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AI Agent का Dark Side सामने लाए Zoho के सह-संस्थापक Sridhar Vembu – Corporate गोपनीयता पर Big Threat और Risky Exposure

AI Agent का Dark Side सामने लाए Zoho के सह-संस्थापक Sridhar Vembu – Corporate गोपनीयता पर Big Threat और Risky Exposure

Zoho के सह-संस्थापक Sridhar Vembu के AI Agent ने की गलती

आज (28 नवंबर 2025) टेक इंडस्ट्री में ऐसी हलचल, खलबली और चहचहाहट मच गई कि लोग बस यकीन ही नहीं कर पाए। Zoho के सह-संस्थापक Sridhar Vembu ने बताया कि उन्हें एक स्टार्टअप की तरफ़ से मेल आया और उस मेल में एक ऐसी चूक, गलती, फिसलन हो गई जिसने सबको हैरानी में डाल दिया। उस मेल में एक AI Agent ने गलती से M&A यानि मर्ज़र / एक्विजीशन की गोपनीय (सीक्रेट) जानकारी भेज दी वो भी ऐसी जिसमें कोई भी समझदार कंपनी दुनिया के सामने कभी खुलकर नहीं बोलती।

मजे की बात: गलती करने वाला भी AI Agent और माफी माँगने वाला भी AI

सबसे तगड़ी बात यहाँ हुई जानकारी भेजने के थोड़े ही देर बाद उसी AI एजेंट ने खुद ही एक और ईमेल भेजा और लिखा: “Sorry, ये मेरी गलती थी। मुझसे कन्फिडेंशियल जानकारी गलती से भेजी गई।”

यहाँ लोग सच में हैरान भी हुए, परेशान भी हुए और थोड़ी हँसी भी आई यानी पहले AI खुद गोपनीय डील लीक करे, और फिर खुद सर झुकाकर माफी भी माँग ले। टेक दुनिया में इसे देखकर ऐसा माहौल बन गया कि लोग बोलने लगे “अब इंसान कमी पड़ गया क्या? बात भी AI करेगा, गलती भी AI करेगा और फिर माफी भी AI ही मांगेगा!”

अब बहस भरोसा कितना और खतरा कितना?

सोशल मीडिया पर चर्चा गरमा गई कई एक्सपर्ट्स ने कहा कि डील, निवेश, गोपनीय बातचीत, बिज़नेस रहस्य जैसी चीज़ों में AI पर अंधा भरोसा खतरनाक है। AI आजकल इतना आज़ाद और खुदमुख्तार हो गया है कि कभी-कभी वो सही और गलत की नज़ाकत नहीं समझ पाता और छोटी-सी गलती कंपनी की साख, बिजनेस और पूरी डील को खतरनाक मोड़ पर ला सकती है।

कुछ लोगों ने यह भी कहा कि ये कोई सिंपल बग या आम गलती नहीं बल्कि ये एक बहुत बड़ा सबक है कि AI को काम करने दो, लेकिन अंतिम बटन दबाने वाला इंसान ही होना चाहिए। असल सीख टेक्नोलॉजी का भरोसा ज़रूर, लेकिन नज़रतहानी भी ज़रूर AI आपकी मेल लिख दे AI आपके डेटा को सजा दे AI आपके लिए दस्तावेज बना दे ये सब बहुत बढ़िया है।

लेकिन जहाँ बात गोपनीय जानकारी, उपर-नीचे होती कीमतों, कंपनी खरीद-फरोख्त और बिज़नेस डील्स की हो वहाँ इंसानी दिमाग, इंसानी समझ और इंसानी रोक-टोक बहुत जरूरी है। क्योंकि अगर AI ने गलती की और फिर माफी मांग भी ली तो बातें तो बाहर निकल ही चुकी होंगी और बाजार भरोसे पर चलता है, न कि माफीनामे पर।

आखिरी बात AI शरारती नहीं है, लेकिन मासूम भी नहीं है टेक्नोलॉजी दिलचस्प भी है, खतरनाक भी है, और लापरवाही वाली चीज़ तो बिल्कुल भी नहीं है। इसलिए AI सहायक हो सकता है, मालिक या मुखिया नहीं। एक लाइन में समझो AI काम करे लेकिन फैसला इंसान का हो।

कैसे हुआ AI Agent का भूलबिसर

शुरुआत कुछ यूँ हुई कि Sridhar Vembu साहब को एक स्टार्टअप फाउंडर की तरफ़ से ई-मेल आया। मेल में उस फाउंडर ने Zoho कंपनी से अधिग्रहण (acquisition) की उम्मीद जताई, मतलब साफ-साफ लिखा कि “अगर आपकी कंपनी हमें खरीद ले तो हमें खुशी होगी।”

अब तक तो सब ठीक था लेकिन असली चूक, फिसलन और भारी ग़लती उस ईमेल के अंदर छिपी हुई थी। उस फाउंडर ने जो नहीं लिखना चाहिए था, वही सबसे पहले लिख दिया कि एक दूसरी कंपनी पहले ही उन्हें खरीदने का ऑफर दे चुकी है, और तो और, उस प्रस्ताव की कीमत भी मेल में खुलकर बता दी।

दुनिया के बिज़नेस नियमों में M&A यानी merger/acquisition की बातचीत बेहद संवेदनशील और गोपनीय होती है। यह जानकारी किसी बाहर वाले को बताना तो दूर, पब्लिक रूप से तो बिल्कुल ही नहीं बोली जाती।

यहीं से मामला थोड़ा अजीब, थोड़ा सीरियस हो गया। लेकिन असली झटका, सदमा और सर पकड़ लेने वाली बात तो बाद में मिली। कुछ देर बाद Zoho के पास एक और मेल आया। पहली नज़र में लगा शायद फाउंडर ने गलती सुधारने के लिए मेल भेजा होगा।

लेकिन जी नहीं! ये मेल फाउंडर ने नहीं, बल्कि उनके “browser AI agent” ने भेजा था। और AI एजेंट ने बड़े शरीफ़ाना और माफ़ीनामे वाले अंदाज़ में खुद लिखा था “I am sorry I disclosed confidential information about other discussions, it was my fault as the AI agent.”

मतलब “मुझे माफ़ कीजिए, मुझसे गलती से दूसरी कंपनी से जुड़ी गोपनीय जानकारी साझा हो गई। ये मेरी गलती थी, क्योंकि मैं AI Agent हूँ।” अब ज़रा सोचिए पहले AI गलती करे, फिर AI खुद पछतावा जताए, और इंसान बीच में केवल तमाशा ही देखता रह जाए ये मामला टेक दुनिया के लिए हँसने वाला भी था और डरने वाला भी।

Sridhar Vembu साहब ने ये पूरा किस्सा सोशल मीडिया (X / Twitter) पर शेयर कर दिया। इससे मामला खामोश नहीं रहा बल्कि पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बन गया। उन्होंने साफ इशारा किया कि ये कोई सिर्फ मज़ेदार घटना नहीं है, न ही कोई जोक़ या गपशप का मामला है ये भविष्य के लिए चेतावनी है।

उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे हम AI-based एजेंट्स को ऑटोनॉमस कम्युनिकेशन टूल की तरह इस्तेमाल करेंगे उन्हें आज़ादी देंगे, ज़िम्मेदारी देंगे, मेल भिजवाने देंगे तो हमें उनकी कमियों, सीमाओं और खतरों को भी समझना पड़ेगा।

AI शानदार है, तेज़ है, मददगार है लेकिन हद में हो तो बेहतर है। ज़्यादा कंट्रोल दे दिया तो कभी डील लीक कर देगा, कभी माफ़ीनामा भेज देगा, और इंसान सिर्फ “ओह क्या कर दिया!” कहते रह जाएगा। AI को काम सौंपो ज़रूर, पर अंतिम बटन दबाने वाला हमेशा इंसान होना चाहिए।

क्यों यह घटना सिर्फ एक चुटकुला नहीं बल्कि चेतावनी है?

यह पूरी घटना इसलिए बहुत अहम मानी जा रही है, क्योंकि आजकल कई कंपनियाँ हर काम में AI Agent का इस्तेमाल करने लगी हैं बिज़नेस बातचीत, ई-मेल भेजना, डील डिस्कशन, हर चीज़ ऑटो पर चलाने की कोशिश हो रही है। लेकिन मसला यह है कि AI “ऑटोनॉमी” का मतलब ये नहीं कि वो हर सिचुएशन को समझ लेगा, कौन-सी बात गोपनीय है और कौन-सी नहीं।

Sridhar Vembu पहले भी कह चुके हैं कि AI का जो हाइप चल रहा है न, वो ज़्यादातर जोश और उम्मीदों पर टिका है असली काम, असली ज़िम्मेदारी और असली सुरक्षा तो इंसानों को ही संभालनी है।

सोच के देखो अगर AI Agentबिना किसी इंसानी जाँच के खुद-ब-खुद ई-मेल भेजने लगें, खासकर M&A डील्स, निवेश प्रस्ताव, गुप्त जानकारी, कॉर्पोरेट डिस्कशन वगैरह तो डेटा लीक और गोपनीय जानकारी बाहर जाने का खतरा तो बहुत बढ़ जाएगा। ये सिर्फ एक छोटी-सी गलती नहीं होगी ये तो पूरे सिस्टम के लिए धोखे जैसा हो सकता है।

दूसरी बात, आजकल बहुत से लोग AI को एक भरोसेमंद “स्केलिंग टूल” की तरह देखने लगे हैं मतलब ज़्यादा काम, कम मेहनत। लेकिन यह मामला साफ़ दिखाता है कि AI को पूरी तरह आज़ाद छोड़ देना समझदारी नहीं है। AI असिस्टेंट्स का रोल मदद करना होना चाहिए, लेकिन आख़िरी फ़ैसला और आख़िरी क्लिक इंसान के हाथ में ही रहना चाहिए।

यानी सीधी-सी बात AI क़ाबिल है, लेकिन बेअक़ल नहीं है… और अक़्ल इंसानों की लगानी पड़ेगी। वरना कल को कोई ऑटोनॉमस एजेंट एक ई-मेल में पूरी कंपनी की “राज़दारी” दुनिया के सामने खोल दे और फिर माफी भी ख़ुद ही लिखकर भेज दे “मुझसे ग़लती हो गई साहब, मैं एक AI हूँ।”

Sridhar Vembu आपकी AI नीति पर सवाल और ज़िम्मेदारी की ज़रूरत

ये कोई पहली बार नहीं है जब Sridhar Vembu ने AI की कमज़ोरियाँ और ज़रूरी सावधानियों के बारे में दुनिया को आगाह किया हो। 2025 में भी उन्होंने साफ़ कहा था कि जो AI का हाइप चल रहा है, वो अभी “dot-com बबल” जैसा लग रहा है मतलब बड़ा शोर, बड़ा निवेश, बड़े सपने, लेकिन असली कीमत और असली भरोसा अभी तय नहीं है।

उनका हमेशा से कहना रहा है कि AI का इस्तेमाल ज़रूर होना चाहिए, लेकिन उसे इतना भी आज़ाद मत कर दो कि वो बिना इंसानी जांच-पड़ताल के कोई संवेदनशील ई-मेल भेज दे और फिर बाद में माफी भी ख़ुद ही लिखकर दे दे। ये मज़ाक नहीं, बल्कि ख़तरा है।

इसीलिए वो बार-बार “human oversight” की बात करते हैं यानी AI के काम पर इंसानों की निगरानी और कंट्रोल का होना बहुत ज़रूरी है। टेक्नोलॉजी शानदार है, लेकिन ज़िम्मेदारी इंसानों की ही है।

ये हालिया घटना AI + बिज़नेस + कॉर्पोरेट गोपनीयता के मिलेजुले रिस्क को बिल्कुल खुली आँखों के सामने ला देती है ये दिखाती है कि AI Agent अगर एक छोटी-सी गलती करे तो उसका असर बिज़नेस दुनिया में कितना बड़ा हो सकता है।

यही वजह है कि Vembu ने इस मामले को छुपाया नहीं, बल्कि खुलकर सोशल मीडिया पर शेयर किया ताकि लोग समझें कि AI सिर्फ कमाल की चीज़ नहीं, बल्कि ग़ैर–कंट्रोल्ड हो जाए तो खतरे की चीज़ भी बन सकती है।

इससे क्या सीख मिलती है भविष्य के लिए सुझाव

AI Agent का इस्तेमाल करते समय बहुत सोच-समझकर कदम उठाना चाहिए ख़ासकर तब जब मामला बेहद संवेदनशील हो, जैसे M&A डील्स, निवेश की बातचीत, या कंपनी की गुप्त / कॉन्फिडेंशियल जानकारी। AI को हमेशा “ड्राफ्टिंग असिस्टेंट” की हद तक ही रखना चाहिए यानी वो मेल या डॉक्यूमेंट का मसौदा (draft) तैयार करे, लेकिन आखिरी मेल इंसान ही भेजे।

किसी भी कंपनी के लिए यह बहुत ज़रूरी है कि उसकी AI गवर्नेंस पॉलिसी मजबूत हो मतलब यह साफ़ तय हो कि कौन-सा काम AI करे और कौन-सा काम इंसान ही करेगा। हर जानकारी AI के लिए नहीं होती। कुछ बातें सख़्ती से मानव-लिखित होनी चाहिए, जैसे NDA मैटर, कॉर्पोरेट सीक्रेट्स, निवेश की बातचीत, डील की शर्तें वगैरह।

AI जितना भी एडवांस हो जाए, ब्लाइंड भरोसा मत कीजिए क्योंकि कॉन्टेक्स्ट, जजमेंट, और डिस्क्रिशन जैसी चीज़ें इंसानी दिमाग बेहतर समझता है। मशीन के लिए यह सब महसूस करना आसान नहीं है।

और हाँ अगर AI से कोई गलती हो जाए, तो उसे छुपाने या टालने के बजाय खुलकर स्वीकार करना चाहिए। जवाबदेही तय होनी चाहिए ठीक वैसे ही जैसे Sridhar Vembu ने किया। पारदर्शिता (transparency) से भरोसा बनता है।

AI और इंसान का संतुलन बनाना बहुत ज़रूरी है। ऑटोमेशन से काम तेज़ होता है, सही है लेकिन AI को “स्वतंत्र” (autonomous) बना देना हीरो नहीं, रिस्क बन सकता है। उसे सहायक रहना चाहिए, निर्णय लेने वाला नहीं।

असल में तो ये घटना थोड़ी हास्यास्पद भी लगती है एक “सहायक” AI एजेंट ने पहले कंपनी के ट्रेड सीक्रेट लीक कर दिए और फिर खुद ही शरमाकर माफ़ीनामा लिख भेजा। लेकिन इस मज़ेदार-सी लड़की-माफ़ घटना में एक बहुत बड़ा सबक छुपा है AI जितना स्मार्ट होता जा रहा है, इंसानी ज़िम्मेदारी, सावधानी और निगरानी उतनी ही ज़रूरी होती जा रही है।

इसी बात को समझाने के लिए Sridhar Vembu जैसे अनुभवी टेक लीडर ने इस घटना को सार्वजनिक किया ताकि आने वाला दौर AI की भाग-दौड़ और चमक में इंसानी होश, समझ और ज़िम्मेदारी कहीं खो न जाए।

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