Table of Contents
“De De Pyaar De 2” Review
14 नवंबर 2025 को रिलीज़ हुई “De De Pyaar De 2” एकदम वही पुराना, मज़ेदार बॉलीवुड वाला मज़ा वापस ले आती है मतलब प्यार भी है, तकरार भी है, हंसी-मज़ाक भी है और थोड़ी-बहुत ड्रामा की चाशनी भी। इस बार निर्देशक अंशुल शर्मा ने कोशिश की है कि पहली फिल्म की रूह को ज़िंदा रखते हुए कहानी में नया रंग भी डालें, ताकि दर्शक बोर ना हों और पुरानी यादें भी ताज़ा रहें।
De De Pyaar De 2 फिल्म की कहानी दोबारा हमें ले जाती है आशीष मेहरा यानी Ajay Devgan और उनकी महबूबा आयशा (रकुल प्रीत सिंह) की दुनिया में। पहली फिल्म में दोनों की दिक्कत थी उम्र का बड़ा फ़र्क, समाज की बातें, और अपने रिश्ते को बचाने की जद्दोजहद।
लेकिन इस बार मामला थोड़ा और नाज़ुक है, क्योंकि अब जंग है परिवार की रज़ामंदी जीतने की। आयशा के माँ-बाप, यानी आर. माधवन और गौतमी कपूर, ऊपर-ऊपर से तो खुद को “मॉडर्न सोच” वाला परिवार बताते हैं, खुला ख्याल रखने का दावा भी करते हैं, लेकिन असल में उन्हें ये मालूम ही नहीं कि बेटी जिस शख्स को पसंद करती है, वो उम्र में उनके करीब है!
बस यही से शुरू होता है पीढ़ियों का टकराव, इज़्ज़त और भावनाओं के बीच की रस्साकशी, और प्यार का असली इम्तेहान जिसे पूरी फिल्म में मज़ेदार रोम-कॉम वाले अंदाज़ में दिखाया गया है। जगह-जगह चुटीले डायलॉग, हल्की-फुल्की कॉमेडी, और रिश्तों की मिठास-कड़वाहट दोनों की झलक मिलती है, जो कहानी को और भी दिलकश बना देती है।
De De Pyaar De 2: कैस्टिंग, अभिनय और निर्देशन
De De Pyaar De 2 फिल्म में Ajay Devgan न एक बार फिर आशीष के किरदार में नज़र आते हैं। उनकी एक्टिंग इस बार भी वही शांत, संभली हुई और हल्की-सी इंटेंस फील लिए हुए है। वो किसी फिल्मी हीरो की तरह “प्यार के लिए तलवार उठाने वाले आशिक़” नहीं दिखते, बल्कि ऐसे शख्स के रूप में सामने आते हैं जो प्यार के साथ-साथ जिम्मेदारियों का बोझ भी ईमानदारी से उठाता है। उनकी आंखों में ठहराव भी है और दिल में थोड़ा-सा डर भी, कि कहीं वो फिर किसी को तकलीफ़ न पहुँचा दें यही बात उनके किरदार को और असलियत देती है।
दूसरी तरफ रकुल प्रीत सिंह, यानी आयशा, फिल्म में जोश, ताज़गी और चुलबुलाहट का पूरा डोज़ लेकर आती हैं। उनकी हंसी, उनका अंदाज़ और उनकी स्मार्टनेस पूरी स्क्रीन को रौशन कर देती है। हाँ, जब बहुत ज़्यादा इमोशनल सीन आते हैं, तो कभी-कभी लगता है कि उनकी अभिव्यक्ति थोड़ी डगमगाती है मगर फिर भी उनकी मौजूदगी कहानी को हल्का और दिलकश बनाए रखती है।
आर. माधवन इस बार बहुत अहम रोल निभाते हैं एक ऐसे बाप का किरदार, जो ऊपर से तो सलीके वाले और समझदार लगते हैं, मगर अंदर ही अंदर अपनी बेटी के इस रिश्ते को समझने की लड़ाई लड़ रहे होते हैं। उनकी हल्की-सी मुस्कान, आँखों में छिपा गुस्सा, और कुछ पलों में आता वो “कन्फ्यूज़्ड-सा अपनापन” ये सब मिलकर उनके किरदार को बेहद असरदार बना देते हैं। कई सीन तो ऐसे हैं जहाँ बिना कुछ बोले भी उनका चेहरा बहुत कुछ कह देता है।
फिल्म में जावेद जाफ़री और उनके बेटे मिज़ान जाफ़री की जोड़ी ताज़ी हवा के झोंके की तरह लगती है। दोनों की केमिस्ट्री इतनी नैचुरल और इतनी मज़ेदार है कि स्क्रीन पर देखते ही चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। खासकर उनका गाना “3 शौक”, जिसमें दोनों साथ में नाचते हैं वो गाना दिल को छू भी लेता है और मज़ेदार भी लगता है। इसमें पंजाबी बीट, पुरानी यादों की खुशबू और बाप-बेटे की प्यारी बॉन्डिंग तीनों चीज़ों का बेहतरीन मिश्रण है।

अब बात करें निर्देशन की अंशुल शर्मा ने फिल्म को हल्के-फुल्के, आसान और फनी अंदाज़ में पेश किया है। उन्होंने कहानी में ड्रामा और कॉमेडी का ऐसा बैलेंस रखा है कि ना तो फिल्म बोझिल लगती है, और ना ही ज़रूरत से ज़्यादा मज़ाकिया। उन्हें मालूम है कि किस सीन में हंसी रखनी है और किस सीन में भावनाओं को जगह देनी है यही उनकी सबसे बड़ी खूबी है।
लेखन भी काफ़ी मजबूत है। लव रंजन और तरुण जैन की लिखी हुई स्क्रिप्ट में आज के मॉडर्न रिलेशनशिप की सच्चाई भी है, परिवार की मान-मनुहार भी है और स्वीकृति का वो संघर्ष भी है जो हर पीढ़ी झेलती है। डायलॉग कई जगह इतने रिलेटेबल हैं कि लगता है जैसे हमारे ही घर-परिवार की बातें चल रही हों।
और हाँ, म्यूज़िक की बात तो बनती ही है। “3 शौक” गाना रिलीज़ होते ही सोशल मीडिया पर छा गया था। इसकी बीट, इसका फ्लो और जावेद–मिज़ान की डांसिंग सब कुछ मिलकर इसे फिल्म का सबसे हिट और सबसे यादगार गाना बना देते हैं।
De De Pyaar De 2: ह्यूमर, भावनाएं और मैसेज
“De De Pyaar De 2” अपनी कॉमेडी और इमोशनल पलों के बीच एक अच्छा-सा संतुलन बनाने की पूरी कोशिश करती है। फिल्म की शुरुआत में ही हंसी का माहौल इतना ताज़ा और मज़ेदार लगता है कि दर्शक आसानी से कहानी में खिंच जाते हैं।
यहाँ नौजवान भी हैं, बड़े-बुज़ुर्ग भी, संस्कारी सोच भी है और मॉडर्न अंदाज़ भी और इन सबके टकराव में जो व्यंग्य, जो हल्का-सा तंज और जो चुटकियाँ हैं, वो फिल्म को काफी दिलचस्प बना देती हैं। कई जगह स्क्रिप्ट इतनी प्लान्ड होकर भी इतनी नैचुरल लगती है कि देखने वाले की आँखें अपने-आप गोल हो जाती हैं और होठों पर हँसी आ जाती है जैसे कोई घर की बात सामने आ गई हो।
लेकिन जैसे ही De De Pyaar De 2 फिल्म अपने दूसरे हिस्से में पहुँचती है, टोन थोड़ी बदलने लगती है। यहाँ इमोशन ज़्यादा घुलने लगते हैं परिवार की उम्मीदें, समाज के सवाल, और वो मशहूर जुमला: “आख़िर कब तक प्यार के लिए लड़ते रहोगे?” इन सब बातों के साथ कहानी गहराई की तरफ बढ़ती है। रिश्तों की जद्दोजहद, अपनापन, और टूटने-बंधने वाले पल कहानी को एक अलग ही फील दे देते हैं।
हाँ, मगर सच यह भी है कि कई समीक्षकों ने नोट किया कि फिल्म का दूसरा हाफ थोड़ा “ओवर” हो जाता है जैसे कहीं-कहीं ड्रामा हद से बढ़ जाता है, और कहानी कुछ मोड़ों पर अपनी तय राह से भटकती हुई महसूस होती है। खासकर क्लाइमैक्स, जो थोड़ा लंबा और थोड़ा मिसमैच-सा लगता है, मानो उस पर एक-दो लेयर्स ज़्यादा चढ़ गई हों। फिर भी, भावनाओं की गर्माहट और किरदारों की मासूमियत फिल्म को पूरी तरह गिरने नहीं देती|
De De Pyaar De 2: कमियाँ और कमजोरियाँ
फिल्म को लेकर एक आम शिकायत ये भी सामने आई है कि इसका टोन कई जगह अचानक बदल जाता है। मतलब, एक पल आप हल्के-फुल्के मज़ाक पर दिल खोलकर हँस रहे होते हैं, और अगले ही पल स्क्रीन पर इतना तनाव, भावनाएँ और ड्रामा भर जाता है कि लगता है जैसे कोई दूसरी ही फिल्म शुरू हो गई हो। ये तेज़ी से आने वाला बदलाव कई दर्शकों को थोड़ा खटकता है, क्योंकि माहौल बदलने का टाइम फिल्म ठीक से नहीं देती।
अब बात करें अजय देवगन और रकुल प्रीत सिंह की केमिस्ट्री की तो पहली फिल्म में जो ताजगी, जो चमक, जो रोमांटिक चिंगारी उनके बीच दिखती थी, वो इस बार कुछ कमज़ोर-सी महसूस होती है।
इंडिया टुडे के रिव्यू में भी यही बात कही गई है कि दोनों के बीच वो “छमकदार केमिस्ट्री” वाली बात इस बार उतनी दमदार नहीं बन पाई, जितनी कि दर्शक दिल से उम्मीद लगाए बैठे थे। ये कमी खासकर रोमांटिक सीन में साफ़ नज़र आती है, जहाँ आपको लगता है कि कुछ तो अधूरा-सा है, कुछ तो मिसिंग है।
फिर आता है कहानी के बहाव का मसला। कई समीक्षक मानते हैं कि फिल्म का सेकंड हाफ जरूरत से ज्यादा ट्विस्ट और सब-प्लॉट में उलझता चला जाता है। जैसे एक कहानी ख़त्म नहीं होती कि दूसरी शुरू हो जाती है, और तीसरी उसके पीछे दौड़ने लगती है।

इस जल्दबाज़ी और उलझन की वजह से फिल्म की पकड़ थोड़ी ढीली पड़ जाती है, और उसकी असली ताकत यानी हल्की-फुल्की रोम-कॉम वाली मिठास धीरे-धीरे फीकी लगने लगती है।
De De Pyaar De 2: पॉज़िटिव पहलू और मजबूत बिंदु
De De Pyaar De 2 फिल्म की सबसे अच्छी बात यह है कि यह आधुनिक रिश्तों की एकदम ईमानदार झलक दिखाती है। बार-बार ये एहसास दिलाया जाता है कि प्यार सिर्फ़ फूल-मोमबत्ती वाला रोमांस नहीं होता, बल्कि उसके पीछे समझ, सब्र, भरोसा और सबसे बड़ी चीज़ स्वीकृति की भी ज़रूरत होती है।
आयशा के माँ-बाप से मंज़ूरी लेने वाला हिस्सा बड़े ही नर्म और हल्के-फुल्के अंदाज़ में दिखाया गया है। कॉमेडी के ज़रिए इतने संवेदनशील टॉपिक को पेश करना आसान काम नहीं, लेकिन फिल्म इसे बड़ी खूबसूरती से निभा लेती है।
माधवन की एक्टिंग तो जैसे फिल्म की रीढ़ है। उन्होंने इस पिता की भूमिका में वो सारी जिम्मेदारी, मोहब्बत और हल्का-सा गुस्सा बहुत ही बैलेंस तरीके से दिखाया है। उनकी पर्सनैलिटी स्क्रीन पर ऐसी लगती है जैसे वो ऊपर से “कूल” हैं, लेकिन अंदर से थोड़ा नाराज़, थोड़ा परेशान और बहुत ज्यादा केयर करने वाले यही चीज़ कहानी में गहराई और वजन दोनों जोड़ देती है।
फिर आती है जाफ़री पिता-पुत्र की जोड़ी जावेद जाफ़री और मिज़ान जाफ़री। यह जोड़ी फिल्म में ताज़गी भी लाती है और पुरानी यादों की हल्की सी खुशबू भी। दोनों की टाइमिंग, दोनों का ह्यूमर और दोनों की बॉन्डिंग इतनी प्यारी लगती है कि स्क्रीन पर आते ही माहौल हल्का हो जाता है।
उनका गाना “3 शौक” तो इतना मशहूर हो चुका है कि थिएटर में भी लोग इसे सुनकर मुस्कुरा देते हैं और मोबाइल पर भी बार-बार चलाते हैं। कुल मिलाकर, यह फिल्म पूरी तरह पारिवारिक दर्शकों के लिए बनी है। यहाँ हँसी है, रिश्तों की खूबसूरती है, हल्का-सा दर्द और बहुत सारा अपनापन भी। थिएटर से निकलते वक्त ऐसा लगता है कि आपने परिवार के साथ एक अच्छा, सुकून भरा वक्त गुज़ारा और शायद यही इस फिल्म का असली मक़सद भी है।
अब सवाल क्या ये फिल्म देखनी चाहिए? अगर आपको रोमांटिक-कॉमेडी पसंद है, जिसमें हंसी-मज़ाक के बीच दिल छू जाने वाला थोड़ा सा ड्रामा भी हो, तो “दे दे प्यार दे 2” एक मीठा और भरोसेमंद ऑप्शन है। फिल्म में कुछ कमियाँ ज़रूर हैं|
जैसे बीच-बीच में टोन का अचानक बदल जाना या क्लाइमेक्स का थोड़ा लंबा खिंचना लेकिन अगर आप “कम सोच, ज़्यादा हँसी और थोड़ा दिल” वाली फिल्म का मूड बनाकर जाएँ, तो ये फिल्म आपको निराश नहीं करेगी। रेटिंग की बात करें तो ज़्यादातर रिव्यूअर्स इसे 3 में से 5 स्टार दे रहे हैं।
यह भी पढ़ें –



