।

कांग्रेस ने इस पूरे मुद्दे को गंभीरता से उठाया है। उन्होंने इसे लेकर एक बड़ा आंदोलन शुरू किया है, जिसे नाम दिया गया है — “वोटर अधिकार यात्रा” (Voter Adhikar Yatra)। इस यात्रा का मक़सद है जनता को जागरूक करना, यह बताना कि वोट देना उनका बुनियादी हक़ है और इस हक़ से किसी को भी महरूम नहीं किया जा सकता।

यह यात्रा अलग-अलग राज्यों में, ख़ास तौर पर चुनाव से ठीक पहले निकाली गई, ताकि लोगों में चेतना पैदा हो और ग़लत तरीक़ों को बेनक़ाब किया जा सके।

Rahul Gandhi का यह भी दावा है कि यह पूरी प्रक्रिया सिर्फ़ लोकल स्तर यानी स्थानीय अफ़सरों या छोटे कर्मचारियों की करतूत नहीं है। बल्कि उनके मुताबिक़ यह काम केंद्रीकृत और संगठित तरीके से किया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि इसके पीछे किसी बड़े सॉफ़्टवेयर या ऑनलाइन सिस्टम का इस्तेमाल हो रहा है, जिसके ज़रिये वोटर लिस्ट में हेरफेर की जाती है। यानी यह खेल साधारण स्तर का नहीं, बल्कि टेक्नॉलॉजी और संगठन की मदद से बहुत बड़े पैमाने पर किया जा रहा है।

Rahul Gandhi द्वारा मुख्य आरोप और सबूत

प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान राहुल गांधी ने एक-एक करके कई अहम बातें रखीं। उन्होंने कहा कि मामला छोटा नहीं बल्कि पूरे चुनावी सिस्टम पर सवाल उठाता है।

आलंद विधानसभा सीट, कर्नाटक का मामला
Rahul Gandhi ने सबसे पहले कर्नाटक की आलंद विधानसभा (Aland constituency) का ज़िक्र किया। उनका दावा है कि 2023 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले वहाँ लगभग 6,018 वोटर्स के नाम मतदाता सूची से हटाने की कोशिश हुई।

राहुल ने कहा कि यह तो बस एक मिसाल है, असलियत में ऐसी “वोट डिलीशन” की वारदातें महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दूसरे कई राज्यों में भी हो रही हैं। यानी खेल सिर्फ़ एक जगह तक सीमित नहीं बल्कि पूरे मुल्क में फैला हुआ है।

फर्जी लॉगिन और संदिग्ध मोबाइल नंबर
Rahul Gandhi ने सबूत दिखाते हुए कहा कि कई रिकॉर्ड ऐसे मिले हैं जहाँ से वोट डिलीशन के लिए आवेदन भरे गए, लेकिन वे असल में फर्जी लॉगिन से किए गए थे। कुछ मोबाइल नंबर भी मिले जो बाहर के राज्यों से इस्तेमाल हो रहे थे। उन्होंने कहा कि ये सबूत साफ़ इशारा करते हैं कि मामला कोई साधारण गड़बड़ी नहीं बल्कि संगठित साज़िश है।

उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया—एक शख़्स ने दावा किया कि उसने महज़ 14 मिनट में 12 वोट डिलीशन के फॉर्म भर डाले। वहीं एक और रिकॉर्ड में दिखा कि 38 सेकंड में 2 आवेदन पूरे कर दिए गए। राहुल ने कहा, “ये काम इंसान के बस की बात ही नहीं है, यह साफ़ सबूत है कि कोई सॉफ़्टवेयर या ऑटोमैटिक सिस्टम का इस्तेमाल हो रहा है।”

कॉल सेंटर जैसा ऑपरेशन
उन्होंने आगे कहा कि यह काम ऐसे हो रहा है जैसे किसी कॉल सेंटर में होता है। यानी एक जगह से संगठित तरीक़े से, कंप्यूटर और सॉफ़्टवेयर का सहारा लेकर मतदाता सूचियों से नाम हटाए जा रहे हैं या बदल दिए जा रहे हैं। राहुल ने कहा कि ये सब किसी छोटे अधिकारी की करतूत नहीं, बल्कि बड़ी योजना और केंद्रीकृत व्यवस्था के तहत हो रहा है।

निर्वाचन आयोग की चुप्पी और 18 खत
Rahul Gandhi ने यह भी कहा कि कर्नाटक CID ने इस मामले को लेकर पिछले 18 महीनों में चुनाव आयोग (EC) को 18 पत्र भेजे हैं। लेकिन आयोग की तरफ़ से इस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। उनका कहना था कि चुनाव आयोग से जानकारी तो दी जाती है, लेकिन पूरे मामले को गंभीरता से आगे बढ़ाने में हमेशा देर और रुकावट पैदा की जाती है। राहुल ने साफ़ कहा कि आयोग का रवैया जनता के भरोसे पर सवाल उठाता है।

“हाइड्रोजन बॉम्ब” का इशारा
सबसे दिलचस्प बात तब हुई जब राहुल गांधी ने कहा कि जो सबूत अभी उन्होंने सामने रखे हैं, वो पूरा सच नहीं है। उन्होंने इसे “हाइड्रोजन बॉम्ब” का ट्रेलर बताया। राहुल ने कहा कि असली धमाका तो आने वाले दिनों में होगा, जब वह सारे सबूतों को जनता के सामने रखेंगे। उन्होंने दावा किया कि उनके पास मौजूद सबूत “100 फ़ीसदी बुलेटप्रूफ़” हैं, यानी उन पर शक करने की कोई गुंजाइश ही नहीं है।

प्रतिक्रियाएँ और चुनौतियाँ

Rahul Gandhi के ये इल्ज़ाम और तफ़सीलें (विस्तार) सिर्फ़ एक सियासी जंग भर नहीं हैं, बल्कि सीधे-सीधे हमारे जम्हूरियत (लोकतंत्र), चुनावी अमल की पारदर्शिता, वोटरों की सुरक्षा और पूरे इलेक्शन सिस्टम की एमानदारी से जुड़े हुए हैं।

मतदाता सूची से नाम हटना — बड़ा खतरा
Rahul Gandhi ने साफ़ कहा कि अगर वोटर लिस्ट में से किसी का नाम चोरी-छुपे या धोखे से हटा दिया जाए, या बिना उस इंसान को बताए उसका वोट डिलीट कर दिया जाए, तो यह सिर्फ़ एक गलती नहीं बल्कि बुनियादी लोकतांत्रिक हक़ की तौहीन (उल्लंघन) है। वोट डालना हर शहरी का हक़ है, और अगर वही छीना जाए तो लोकतंत्र का असली मतलब ही खो जाएगा।

चुनाव आयोग की अहमियत
उन्होंने यह भी दोहराया कि चुनाव आयोग (EC) कोई साधारण दफ़्तर नहीं, बल्कि यह पूरा संवैधानिक स्तंभ है, लोकतंत्र की रीढ़ की हड्डी है। अगर जनता का भरोसा EC पर से उठ जाए, तो फिर पूरा चुनावी सिस्टम डगमगा जाएगा। इसलिए जब ऐसे संगीन इल्ज़ाम लग रहे हैं, तो EC की जवाबदेही (accountability) और पारदर्शिता दिखाना और भी ज़रूरी हो जाता है।

युवा पीढ़ी की भूमिका
Rahul Gandhi ने ख़ासतौर पर नौजवानों और स्टूडेंट्स को याद किया। उन्होंने कहा कि आज की Gen Z और यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स ही असल में संविधान और लोकतंत्र की हिफ़ाज़त करने वाले हैं। अगर नौजवान चुप रहे तो ये खेल चलता रहेगा, लेकिन अगर वही आवाज़ उठाएँगे तो बदलाव ज़रूर आएगा।

समय सीमा और चेतावनी
Rahul Gandhi ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में एक तरह की अल्टीमेटम भी दे डाली। उन्होंने चुनाव आयोग को कहा कि वो एक हफ़्ते के अंदर पूरा डेटा सार्वजनिक करे — जैसे कि इस्तेमाल हुए मोबाइल नंबर, OTP, और लॉगिन डिटेल्स। अगर ये जानकारी सामने नहीं आती, तो राहुल ने साफ़ कहा कि वह समझेंगे कि EC वोट चोरी करने वालों की हिफ़ाज़त कर रहा है।

राजनीतिक प्रभाव और कमियाँ

Rahul Gandhi की इस प्रेस कॉन्फ़्रेंस ने जहाँ एक तरफ़ सियासी हलकों में गर्मी बढ़ा दी है, वहीं दूसरी तरफ़ बहुत से सवाल भी खड़े कर दिए हैं।

“हाइड्रोजन बॉम्ब” का इंतज़ार
Rahul Gandhi ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में खुद ही कहा कि उन्होंने अभी पूरा सच सामने नहीं रखा है। जो बातें उन्होंने दिखाई हैं, वो बस एक झलक हैं, असली “हाइड्रोजन बॉम्ब” तो अभी बाकी है। यानी उनके पास और भी बड़े सबूत हैं, जिन्हें वो आने वाले दिनों में पेश करेंगे। लेकिन सवाल ये उठता है कि अगर सबूत इतने मज़बूत हैं, तो उन्हें अभी क्यों नहीं सामने लाया गया? आलोचक कह रहे हैं कि शायद राहुल वक़्त देखकर माहौल बनाना चाहते हैं।

निर्वाचन आयोग की सफ़ाई
EC ने अपने बयान में कहा कि राहुल के आरोप बेबुनियाद हैं। आयोग का कहना है कि वोट डिलीशन का कोई भी आवेदन यूँ ही मंज़ूर नहीं हो सकता। हर आवेदन की प्रक्रिया होती है और प्रभावित शख़्स को सुनवाई का मौका दिया जाता है। यानी चुनाव आयोग ने अपने ऊपर लगे शक़ को सिरे से नकार दिया है।

तकनीकी सबूतों की कमी
हालाँकि राहुल गांधी ने मोबाइल नंबर, OTP, लॉगिन जैसी बातें उठाईं, लेकिन अभी तक उनका असली डेटा सामने नहीं आया। कौन-से नंबर इस्तेमाल हुए, किस वक़्त लॉगिन किया गया, या किस सॉफ़्टवेयर का इस्तेमाल हुआ — ये डिटेल्स अभी तक पब्लिक डोमेन में नहीं आईं। ऐसे में आलोचक कह रहे हैं कि आधा-अधूरा सच दिखाकर माहौल बिगाड़ना कांग्रेस की रणनीति हो सकती है।

राजनीतिक असर और रणनीति
इस प्रेस कॉन्फ़्रेंस का असर चुनावी राजनीति पर भी साफ़ दिख रहा है। कांग्रेस इस मुद्दे के ज़रिए अपनी पकड़ मज़बूत करना चाहती है, ख़ासतौर पर उन इलाक़ों में जहाँ चुनाव नतीजे कांटे की टक्कर वाले होते हैं। पार्टी चाहती है कि जनता में बहस छेड़कर लोकतांत्रिक सवालों को मुख्यधारा में लाया जाए।

दूसरी तरफ़ BJP और चुनाव आयोग अब अपनी विश्वसनीयता बचाने के लिए और एक्टिव हो जाएँगे। उनका पूरा ध्यान इस बात पर होगा कि कांग्रेस के आरोपों को झूठा साबित किया जाए और जनता के बीच भरोसा बना रहे।

आगे की संभावनाएँ
ये मामला केवल प्रेस कॉन्फ़्रेंस तक सीमित नहीं रहेगा। हो सकता है कि यह न्यायालय तक भी पहुँचे। जवाबी बयान, डिटेल्स की माँग और कानूनी लड़ाई — सब कुछ इस मसले से निकल सकता है। साथ ही मीडिया और सोशल मीडिया पर भी अब चर्चा का बड़ा हिस्सा वोटर अधिकारों और चुनावी पारदर्शिता पर केंद्रित हो जाएगा।

युवा पीढ़ी की संवेदनशीलता
इस मुद्दे पर नौजवान तबक़ा काफ़ी सजग दिखाई दे रहा है। राहुल ने भी इस बात पर ज़ोर दिया कि आने वाले वक़्त में Gen Z और स्टूडेंट्स ही लोकतंत्र के असली मुहाफ़िज़ (रक्षक) होंगे। अगर सबूत सही निकले और वक़्त पर सामने रखे गए, तो यह कांग्रेस के लिए एक बड़ा मोमेंटम बना सकता है।

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