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इतिहास रचने वाली Sheetal Devi की यात्रा
भारत की तीरंदाज़ी की कहानी में अब एक ऐसा मुक़ाम आया है जिसने सबको हैरान कर दिया है जम्मू-कश्मीर की 18 साल की पैराअथलीट Sheetal Devi ने वो कर दिखाया जो बहुत लोगों को नामुमकिन लगता था। Sheetal Devi का जन्म बिना हाथों के हुआ था, लेकिन उसने ज़िंदगी से हार मानने के बजाय, अपने हौसले और जज़्बे से सबको यक़ीन दिला दिया कि अगर इरादा सच्चा हो तो कोई भी मज़िल दूर नहीं होती।
बचपन से ही उसने मुश्किल हालात देखे लेकिन Sheetal Devi ने उन मुश्किलों को अपनी ताक़त बना लिया। उसने अपने पैरों से तीरंदाज़ी करना सीखा, और आज वो न सिर्फ़ एक पैराअथलीट है, बल्कि भारत की सामान्य (एबल-बॉडिड) तीरंदाज़ी टीम में जगह बनाकर इतिहास रच दिया है।
सोचिए ज़रा, जिस लड़की के पास हाथ नहीं, उसने अपने पैरों से वो काम कर दिखाया जो बहुत से लोग हाथों से भी नहीं कर पाते। यह सिर्फ़ खेल में जीत नहीं है, बल्कि एक ज़िंदगी का सबक है कि अगर इंसान में जज़्बा हो, तो उसकी किस्मत भी झुक जाती है।
शीटाल देवी का ये सफ़र आसान नहीं था कई बार लोगों ने ताने मारे, कई बार हालात ने गिराने की कोशिश की, लेकिन हर बार उसने अपने हौसले से जवाब दिया। आज वो दुनिया भर की उन लड़कियों के लिए प्रेरणा (inspiration) बन गई है जो अपने सपनों को पूरा करना चाहती हैं।
वो कहती है “मैं चाहती हूँ कि लोग मुझे मेरी कमी से नहीं, मेरी काबिलियत से पहचानें।” और सच में, आज पूरी दुनिया उसे उसकी काबिलियत, मेहनत और इरादे की वजह से जानती है।
उसकी कहानी हमें ये सिखाती है कि “जिस्म में कमी हो सकती है, लेकिन हौसले में नहीं।” “ज़िंदगी वही जीतता है जो हार मानने से इंकार कर दे।” Sheetal Devi ने भारत का नाम रोशन किया है और साथ ही यह साबित कर दिया कि असली ताक़त शरीर में नहीं, बल्कि दिल और दिमाग़ में होती है।
Sheetal Devi का शुरुआती संघर्ष
Sheetal Devi की ज़िंदगी की कहानी किसी फ़िल्म से कम नहीं लगती। उनका जन्म 10 जनवरी 2007 को जम्मू-कश्मीर के खूबसूरत लेकिन सादा से गाँव लोइधर (ज़िला किश्तवाड़) में हुआ था। जन्म के वक्त ही उनके साथ एक दुर्लभ अनुवांशिक स्थिति थी जिसे ‘फोकोमेलिया’ (Phocomelia) कहा जाता है। इस बीमारी की वजह से उनके हाथ पूरी तरह विकसित नहीं हुए। लेकिन जहाँ ज़्यादातर लोग इसे एक कमी मानते, वहीं शीटाल ने इसे अपनी पहचान और मज़बूती बना लिया।
गाँव का माहौल, खुले आसमान, पेड़ों की डालियाँ और पहाड़ों की वादियाँ यही उनका बचपन था। जहाँ बाकी बच्चे खेलते-कूदते थे, वहाँ Sheetal Devi ने अपने पैरों से वो सब किया जो दूसरे अपने हाथों से करते हैं। पेड़ों पर चढ़ना, रस्सी पकड़ना, चीज़ें उठाना, सब उन्होंने पैरों से सीखा। इसी वजह से उनका बैलेंस, कोर स्ट्रेंथ, और आत्मविश्वास दिन-ब-दिन बढ़ता गया।
फिर साल 2019 में उनकी ज़िंदगी ने एक नया मोड़ लिया जब वो एक यूथ प्रोग्राम (युवा कार्यक्रम) में शामिल हुईं। वहाँ भारतीय सेना (Indian Army) के कुछ अधिकारियों की नज़र उन पर पड़ी। उन्हें शीटाल की लगन और हौसले ने इतना प्रभावित किया कि उन्होंने उसकी मदद करने का फ़ैसला किया।
इसके बाद उनके लिए तीरंदाज़ी (Archery) की दुनिया के दरवाज़े खुल गए। मगर, यह राह आसान नहीं थी। क्योंकि पारंपरिक ट्रेनिंग तरीक़े Sheetal Devi के लिए काम नहीं करते थे। उनके कोचों ने नया तरीका ढूंढा, लगातार प्रयोग किए और धीरे-धीरे उन्होंने शीटाल के लिए एक ऐसा स्टाइल तैयार किया जिसमें वो अपने पैरों से तीर चलाना सीख सकीं।
और फिर शुरू हुआ कामयाबी का सिलसिला…
साल 2022 में एशियन पैरा गेम्स में Sheetal Devi ने सबको चौंका दिया उन्होंने दो गोल्ड मेडल और एक सिल्वर मेडल अपने नाम किया। यह भारत के लिए एक ऐतिहासिक पल था।

फिर 2024 में उन्होंने पेरिस पैरालिम्पिक्स (Paris 2024 Paralympics) में हिस्सा लिया और मिक्स्ड टीम कंपाउंड इवेंट में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर भारत का झंडा ऊँचा किया।
लेकिन Sheetal Devi यहीं नहीं रुकीं उन्होंने 2025 में विश्व चैंपियनशिप (World Championship) में अपनी रैंकिंग और परफ़ॉर्मेंस दोनों में सुधार किया। अब वो सिर्फ़ भारत की नहीं, बल्कि दुनिया की टॉप पैरा-आर्चर्स में गिनी जाती हैं।
आज Sheetal Devi का नाम हौसले, मेहनत और क़ामयाबी की मिसाल बन चुका है। वो ये साबित कर चुकी हैं कि अगर इरादा सच्चा हो, तो शरीर की कमी भी इंसान के सपनों को नहीं रोक सकती। उनकी कहानी हमें यही सिखाती है “क़ुदरत ने भले हाथ न दिए हों, पर उसने पर दिए हैं उड़ने के लिए।” “जो अपनी हालात से ऊपर उठ जाए, वही असली चैंपियन होता है।”
यह चयन क्यों महत्वपूर्ण है?
Times of India के मुताबिक, Sheetal Devi ने एक बार फिर ऐसा कारनामा कर दिखाया है जिस पर पूरे देश को फ़ख्र हो रहा है। अब उन्हें भारत की एबल-बॉडिड (सामान्य) जूनियर तीरंदाज़ी टीम में चुना गया है जो अगले चरण में एशिया कप (स्टेज 3) के लिए जेद्दा जाने वाली है।
लेकिन ये सिर्फ़ एक “चयन” नहीं है, बल्कि एक इतिहास बनाने वाला पल है। क्योंकि आम तौर पर पैराअथलीट्स (यानी जो शारीरिक चुनौती का सामना कर रहे होते हैं) और सामान्य खिलाड़ी अलग-अलग कैटेगरी में खेलते हैं। मगर Sheetal Devi ने इन सीमाओं को तोड़ दिया है। उन्होंने साबित कर दिया कि काबिलियत सिर्फ़ शरीर के अंगों से नहीं, बल्कि इंसान के इरादे और मेहनत से तय होती है।
सोचिए, जिस लड़की ने बिना हाथों के पैरों से तीर चलाना सीखा, वही अब भारत की सामान्य जूनियर टीम में जगह बना चुकी है जहाँ सबके पास दोनों हाथ हैं, पर Sheetal Devi के पास हौसला और हुनर है जो किसी से कम नहीं। यह सचमुच एक समावेशी (inclusive) सोच की जीत है, जहाँ अब फर्क़ नहीं पड़ता कि कोई पैराअथलीट है या नहीं मायने सिर्फ़ ये रखता है कि वो कितना अच्छा प्रदर्शन कर सकता है।
यह चयन न सिर्फ़ Sheetal Devi के लिए, बल्कि पूरे भारत के लिए एक इमोशनल और इंस्पिरेशनल पल है। अब भारत की तीरंदाज़ी की पहचान सिर्फ़ एक खेल तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसमें एक नया मानवीय और सामाजिक आयाम जुड़ गया है।
दुनिया भर में अब लोग भारत की इस पहल को एक मिसाल (example) के तौर पर देख रहे हैं जहाँ एक लड़की, जो ज़िंदगी की “कठिन परिस्थितियों” से लड़कर उठी, अब उन्हीं के बीच खड़ी है जिन्हें कभी ‘सामान्य’ कहा जाता था।
Sheetal Devi की यह उपलब्धि इस बात का ज़िंदा सबूत है कि “शरीर से नहीं, दिल और जज़्बे से इंसान बड़ा बनता है।” “कमज़ोरी वहाँ नहीं होती जहाँ इरादे मज़बूत हों।” अब जेद्दा में होने वाला यह एशिया कप स्टेज 3 सिर्फ़ एक टूर्नामेंट नहीं रहेगा यह एक नई सोच, नई उम्मीद और नए युग की शुरुआत है, जहाँ खेल में भी बराबरी और इंसानियत को असली जगह मिल रही है।
चुनौतियाँ और अद्वितीय तैयारी
Sheetal Devi के लिए इस मुक़ाम तक पहुँचने का सफ़र बिल्कुल आसान नहीं था। सोचिए ज़रा जिस लड़की के पास हाथ नहीं हैं, उसे तीरंदाज़ी (archery) जैसा खेल सीखना था, जहाँ ज़्यादातर खिलाड़ी अपने दोनों हाथों से तीर खींचते और छोड़ते हैं। लेकिन शीटाल की कहानी अलग थी बहुत ही अलग और प्रेरणादायक।
जब उसने इस खेल में कदम रखा, तो उसके कोचों के सामने भी बड़ी चुनौती थी। शुरू में उन्होंने सोचा कि शायद प्रोस्थेटिक (कृत्रिम हाथ) लगाकर उसकी मदद की जा सके, ताकि वो दूसरों की तरह धनुष पकड़ सके। लेकिन डॉक्टरों ने बताया कि उसकी स्थिति में यह मुमकिन नहीं है क्योंकि उसका शरीर उस तरह के उपकरण को स्वीकार नहीं कर पाएगा।
इसके बाद हार मानने के बजाय, कोचों और Sheetal Devi ने मिलकर दूसरा रास्ता चुना। उन्होंने दुनिया के कुछ ऐसे तीरंदाज़ों के उदाहरण देखे जो बिना हाथों के खेलते हैं और उनसे प्रेरणा (inspiration) ली। धीरे-धीरे शीटाल ने अपने पैरों को हाथों की तरह इस्तेमाल करना शुरू किया।
पहले तो ये बहुत मुश्किल था पैरों से धनुष को पकड़ना, फिर शरीर को बैलेंस करना, और फिर सही निशाना लगाना। लेकिन शीटाल ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने सीखा कि कैसे पैरों से धनुष की डोरी खींचनी है, कैसे शरीर को संतुलित (balance) रखना है, और कैसे अपनी पूरी बॉडी से कर्षण (traction) और गति-नियंत्रण (motion control) करना है।

कई बार वो गिर पड़ीं, कई बार निशाना चूक गया लेकिन हर बार उठीं, हर बार फिर कोशिश की। दिन-ब-दिन उन्होंने अपनी तकनीक को और बेहतर किया, और एक दिन वो वक़्त आया जब उनके तीर सीधे निशाने पर लगने लगे।
ये सिर्फ़ खेल की ट्रेनिंग नहीं थी ये जज़्बे की ट्रेनिंग थी, जहाँ एक लड़की ने अपने शरीर की सीमाओं से ऊपर उठकर, अपने सपनों को हक़ीक़त बना दिया। आज Sheetal Devi की हर तीर में वो मेहनत, वो लगन और वो हौसला झलकता है जिसने उसे इस मुक़ाम तक पहुँचाया है। सच कहें तो “उसके हाथ भले नहीं हैं, मगर उसकी मेहनत ने किस्मत को झुका दिया है।” “जहाँ लोग रुक जाते हैं, वहाँ से शीटाल का सफ़र शुरू होता है।”
भावी दिशा और प्रेरणा
अब जब Sheetal Devi ने एशिया कप की एबल-बॉडिड टीम में अपनी जगह बना ली है, तो उनके सामने नई चुनौतियाँ और नए मौक़े दोनों हैं। अब वो उन खिलाड़ियों के साथ खेलेंगी जो “सामान्य” शारीरिक स्थिति में हैं यानी जिनके पास वो सब है जो शीटाल के पास नहीं था, लेकिन उनके पास वो हौसला भी नहीं जो शीटाल के पास है।
ये उनके लिए एक बिल्कुल नया तजुर्बा होगा। हर मैच, हर निशाना अब पहले से ज़्यादा कठिन और दिलचस्प होगा। उनकी तैयारी को अब और भी बारीकी से देखा जाएगा, क्योंकि ये सिर्फ़ किसी टूर्नामेंट का हिस्सा बनना नहीं, बल्कि खेल की सीमाओं को तोड़ने वाला कदम है।
अब जब Sheetal Devi इस टीम का हिस्सा हैं, तो इसका असर पूरे स्पोर्ट्स सिस्टम पर भी पड़ सकता है। माना जा रहा है कि अब भारत में एक नया ट्रेनिंग मॉडल तैयार किया जाएगा जहाँ पैराअथलीट और एबल-बॉडिड खिलाड़ी साथ में ट्रेनिंग करें, एक-दूसरे से सीखें और समझें कि खेल में फर्क़ सिर्फ़ शरीर का नहीं, सोच का होता है। इससे कोचिंग और संसाधन का वितरण ढाँचा (training-structure) और ज़्यादा समन्वित (integrated) हो सकेगा।
Sheetal Devi से अब ये उम्मीद की जा रही है कि वो सिर्फ़ एक खिलाड़ी नहीं रहेंगी, बल्कि प्रेरणा का एक चिराग़ बनेंगी ख़ासकर उन बच्चों के लिए जो किसी शारीरिक चुनौती से जूझ रहे हैं। जब वो शीटाल को मैदान में तीर चलाते देखेंगे, तो उनके दिल में भी उम्मीद की एक नई लौ जलेगी कि “अगर वो कर सकती है, तो मैं भी कर सकता हूँ।”
उनकी कहानी हमें एक बहुत बड़ा सबक सिखाती है सीमाएँ शरीर में नहीं, दिमाग़ में होती हैं। अगर इरादा सच्चा हो, तो दुनिया की कोई रुकावट रास्ता नहीं रोक सकती। Sheetal Devi का यह चयन सिर्फ़ एक स्पोर्ट्स न्यूज़ नहीं है यह भारत के बदलते समाज की पहचान है। यह बताता है कि हम अब उन खिलाड़ियों को आगे ला रहे हैं जो न सिर्फ़ मेडल जीतते हैं, बल्कि लोगों के दिल भी जीतते हैं।
आज Sheetal Devi सिर्फ़ एक तीरंदाज़ नहीं रहीं वो एक संदेश, एक प्रेरणा, और एक आशा की मिसाल बन चुकी हैं। उन्होंने साबित कर दिया है कि “ज़िंदगी में जीतने के लिए दो हाथ नहीं, बस एक मज़बूत जज़्बा चाहिए।” “किस्मत उन्हीं के कदम चूमती है जो हार मानने से इंकार कर देते हैं।”
भारत के लिए यह पल गर्व का, सम्मान का, और प्रेरणा का है क्योंकि आज हमारे पास Sheetal Devi जैसी बेटियाँ हैं जो सिर्फ़ अपने लिए नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए बदलाव की नई कहानी लिख रही हैं।शीटाल देवी की यह यात्रा सिर्फ़ एक खिलाड़ी की कहानी नहीं, बल्कि एक सोच के बदलने की कहानी है।
Sheetal Devi ने यह साबित किया है कि अगर इंसान ठान ले, तो कोई भी मजबूरी या शारीरिक सीमा उसे रोक नहीं सकती। आज Sheetal Devi की कहानी हर उस इंसान के लिए एक उम्मीद की किरण है जो ज़िंदगी की चुनौतियों से जूझ रहा है। शीटाल यह दिखा चुकी हैं कि हौसले की उड़ान को किसी “कमज़ोरी” की बेड़ियाँ नहीं रोक सकतीं।
उनकी कामयाबी से भारत के खेल जगत में एक नई दिशा खुली है अब खेल सिर्फ़ ताक़त या शरीर का नहीं, बल्कि जज़्बे और जज़्बात का भी नाम बन चुका है। शीटाल जैसी बेटियाँ वो चिंगारी हैं जो आने वाली पीढ़ियों में हिम्मत और भरोसे का उजाला भर देंगी।
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