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Jolly LLB 3: एक Power full कोर्टरूम ड्रामा का जबरदस्त Review क्या लोगों को यह बहुत पसंद आया है?

Jolly LLB 3: एक Power full कोर्टरूम ड्रामा का जबरदस्त Review क्या लोगों को यह बहुत पसंद आया है?

Jolly LLB 3: एक दमदार कोर्टरूम ड्रामा

बॉलीवुड की फ़िल्मों की दुनिया में जब भी कोर्टरूम ड्रामा की बात होती है तो सबसे पहले ज़ुबान पर एक ही नाम आता है—“जॉली एलएलबी”। ये सीरीज़ अपने आप में एक मिसाल बन चुकी है। सबसे पहले साल 2013 में आई थी पहली फिल्म “जॉली एलएलबी”, जिसने आम आदमी की लड़ाई, उसकी तकलीफ़ें और उसकी उम्मीदों को बड़े पर्दे पर इस तरह से ज़िंदा किया कि हर किसी का दिल छू लिया।

फिर 2017 में आई “जॉली एलएलबी 2”, जिसमें अक्षय कुमार ने जॉली का किरदार निभाकर अपनी मासूमियत और जज़्बे से दर्शकों का दिल जीत लिया। लोग कोर्टरूम में उनकी बहस और उनके इमोशन्स देखकर खुद को उनसे जुड़ा हुआ महसूस करने लगे।

अब साल 2025 में “Jolly LLB 3” सिनेमाघरों में आ चुकी है। इस बार तो दर्शकों का जुनून और उम्मीदें, दोनों ही पिछले हिस्सों से कहीं ज़्यादा थीं। हर कोई ये सोच रहा था कि क्या तीसरी फिल्म भी वही जादू दिखा पाएगी जो पहली दो फिल्मों ने किया था? क्या ये कहानी फिर से आम आदमी की आवाज़ बनकर उभरेगी?

Jolly LLB 3 कहानी और निर्देशन

“Jolly LLB 3” की कहानी इस बार भी समाज और हमारी न्याय व्यवस्था के एक ऐसे मसले पर टिकाई गई है, जो नाज़ुक भी है और हक़ीक़त से भी जुड़ा हुआ है। फर्क सिर्फ़ इतना है कि इस दफ़ा जॉली सिर्फ़ कोई एक केस नहीं लड़ रहा, बल्कि इस फिल्म में दो-दो जॉली आपस में टकराते नज़र आते हैं।

जी हां, आपने बिल्कुल सही सुना—कोर्टरूम के अंदर इस बार मुक़ाबला है अर्जुन पाठक यानी अक्षय कुमार और जगदीश त्यागी उर्फ जॉली (जिसका किरदार अरशद वारसी/अर्जुन कपूर ने निभाया है) के बीच।

कहानी की शुरुआत होती है एक हाई-प्रोफाइल केस से, जिसमें राजनीति की चालबाज़ियां, मीडिया का शोर-शराबा और कॉर्पोरेट की ताक़तें सब गड्डमड्ड होकर सामने आती हैं। जैसे-जैसे मुक़दमा आगे बढ़ता है, दोनों वकीलों की दलीलें टकराती हैं और एक-एक करके सामने आती हैं हमारे सिस्टम की हक़ीक़तें—भ्रष्टाचार की मोटी परतें, गरीब आदमी की मजबूरियाँ और इंसाफ की मुश्किल डगर।

ये फिल्म बड़ी ख़ूबसूरती से ये बात कहती है कि क़ानून सिर्फ़ किताबों में लिखे शब्दों तक महदूद नहीं है, बल्कि ये इंसाफ और इंसानियत का भी असली पैमाना है।

फिल्म के निर्देशक सुभाष कपूर हैं, जिन्होंने पिछली दोनों “जॉली एलएलबी” फिल्मों को भी डायरेक्ट किया था। उनका अंदाज़ इस बार भी वही है—तेज़, सटीक और असरदार। फर्क सिर्फ़ इतना कि इस बार उन्होंने फिल्म को और ज़्यादा मॉडर्न टच दिया है।

कोर्टरूम के लंबे-लंबे सीन्स, जो अक्सर बोर कर सकते हैं, यहाँ उल्टा आपको कुर्सी से चिपकाए रखते हैं। हर डायलॉग, हर बहस दिलचस्प लगती है। सुभाष कपूर ने समाज के कई अहम सवाल—जैसे इंसाफ़ में देरी, नेताओं की दख़लअंदाज़ी, और मीडिया ट्रायल—इन सबको कहानी में इस तरह से बुना है कि वो भारी-भरकम भी लगें और मज़ेदार भी। यही उनकी ख़ासियत है कि वो सीरियस मुद्दों को भी एंटरटेनमेंट के साथ इस तरह पेश करते हैं कि दर्शक सोचने पर मजबूर भी हो जाए और देखने का मज़ा भी पूरा ले।

Jolly LLB 3 अभिनय, डायलॉग और लेखन

अक्षय कुमार (जॉली) – अक्षय ने एक बार फिर ये साबित कर दिया कि उन्हें लोग क्यों “कंटेंट किंग” कहते हैं। उनके किरदार में ग़ुस्सा भी है, जज़्बात भी हैं और हल्की-फुल्की मस्ती भी। अदालत में उनकी दलीलें, ग़ुस्से से भरे लम्हे और बीच-बीच में उनका मज़ाकिया अंदाज़—सब मिलकर किरदार को और भी असली बना देते हैं।

अरशद वारसी (ओरिजिनल जॉली) – पहली “जॉली एलएलबी” से ही अरशद वारसी दर्शकों के दिल में बस गए थे। इस बार उनकी वापसी वाक़ई एक सरप्राइज़ पैकेज की तरह है। उनकी कॉमिक टाइमिंग अभी भी लाजवाब है, और जब वह गंभीर हो जाते हैं तो कोर्टरूम का माहौल एकदम बदल जाता है। ये मिक्सचर ही उनकी असली ताक़त है, जो फिल्म को ऊँचाई पर ले जाता है।

सौरभ शुक्ला (जज त्रिपाठी) – अगर “Jolly LLB 3” का दिल कोई है, तो वो सौरभ शुक्ला का किरदार है। उनका मज़ाकिया लेकिन सख़्त अंदाज़, उनकी आंखों से झलकता इंसाफ का जज़्बा और उनके चुभते हुए डायलॉग्स—सब मिलकर कोर्टरूम को ज़िंदा कर देते हैं। सच कहें तो, जब तक स्क्रीन पर सौरभ शुक्ला नहीं आते, “जॉली” अधूरी लगती है।

अन्य कलाकार – हुमा कुरैशी और बाकी सपोर्टिंग किरदारों ने भी कहानी को मज़बूती देने में अहम रोल निभाया है। छोटे-छोटे रोल भी फिल्म को धारदार बनाते हैं।

अब अगर असली जान की बात करें तो वो है इसके डायलॉग्स। कई ऐसे डायलॉग हैं जो थिएटर में तालियाँ और सीटियाँ दोनों ही बजवा देते हैं। जैसे कि—

“क़ानून किताबों में नहीं, अदालत की चौखट पर लिखा जाता है।”

“गरीब की जान सस्ती हो सकती है, मगर उसका इंसाफ़ कभी सस्ता नहीं होना चाहिए।”

लेखक ने इस बार व्यंग्य (सटायर) और हक़ीक़त (रियलिटी) का इतना अच्छा बैलेंस बनाया है कि आप हँसते भी हैं और सोचना भी शुरू कर देते हैं। यही तो इस फिल्म की सबसे बड़ी जीत है।

संगीत और तकनीकी पहलू (Music & Technical Aspects)

बैकग्राउंड म्यूज़िक और गाने
Jolly LLB 3 फिल्म का बैकग्राउंड म्यूज़िक वाक़ई दिल पर असर छोड़ता है। ख़ासकर कोर्टरूम के सीन्स में जिस तरह से म्यूज़िक का इस्तेमाल किया गया है, वो हर पल को और भी गहरा और दमदार बना देता है। गानों की गिनती कम रखी गई है, लेकिन जो भी गाने हैं, वो कहानी से जुड़े हुए लगते हैं। मतलब ऐसा नहीं लगता कि गाने ज़बरदस्ती ठूंस दिए गए हों। हाँ, अगर कोई मसालेदार गाने की उम्मीद लेकर बैठा है तो शायद थोड़ा मायूस हो, मगर कहानी के लिहाज़ से ये फिट बैठते हैं।

सिनेमैटोग्राफी
कैमरे का काम भी तारीफ़ के काबिल है। कोर्टरूम का माहौल, जज का चेंबर, और सड़क पर आम जनता की हलचल—सब कुछ इतना रियलिस्टिक तरीके से दिखाया गया है कि लगता है जैसे आप खुद वहीं मौजूद हों। खासकर भीड़-भाड़ और तनाव भरे सीन देखने लायक बन जाते हैं।

“Jolly LLB 3 3” के प्लस पॉइंट्स

दमदार स्क्रिप्ट, जो सीधा समाज के नब्ज़ पर हाथ रखती है। अक्षय कुमार और अरशद वारसी की ज़बरदस्त टक्कर, जो स्क्रीन पर जान डाल देती है। सौरभ शुक्ला की ग़ज़ब की स्क्रीन प्रेज़ेंस—उनके बिना तो फिल्म अधूरी सी लगती। व्यंग्य, हास्य और गंभीरता का ऐसा कॉम्बिनेशन जो मज़ा भी देता है और सोचने पर भी मजबूर करता है। कहानी ऐसी कि थिएटर से निकलने के बाद भी दिमाग़ में घूमती रहती है।

“Jolly LLB 3” की कमज़ोरियाँ (Weaknesses)

Jolly LLB 3 फिल्म की लंबाई थोड़ी ज़्यादा महसूस होती है, ख़ासकर क्लाइमेक्स से पहले वाले हिस्से में। कुछ जगहों पर केस की टेक्निकल बातें इतनी पेचीदा हो जाती हैं कि आम दर्शक को समझने में मुश्किल हो सकती है। गाने कम हैं और असर में भी पहले वाली “जॉली” फिल्मों की तुलना में थोड़े हल्के पड़ जाते हैं।

सामाजिक संदेश (Social Message)

आख़िरी फ़ैसला (Final Verdict) “Jolly LLB 3” एक ऐसा कोर्टरूम ड्रामा है जो सिर्फ़ मनोरंजन ही नहीं करता बल्कि आपको सोचने पर भी मजबूर करता है। फिल्म में मज़ाक भी है, तंज़ भी है और सबसे अहम—सिस्टम की वो खामियाँ हैं जिन्हें अक्सर हम नज़रअंदाज़ कर देते हैं।

ये कहानी इंसाफ़ और क़ानून के असली मायने को छूती है और साफ़-साफ़ दिखाती है कि अदालत सिर्फ़ चार दीवारों का नाम नहीं, बल्कि वहाँ से उठने वाली हर आवाज़ पूरे समाज को हिला सकती है।

अगर आपको सिर्फ़ मसालेदार गानों, हीरो की एंट्री और एक्शन से भरी फिल्मों से थोड़ा अलग कुछ देखना है—ऐसी फिल्म जिसमें कंटेंट हो, दमदार डायलॉग्स हों और असली ज़िंदगी से जुड़ी बातें हों—तो “Jolly LLB 3” आपके लिए बिल्कुल परफेक्ट है।
रेटिंग: ⭐⭐⭐⭐ (4/5)

ये फिल्म सिर्फ़ बॉक्स ऑफिस पर ही नहीं चलने वाली, बल्कि समाज में भी एक नई बहस छेड़ेगी—बहस इस बात पर कि असली इंसाफ़ आख़िर किसे कहते हैं और वो आम आदमी तक क्यों नहीं पहुँच पाता।

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