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Tense Battle in Bihar Election 2025: Exit Polls ने दिखाई NDA को Clear Majority, लेकिन Axis My India ने मचाया Confusion!

Tense Battle in Bihar Election 2025: Exit Polls ने दिखाई NDA को Clear Majority, लेकिन Axis My India ने मचाया Confusion!

Bihar Election ड्रामा: Exit Polls से उठी नई लहर

बिहार की सियासत में इस बार Bihar Election का माहौल कुछ ज़्यादा ही दिलचस्प नज़र आ रहा है। Bihar Election 2025 के नतीजे आने से पहले ही Exit Polls ने लोगों की दिलचस्पी और बढ़ा दी है। जैसे हर बार बिहार की राजनीति में कोई न कोई नया मोड़ आ ही जाता है, वैसे ही इस बार भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला Exit Polls के नतीजों ने सबको हैरान कर दिया है।

कुल 11 बड़े Exit Polls में से ज़्यादातर ने साफ तौर पर कहा है कि NDA (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) को बिहार में स्पष्ट बहुमत मिलने जा रहा है। यानी जनता ने एक बार फिर से एनडीए पर भरोसा जताया है और उन्हें सत्ता में वापस लाने के संकेत दिए हैं।

मगर, जैसा कि कहा जाता है “राजनीति में कुछ भी तय नहीं होता”, वैसा ही यहां भी दिखा। Axis My India नाम की सर्वे एजेंसी ने बाक़ी सब पोल्स से हटकर बात कही है। इसने बताया कि मामला इतना आसान नहीं है|

उनके आंकड़ों के मुताबिक़ एनडीए को सिर्फ 121 से 141 सीटों के बीच मिल सकती हैं। अब ज़रा सोचिए, बहुमत के लिए ज़रूरी संख्या 122 सीटों की है, यानी मामला बस एक-दो सीटों के ऊपर-नीचे का भी हो सकता है। यही वजह है कि सस्पेंस बरकरार है।

इस सर्वे में वोट शेयर का फर्क भी बहुत मामूली है NDA को करीब 43%, जबकि उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी महागठबंधन (RJD-Congress-Left) को करीब 41% वोट मिलने का अनुमान है। यानी ज़मीन पर मुकाबला कांटे का है, और दोनों तरफ़ के वोटर पूरी मजबूती से खड़े हैं।

वहीं दूसरी तरफ़, बाक़ी सभी Exit Polls की मानें तो तस्वीर थोड़ी अलग दिखती है। ज़्यादातर एजेंसियों का कहना है कि एनडीए 130 से 170 सीटों के बीच हासिल कर सकता है जो एक मजबूत जीत मानी जाएगी। अगर ऐसा हुआ, तो ये नतीजे एनडीए के लिए एक तरह की “कमबैक विक्ट्री” होंगे, जो बताएंगे कि बिहार की जनता अब भी नीतीश-मोदी के गठजोड़ पर भरोसा रखती है।

अब बात करें लोगों के मूड की तो इस बार के चुनाव में यूथ और महिलाओं की भागीदारी काफ़ी ज़्यादा रही। गाँव-कस्बों से लेकर शहरों तक, हर जगह लोगों ने बढ़-चढ़कर वोट दिया। यही वजह है कि वोटिंग परसेंटेज रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गया।

कुल मिलाकर माहौल ये है कि बिहार की जनता ने अपना फैसला तो दे दिया है, लेकिन अब सबकी निगाहें 14 नवंबर पर टिकी हैं जब असली नतीजे आएंगे। तब ही साफ होगा कि क्या NDA सच में अपनी बहुमत की सरकार बना पाएगा या फिर तेजस्वी यादव और महागठबंधन कोई बड़ा उलटफेर दिखाएंगे।

जो भी हो, इतना तो तय है कि बिहार की सियासत एक बार फिर देशभर की सुर्खियों में है। जनता ने एक बार फिर ये साबित कर दिया है कि बिहार का वोटर बेहद समझदार है वो न जात-पात के जाल में फँसता है, न दिखावे के वादों में। उसे जो सही लगता है, वो उसी के हक़ में बटन दबाता है।

क्यों मायने रखती है NDA की ये स्थिति?

देखो, अब अगर सीधी और आम ज़ुबान में बात करें तो बिहार की विधानसभा में कुल 243 सीटें हैं। यानी सरकार बनाने के लिए किसी भी पार्टी या गठबंधन को कम से कम 122 सीटें चाहिए होती हैं यही कहलाता है “बहुमत”।

अब अगर एनडीए (NDA) को 121 या 122 सीटें मिलती हैं, तो हाँ, सरकार तो बन जाएगी, लेकिन बहुत कमज़ोर या नाज़ुक स्थिति में होगी। मतलब ज़रा सा इधर-उधर हुआ, तो कुर्सी हिल सकती है। वहीं अगर उन्हें 140 या उससे ज़्यादा सीटें मिलती हैं, तो फिर उनकी पकड़ मज़बूत होगी फिर वो खुलकर फैसले ले पाएंगे और स्थिर सरकार चलाने की ताक़त उनके पास होगी।

Tense Battle in Bihar Election 2025: Exit Polls ने दिखाई NDA को Clear Majority, लेकिन Axis My India ने मचाया Confusion!

अब बात करें महागठबंधन (RJD-Congress-Left) की, तो उनके नेताओं का कहना है कि जनता में इस बार बदलाव की हवा चल रही है। वो मानते हैं कि युवा वोटर, महिलाएँ, और पिछड़े वर्ग उनके साथ खड़े हैं। तेजस्वी यादव की रैलियों में भीड़ देखकर भी यही लगता है कि उनके पास जमीनी सपोर्ट है। लेकिन ये भी सच है कि वोटों की लड़ाई बिहार में हमेशा बहुत करीबी रही है यहाँ एक-दो फ़ीसदी का फर्क भी नतीजे पलट देता है।

अब आती है बात Exit Polls की सच्चाई की। देखो, एग्जिट पोल्स हमेशा सौ प्रतिशत सही नहीं होते। कई बार ऐसा हुआ है कि पोल्स ने कुछ और दिखाया, लेकिन जब असली वोटों की गिनती हुई, तो तस्वीर बिल्कुल अलग निकली। इसलिए समझदारी की बात ये है कि इन नतीजों को “फाइनल रिजल्ट” नहीं, बल्कि बस एक इशारा या अंदाज़ा मानना चाहिए।

लोग कहते हैं ना “सियासत में आख़िरी फैसला ईवीएम खोलती है, सर्वे नहीं।” इसलिए अब सबकी निगाहें उस दिन पर हैं, जब वोटों का असली हिसाब किताब सामने आएगा। तभी पता चलेगा कि किसके सितारे बुलंद हैं NDA के या महागठबंधन के।

वोटरों की दिशा-प्रेरक बातें

इस बार Bihar Election में महिलाओं और पिछड़ी जातियों की भागीदारी काफ़ी ज़बरदस्त रही है। पहले जहाँ लोग सोचते थे कि वोटिंग में सिर्फ़ मर्द ज़्यादा निकलते हैं, वहीं इस बार औरतों ने भी जमकर मतदान किया मतलब इस बार महिलाएँ पूरी ताक़त से मैदान में उतरीं।

अंदाज़े के मुताबिक़, लगभग 45% महिलाओं ने एनडीए (NDA) के हक़ में वोट दिया, जबकि करीब 40% वोट महागठबंधन (RJD-Congress) को मिले हैं। यानी महिलाओं ने भी अपने हिसाब से सोच-समझकर वोट दिया, किसी एक लहर में बहकर नहीं।

अब ज़रा बात करते हैं कुल वोटिंग की तो इस बार रिकॉर्ड तोड़ वोटिंग हुई है। खासकर दूसरे चरण में तो कई इलाकों में लोगों ने सुबह से ही लंबी लाइनों में लगकर मतदान किया। गाँव हो या शहर, हर जगह जनता ने अपने वोट का इस्तेमाल किया, और ये दिखाता है कि लोग इस बार बदलाव को लेकर या फिर अपनी पसंद की सरकार को लेकर कितने संज़ीदा थे।

अब अगर वोट शेयर की बात करें, तो एनडीए और महागठबंधन के बीच बस 2-3 फ़ीसदी का ही फर्क दिख रहा है। यानी मुकाबला बेहद टक्कर का है। ऐसे में कौन जीतेगा और कौन पीछे रह जाएगा, ये कहना आसान नहीं।

और सबसे अहम बात – इस चुनाव में फैसला सिर्फ़ पार्टी के नाम पर नहीं, बल्कि कई छोटे-बड़े फैक्टरों पर टिका है। जैसे कि – इलाके के मुद्दे, जातीय समीकरण, उम्मीदवार की छवि और लोकप्रियता, और स्थानीय काम-काज।

यानी साफ़ कहें तो इस बार का चुनाव सिर्फ़ नारे या चेहरों पर नहीं, बल्कि ज़मीनी सच्चाइयों पर लड़ा गया है। अब बस इंतज़ार है नतीजों का, जो बताएंगे कि बिहार की जनता ने किस पर भरोसा जताया विकास के वादों पर या बदलाव की उम्मीदों पर। जैसा लोग कहते हैं “बिहार का वोटर सब समझता है, वो चुप रहता है मगर जवाब ईवीएम से देता है।”

मुख्य राजनीतिक चेहरे

अब अगर बिहार की सियासत के बड़े चेहरों की बात करें, तो तीन नाम सबसे ज़्यादा चर्चा में हैं नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव, और प्रशांत किशोर। इन तीनों ने अपने-अपने अंदाज़ में इस चुनाव को दिलचस्प बना दिया है।

नीतीश कुमार की बात करें तो वो तो बिहार की राजनीति का वो चेहरा हैं जो पिछले दो दशकों से सियासत के मैदान में डटे हुए हैं। वो कई बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं और अब भी एनडीए की सबसे अहम कड़ी माने जाते हैं।

उम्र के इस पड़ाव पर भी उनका तजुर्बा और राजनीतिक समझ देखकर यही लगता है कि उनकी सियासी मशाल अब भी जल रही है। चाहे आलोचक कुछ भी कहें, मगर नीतीश की पकड़ अभी भी बिहार के सत्ता समीकरण में बहुत मज़बूत है। लोगों में उनके लिए इज़्ज़त और भरोसा दोनों मौजूद हैं भले अब वो पहले जैसी करिश्माई छवि न हो, मगर उनका असर अभी भी बरक़रार है।

अब आते हैं तेजस्वी यादव पर वो इस चुनाव में महागठबंधन (RJD-Congress-Left) के सबसे बड़े चेहरे बनकर उभरे हैं। उनकी रैलियों में भीड़ उमड़ रही थी, और नौजवानों में उनका क्रेज़ साफ़ दिखा। लोगों को उनमें “नया चेहरा, नई सोच” की झलक दिखती है।

Exit Polls के मुताबिक़, करीब 34% वोटर्स तेजस्वी को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं। यानी उन्होंने जनता के बीच अपनी पहचान बना ली है। तेजस्वी अब सिर्फ़ लालू यादव के बेटे नहीं, बल्कि अपने दम पर राजनीति की नई पीढ़ी का चेहरा बन चुके हैं।

अब बात करते हैं जन सुराज पार्टी (Jan Suraaj Party) की, जो प्रशांत किशोर (PK) की नई पार्टी है। इस बार बहुतों को लगा था कि पीके का “जन सुराज अभियान” बड़ा धमाका करेगा, लेकिन एग्जिट पोल्स के आंकड़े कुछ और ही कहानी कहते हैं। ज़्यादातर सर्वे बताते हैं कि उनकी पार्टी को 0 से 2 सीटों तक ही मिल सकती हैं।

मतलब साफ़ है कि जनता ने उन्हें अभी मौका देने से पहले थोड़ा और वक्त मांग लिया है। हाँ, इतना ज़रूर है कि उनकी जमीनी मेहनत और गाँव-गाँव में पहुंच ने उन्हें लंबी दौड़ का घोड़ा बना दिया है।

साधारण बोलचाल में कहा जाए तो “नीतीश अब भी राजनीति के पुराने उस्ताद हैं, तेजस्वी नए जोश के साथ मैदान में हैं, और प्रशांत किशोर वो खिलाड़ी हैं जो धीरे-धीरे अपनी जगह बना रहे हैं।” तीनों के अपने-अपने समर्थक हैं, अपनी रणनीति है और अपनी कहानी है। अब ये बिहार की जनता पर है कि वो किस पर भरोसा जताती है अनुभव पर, बदलाव पर या फिर नई शुरुआत पर।

संभावित परिदृश्य और भविष्य-दृष्टि

अगर बात करें बिहार के इस सियासी मुकाबले की, तो अब सबकी नज़रें 14 नवंबर पर टिकी हुई हैं जब असली नतीजे सामने आएंगे। मगर Exit Polls ने जो तस्वीर दिखाई है, वो कुछ यूँ समझी जा सकती है:

अगर एनडीए (NDA) को 130 या उससे ज़्यादा सीटें मिलती हैं, तो समझ लीजिए बिहार में एक मज़बूत सरकार बनने वाली है। ऐसी स्थिति में नीति-निर्माण (policy making) और राज-प्रशासन (governance) को तेज़ी मिल सकती है। यानी फैसले जल्दी होंगे, योजनाओं पर काम भी गति पकड़ेगा और केंद्र से तालमेल भी बेहतर रहेगा। नीतीश कुमार की पुरानी पहचान “सुशासन बाबू” की फिर से चर्चा होने लगेगी।

लेकिन अगर NDA सिर्फ 120 से 122 सीटों के आस-पास रुकता है, तो मामला थोड़ा पेचीदा हो जाएगा। ऐसी सरकार कमज़ोर स्थिति में होगी, जहाँ हर निर्णय में राजनीतिक संतुलन बनाए रखना मुश्किल होगा। उस हालत में महागठबंधन या अन्य दलों को मौका मिल सकता है कि वो अंदरखाने में मिलकर नया समीकरण बना दें। यानी सरकार चलाने के लिए जोड़-तोड़ और राजनीतिक खींचतान की शुरुआत हो सकती है।

अब अगर उल्टा हो गया यानी महागठबंधन (MGB) ने ज़बरदस्त प्रदर्शन कर दिया और फिनिशिंग लाइन पर बड़ा करिश्मा दिखा दिया, तो फिर खेल पूरी तरह पलट सकता है। बिहार की सियासत में ड्रामा, सस्पेंस और टर्निंग पॉइंट्स की कमी कभी नहीं रही, और इस बार भी ऐसा कुछ देखने को मिल सकता है।

एक और दिलचस्प बात यह है कि Exit Polls ने साफ़ कहा है सीटों का बंटवारा सिर्फ वोट प्रतिशत पर निर्भर नहीं करेगा। कई जगहों पर स्थानीय उम्मीदवारों की लोकप्रियता, जातीय समीकरण, और इलाके के मुद्दे ज़्यादा असर डालेंगे। यानी बिहार में हर जिला, हर सीट अपनी अलग कहानी रखता है।

इसलिए यह कहना अभी जल्दबाज़ी होगी कि Bihar Election 2025 का नतीजा पूरी तरह तय हो चुका है। Exit Polls ने भले NDA को बढ़त दी हो, लेकिन Axis My India जैसे सर्वेक्षण ने चेतावनी दी है कि “मुकाबला अब भी खुला हुआ है।”

तो अब सारा खेल इस बात पर टिक गया है कि 14 नवंबर को वोटों के असली बॉक्स खुलने पर क्या निकलता है क्या नीतीश कुमार का गठबंधन अपनी पकड़ बनाए रखता है, या तेजस्वी यादव अपनी युवा लहर के दम पर सत्ता की दहलीज़ पार कर जाते हैं।

बिहार की राजनीति में कहा भी जाता है “यहाँ खेल आख़िरी मिनट तक बदल सकता है, क्योंकि जनता का फैसला हमेशा दिल से आता है, दिमाग़ से नहीं।” अब बस सबकी नज़रें उस ऐतिहासिक दिन पर हैं, जब पता चलेगा कि बिहार की सियासत की गाड़ी किस पटरी पर चलेगी बदलाव की या फिर तजुर्बे की।

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