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क्यों है “120 Bahadur” खास़?
Farhan Akhtar की काफी समय से चर्चा में चल रही वॉर-ड्रामा फिल्म “120 Bahadur” अब आखिरकार रिलीज़ के लिए पूरी तरह तैयार है। लेकिन इस बार खास बात सिर्फ इसकी कहानी नहीं, बल्कि इसका रिलीज़ होना भी है। फिल्म ने ऐसा कारनामा कर दिखाया है जो भारतीय सिनेमा के इतिहास में पहली बार हो रहा है।
ये फिल्म Picture Time के मोबाइल सिनेमा नेटवर्क के ज़रिए पूरे भारत में मौजूद 800 से भी ज़्यादा डिफेंस थिएटर्स में दिखाई जाएगी। यानी देश भर में तैनात हमारे जवान चाहे वो पहाड़ों में हों, रेगिस्तान में हों या दूर-दराज़ की पोस्ट पर सब इस फिल्म को बड़े पर्दे पर देख सकेंगे। यह किसी भी भारतीय फिल्म के लिए बहुत ही बड़ा और सम्मानजनक कदम है।
फिल्म की कहानी 1962 की रिज़ांग-ला की जंग पर आधारित है। यह वही जंग है जो भारतीय इतिहास में बहादुरी का सबसे चमकदार पन्ना मानी जाती है। उस कठिन, हड्डियाँ जमा देने वाली ठंड में 13 कुमाऊँ रेजिमेंट के 120 जांबाज़ सिपाहियों ने दुश्मन के सामने सीना तानकर लड़ाई लड़ी। हालात बेहद मुश्किल थे गोलाबारी भारी थी, संख्या में भी दुश्मन ज़्यादा था फिर भी इन बहादुरों ने आख़िरी दम तक अपना फर्ज़ निभाया।
फिल्म में फरहान अख्तर मेजर शैतान सिंह भाटी का किरदार निभा रहे हैं। मेजर शैतान सिंह को आज भी उनके अदम्य साहस और नेतृत्व के लिए याद किया जाता है। उन्होंने अपनी टोली के साथ मिलकर वह जंग लड़ी जिसे आज भी लोग दिलों में इज़्ज़त के साथ याद करते हैं।
फिल्म को डायरेक्ट किया है Razneesh ‘Razy’ Ghai ने जिनकी स्टाइल रियलिज़्म और दमदार स्क्रीनप्रेज़ेंस के लिए जानी जाती है। फिल्म को बनाने में Excel Entertainment (फरहान अख्तर, रितेश सिद्धवानी) और Trigger Happy Studios (अमित चंद्रा) ने हाथ मिलाया है। यानी कहानी, निर्देशन और प्रोडक्शन तीनों तरफ से फिल्म को मजबूत टीम मिली है।
इस फिल्म की रिलीज़ डेट 21 नवंबर 2025 तय की गई है, और यह सिर्फ इंडिया में नहीं बल्कि ग्लोबली भी उसी दिन रिलीज़ होगी। मतलब दुनिया भर में भारतीय दर्शक और सेना के परिवार एक साथ इस फिल्म को देख सकेंगे।
कुल मिलाकर, “120 Bahadur” सिर्फ एक फिल्म नहीं लगती यह एक शिद्दत भरी कोशिश है उन सिपाहियों की कुर्बानियों को सलाम करने की। ट्रेलर से लेकर इसकी स्केल तक, हर चीज़ में एक रूहानी और देशभक्ति वाला एहसास है।
120 Bahadur: डिफेंस थिएटर्स में पैन-इंडिया रिलीज़ एक अभूतपूर्व पहल
Picture Time ने GenSync Brat Media के साथ हाथ मिलाकर वाकई एक बड़ा और दिल को छू लेने वाला कदम उठाया है। इस पूरे नेटवर्क की मदद से “120 बहादुर” को देशभर के 800 से ज्यादा डिफेंस सिनेमा हॉलों में दिखाया जाएगा। इनमें वो जगहें भी शामिल हैं, जो बेहद रिमोट बेस पर हैं ऐसी लोकेशन्स जहाँ सामान्य थिएटर तक पहुंचना तो दूर, कई बार शहर की बेसिक सुविधाएँ भी आसानी से नहीं मिलतीं।
Picture Time के फ़ाउंडर और CEO सुशील चौधरी ने कहा कि उनकी कोशिश यही रही है कि हमारे जवान और उनके परिवार भी “बड़े पर्दे” का वही मज़ा और एहसास पा सकें, जो आम लोग किसी मल्टीप्लेक्स में जाकर लेते हैं। अक्सर फ़ौजी परिवारों के पास मनोरंजन के मौके बहुत सीमित होते हैं या फिर महीने में एक-दो बार कैंट एरिया के छोटे-मोटे स्क्रीन पर ही फिल्में देखने को मिलती हैं। ऐसे में यह पहल उनके लिए किसी नेमत से कम नहीं।

सबसे अहम बात यह है कि भारत में करीब 1.5 मिलियन सक्रिय सैनिक हैं और लगभग 2 करोड़ वेटरन और उनके परिवारों को मिलाकर यह संख्या और भी बड़ी हो जाती है। मगर इनमें से सिर्फ़ 30% लोग ही डिफेंस थिएटर्स तक सही तरह से पहुंच पाते हैं। यानी बहुत बड़ा हिस्सा अब भी इस सुविधा से दूर है। Picture Time का मक़सद इसी गैप को भरना है, ताकि कोई जवान सिर्फ इसलिए मनोरंजन से वंचित न रहे क्योंकि वह किसी कठिन इलाके में तैनात है।
Excel Entertainment के CEO विशाल रामचंदानी ने भी इस पहल पर अपना गर्व जाहिर किया। उन्होंने कहा कि उनके लिए इससे बड़ी बात क्या होगी कि वो ऐसी फिल्म जिसमें भारतीय सैनिकों की बहादुरी और कुर्बानी दिखाई गई है उन्हीं लोगों और उनके परिवारों के सामने पेश कर रहे हैं, जिनकी असल ज़िंदगी में ये जज़्बा मौजूद है। उनके शब्दों में एक तरह का एहतराम और फख़्र साफ झलकता है।
सीधी-सरल बात में कहें, तो Picture Time की ये पहल सिर्फ़ एक फिल्म रिलीज़ नहीं है ये हमारे जवानों को एक छोटा सा “शुक्रिया” है, एक तहेदिल से अदा किया गया सलाम है।
120 Bahadur: रिलीज़ की अहमियत
सम्मान की भावना
ये पूरी पहल सिर्फ़ सिनेमा को फैलाने की कोशिश नहीं है, बल्कि हमारे जवानों के लिए एक ख़ालिस इज़्ज़त भरी श्रद्धांजलि है। जिन्होंने अपनी जान, अपना अरमान, अपना सब कुछ देश की हिफाज़त में लगा दिया उनके लिए ये फिल्म किसी मनोरंजन से ज्यादा, एक दिल से निकला हुआ सलाम है। ये कदम साफ दिखाता है कि “120 Bahadur” सिर्फ पर्दे पर चलने वाली एक कहानी नहीं, बल्कि उन वीरों की दास्तान है जो असल ज़िंदगी में बहादुरी की मिसाल बने।
मनोरंजन + आत्मबल
Picture Time का यह “मोबाइल सिनेमा नेटवर्क” जवानों और उनके परिवारों के लिए किसी ताजगी भरी हवा जैसा है। कई बार दूर-दराज़ कैंटनमेंट में तैनात सिपाहियों के पास बेसिक मनोरंजन तक का मौका नहीं होता। ऐसे में उनका बड़े पर्दे पर फिल्म देख पाना वाकई दिल खुश कर देने वाली बात है।
इससे उन्हें यह एहसास भी होता है कि “हमारे लिए भी फिल्में उतनी ही अहम हैं, जितनी बाकी लोगों के लिए। हमें भी वही मज़ा, वही एहसास मिलना चाहिए।” ये छोटा सा कदम जवानों के मनोबल में बड़ा इज़ाफ़ा करता है, और उनके परिवारों के चेहरों पर मुस्कान लाने का जरिया बनता है।
सिनेमा का प्रदर्शन और पहुंच
साधारणत: फिल्मों की रिलीज़ बड़े शहरों, मल्टीप्लेक्स या कमर्शियल स्पेस तक ही सीमित रहती है। लेकिन इस कदम ने दिखा दिया कि सिनेमा सिर्फ़ शहरों या टिकट खरीदने वाले दर्शकों के लिए नहीं बल्कि उन लोगों के लिए भी है जो सीमाओं पर खड़े रहकर देश की सेवा कर रहे हैं।
यह पहल एक तरह से कमिटमेंट दिखाती है कि: “फिल्में सिर्फ़ कमाई का ज़रिया नहीं, बल्कि जुड़ाव और सम्मान का माध्यम भी हो सकती हैं।” इससे फिल्म का दायरा भी बढ़ता है और उसका मक़सद भी। अब यह सिर्फ़ बॉक्स ऑफिस का खेल नहीं, बल्कि देश-भक्ति, सेवा, और गौरव का संदेश लेकर जवानों तक पहुंचने वाला सफ़र बन जाता है।
चुनौतियाँ और संवेदनाएं
इस ऐतिहासिक रिलीज़ के बीच कुछ एतराज़ात और तनाज़े भी सामने आने लगे हैं। एक PIL दायर की गई है, जिसमें ये इल्ज़ाम लगाया गया है कि फिल्म में रिज़ांग-ला की जंग को असल इतिहास से थोड़ा हटकर दिखाया गया है। शिकायत करने वालों का कहना है कि फिल्म में मेजर भाटी की बहादुरी पर तो बहुत ज़्यादा रोशनी डाली गई है, लेकिन उन 120 Bahadur जांबाज़ सिपाहियों की सामूहिक शहादत और पहचान खास तौर पर अहिर रेजिमेंट से जुड़े जवानों का ज़िक्र उतना उभरकर सामने नहीं आता।
ऐसी नाज़ुक और जज़्बाती फिल्मों में अक्सर ऐसा होता है, क्योंकि लोग सिर्फ एक फिल्म नहीं देखते, बल्कि अपनी यादों, अपने जज़्बात और अपने इतिहास को देख रहे होते हैं। इसलिए फिल्म मेकर्स पर यह भी बड़ी ज़िम्मेदारी होती है कि वो कहानी सुनाते हुए तहज़ीब, संतुलन और इज़्ज़त को क़ायम रखें, ताकि किसी भी बिरादरी, शख्सियत या शहादत को नज़रअंदाज़ महसूस न होने पाए।
भविष्य की दिशा और उम्मीदें
अगर यह मॉडल कामयाब रहा, तो आने वाले वक़्त में और भी देशभक्ति पर बनी फिल्में डिफ़ेंस थिएटर्स के ज़रिए ख़ास तौर पर सैनिकों और उनके घरवालों तक पहुँच सकती हैं। Picture Time जैसे मोबाइल सिनेमा प्लैटफ़ॉर्म को भी और ज़्यादा फैलने का मौका मिलेगा सिर्फ़ फिल्म दिखाने के लिए नहीं, बल्कि लोगों को जुड़ने, मिल-बैठने और एक दूसरे को समझने का भी ज़रिया बन सकता है।
यह क़दम फ़िल्म इंडस्ट्री में नए बाज़ार, नए दर्शक और उन इलाक़ों तक पहुँच बढ़ाएगा, जहाँ आज भी थिएटर कम हैं या बिलकुल नहीं हैं। साथ ही, इससे एक ऐसा माहौल भी पैदा होगा जहाँ देशभक्ति, फ़ौजी ज़िंदगी, शहादत और हमारे इतिहास को और ज़्यादा इज़्ज़त से देखा और समझा जा सके।
“120 Bahadur” सिर्फ़ एक फ़िल्म नहीं है यह एक ताक़तवर पैग़ाम है, एक तरह का एहतराम, और सिनेमा व देशभक्ति की उस पहचान का निशान है, जिसे अक्सर जितनी अहमियत मिलनी चाहिए, उतनी नहीं मिलती। जब यह फ़िल्म 800 से ज़्यादा डिफ़ेंस थिएटर्स में लगेगी, यह सिर्फ़ रिकॉर्ड नहीं बनाएगी, बल्कि उन लोगों के दिलों तक भी पहुँचेगी, जो सरहद पर हमारी हिफ़ाज़त करते हुए अपनी पूरी ज़िंदगी लगा देते हैं।
Picture Time की यह पहल यह दिखाती है कि मनोरंजन और ख़िदमत कैसे एक साथ चल सकते हैं और कैसे सिनेमा सिर्फ़ एक लक्ज़री नहीं, बल्कि इज़्ज़त, बातचीत, और समुदाय की आवाज़ बन सकता है।
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