Table of Contents
बिहार चुनाव 2025 : Lalu Yadav का वाला बयान और युवा सरकार का आह्वान
इस बार के बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में Lalu Yadav का बयान पूरे सियासी माहौल में एक नई हलचल पैदा कर गया है। उन्होंने बहुत ही सीधे लेकिन गहरे अंदाज़ में कहा “20 साल बहुत हो गए।”
मतदान के बाद लालू यादव ने राजनीति को समझाने के लिए एक दिलचस्प तवा-रोटी वाला रूपक इस्तेमाल किया। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा “तवा से रोटी पलटती रहनी चाहिए, नहीं तो जल जाएगी। 20 साल बहुत हुआ! अब युवा सरकार और नए बिहार के लिए तेजस्वी सरकार अति आवश्यक है।”
अब इस बयान में सिर्फ़ मज़ाक या तंज नहीं था इसमें एक गंभीर राजनीतिक संदेश छिपा हुआ था। Lalu Yadav ने बड़ी चालाकी से ये बात कह दी कि बिहार की सियासत में बदलाव की ज़रूरत है, और जनता अब पुराने ढर्रे से ऊब चुकी है।
वो कहना चाह रहे थे कि 2005 से अब तक बिहार की सियासत लगभग एक ही दिशा में घूमती रही है चेहरे बदले, नारों का अंदाज़ बदला, लेकिन हालातों में बड़ा बदलाव नहीं आया। इसलिए उन्होंने कहा कि “20 साल” बहुत हैं, अब नए सोच, नए चेहरों और नई ऊर्जा की सरकार की ज़रूरत है।
Lalu Yadav का यह बयान इस बार सिर्फ़ एक चुनावी नारा नहीं, बल्कि परिवर्तन की माँग जैसा महसूस हो रहा है। उन्होंने जैसे जनता से कहा हो “अब रोटी पलटने का वक्त आ गया है, वरना बिहार जल जाएगा यानी ठहराव में सड़ जाएगा।”
ये बयान लोगों के दिलों में इसलिए भी असर छोड़ रहा है क्योंकि लालू यादव के पास राजनीतिक अनुभव भी है और जनता से जुड़ने का लोकभाषा वाला हुनर भी। उनका यह “तवा-रोटी वाला” उदाहरण हर आम आदमी को समझ में आने वाला है सरल, सीधा और असरदार।
असल में, इस एक लाइन में उन्होंने पूरे बिहार के राजनीतिक सफ़र की झलक दे दी दो दशकों से चल रहे शासन पर सवाल, जनता की थकान का इज़हार, और एक नई शुरुआत की अपील। इस बयान से उन्होंने न सिर्फ़ तेजस्वी यादव की अगुवाई को मजबूती दी, बल्कि युवाओं को भी ये संदेश दिया कि अब उनकी बारी है बदलाव की, सोच की, और नई राजनीति की।

“रोटी-तवा” उपमा और राजनीति का चक्र
Lalu Yadav ने इस बार जो उपमा दी “तवा और रोटी” वाली, वो अपने आप में बहुत गहरी और सोचने लायक है। उन्होंने बड़ी सादगी से राजनीति को समझाते हुए कहा कि “तवा पर रोटी अगर सही वक्त पर न पलटी जाए, तो वो जल जाती है।”
अब ज़रा इस बात के मायने समझिए यह कोई मज़ाक नहीं था, बल्कि राजनीति का एक गूढ़ दर्शन था। लालू जी का मतलब साफ़ था कि अगर कोई सरकार या सत्ता लंबे वक्त तक एक ही ढर्रे पर चलती रहती है, बिना बदलाव लाए, तो वो धीरे-धीरे “जलने” यानी विफल होने की स्थिति में पहुँच जाती है।
ठीक वैसे ही जैसे तवा पर रखी रोटी अगर वक्त पर न पलटी जाए, तो वो बाहर से जल जाती है और अंदर से कच्ची रह जाती है वैसे ही सत्ता भी अगर समय पर अपने नीतियों, सोच और दिशा को नहीं बदलती, तो वो बाहर से दिखावे में मज़बूत लगती है, लेकिन अंदर से जनता के भरोसे और ज़रूरतों से कटी हुई हो जाती है।
Lalu Yadav की यह तवा-रोटी की मिसाल कई मायनों में बहुत असरदार है। इसमें एक तरफ़ नीति-प्रवर्तन में लचीलापन की बात है यानी सरकार को वक्त के साथ अपने काम करने के तरीक़े बदलने चाहिए। दूसरी तरफ़ ये सत्ता-विरासत के ख़तरे पर भी एक तंज है अगर एक ही सोच या परिवार लंबे वक़्त तक शासन करता रहे, तो जनता की आवाज़ दब जाती है और सिस्टम ठहर जाता है।
और सबसे अहम बात लालू यादव ने इस उपमा के ज़रिए यह याद दिलाया कि राजनीति कोई स्थिर चीज़ नहीं है, ये एक चलती प्रक्रिया है जिसमें समय-समय पर नए विचार, नई नीतियाँ और नई ऊर्जा की ज़रूरत होती है।
Lalu Yadav की ये बात, भले ही एक सीधी-सादी घरेलू मिसाल लगे, मगर इसके अंदर एक बहुत बड़ा राजनीतिक संदेश छिपा है कि अगर तवा वही रहे और रोटी न पलटे, तो आखिर में भोजन नहीं, बस धुआँ ही बचेगा।
Lalu Yadav: “युवा सरकार” का आह्वान
Lalu Yadav ने इस बार बहुत साफ़ और दिल से कहा कि अब वक्त आ गया है कि बिहार में युवा नेतृत्व सामने आए। उन्होंने बड़े भरोसे के साथ तेजस्वी यादव का नाम लिया और कहा कि वही अब “नए बिहार” की राह दिखाने वाले चेहरा बन सकते हैं।
Lalu Yadav के इस बयान में दो परतें हैं एक तरफ़ ये बदलाव की खुली मांग है, और दूसरी तरफ़ नए चेहरे और नई सोच की उम्मीद। उन्होंने इशारों में कहा कि अब बिहार को ऐसे नेता चाहिए जो युवा हों, जज़्बा रखते हों, और जनता की असली नब्ज़ समझते हों। क्योंकि पुरानी राजनीति ने बहुत कुछ दिया भी है, मगर साथ ही बहुत कुछ अधूरा भी छोड़ दिया है।
Tejaswi Yadav का ज़िक्र करते हुए लालू यादव ने जैसे जनता से कहा हो “अब इस नई पीढ़ी को मौका दो, ताकि बिहार की कहानी नया मोड़ ले सके।” उनका कहना था कि तेजस्वी में वो दम है जो बदलाव की बुनियाद रख सकता है, वो जोश जो बिहार के नौजवानों की आवाज़ बन सकता है।
ये बात उन मतदाताओं के दिल में गूंज रही है जो अब राजनीति में “नया” देखना चाहते हैं नई सोच, नया तरीका, और विकास की नई दिशा। आज के युवाओं को लगता है कि अब बिहार को सिर्फ़ वादों नहीं, बल्कि काम और मौके की राजनीति चाहिए।

Lalu Yadav का यह संदेश इसलिए भी खास है क्योंकि इसमें एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को नेतृत्व सौंपने की बात छिपी है जैसे वो खुद कह रहे हों कि अब बारी है तेजस्वी जैसे युवाओं की, जो पुराने तजुर्बे से सीख लेकर नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ें।
उनका यह बयान भावनाओं और हक़ीक़त दोनों से जुड़ा है वो ये मानते हैं कि अगर बिहार को आगे बढ़ना है, तो सोच बदलनी होगी, चेहरा बदलना होगा, और अंदाज़ भी। सच कहें तो, लालू यादव का यह “युवा नेतृत्व” वाला संदेश सिर्फ़ चुनावी मंच की बात नहीं, बल्कि बदलते बिहार की नई चाह की झलक है जहाँ जनता अब कह रही है “बस बहुत हुआ, अब कुछ नया होना चाहिए।”
राजनीतिक संदर्भ और चुनावी पृष्ठभूमि
इस पूरे मामले को ठीक से समझने के लिए हमें थोड़ा बिहार की सियासत का पिछला दौर भी देखना पड़ेगा। करीब दो दशक से बिहार की राजनीति एक ही ढर्रे पर चल रही है जहाँ नीतीश कुमार की अगुवाई में जदयू (Janata Dal United) और एनडीए (National Democratic Alliance) की सरकार रही है।
अब ऐसे माहौल में Lalu Yadav का यह बयान “20 साल बहुत हो गए” सीधे-सीधे इस लंबे शासन और उसकी काम करने की शैली पर सवाल खड़ा करता है| ये बयान सिर्फ़ किसी पार्टी के खिलाफ़ नहीं, बल्कि उस सोच के खिलाफ़ है जो सालों से बिहार की सत्ता में जमी हुई है।
Lalu Yadav ने एक तरह से सरकार को खुली चुनौती दी कि अब जनता बदलाव चाहती है, अब तवा पलटने का वक्त आ गया है। और इसी के साथ उन्होंने विपक्ष को एक मज़बूत विकल्प के रूप में सामने रखने की कोशिश की जहाँ तेजस्वी यादव को उन्होंने उम्मीद की किरण बताया।
लेकिन Lalu Yadav का ये संदेश सिर्फ़ राजनीतिक बयानबाज़ी नहीं है इसके अंदर एक सामाजिक और आर्थिक दर्द भी झलकता है। बिहार की जनता, ख़ास तौर पर युवा वर्ग, लंबे समय से बेरोज़गारी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मुश्किलों से जूझ रहा है। हर चुनाव में वादे तो बहुत किए गए, लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त में बड़ा बदलाव नज़र नहीं आया।
इसलिए जब लालू कहते हैं कि अब “युवा सरकार” की ज़रूरत है, तो ये बात जनता के दिल से जुड़ जाती है। क्योंकि लोग अब सिर्फ़ “विकास के वादे” नहीं सुनना चाहते, बल्कि देखना चाहते हैं कि कौन नेता वास्तव में नया सोच लेकर आया है, कौन उनके मुद्दों को ईमानदारी से समझता और हल करना चाहता है।
आज का मतदाता पहले जैसा नहीं रहा वो अब ज़्यादा जागरूक और चुनिंदा (discerning) हो गया है। उसे अब सिर्फ़ भाषणों से नहीं, बल्कि दिशा और नीयत से फर्क पड़ता है। लालू यादव की यह बात कि बिहार को अब “नए नजरिए, नए नेतृत्व और नई सोच” की ज़रूरत है वो आज के हालातों में एक भावनात्मक और तर्कसंगत दोनों ही संदेश देती है।
संभावित प्रभाव और आगे की दिशा
Lalu Yadav के इस बयान से साफ़ इशारा मिलता है कि RJD और उसके साथी दल आने वाले चुनाव में “नया बिहार” और “युवा नेतृत्व” जैसे मुद्दों को जोर-शोर से उठाने वाले हैं। उनका मकसद यही है कि जनता के सामने ये बात रखी जाए अब वक्त आ गया है बदलाव का, नई सोच का, और नए चेहरों का।
दूसरी तरफ़, NDA के लिए ये एक सीधी चुनौती है। लालू का “20 साल बहुत हो गए” वाला बयान असल में एक सवाल भी है और तंज भी। अब ये देखना होगा कि एनडीए इस चुनौती का जवाब कैसे देता है क्या वो ये दिखा पाएगा कि इन सालों में सिर्फ़ सरकार नहीं, शासन-शैली भी बदली है, या जनता वाकई ये महसूस करेगी कि अब “तवा पलटने” का वक्त आ गया है।
अगर लालू का ये परिवर्तन वाला संदेश जनता के दिल में उतर गया, तो बिहार की राजनीति एक बड़े मोड़ पर पहुँच सकती है जहाँ बात सिर्फ़ सरकार बदलने की नहीं होगी, बल्कि सोच और नजरिए को बदलने की होगी।
इस बार मतदाता भी ज़्यादा जागरूक हैं। पहला चरण का मतदान शुरू हो चुका है, और इस बार वोटिंग प्रतिशत, लोगों की भागीदारी और चुनाव की निष्पक्षता पर सबकी नज़र है। लोग अब समझ चुके हैं कि सिर्फ़ वोट डालना काफी नहीं बल्कि सोच-समझकर फैसला लेना जरूरी है।
Lalu Yadav का “20 साल बहुत हो गए” और “रोटी-तवा” वाला बयान सिर्फ़ एक पंक्ति नहीं, बल्कि पूरी राजनीति का संकेत है। ये इशारा है कि अब पुरानी सियासत, पुराने तौर-तरीक़े, और पुरानी नीतियों में बदलाव की सख्त ज़रूरत है।
बिहार का युवा वर्ग, जो अब बेरोज़गारी, विकास और बेहतर मौक़ों की बात करता है, वो इस बार चुनाव का असली खिलाड़ी बन चुका है। उसके लिए ये चुनाव सिर्फ़ किसी पार्टी का नहीं, बल्कि अपने भविष्य का फैसला है।
यह भी पढ़े –
32 वर्षों में यूँ विदा हुए दुबई Travel Star Anunay Sood, परिवार ने चाहा Privacy की Respect की जाये



