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VB G RAM G 2025: Controversial Law जिसने 20 साल पुरानी ग्रामीण रोज़गार गारंटी को Shaken कर दिया

VB G RAM G 2025: Controversial Law जिसने 20 साल पुरानी ग्रामीण रोज़गार गारंटी को Shaken कर दिया

राष्ट्रपति ने VB G RAM G बिल को कानून में बदला

21 दिसंबर 2025 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने विकसित भारत-गारंटी फॉर रोजगार और आजीविका मिशन (VB G RAM G) विधेयक, 2025 पर अपनी मुहर लगा दी। राष्ट्रपति की मंज़ूरी मिलते ही यह बिल अब बाकायदा क़ानून बन गया है। यह क़दम देश की ग्रामीण रोज़गार नीति में एक बड़ा और दूरगामी बदलाव माना जा रहा है।

सरल बोलचाल की भाषा में कहें तो सरकार ने गाँवों में रोज़गार देने के पुराने तरीक़े को पूरी तरह बदलने का फ़ैसला किया है। पिछले लगभग 20 सालों से जो व्यवस्था महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) के नाम से चल रही थी, अब उसकी जगह यह नया क़ानून ले चुका है। यानी सिर्फ़ नाम ही नहीं बदला, बल्कि पूरा ढाँचा, सोच और काम करने का तरीक़ा भी नया हो गया है।

MGNREGA के तहत गाँव के ग़रीब और मज़दूर तबके को साल में तय दिनों का मज़दूरी वाला काम मिलता था। लेकिन VB G RAM G में सरकार का दावा है कि अब सिर्फ़ अस्थायी मज़दूरी नहीं, बल्कि रोज़गार के साथ-साथ आजीविका, हुनर और आत्मनिर्भरता पर ज़्यादा ज़ोर दिया जाएगा। मतलब यह कि लोगों को काम देकर छोड़ देने की बजाय, उन्हें ऐसा बनाया जाएगा कि वे लंबे वक़्त तक अपने पैरों पर खड़े रह सकें।

सरकार का कहना है कि यह क़ानून ‘विकसित भारत’ के विज़न को ध्यान में रखकर बनाया गया है, जहाँ ग्रामीण इलाक़ों में रहने वाले लोगों को सिर्फ़ सहारा नहीं, बल्कि मौक़ा दिया जाए। वहीं दूसरी ओर, विपक्ष और कई सामाजिक संगठन इसे लेकर सवाल भी उठा रहे हैं। उनका कहना है कि MGNREGA सिर्फ़ एक स्कीम नहीं, बल्कि ग़रीबों के लिए एक क़ानूनी हक़ था, और उसे हटाकर नई व्यवस्था लाना आम लोगों की सुरक्षा कम कर सकता है।

कुल मिलाकर, VB G RAM G क़ानून के लागू होने से भारत की ग्रामीण रोज़गार नीति एक नए मोड़ पर आ खड़ी हुई है। आने वाले दिनों में यह साफ़ होगा कि यह बदलाव गाँव के ग़रीब, मज़दूर और किसानों के लिए राहत बनेगा या उनके लिए नई मुश्किलें खड़ी करेगा।

VB G RAM G के मुख्य बदलाव क्या हैं?

अब सरकार कह रही है कि गाँव के ग़रीब और मेहनतकश परिवारों को साल में 100 दिन की जगह 125 दिन का क़ानूनी रोज़गार मिलेगा। यानी काम के दिनों में इज़ाफ़ा होगा और लोगों को ज़्यादा वक़्त तक कमाई का सहारा मिलेगा। साथ ही यह भी दावा किया जा रहा है कि मज़दूरी वक़्त पर मिलेगी, और अगर किसी वजह से भुगतान में देरी होती है तो मज़दूर को उसका देरी का मुआवज़ा भी दिया जाएगा, ताकि उसकी मेहनत की क़दर बनी रहे।

इस नए क़ानून में काम कैसे और कहाँ होंगे, इसका फ़ैसला ऊपर से थोपने के बजाय ग्राम सभा की मंज़ूरी से किया जाएगा। यानी गाँव के लोग ख़ुद तय करेंगे कि उनके इलाक़े में किस तरह के काम ज़रूरी हैं। सरकार का कहना है कि यह क़ानून “विकसित भारत 2047” के ख़्वाब के मुताबिक़ बनाया गया है, जिससे गाँवों में सिर्फ़ रोज़ी-रोटी की सुरक्षा ही नहीं, बल्कि लोगों की उत्पादन करने की ताक़त भी मज़बूत हो।

सरकार इसे महज़ एक रोज़गार की ‘योजना’ नहीं मानती, बल्कि उसका दावा है कि यह क़ानून ग्रामीण विकास को एक विकासोन्मुख और टिकाऊ नीति में बदल देगा, जहाँ लोग लंबे वक़्त तक अपने पैरों पर खड़े रह सकें। उनके मुताबिक़ अब बात सिर्फ़ काम देने की नहीं, बल्कि गाँवों को आगे बढ़ाने की है।

लेकिन इस पूरे बदलाव पर विपक्ष का ग़ुस्सा भी कम नहीं है। कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने इसका तीखा विरोध किया है। उनका कहना है कि पुराने क़ानून का नाम और उसकी सोच महात्मा गांधी से जुड़ी थी, और उसे हटाना गांधी की विरासत को नुक़सान पहुँचाने जैसा है। विपक्ष का यह भी आरोप है कि नई व्यवस्था में ग़रीबों के अधिकार कमज़ोर हो सकते हैं।

हालाँकि सरकार इन आरोपों को सिरे से ख़ारिज करती है। उसका कहना है कि यह नया क़ानून ज़्यादा आधुनिक, जवाबदेह और रोज़गार के साथ विकास को जोड़ने वाला ढाँचा है। अब सच्चाई क्या है, यह आने वाले वक़्त में ज़मीन पर इसके असर से ही साफ़ हो पाएगा — क्या यह बदलाव गाँवों के लिए राहत बनेगा या फिर नई बहसों को जन्म देगा।

मुख्य विपक्षी आरोप

इस नए क़ानून में महात्मा गांधी का नाम हटाए जाने को लेकर सियासत पूरी तरह गरमा गई है। विरोधी दलों का कहना है कि यह सिर्फ़ नाम बदलने का मामला नहीं है, बल्कि ‘गांधी की विरासत’ को नज़रअंदाज़ करने और इतिहास को अपनी मर्ज़ी से दोबारा लिखने की कोशिश है।

उनका आरोप है कि जो क़ानून पहले अधिकार-आधारित था, यानी जिसमें ग़रीब ग्रामीण मज़दूर को काम पाने की कानूनी गारंटी मिलती थी, उसे अब एक केंद्र से चलने वाली, प्रावधान-आधारित योजना में बदल दिया गया है। इससे गाँव के मेहनतकश लोगों की रोज़गार की गारंटी कमज़ोर पड़ सकती है।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस बदलाव पर सख़्त लहजे में हमला बोला। उन्होंने इसे खुलकर “एंटी-विलेज” यानी गाँव-विरोधी क़रार दिया और कहा कि करीब 20 साल की मेहनत और संघर्ष को एक ही दिन में मिट्टी में मिला दिया गया। उनके मुताबिक़ यह फ़ैसला सीधे तौर पर गाँवों और ग़रीब मज़दूरों के ख़िलाफ़ जाता है।

वहीं कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी ने भी सरकार को आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि देश की सबसे अहम ग्रामीण रोज़गार योजना के साथ सरकार ने सिर्फ़ उसके नाम से ही नहीं, बल्कि उसकी असल रूह और सोच से भी पल्ला झाड़ लिया है। उनके शब्दों में, यह क़दम सीधे-सीधे ग़रीबों के हितों पर वार है।

विरोध यहीं तक सीमित नहीं रहा। संसद के अंदर यह मामला पूरी तरह सियासी तमाशे और ज़ोरदार टकराव में बदल गया। विपक्षी सांसदों ने विधेयक की प्रतियां तक फाड़ दीं, आधी रात तक सदन में हंगामा किया और सरकार से इसे संसदीय स्थायी समिति के पास भेजने की मांग की, ताकि इस पर ठीक से समीक्षा हो सके।

इसके अलावा, कांग्रेस सांसदों की एक अलग समिति भी बनाई गई है, जो 29 दिसंबर 2025 को बैठक बुलाने जा रही है। इस बैठक में नए क़ानून और पुरानी मनरेगा योजना का आमने-सामने रखकर गहराई से अध्ययन किया जाएगा, ताकि यह समझा जा सके कि बदलाव वाक़ई सुधार है या फिर गाँवों और ग़रीबों के लिए एक और मुश्किल।

सरकार का जवाब और अपने पक्ष की दलीलें

केंद्र सरकार और उसे समर्थन देने वाले दलों का कहना है कि VB G RAM G कोई अचानक किया गया फ़ैसला नहीं है, बल्कि यह पुराने मनरेगा को ही ज़्यादा बेहतर और बड़े पैमाने पर आगे बढ़ाने की कोशिश है। उनके मुताबिक़ यह एक नया, आधुनिक और ज़माने के हिसाब से ढला हुआ ढाँचा है, जो आज की ज़रूरतों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है।

सरकार साफ़ तौर पर कहती है कि नाम बदलने का मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि महात्मा गांधी की याद या उनकी सोच को मिटाया जा रहा है। उनका तर्क है कि वक़्त के साथ नीतियों को भी बदलना और नए विकास लक्ष्यों के मुताबिक़ ढालना ज़रूरी होता है। इसलिए यह बदलाव भावनाओं से नहीं, ज़मीनी हक़ीक़त और भविष्य की ज़रूरतों को देखकर किया गया है।

सरकार का यह भी दावा है कि MGNREGA के दौरान कई जगह भ्रष्टाचार, लापरवाही और काम के सही ढंग से न होने जैसी समस्याएँ सामने आईं। उनके मुताबिक़ इसी वजह से यह नीतिगत बदलाव ज़रूरी हो गया था, ताकि नई व्यवस्था ज़्यादा पारदर्शी, जवाबदेह और असरदार बन सके। सरकार मानती है कि नए क़ानून से पैसा सही जगह पहुँचेगा और काम की निगरानी भी मज़बूत होगी।

ग्रामीण विकास मंत्री के अनुसार, यह क़ानून किसान और मज़दूर दोनों की आजीविका को और मज़बूती देगा। उनका कहना है कि इससे गाँवों में सिर्फ़ रोज़गार ही नहीं मिलेगा, बल्कि सड़कें, जल-संरचनाएँ और दूसरी टिकाऊ बुनियादी सुविधाएँ भी तेज़ी से बनाई जाएँगी, जिनका फ़ायदा लंबे अरसे तक लोगों को मिलता रहेगा। सरकार का दावा है कि VB G RAM G के ज़रिये ग्रामीण भारत को मज़बूत, आत्मनिर्भर और विकास की नई राह पर ले जाया जाएगा।

क्या बदला है MGNREGA से VB G RAM G तक का सफ़र

मनरेगा की शुरुआत साल 2005 में हुई थी, और 2009 में उसके नाम के साथ महात्मा गांधी का नाम जोड़ा गया। वक़्त के साथ यह योजना दुनिया की सबसे बड़ी ग़रीब-उद्धार और रोज़गार गारंटी योजनाओं में गिनी जाने लगी। गाँवों के करोड़ों ग़रीब परिवारों के लिए यह सिर्फ़ एक स्कीम नहीं, बल्कि मुश्किल वक़्त में एक मज़बूत सहारा बन गई थी।

अब VB-G RAM G 2025 के ज़रिये सरकार यह दिखाना चाहती है कि रोज़गार का मतलब सिर्फ़ मज़दूरी का पैसा देना नहीं होना चाहिए। सरकार का दावा है कि इस नए क़ानून के तहत रोज़गार को आधारभूत संसाधनों, आजीविका, हुनर और ग्रामीण उत्पादन से जोड़कर एक मल्टी-डायमेंशनल फ़ॉर्मूला खड़ा किया जाएगा, जिससे गाँवों की हालत लंबे समय में बेहतर हो सके।

लेकिन यह बदलाव अब सिर्फ़ नीति का मसला नहीं रह गया है। यह सियासत और सोच की जंग बन चुका है। एक तरफ़ सरकार है, जो कहती है कि ग्रामीण भारत को आने वाले कल की चुनौतियों से निपटने और नए विकास के मौक़े देने के लिए यह बदलाव ज़रूरी था। उनके मुताबिक़ बिना बदलाव के गाँव आगे नहीं बढ़ सकते।

दूसरी तरफ़ विपक्ष का कहना है कि यह पूरा क़दम ग़रीबों के साथ धोखा और स्थापित आदर्शों से मुंह मोड़ने जैसा है। उनका आरोप है कि MGNREGA का नाम और उसका मूल ढाँचा जिस तरह हटाया गया, वह न सिर्फ़ जल्दबाज़ी है बल्कि ग़रीब-पक्षीय सोच को कमज़ोर करने वाला भी है।

आने वाले दिनों में इस मसले पर न्यायालयों की दख़ल, ज़ोरदार राजनीतिक बहसें, और संसदीय समिति की रिपोर्ट सामने आने की उम्मीद है। यही सब तय करेगा कि यह बड़ा बदलाव वाक़ई ग्रामीण भारत के लिए नई उम्मीद बनेगा या फिर एक और विवादित फ़ैसला साबित होगा।

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