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Kolkata में ‘Messi Mess’: अव्यवस्था ने कैसे बिगाड़ा करोड़ों का आयोजन
Kolkata को आम तौर पर भारत की फुटबॉल राजधानी कहा जाता है। यहाँ फुटबॉल सिर्फ खेल नहीं, जज़्बात है। लेकिन हाल ही में शहर एक ऐसे विवाद में फँस गया, जिसने फुटबॉल चाहने वालों का दिल भी दुखाया और प्रशासन की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े कर दिए।
जिस कार्यक्रम को फुटबॉल के जश्न और लियोनेल Messi के नाम से एक यादगार लम्हा बनना था, वही अब लोगों की ज़ुबान पर “Messi Mess” बनकर रह गया है। मैदान पर खेल की बात कम हुई और अव्यवस्था, हंगामे और बदइंतज़ामी की चर्चा ज़्यादा होने लगी। शुरुआती रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस पूरे हंगामे में करीब ₹2.5 करोड़ रुपये की संपत्ति को नुकसान पहुँचा है।
असल में, यह सब अचानक नहीं हुआ। इसके पीछे कई वजहें सामने आई हैं। सबसे बड़ी वजह रही राजनीतिक दखल। कुछ नेताओं और उनके क़रीबी लोगों की मौजूदगी ने माहौल को और बिगाड़ दिया। हर कोई आगे बढ़कर फोटो खिंचवाना चाहता था, सेल्फी लेना चाहता था, मानो पूरा आयोजन खेल के लिए नहीं बल्कि दिखावे के लिए हो।
इसके साथ ही VIP संस्कृति ने भी आग में घी डालने का काम किया। आम फुटबॉल फैन, जो दिल से मेसी को देखने और महसूस करने आया था, वह लाइन में खड़ा रह गया। वहीं VIP पास वाले लोग बिना ज़्यादा रोक-टोक के अंदर जाते रहे। इससे भीड़ बेकाबू हुई और हालात हाथ से निकलते चले गए।
एक और बड़ी परेशानी बनी बाहरी लोगों की अनियंत्रित एंट्री। जिनके पास पास नहीं थे, वे भी किसी न किसी तरह अंदर घुस आए। कहीं गेट तोड़े गए, कहीं बैरिकेड्स गिरा दिए गए। सुरक्षा इंतज़ाम इतने मज़बूत नहीं थे कि भीड़ को काबू में रखा जा सके। इसी अफरा-तफरी में महंगे साउंड सिस्टम, लाइट्स और सजावट को भारी नुकसान पहुँचा।
कुल मिलाकर, जो इवेंट फुटबॉल का जश्न होना चाहिए था, वह बदइंतज़ामी और लापरवाही की मिसाल बन गया। लोग अब यही कह रहे हैं कि अगर समय रहते सही इंतज़ाम होते, राजनीति और VIP कल्चर को दूर रखा जाता, तो शायद यह दिन फुटबॉल प्रेमियों के लिए एक खूबसूरत याद बन सकता था। मगर अफ़सोस, यह मौका भी हाथ से निकल गया और कोलकाता का नाम एक बार फिर गलत वजहों से सुर्खियों में आ गया।
उम्मीदों से हंगामे तक: कैसे बदला माहौल
Kolkata को आम तौर पर भारत की फुटबॉल राजधानी कहा जाता है। यहाँ फुटबॉल सिर्फ खेल नहीं, जज़्बात है। लेकिन हाल ही में शहर एक ऐसे विवाद में फँस गया, जिसने फुटबॉल चाहने वालों का दिल भी दुखाया और प्रशासन की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े कर दिए।
जिस कार्यक्रम को फुटबॉल के जश्न और लियोनेल Messi के नाम से एक यादगार लम्हा बनना था, वही अब लोगों की ज़ुबान पर “Messi Mess” बनकर रह गया है। मैदान पर खेल की बात कम हुई और अव्यवस्था, हंगामे और बदइंतज़ामी की चर्चा ज़्यादा होने लगी। शुरुआती रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस पूरे हंगामे में करीब ₹2.5 करोड़ रुपये की संपत्ति को नुकसान पहुँचा है।

असल में, यह सब अचानक नहीं हुआ। इसके पीछे कई वजहें सामने आई हैं। सबसे बड़ी वजह रही राजनीतिक दखल। कुछ नेताओं और उनके क़रीबी लोगों की मौजूदगी ने माहौल को और बिगाड़ दिया। हर कोई आगे बढ़कर फोटो खिंचवाना चाहता था, सेल्फी लेना चाहता था, मानो पूरा आयोजन खेल के लिए नहीं बल्कि दिखावे के लिए हो।
इसके साथ ही VIP संस्कृति ने भी आग में घी डालने का काम किया। आम फुटबॉल फैन, जो दिल से Messi को देखने और महसूस करने आया था, वह लाइन में खड़ा रह गया। वहीं VIP पास वाले लोग बिना ज़्यादा रोक-टोक के अंदर जाते रहे। इससे भीड़ बेकाबू हुई और हालात हाथ से निकलते चले गए।
एक और बड़ी परेशानी बनी बाहरी लोगों की अनियंत्रित एंट्री। जिनके पास पास नहीं थे, वे भी किसी न किसी तरह अंदर घुस आए। कहीं गेट तोड़े गए, कहीं बैरिकेड्स गिरा दिए गए। सुरक्षा इंतज़ाम इतने मज़बूत नहीं थे कि भीड़ को काबू में रखा जा सके। इसी अफरा-तफरी में महंगे साउंड सिस्टम, लाइट्स और सजावट को भारी नुकसान पहुँचा।
कुल मिलाकर, जो इवेंट फुटबॉल का जश्न होना चाहिए था, वह बदइंतज़ामी और लापरवाही की मिसाल बन गया। लोग अब यही कह रहे हैं कि अगर समय रहते सही इंतज़ाम होते, राजनीति और VIP कल्चर को दूर रखा जाता, तो शायद यह दिन फुटबॉल प्रेमियों के लिए एक खूबसूरत याद बन सकता था। मगर अफ़सोस, यह मौका भी हाथ से निकल गया और कोलकाता का नाम एक बार फिर गलत वजहों से सुर्खियों में आ गया।
VIP कल्चर: आम फैन बनाम खास मेहमान
दूसरी बड़ी वजह बनी VIP संस्कृति, जिसने आम फुटबॉल चाहने वालों को बिल्कुल किनारे कर दिया। जो फैंस बाकायदा टिकट खरीदकर आए थे, उन्हें घंटों तक लाइन में खड़ा रहना पड़ा। धूप, भीड़ और धक्का-मुक्की के बीच वे बस इंतज़ार ही करते रहे। दूसरी तरफ जिनके पास VIP टैग था, वे बिना किसी खास चेकिंग के सीधे अंदर दाखिल होते रहे।
इस दोहरे बर्ताव ने माहौल को और बिगाड़ दिया। अव्यवस्था फैलती चली गई और भीड़ का पूरा संतुलन ही बिगड़ गया। कई जगहों पर हालात ऐसे हो गए कि क्षमता से कहीं ज़्यादा लोग जमा हो गए। आपातकाल के लिए बनाए गए रास्ते तक बंद हो गए और सुरक्षा के नियमों की खुलेआम अनदेखी होने लगी।

जानकारों का कहना है कि अगर शुरुआत से ही VIP और आम दर्शकों के लिए अलग-अलग ज़ोन बनाए जाते, और नियम सबके लिए बराबर होते, तो शायद हालात इतने नहीं बिगड़ते। लेकिन यहाँ तो हर कोई अपनी पहचान और पहुँच के दम पर आगे निकलने की कोशिश करता दिखा।
तीसरी और बेहद अहम वजह रही बाहरी लोगों की बेकाबू एंट्री। आयोजन के लिए जो पास सिस्टम तैयार किया गया था, वह ज़मीनी स्तर पर पूरी तरह नाकाम साबित हुआ। फर्जी पास की शिकायतें सामने आईं, कई लोग बिना किसी पास के ही अंदर घुस आए और सुरक्षा में लगे स्टाफ की संख्या भी हालात के मुकाबले काफी कम थी।
सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो में साफ नजर आया कि लोग दीवार फांद रहे हैं, गेट तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं और ज़बरदस्ती अंदर घुसने पर आमादा हैं। इसी अफरा-तफरी और धक्का-मुक्की के दौरान कई महंगे उपकरण टूट-फूट गए। LED स्क्रीन, साउंड सिस्टम और अन्य इंतज़ाम बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुए, जिनका कुल नुकसान लगभग ₹2.5 करोड़ रुपये बताया जा रहा है।
कुल मिलाकर, यह साफ हो गया कि बदइंतज़ामी, VIP कल्चर और कमजोर सुरक्षा ने मिलकर इस आयोजन को एक बड़ी नाकामी में बदल दिया। जो मौका फुटबॉल के जश्न का था, वह अफ़सोस और नाराज़गी की वजह बनकर रह गया।
प्रशासनिक चूक या सोची-समझी लापरवाही?
अब सबसे बड़ा सवाल यही उठ रहा है कि आखिर यह सब प्रशासन की चूक थी या फिर जानबूझकर बरती गई ढील? लोग खुलकर पूछ रहे हैं कि क्या यह हालात अपने आप बिगड़े या फिर किसी ने वक्त रहते उन्हें संभालने की कोशिश ही नहीं की।
आलोचकों का कहना है कि पूरे आयोजन में भीड़ को संभालने की कोई ठोस योजना नजर नहीं आई। न तो एंट्री और एग्ज़िट का सही इंतज़ाम था, न ही यह साफ था कि किस वक्त कितने लोगों को अंदर जाने दिया जाएगा। इसके अलावा आयोजकों और स्थानीय प्रशासन के बीच तालमेल की भी साफ कमी दिखी। दोनों एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालते नजर आए, लेकिन मौके पर हालात संभालने वाला कोई नहीं था।
सबसे गंभीर बात यह रही कि राजनीतिक हस्तक्षेप को वक्त रहते नहीं रोका गया। जिन लोगों की मौजूदगी से हालात बिगड़ सकते थे, उन्हें रोकने की हिम्मत किसी ने नहीं दिखाई। नतीजा यह हुआ कि नियम कागज़ों तक ही सीमित रह गए।
जानकारों का मानना है कि अगर आयोजन के पैमाने को देखते हुए पर्याप्त पुलिस बल, निजी सुरक्षा एजेंसियाँ और डिजिटल एंट्री सिस्टम लागू किया गया होता, तो शायद यह नौबत ही न आती। सही प्लानिंग और सख्ती से भीड़ को काफी हद तक काबू में रखा जा सकता था।
अब जब करीब ₹2.5 करोड़ रुपये के नुकसान का अंदाज़ा सामने आ चुका है, तो जिम्मेदारी तय करने की मांग तेज़ हो गई है। हर तरफ बस एक ही सवाल गूंज रहा है आखिर इसका हिसाब कौन देगा?
लोग पूछ रहे हैं कि इस नुकसान की भरपाई कौन करेगा? क्या इसकी जिम्मेदारी आयोजकों की है, या फिर प्रशासन को जवाब देना चाहिए? या फिर उन VIP मेहमानों से सवाल पूछे जाएँ, जिनकी वजह से नियम टूटे और हालात बिगड़े?
साथ ही यह मांग भी उठ रही है कि क्या भविष्य में ऐसे बड़े आयोजनों के लिए और सख्त नियम बनाए जाएंगे, ताकि दोबारा ऐसा तमाशा न हो। फुटबॉल फैंस और सामाजिक संगठनों का साफ कहना है कि अगर इस मामले में दोषियों पर कार्रवाई नहीं हुई, तो भारत में होने वाले बड़े अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों की साख पर गहरा सवाल खड़ा हो जाएगा।
लोगों की नाराज़गी अब सिर्फ इस इवेंट तक सीमित नहीं है। यह गुस्सा उस सोच के खिलाफ है, जहाँ खेल से ज़्यादा रसूख, सिफारिश और VIP कल्चर को तरजीह दी जाती है। अगर वक्त रहते इससे सबक नहीं लिया गया, तो आने वाले दिनों में ऐसे हालात फिर दोहराए जा सकते हैं—और तब नुकसान सिर्फ पैसों का नहीं, भरोसे का भी होगा।
फुटबॉल प्रेमियों की टूटी उम्मीदें
सबसे ज़्यादा मायूसी उन लाखों फुटबॉल फैंस को हुई, जो इस आयोजन को किसी सपने के पल की तरह देख रहे थे। उनके लिए यह सिर्फ एक इवेंट नहीं था, बल्कि Messi के नाम से जुड़ा एक जज़्बाती रिश्ता था। लोग दूर-दूर से आए थे, दिल में उम्मीदें लेकर कि कुछ खास देखने को मिलेगा। मगर जो मिला, उसने उनके दिल को तोड़ दिया।
आज वही फैंस सोशल मीडिया पर दर्द और ग़ुस्से के साथ सवाल उठा रहे हैं “क्या भारत में खेल से ज़्यादा राजनीति और VIP कल्चर हावी रहेगा?” यह सवाल सिर्फ मेसी या इस आयोजन तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे सिस्टम पर एक बड़ा सवाल बन चुका है।
अब बात आती है आगे की राह की क्या यह सब एक सबक बनेगा या फिर सिर्फ अफ़सोस बनकर रह जाएगा? “Messi Mess” ने यह बात बिल्कुल साफ कर दी है कि सिर्फ किसी बड़े नाम से बड़ा आयोजन नहीं बनता। बड़े इवेंट के लिए ज़रूरी होता है पेशेवर मैनेजमेंट, सख्त अनुशासन और साफ़ जवाबदेही।
अगर भारत को आने वाले वक्त में फीफा जैसे बड़े अंतरराष्ट्रीय इवेंट्स की मेज़बानी करनी है, तो कुछ कड़वे लेकिन ज़रूरी फैसले लेने ही होंगे। सबसे पहले VIP संस्कृति पर लगाम लगानी होगी, ताकि खेल सबके लिए बराबर रहे। दूसरा, आयोजनों को राजनीतिक दखल से दूर रखना होगा। तीसरा, भीड़ को संभालने के लिए टेक्नोलॉजी आधारित एंट्री सिस्टम लागू करना होगा। और सबसे अहम, हर स्तर पर सख्त जवाबदेही तय करनी होगी, ताकि गलती करने वाला बच न सके।
वरना हालात यूँ ही चलते रहे, तो हर बड़ा आयोजन सपनों के साथ शुरू होगा और हंगामे व अफ़सोस के साथ खत्म हो जाएगा। और हर बार की तरह, खेल फिर एक बार पीछे छूट जाएगा, जबकि आगे बढ़ेंगे सिर्फ राजनीति, रसूख और दिखावे के चेहरे।
इस पूरे वाक़िये ने एक बार फिर यह दिखा दिया कि हमारे यहाँ बड़े आयोजनों में इंतज़ाम से ज़्यादा दिखावे को अहमियत दी जाती है। खेल, जो लोगों को जोड़ने का काम करता है, वही यहाँ अव्यवस्था और रसूख़ की भेंट चढ़ गया। जिन फैंस की आँखों में चमक और दिल में जोश था, वही लोग मायूस होकर लौटे।
हर तरफ बस अफ़सोस ही अफ़सोस था। लोग कह रहे थे कि अगर नियम सबके लिए बराबर होते और सिफ़ारिश की कोई जगह न होती, तो शायद यह दिन यादगार बन जाता। मगर यहाँ तो नज़्म से ज़्यादा शोर था और जश्न से ज़्यादा हंगामा। इस पूरे मामले ने सिस्टम की कमज़ोरियों को बेनक़ाब कर दिया। इस मामले में हमारे देश की बाहर काफी त्रुटियां दिखाई दी जिसपे हम अब सिर्फ अफसोस कर सकते है।
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