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Bihar Election 2025 की राजनीति और तारीख
Bihar Election 2025, हिंदुस्तान की सियासत में हमेशा से ही एक ख़ास जगह रखता आया है। यहाँ की राजनीति कभी सिर्फ़ जातीय समीकरणों पर घूमती रही, तो कभी “विकास” और “सामाजिक इंसाफ़” (social justice) जैसे मुद्दे हावी हो गए। यही वजह है कि बिहार के चुनाव सिर्फ़ बिहार तक सीमित नहीं रहते, बल्कि पूरे मुल्क की सियासत को नई दिशा देने का काम करते हैं।

अब बात करते हैं साल 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव की। ये चुनाव इसलिए भी अहम माना जा रहा है क्योंकि पिछले कुछ सालों में जो उठापटक हुई है — गठबंधनों का टूटना, नए समीकरण बनना और पुराने दुश्मनों का दोस्त बन जाना — उसने पूरे माहौल को और भी पेचीदा बना दिया है।
इस वक़्त तस्वीर ये है:
राज्य की सत्ता एनडीए (NDA) के हाथ में है। इस खेमे में जेडीयू (JDU), बीजेपी (BJP), हिंदुस्तानी आवामी मोर्चा (HAM) और लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) जैसे दल शामिल हैं। लेकिन दूसरी तरफ़ भी विपक्ष हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठा। महागठबंधन (RJD, कांग्रेस, वामदल) ने अपनी रणनीति को तेज़ कर दिया है और छोटे-छोटे नए दल भी अपने पत्ते खोलने लगे हैं।
किस्सा यहाँ पर ही ख़त्म नहीं होता।
बिहार की सियासत का अंदाज़ ही ऐसा है कि हर हफ़्ते कोई न कोई नया मोड़ आ जाता है | कभी किसी नेता का बगावत करना, तो कभी चुनाव से ठीक पहले नए गठबंधन का ऐलान होना। यही अनिश्चितता इस बार के चुनाव को और दिलचस्प बना रही है।
चुनावी तैयारी और तारीख़ का मसला
चुनाव आयोग की तरफ़ से अब तक कोई आधिकारिक तारीख़ का एलान नहीं हुआ है। लेकिन ज़्यादातर रिपोर्ट्स का कहना है कि 6 अक्टूबर, 2025 के बाद कभी भी चुनावी तारीख़ की घोषणा हो सकती है। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स तो ये भी कह रही हैं कि अक्टूबर के आख़िर या नवंबर की शुरुआत में वोटिंग कराई जा सकती है।
सरकार और प्रशासन को भी इसी हिसाब से तैयारी करने का हुक्म दिया गया है। ट्रांसफर-पोस्टिंग की प्रक्रियाएँ तेज़ कर दी गई हैं, बड़े अफ़सरों से लेकर ज़िला स्तर तक के अधिकारियों को रिपोर्टिंग के लिए अलर्ट पर रखा गया है। यानी कि पूरी मशीनरी धीरे-धीरे चुनावी मोड में आ चुकी है।
संभावनाएँ और माहौल
अगर ज़मीनी हक़ीक़त की बात करें तो इस बार का इलेक्शन सिर्फ़ दलों का नहीं, बल्कि “नैरेटिव” (narrative) यानी कहानी बनाने का चुनाव भी होगा। एनडीए अपनी उपलब्धियों और “स्थिर सरकार” की इमेज पर वोट माँगेगा। वहीं महागठबंधन बेरोज़गारी, महँगाई और “जनता से किए गए वादों” को अपना हथियार बनाएगा।
युवाओं की भूमिका भी अहम होगी। बिहार में पहली बार वोट डालने वाले लाखों नए मतदाता हैं। इनकी सोच पर सोशल मीडिया और ज़मीनी मुद्दों — जैसे नौकरी, पढ़ाई और रोज़गार — का ज़्यादा असर पड़ सकता है।
Bihar Election 2025 प्रशासनिक बदलाव और मतदाता सूची
Bihar Election 2025 जैसे-जैसे नज़दीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे पूरे राज्य में सिर्फ़ सियासी ही नहीं बल्कि प्रशासनिक स्तर पर भी तेज़ हलचल देखने को मिल रही है। हाल ही में सरकार ने बड़ा फ़ैसला लेते हुए प्रत्यय अमृत को बिहार का नया मुख्य सचिव (Chief Secretary) बना दिया है। माना जा रहा है कि ये तैनाती इसलिए की गई है ताकि सत्ता का हस्तांतरण और पूरा प्रशासनिक तंत्र चुनाव के दौरान बिना रुकावट के और सुचारू तरीक़े से चलता रहे।
तबादलों का दौर
निर्वाचन आयोग (Election Commission) ने भी साफ़ आदेश दे दिया है कि जो अधिकारी पिछले तीन सालों से एक ही कुर्सी पर टिके हुए हैं, उनका तुरंत ट्रांसफ़र होना चाहिए। मक़सद साफ़ है चुनाव पूरी तरह से फ़ेयर और पारदर्शी लगे, किसी पर पक्षपात का शक न हो। साथ ही एक और हिदायत दी गई है कि किसी भी अफ़सर को उसके “गृहनगर” (home district) में पोस्टिंग न दी जाए। वजह ये है कि अपने ही ज़िले में अधिकारी के रिश्ते-नातेदार और जान-पहचान ज़्यादा होती है, और इससे Bihar Election की निष्पक्षता पर सवाल खड़े हो सकते हैं।
मतदाता सूची और विवाद
अब आते हैं सबसे अहम मुद्दे पर मतदाता सूची। इस बार निर्वाचन आयोग ने बिहार में Special Intensive Revision (SIR) यानी “विशेष गहन पुनरीक्षण” की प्रक्रिया शुरू की है। इसका मतलब ये है कि पुराने वोटर लिस्ट को चेक करके नए नाम जोड़े जाएँगे और डुप्लीकेट या ग़लत नाम हटाए जाएँगे। काग़ज़ पर तो ये क़दम सही लगता है, क्योंकि वोटर लिस्ट को अपडेट रखना बहुत ज़रूरी है।
लेकिन… यहाँ से शुरू हुआ विवाद।
विपक्षी पार्टियों और कुछ सामाजिक संगठनों ने आरोप लगाया है कि इस प्रक्रिया में “लाखों लोगों के नाम जान-बूझकर हटाए जा रहे हैं।” उनका कहना है कि ये सिर्फ़ टेक्निकल गलती नहीं है, बल्कि कई जगहों पर गरीब, दलित, अल्पसंख्यक और ग्रामीण तबक़े के वोटर लिस्ट से बाहर कर दिए गए हैं। विपक्ष का आरोप है कि यह “मताधिकार की अवहेलना” है और लोकतंत्र के साथ नाइंसाफ़ी है।
मामला अदालत तक पहुँचा
ये मामला अब सीधे सुप्रीम कोर्ट की चौखट तक पहुँच चुका है। अदालत ने निर्वाचन आयोग से सख़्त सवाल पूछते हुए कहा है कि “जिन लोगों के नाम हटाए गए हैं, उनकी पूरी डिटेल और हटाने की वजह पब्लिक की जानी चाहिए।” यानी अब आयोग को यह साफ़ करना होगा कि किन कारणों से किन-किन मतदाताओं के नाम लिस्ट से हटाए गए हैं।
इस पूरे विवाद ने चुनाव से पहले का माहौल और गरमा दिया है। विपक्ष इसे “जनता का हक़ छीनना” बता रहा है, जबकि सत्ता पक्ष का कहना है कि यह तो सिर्फ़ एक रूटीन प्रक्रिया है और इसमें राजनीति ढूँढना ग़लत है
मुख्य राजनीतिक खिलाड़ी और घटनाक्रम
एनडीए: सीट बँटवारे और LJP की सियासी चालें
Bihar Election 2025 से पहले एनडीए (NDA) के अंदर ही सीट बँटवारे को लेकर खींचतान शुरू हो चुकी है। जेडीयू (JDU) और बीजेपी (BJP) पहले ही अपने हिस्से को लेकर माथापच्ची कर रहे हैं, और अब एलजेपी (LJP) ने भी इस मामले को और पेचीदा बना दिया है।
चिराग पासवान ने साफ़ कहा है कि उनकी पार्टी “क्वालिटी ओवर क्वांटिटी” की पॉलिसी पर चलेगी। यानी ज़्यादा सीटें लेने की बजाय वो सिर्फ़ वही सीटें चाहेंगे जहाँ उनकी जीत लगभग तय हो। चिराग ने ये भी इशारा किया कि आने वाले वक़्त में मुख्यमंत्री पद की रेस में उनका नाम भी आ सकता है। यह बयान जेडीयू और बीजेपी दोनों के लिए सिरदर्द बन गया है, क्योंकि पहले से ही दोनों दल आपस में सीट बाँटने को लेकर तनातनी में हैं।
अगर एलजेपी ज़्यादा ज़ोर लगाएगी तो एनडीए के अंदर “सियासी तकरार” और बढ़ सकती है। कई राजनीतिक जानकार कह रहे हैं कि चिराग पासवान इस बार सिर्फ़ छोटे खिलाड़ी बनकर नहीं रहना चाहते, बल्कि पावर सेंटर के रूप में उभरना चाहते हैं।
महागठबंधन और कांग्रेस की महत्वाकांक्षाएँ
Bihar Election 2025 विपक्षी खेमे में भी हलचल कम नहीं है। कांग्रेस ने पटना में अपनी CWC (कांग्रेस वर्किंग कमिटी) की मीटिंग बुलाई, और यह पहली बार है कि पार्टी ने इतनी अहम बैठक बिहार में की है। मीटिंग में राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे बड़े नेता मौजूद थे। इस दौरान कांग्रेस ने न सिर्फ़ बीजेपी और केंद्र सरकार पर सीधा हमला बोला, बल्कि बिहार में अपना खोया हुआ जनाधार वापस लाने का इरादा भी दिखाया।
Bihar Election 2025 – कांग्रेस की नई मुहिम
Bihar Election 2025 कांग्रेस ने एलान किया है कि वो “हर घर अधिकार रैली” शुरू करने जा रही है। इस रैली का आग़ाज़ मोतिहारी से होगा और इसकी अगुवाई ख़ुद प्रियंका गांधी करेंगी। पार्टी का मानना है कि इससे ज़मीनी स्तर पर लोगों से सीधा जुड़ाव होगा और Bihar Election के गाँव-गाँव तक कांग्रेस की मौजूदगी महसूस होगी।
राहुल गांधी ने भी चुनावी मैदान में अपनी पकड़ मज़बूत करने के लिए एक ख़ास दस्तावेज़ जारी किया है — “Most Backward Justice Manifesto”। इस मैनिफेस्टो में पिछड़े वर्गों की शिक्षा, आरक्षण, और सामाजिक इंसाफ़ (social justice) पर ज़ोर दिया गया है। कांग्रेस इसे एक “गेम चेंजर” की तरह पेश कर रही है, ताकि बिहार के पिछड़े तबक़े को अपने साथ जोड़ा जा सके।
RJD और तेजस्वी यादव का हमला
आरजेडी और तेजस्वी यादव की जंग
Bihar Election 2025 जंग में राजद (RJD) और इसके नेता तेजस्वी यादव पूरी तरह एक्टिव मोड में आ चुके हैं। तेजस्वी लगातार एनडीए और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साध रहे हैं। उन्होंने हाल ही में नीतीश कुमार की सरकार को “नकलची सरकार” कहकर तंज कसा। उनका कहना है कि नीतीश जी की घोषणाएँ और स्कीमें महागठबंधन से उठाई हुई कॉपी हैं, इनमें मौलिकता (originality) बिल्कुल नहीं है।
तेजस्वी ने आगे बढ़कर एक नई योजना भी पेश की है जिसका नाम है “अति पिछड़ा न्याय संकल्प”। यह योजना ख़ास तौर पर अति पिछड़े वर्गों को ध्यान में रखकर बनाई गई है। तेजस्वी का कहना है कि बिहार में सच्चा विकास तभी होगा जब अति पिछड़ों को हक़ और इंसाफ़ दिया जाएगा।
आरजेडी के लिए यह चुनाव सिर्फ़ सत्ता हासिल करने का मामला नहीं है, बल्कि अपनी पहचान बचाने की जंग भी है। बिहार की ज़मीन, जातीय समीकरण और समाजिक गठजोड़ अब बदल रहे हैं। इन नए समीकरणों में आरजेडी को अपने वजूद को मज़बूत रखना है, वरना उनका वोट बैंक धीरे-धीरे खिसक सकता है। यही वजह है कि तेजस्वी बार-बार पिछड़े, अति पिछड़े और युवाओं को लुभाने पर ज़ोर दे रहे हैं।
Bihar Election 2025 ओवैसी की सीमांचल सियासत
Bihar Election 2025: एक और खिलाड़ी मैदान में उतर चुका है असदुद्दीन ओवैसी और उनकी पार्टी एआईएमआईएम (AIMIM)। ओवैसी ने Bihar Election 2025 में अपने चुनाव अभियान की शुरुआत “सीमांचल न्याय यात्रा” से की है।
इस यात्रा का मक़सद साफ़ है सीमांचल इलाके की उपेक्षा को मुद्दा बनाना और वहाँ के लोगों के हक़ की लड़ाई लड़ना। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ यह यात्रा किशनगंज से शुरू हुई और आगे बहादुरगंज, कोचदमन, अररिया समेत कई सीटों तक जाएगी।
एआईएमआईएम का ध्यान यहाँ की मुस्लिम आबादी और सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन पर है। पार्टी का कहना है कि सीमांचल हमेशा से विकास के नाम पर पीछे रखा गया, चाहे वो शिक्षा हो, रोज़गार हो या स्वास्थ्य सेवाएँ। ओवैसी इन मुद्दों को सामने रखकर इस इलाक़े में अपनी पकड़ मज़बूत करना चाहते हैं।
अगर एआईएमआईएम सीमांचल में अपनी जड़ें जमा लेती है तो सीधा असर महागठबंधन और आरजेडी दोनों पर पड़ सकता है, क्योंकि अब तक इन इलाकों में इन्हीं दलों का दबदबा रहा है।
विचार-मंथन: चुनौतियाँ और संभावनाएँ
Bihar Election 2025 वादे और हक़ीक़त
हर Bihar Election की तरह इस बार भी वादों की भरमार है। महागठबंधन ने अपने तरकश से बड़े-बड़े दावे निकाले हैं — जैसे “अति पिछड़ा न्याय”, आरक्षण का विस्तार, और समाजिक बराबरी के नए मॉडल। सुनने में यह सब काफ़ी आकर्षक लगता है, लेकिन असली सवाल यह है कि इन वादों को हक़ीक़त में कैसे उतारा जाएगा।
क्योंकि हक़ीक़त ये है कि इन स्कीमों को लागू करने के लिए चाहिए मज़बूत संसाधन, पुख़्ता बजट और राज्य की वित्तीय सेहत। अगर राज्य की जेब ही खाली है, तो ऐसे वादे काग़ज़ से बाहर निकल पाना मुश्किल हो जाता है।
यही वजह है कि एनडीए और बीजेपी का जवाब भी तैयार है। वे इन वादों को “असंभव वादे” या “हवा-हवाई सपने” कहकर काटने की कोशिश करेंगे। साथ ही वो अपने विकास कार्यों सड़कों, पुलों, बिजली, स्वास्थ्य और शिक्षा योजनाओं को सामने रखकर जनता को दिखाएँगे कि “हमने काम किया है, वादे नहीं बेचे हैं।”
जातीय और क्षेत्रीय समीकरण
अब आते हैं उस पहलू पर जो बिहार की सियासत का दिल और दिमाग़ दोनों है जातीय समीकरण। Bihar Election 2025 में चुनाव सिर्फ़ घोषणाओं से नहीं जीते जाते, बल्कि जातियों का जोड़-घटाव और समाजिक गठजोड़ जीत-हार का असली पैमाना होता है। पिछड़े वर्ग, दलित, ओबीसी और अल्पसंख्यक इनकी वोटबैंक की सियासत इस चुनाव की धुरी है।
सीमांचल इलाक़ा जहाँ मुस्लिम आबादी ज़्यादा है, वहाँ ओवैसी और एआईएमआईएम का “सीमांचल न्याय यात्रा” नया मोड़ ला सकती है। अगर वहाँ एआईएमआईएम ने पकड़ बना ली तो सीधा असर महागठबंधन और आरजेडी के वोट बैंक पर पड़ेगा।
वहीं स्थानीय गठजोड़ भी कम अहम नहीं हैं जैसे भूमिहार, यादव, कुर्मी, कोइरी और अन्य पिछड़ी जातियाँ। इनकी तरफ़ झुकाव किस तरफ़ जाता है, वही चुनाव की दिशा तय करेगा।
तीसरा मोड़ — नए दलों की चुनौती
Bihar Election 2025 की नई सियासत और जन सुराज पार्टी की चुनौती
Bihar Election की सियासत अब सिर्फ़ दो-तीन बड़े पारंपरिक दलों तक सीमित नहीं रह गई है। पहले तक खेल मुख्य रूप से आरजेडी, जेडीयू और बीजेपी के इर्द-गिर्द घूमता था, लेकिन अब नए खिलाड़ी भी मैदान में उतर चुके हैं। इनमें सबसे ज़्यादा चर्चा हो रही है जन सुराज पार्टी की, जिसका नेतृत्व प्रशांत किशोर (PK) कर रहे हैं।
प्रशांत किशोर का मक़सद साफ़ है — पुराने राजनीतिक ढाँचों और धड़ों को चुनौती देना। उनका कहना है कि बिहार की राजनीति जात-पात और सत्ता के इर्द-गिर्द घूमते-घूमते थक चुकी है। इसलिए वो “नई सोच, नया बिहार” का नारा लेकर आए हैं।
जन सुराज का असर ख़ास तौर पर युवा मतदाताओं में देखा जा रहा है। कई जगहों पर यह पार्टी पारंपरिक वोट बैंक को तोड़ने का काम कर रही है। अगर जन सुराज इस चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करती है, तो नतीजे पूरी तरह बदल सकते हैं। मतलब साफ़ है — पीके की पार्टी किंगमेकर भी बन सकती है और कुछ सीटों पर सरप्राइज़ पैकेज भी।
निर्वाचन आयोग और निष्पक्षता का मसला
इस चुनाव की एक और बड़ी कहानी है निर्वाचन आयोग और चुनावी निष्पक्षता। मतदाता सूची (SIR) को लेकर जो विवाद उठा, अधिकारियों के तबादले और पोस्टिंग पर जो बहस हुई | इन सबने चुनावी प्रक्रिया को शक़ के घेरे में ला दिया। विपक्ष लगातार आरोप लगा रहा है कि यह सब सत्ता पक्ष के फ़ायदे में किया जा रहा है, जबकि आयोग का दावा है कि सब कुछ पारदर्शी और नियमों के तहत है।
अब जब सुप्रीम कोर्ट ने भी इसमें दख़ल दिया है और आयोग को आदेश दिया है कि मतदाता सूची से हटाए गए नामों और कारणों को सार्वजनिक किया जाए, तो मामला और गंभीर हो गया है। इससे यह चुनाव सिर्फ़ “सियासी जंग” नहीं रहेगा, बल्कि लोकतंत्र और पारदर्शिता की भी कसौटी बनेगा।
नतीजा क्या हो सकता है?
Bihar Election का यह चुनाव कई मायनों में अलग है। एक तरफ़ पुराने बड़े दल हैं, जिनकी जड़ें गहरी हैं। दूसरी तरफ़ नई ताक़तें हैं, जैसे जन सुराज और एआईएमआईएम, जो पारंपरिक राजनीति में सेंध लगाने की कोशिश कर रही हैं। और ऊपर से निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता पर उठते सवाल।
अगर सब कुछ साफ़ और पारदर्शी रहा तो यह Bihar Election के लोकतंत्र को और मज़बूत बना सकता है। लेकिन अगर गड़बड़ियाँ और विवाद हावी रहे तो यह सिर्फ़ एक सत्ता की रस्साकशी बनकर रह जाएगा।
अब देखना यह है कि बिहार में किसकी सरकार बनती है, यह फैसला जनता के हाथ में है कि जनता किस पार्टी के नेता को अपना प्रतिनिधि चुनती है। आगे सभी जानकारियों के लिए जुड़े रहें हमारे साथ।बिहार में राजनीतिक माहौल कभी नरम कभी गर्म देखा जाता रहा है, अब देखते हैं कौन Bihar Election जीतकर अपना नाम करता है।
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