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SIR के बाद Tamil Nadu में 97 लाख वोटरों के नाम cut, Chennai सबसे आगे 15% तक कमी, SIR समीक्षा ने क्यों बदली तमिलनाडु की मतदाता सूची, जानिए पूरी कहानी

SIR के बाद Tamil Nadu में 97 लाख वोटरों के नाम cut, Chennai सबसे आगे 15% तक कमी, SIR समीक्षा ने क्यों बदली तमिलनाडु की मतदाता सूची, जानिए पूरी कहानी

SIR क्या हुआ है? बड़ी तस्वीर

SIR का पूरा नाम है Special Intensive Revision। आसान शब्दों में कहें तो यह चुनाव आयोग (ECI) की तरफ से चलाया गया एक खास और गहराई से किया गया जांच-पड़ताल अभियान है, जिसमें यह देखा जाता है कि मतदाता सूची में दर्ज नाम सही हैं या नहीं।

इस प्रक्रिया का मक़सद बहुत सीधा है –
जिन लोगों के नाम दो-दो या कई बार दर्ज हो गए हों, उन्हें हटाना
जो लोग अपने पुराने पते से कहीं और शिफ्ट हो चुके हों, उनके नाम हटाना
जिन मतदाताओं का इंतकाल (निधन) हो चुका है, उन्हें सूची से बाहर करना
जिनका पता सही न मिले, या जो घर पर नहीं पाए गए यानी Untraceable रहे
और जिनके नाम रिकॉर्ड की गलती या तकनीकी चूक की वजह से गलत तरीके से दर्ज हो गए हों

मतलब साफ है SIR का मक़सद यह पक्का करना है कि मतदाता सूची बिल्कुल साफ, दुरुस्त और असली हो, ताकि कोई शख़्स एक से ज़्यादा वोट न डाल सके, और मरे हुए, शिफ्ट हो चुके या फर्जी नाम चुनावी लिस्ट में न रहें।

इसी SIR प्रक्रिया के बाद Tamil Nadu में बड़ा बदलाव देखने को मिला है। चुनाव आयोग ने राज्य भर में 97 लाख से ज़्यादा मतदाताओं के नाम ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से हटा दिए हैं। सबसे चौंकाने वाला आंकड़ा चेन्नई से आया है, जहाँ अकेले 14.25 लाख मतदाता सूची से बाहर कर दिए गए।

यह कोई छोटा-मोटा बदलाव नहीं है। पहले Tamil Nadu में लगभग 6.41 करोड़ मतदाता दर्ज थे, लेकिन अब यह संख्या घटकर करीब 5.43 करोड़ रह गई है। यानी कुल मिलाकर करीब 15 प्रतिशत से ज़्यादा वोटरों की कटौती हुई है।

चेन्नई की हालत तो और भी ज़्यादा गंभीर रही। वहाँ हटाए गए 14.25 लाख नाम चेन्नई के कुल मतदाता आधार का लगभग 35 प्रतिशत से भी ज़्यादा हिस्सा हैं। यानी हर तीन में से एक नाम ड्राफ्ट लिस्ट से बाहर चला गया।

हालाँकि, यह बात समझना बहुत ज़रूरी है कि यह अभी अंतिम वोटर लिस्ट नहीं है। यह सिर्फ ड्राफ्ट सूची है।
चुनाव आयोग ने आम लोगों को मौका दिया है कि अगर किसी का नाम गलती से हट गया हो,
तो वह दावा या आपत्ति दर्ज करा सकता है,
अपने काग़ज़ात दिखाकर नाम दोबारा जुड़वा सकता है
या फिर पते और जानकारी में सुधार करवा सकता है।

यानि अभी दरवाज़े बंद नहीं हुए हैं। लेकिन यह पूरा मामला साफ इशारा करता है कि चुनाव से पहले मतदाता सूची को लेकर सख़्ती और गहन जांच की जा रही है, ताकि चुनाव प्रक्रिया ज़्यादा पारदर्शी, निष्पक्ष और भरोसेमंद बन सके।

Chennai में सबसे बड़ा बदलाव

अगर Chennai की हालत पर गौर करें, तो तस्वीर वाकई चौंकाने वाली है। पहले मतदाता सूची में यहाँ करीब 40.04 लाख वोटर दर्ज थे, लेकिन SIR प्रक्रिया के बाद यह संख्या घटकर लगभग 25.79 लाख रह गई। यानी सीधे-सीधे करीब 14.25 लाख नाम वोटर लिस्ट से काट दिए गए। यह कटौती लगभग 35.6 प्रतिशत की है, जो अपने आप में बहुत बड़ा आंकड़ा है।

यह बात इसलिए और भी अहम हो जाती है क्योंकि Chennai Tamil Nadu की राजधानी है, और आम तौर पर यहाँ वोटरों की तादाद ज़्यादा मानी जाती है। ऐसे में इतने बड़े पैमाने पर नामों का हटाया जाना कई सवाल खड़े करता है।

चुनाव आयोग की तरफ से जो वजहें बताई गई हैं, उनके मुताबिक करीब 12.22 लाख मतदाता ऐसे पाए गए जो अपने पुराने पते से कहीं और शिफ्ट हो चुके थे, यानी अब उस पते पर रहते ही नहीं थे।

लगभग 1.56 लाख लोगों को मृत घोषित किया गया, जिनका इंतकाल हो चुका है। 27,323 नाम ऐसे थे जिनका सत्यापन नहीं हो पाया, यानी वे घर पर नहीं मिले या पता ही ठीक से नहीं मिला इन्हें Not Found की कैटेगरी में रखा गया। वहीं 18,772 मामलों में यह सामने आया कि एक ही व्यक्ति का नाम दो जगह दर्ज था, यानी Dual Voting या दोहरी एंट्री का मामला था।

इन आंकड़ों से साफ पता चलता है कि चेन्नई में नाम कटने की सबसे बड़ी वजह लोगों का पता बदल जाना, रिकॉर्ड में गड़बड़ी, और एक ही नाम का बार-बार दर्ज होना रहा है।

यानि चुनाव आयोग का कहना है कि यह कार्रवाई किसी को जानबूझकर बाहर करने के लिए नहीं, बल्कि मतदाता सूची को दुरुस्त, साफ और भरोसेमंद बनाने के मक़सद से की गई है।

राज्य की समग्र स्थिति

चुनाव आयोग ने पूरे राज्य से हटाए गए नामों की पूरी तस्वीर भी सामने रखी है। इन आंकड़ों को देखें तो साफ समझ में आता है कि नाम हटाने की वजहें क्या रहीं। करीब 54 फ़ीसदी, यानी लगभग 53 लाख नाम इसलिए हटाए गए क्योंकि लोग अपने पुराने पते से कहीं और शिफ्ट हो चुके थे। मतलब उस पते पर वे अब रहते ही नहीं थे।

लगभग 28 फ़ीसदी, यानी करीब 27 लाख नाम, ऐसे लोगों के थे जिनका इंतकाल हो चुका है और उन्हें मृत घोषित किया गया। करीब 14 फ़ीसदी, यानी लगभग 13.6 लाख नाम, ऐसे थे जिनका पता नहीं चल पाया। या तो वे घर पर नहीं मिले, या फिर दिए गए पते पर कोई जानकारी ही नहीं मिली इन्हें Untraceable की श्रेणी में रखा गया।

लगभग 4 फ़ीसदी, यानी 3.98 लाख नाम, ऐसे थे जो डुप्लिकेट पाए गए यानि एक ही शख़्स का नाम एक से ज़्यादा जगह दर्ज था। बाकी बचे 0.2 फ़ीसदी, यानी करीब 16,400 नाम, कुछ दूसरे कारणों से सूची से हटाए गए।

इन आंकड़ों से यह बात बिल्कुल साफ हो जाती है कि सिर्फ मृत लोगों के नाम हटाना ही असली वजह नहीं थी। बल्कि सबसे बड़ा कारण यह रहा कि लोग स्थायी रूप से उस पते पर नहीं मिल रहे थे, या फिर उनका पता बदल चुका था।

अब सबसे अहम सवाल क्या यह वोटर लिस्ट आख़िरी है? नहीं, बिल्कुल नहीं। अभी यह सिर्फ “ड्राफ्ट” मतदाता सूची है। इसका मतलब यह है कि अब भी मतदाताओं के पास पूरा मौका है वे Form-6 भरकर अपने नाम को लेकर दावा कर सकते हैं अगर कोई गलती है तो आपत्ति या सुधार के लिए आवेदन दे सकते हैं जिनका नाम कट गया है, वे ज़रूरी काग़ज़ात देकर नाम दोबारा जुड़वा सकते हैं|

यह सारी प्रक्रिया एक तय समय सीमा के अंदर पूरी की जाएगी। उसके बाद ही चुनाव आयोग अंतिम मतदाता सूची जारी करेगा। और इसी अंतिम सूची के आधार पर 2026 के Tamil Nadu विधानसभा चुनाव कराए जाएंगे। यानी अभी खेल खत्म नहीं हुआ है अभी मतदाताओं के पास अपने हक़ की आवाज़ दर्ज कराने का पूरा मौका मौजूद है।

राजनीतिक और लोकतांत्रिक मायने

इस SIR प्रक्रिया ने Tamil Nadu की वोटर लिस्ट में ज़बरदस्त हलचल मचा दी है। कुल मिलाकर मतदाताओं की संख्या में करीब 15 फ़ीसदी तक की कमी देखी गई है। इतना बड़ा बदलाव होना अपने आप में कई सवाल खड़े करता है।

इसी वजह से विपक्षी पार्टियाँ, खास तौर पर DMK, पहले ही इस पूरे मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटा चुकी हैं। उनका कहना है कि इस तरह की गहन जांच के दौरान कई असली और हक़दार वोटरों के नाम भी गलती से लिस्ट से बाहर हो सकते हैं।

राजनीतिक दलों की दलील है कि अगर बड़ी तादाद में लोगों के नाम कट गए, तो इसका सीधा असर लोकतांत्रिक भागीदारी पर पड़ेगा। ख़ासकर उन वोटरों को ज़्यादा परेशानी हो सकती है जिनके लिए नाम दोबारा जुड़वाना आसान नहीं होगा या जो प्रक्रिया की जानकारी से वाक़िफ़ नहीं हैं।

वहीं दूसरी तरफ चुनाव आयोग ने अपना रुख बिल्कुल साफ़ कर दिया है। आयोग का कहना है कि यह सूची अभी अंतिम नहीं, बल्कि सिर्फ “ड्राफ्ट” है। हर मतदाता को पूरा हक़ दिया गया है कि वह दावा कर सके, आपत्ति दर्ज करा सके, और अगर गलती हुई है तो अपने नाम को दोबारा जुड़वा सके।

चुनाव आयोग ने भरोसा दिलाया है कि किसी भी असली मतदाता को जानबूझकर बाहर नहीं रखा जाएगा, और पूरी प्रक्रिया का मक़सद सिर्फ इतना है कि वोटर लिस्ट ज़्यादा साफ़, दुरुस्त और भरोसेमंद बन सके। यानि फिलहाल घबराने की ज़रूरत नहीं है अभी हर वोटर के पास अपने हक़ की आवाज़ दर्ज कराने का पूरा मौका मौजूद है।

मतदाता पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

जिन लोगों का नाम वोटर लिस्ट से कट गया है, उन्हें घबराने की ज़रूरत नहीं है। वे दावा या आपत्ति की प्रक्रिया के ज़रिये अपना नाम फिर से सूची में जुड़वा सकते हैं।

अगर किसी को यह शक है कि उसका नाम गलती से या बिना जानकारी के हटा दिया गया है, तो वह अपने इलाके के स्तर पर आवेदन दे सकता है और ज़रूरी काग़ज़ात जमा कर सकता है।

आम वोटरों को अब यह ध्यान रखना होगा कि –
उनकी वोटर ID सही हो,
पता अपडेट हो,
और पहचान से जुड़े दस्तावेज़
जैसे EPIC कार्ड, आधार वगैरह
रिकॉर्ड में ठीक तरह से दर्ज हों।

ताकि आगे चलकर नाम कटने या किसी तरह की परेशानी का सामना न करना पड़े।

निष्कर्ष

SIR प्रक्रिया के तहत Tamil Nadu में करीब 97 लाख मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से हटाए गए हैं। इनमें से चेन्नई में अकेले 14.25 लाख नाम काटे गए, जो अपने आप में एक बहुत बड़ा आंकड़ा है।

नाम हटाए जाने की मुख्य वजहें ये रहीं लोगों का पता बदल जाना मृत वोटरों के नाम वे लोग जो मिले ही नहीं यानी Untraceable और डुप्लिकेट एंट्री, जहाँ एक ही शख़्स का नाम एक से ज़्यादा जगह दर्ज था। यह बात भी साफ़ है कि यह अभी आख़िरी वोटर लिस्ट नहीं है। अंतिम सूची जारी होने से पहले दावा और आपत्ति की प्रक्रिया चल रही है।

इसी को लेकर राजनीतिक दलों में ज़ोरदार बहस छिड़ी हुई है। विपक्ष सवाल उठा रहा है, जबकि चुनाव आयोग का कहना है कि यह पूरी कवायद मतदाता सूची को ज़्यादा साफ़, दुरुस्त और भरोसेमंद बनाने के लिए की गई है। यानी अभी फ़ैसला आख़िरी नहीं है हर वोटर के पास अपने हक़ को सुरक्षित करने का पूरा मौका मौजूद है।

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