Table of Contents
Thamma एक ज़बर्दस्त फिल्म-रिव्यू
हॉरर-कॉमेडी के नाम पर बड़ी उम्मीदों के साथ आई फिल्म “Thamma” ने रिलीज़ के साथ ही दर्शकों के बीच खूब चर्चा और हलचल पैदा कर दी है। लोग इसके नाम से ही कुछ अलग और डर के साथ मस्ती भरा तजुर्बा उम्मीद कर रहे थे। तो चलिए, जरा तफ्सील से जानते हैं कि क्या ये फिल्म वाकई उन उम्मीदों पर खरी उतरती है या फिर बस नाम भर का शोर है।

Thamma की कहानी एक पुराने हवेली जैसे घर से शुरू होती है, जहाँ पीढ़ियों से रहस्य और रूहानी किस्से दफ्न हैं। इस घर में आकर बसती है एक नई फैमिली जो हँसी-मज़ाक और छोटी-छोटी खुशियों में जीती है, मगर जल्द ही उन्हें एहसास होता है कि घर में कुछ तो गड़बड़ है। रातों को अजीब आवाज़ें, चीज़ों का अपने आप हिलना, और पुराने कमरों से आती परछाइयाँ कहानी को धीरे-धीरे रहस्यमयी बना देती हैं।
लेकिन जैसे ही डर अपने पैर जमाने लगता है, वहीं कॉमेडी का तड़का फिल्म को हल्का और मज़ेदार बना देता है। डर और हँसी का ये मिक्स कुछ जगहों पर तो दिल जीत लेता है, पर कुछ सीन ऐसे भी हैं जो थोड़े बनावटी लगते हैं जैसे ज़बरदस्ती का मज़ाक या ओवर रिएक्शन।
Thamma के हीरो ने अपनी कॉमिक टाइमिंग से कई सीन में जान डाल दी है। उनकी मासूम घबराहट और मज़ेदार एक्सप्रेशन वाकई देखने लायक हैं। हीरोइन ने भी काफी सहज एक्टिंग की है डर, गुस्सा और हँसी, तीनों का बैलेंस अच्छा रखा है। सपोर्टिंग कास्ट में कुछ किरदार ऐसे हैं जो कहानी में मसाला डालते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी जो सिर्फ “फिलर” की तरह लगते हैं यानी हों तो भी फर्क नहीं, ना हों तो भी।
Thamma: कहानी का पटल
Thamma की कहानी घूमती है अलोक गोयल (Ayushmann Khurrana) के इर्द-गिर्द एक छोटे शहर का सीधा-सादा, मगर ज़रा जिद्दी किस्म का रिपोर्टर, जो हमेशा किसी बड़ी ख़बर की तलाश में भटकता रहता है। एक दिन उसकी किस्मत उसे एक रहस्यमयी जंगल में ले जाती है, जहाँ उसकी मुलाकात होती है|
एक अनोखी और जादुई सी लड़की ताडका (Rashmika Mandanna) से। पहली नज़र में वो एक आम लड़की लगती है, लेकिन धीरे-धीरे पता चलता है कि वो किसी अजीबोगरीब दुनिया, यानी बीटल्स आधे इंसान, आधे रहस्यमय प्राणियों से ताल्लुक रखती है।
यहीं से कहानी असली मोड़ लेती है। अलोक अनजाने में उस बीटल्स की दुनिया में दाख़िल हो जाता है जहाँ के अपने कानून हैं, अपने रिवाज और अपनी जंग। वहाँ उसका सामना होता है यक्षासन (Nawazuddin Siddiqui) से जो बीटल्स का विद्रोही और बेहद खतरनाक नेता है। Nawazuddin का किरदार एकदम गूढ़, चालाक और रहस्यमयी है उसकी हर मुस्कान में कुछ न कुछ राज छिपा है।
अब यहाँ से शुरू होती है एक दिलचस्प लड़ाई अच्छाई बनाम बुराई की, इंसानियत बनाम रूह की। अलोक को अब न सिर्फ़ यक्षासन से भिड़ना है, बल्कि अपने अंदर के डर, लालच और अंधेरे हिस्सों से भी लड़ना है। वहीं, दूसरी तरफ़ ताडका और अलोक के बीच का रिश्ता भी धीरे-धीरे गहराता जाता है डर के बीच पनपता प्यार, और प्यार में छिपी रहस्यमयी तासीर कहानी को और दिलचस्प बना देती है।
पूरी फिल्म का माहौल कुछ मेले जैसा, त्योहारनुमा रखा गया है रंग, शोर, जादू और हल्की-फुल्की मस्ती से भरा हुआ। हॉरर और रोमांस के बीच कॉमेडी भी अपने देसी अंदाज़ में झलकती है जैसे कोई डरावना किस्सा सुनाते-सुनाते कोई मज़ेदार तंज़ कस दे।
आख़िर में “Thamma” सिर्फ़ एक हॉरर-कॉमेडी नहीं लगती, बल्कि ये एक ऐसी अजीब मगर खूबसूरत कहानी है जो इंसान के अंदर के डर और मोहब्बत दोनों को एक साथ उजागर करती है। एक तरफ़ मिथक और रहस्य का जाल, दूसरी तरफ़ दिल की नर्म धड़कनें यही इस फिल्म का असली जादू है।
अभिनय-पात्र और प्रदर्शन
अयुष्मान खुराना ने अलोक गोयल का किरदार बहुत ही खूबसूरती और सच्चाई से निभाया है। फिल्म की शुरुआत में जब माहौल हल्का-फुल्का और मज़ाकिया होता है, तो अयुष्मान की कॉमिक टाइमिंग और एक्सप्रेशन दिल जीत लेते हैं। और जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, डर, उलझन और जज़्बात गहराते जाते हैं वहीं अयुष्मान का अभिनय और भी निखर कर सामने आता है। उन्होंने अलोक के डर, बेचैनी और मोहब्बत के एहसास को इतने सलीके से दिखाया है कि दर्शक उससे जुड़ जाते हैं। शायद यही वजह है कि ज़्यादातर समीक्षकों ने उनकी परफ़ॉर्मेंस को दिल से सराहा है।
रश्मिका मंदाना ने ताडका के किरदार में एक नर्म मगर रहस्यमयी तासीर लेकर आई हैं। उनकी स्क्रीन पर मौजूदगी में वो जादू है जो नज़रें खींच लेता है मासूमियत भी, और एक अनकही ताक़त भी। उनका किरदार थोड़ा अलहदा है आज़ाद, बिंदास और कहीं न कहीं अपने ही राज़ों में डूबी हुई। हालाँकि, कुछ समीक्षाओं में यह बात सामने आई है कि उनकी और अयुष्मान की केमिस्ट्री उतनी दमदार नहीं बन पाई, जितनी उम्मीद थी। दोनों ही कलाकार बेहतरीन हैं, मगर उनके बीच का भावनात्मक कनेक्शन थोड़ा अधूरा-सा लगता है।
अब बात करें नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी की तो वो यक्षासन के रोल में हैं, जो बीटल्स का रहस्यमय और बाग़ी नेता है। लेकिन अफ़सोस, उनका किरदार उतना भय पैदा करने वाला या प्रभावशाली नहीं बन सका। कुछ जगहों पर उनका अभिनय थोड़ा ओवर और नाटकीय लगने लगता है, जिससे वो अपने ही बनाए किरदार की गहराई से थोड़ा दूर चले जाते हैं।
हालाँकि, परेश रावल और फैसल मलिक जैसे अनुभवी कलाकारों ने अपने हिस्से के सीन बख़ूबी निभाए हैं। उनकी मौजूदगी फिल्म को एक ठहराव और संतुलन देती है जैसे मसालेदार कहानी में थोड़ा सुकून और ठंडक घुल गई हो।
कुल मिलाकर, कलाकारों की टोली ने दिल से मेहनत की है, कुछ जगहों पर वो मेहनत चमकती भी है, मगर कुछ हिस्से ऐसे हैं जहाँ कहानी और एक्टिंग दोनों ही थोड़ी फिसल जाती है। फिर भी, फिल्म के ये किरदार अपनी-अपनी ख़ासियतों और कमियों के साथ मिलकर “Thamma” को एक अलग अंदाज़ देते हैं।
निर्देशन-Thamma-प्रस्तुति
निर्देशक आदित्य सर्पोतर ने वाकई में एक बड़ा कदम उठाया है उन्होंने हॉरर-कॉमेडी की दुनिया को एक नए पैमाने पर ले जाने की कोशिश की है। “Thamma” को सिर्फ़ एक डर और हँसी का खेल नहीं बनाया गया, बल्कि इसे एक पूरा यूनिवर्स देने की हिम्मत की गई है जहाँ डर, जादू, मिथक और हँसी, सब साथ-साथ चलते हैं।
फिल्म दृश्य रूप से बेहद शानदार लगती है। कैमरे की नज़र से जंगल की घनी लहराती डालियाँ, रहस्यमयी गुफाओं की सिहरन, और बीटल्स की दुनिया का अजीब लेकिन दिलचस्प रंगीन जादू सब कुछ एक अलग ही एहसास देता है। कई सीन ऐसे हैं जहाँ लगता है जैसे आप किसी फैंटेसी किताब के अंदर उतर आए हों।
VFX और सेट डिजाइन पर भी ख़ासा ध्यान दिया गया है कुछ पल तो ऐसे हैं जो सच में काबिल-ए-तारीफ़ हैं। ख़ासकर वो सीन जहाँ ताडका और आलोक बीटल्स की दुनिया में दाख़िल होते हैं, वहाँ का विजुअल ट्रीट एकदम सिनेमाई जादू जैसा महसूस होता है। रंगों की स्कीम, लाइटिंग और साउंड डिज़ाइन सब कुछ मिलकर फिल्म को एक रूहानी और रहस्यमयी तासीर देते हैं।
हाँ, ये भी सच है कि कहानी की रफ़्तार हर वक्त एक जैसी नहीं रहती। कुछ हिस्सों में फिल्म ज़रा धीमी चाल पकड़ लेती है, जिससे दर्शक का ध्यान थोड़ा भटक सकता है। कई जगहों पर लगता है कि कहानी को ज़्यादा खींच दिया गया है जैसे कोई दिलचस्प किस्सा जो बीच में जाकर थोड़ा थक जाए।
फिर भी, आदित्य सर्पोतर की सोच में जो हौसला और विज़न है, वो काबिले-गौर है। उन्होंने इस फिल्म को सिर्फ डराने या हँसाने के लिए नहीं, बल्कि एक नई दुनिया दिखाने के लिए बनाया है एक ऐसी दुनिया जो रहस्यमय भी है और देखने में दिलकश भी।
Thamma दृश्य और पेशकश काम
दृश्य और पेशकश की बात करें, तो “Thamma” का विज़ुअल लेआउट वाक़ई आंखों को भाने वाला है। जंगलों की गहराई, रहस्यमयी गुफाओं की बनावट, और मिथकीय सेटिंग में रचे गए डरावने पल सब कुछ देखने लायक और सलीके से पेश किया गया है। कई सीन ऐसे हैं जो दर्शक को अपने भीतर खींच लेते हैं, मानो वो खुद उस रहस्यमय दुनिया का हिस्सा बन गया हो।
मनोरंजन के लिहाज़ से, फिल्म में हॉरर और कॉमेडी का जो मिश्रण दिखाया गया है, वो कई जगहों पर असरदार साबित होता है। कुछ सीन में तो डर और हँसी का ये संगम बिल्कुल सही बैलेंस में है जहाँ आप एक पल सिहरते हैं और अगले ही पल मुस्कुरा उठते हैं। हालांकि, कुछ जगहों पर कॉमेडी थोड़ी बनावटी लगती है, जैसे हँसी ज़बरदस्ती ठूंस दी गई हो।
परफॉर्मेंस की बात करें, तो अयुष्मान खुराना और रश्मिका मंदाना दोनों ने अपने किरदारों में जान डाल दी है। अयुष्मान का किरदार सीधा-सादा लेकिन संवेदनशील है, और रश्मिका अपनी मासूमियत और रहस्यमयी अदाओं से फिल्म में एक नर्म सा जादू भर देती हैं। बाक़ी कलाकार परेश रावल, फैसल मलिक ने भी अपनी जगह पर कहानी को मज़बूती दी है।
यूनिवर्स बिल्डिंग के लिहाज़ से, ये फिल्म आदित्य सर्पोतर के बड़े विज़न की झलक देती है। अगर आप हॉरर-कॉमेडी यूनिवर्स की दुनिया में दिलचस्पी रखते हैं, तो “Thamma” आपको नए किरदार, नई कहानियों और आगे की राह के इशारे देती है जैसे कोई बड़ा संसार धीरे-धीरे खुल रहा हो।
लेकिन हर फिल्म के कुछ कमज़ोर पहलू भी होते हैं और यहाँ वो साफ़ नज़र आते हैं। सबसे बड़ी कमी है कहानी की गहराई का अभाव। रोमांस का एंगल थोड़ा अधूरा लगता है अलोक और ताडका के बीच जो जुड़ाव दिखाया गया है, उसमें वो जज़्बाती तासीर नहीं है जो दिल को छू जाए।
कॉमेडी के हिस्से में भी कई बार पंच फुस्स हो जाते हैं जहाँ दर्शक को हँसी आनी चाहिए, वहाँ बस हल्की मुस्कान ही रह जाती है। और सबसे अहम, विलेन यक्षासन का प्रभाव उतना नहीं जम पाया जितनी उम्मीद थी। नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी जैसा बड़ा कलाकार होते हुए भी किरदार डराने या झकझोरने में नाकाम रहा।
कई समीक्षकों का ये भी कहना है कि फिल्म की कहानी से ज़्यादा ध्यान इस पर दिया गया कि कैसे इसे आगे आने वाले यूनिवर्स से जोड़ा जाए, जिससे फिल्म की अपनी आत्मा कहीं-कहीं हल्की पड़ गई।
कुल मिलाकर, “Thamma” एक फैंसी, रंगीन और त्यौहारों के मौसम के हिसाब से बनी फिल्म है जिसे आप दिवाली जैसे मौके पर परिवार के साथ देखकर एंजॉय कर सकते हैं। इसमें वो हल्कापन है जो छुट्टी के दिन बड़े पर्दे पर अच्छा लगता है।
लेकिन अगर आप ऐसी कहानी ढूँढ रहे हैं जो दिल को छू जाए, जिसमें भावनाएँ, डर और असल हँसी सब एक साथ महसूस हों तो शायद यहाँ थोड़ा खालीपन लगेगा।रेटिंग: ⭐⭐⭐ (3/5) जहाँ फिल्म की दुनिया और विज़ुअल्स कमाल के हैं, वहीं कहानी और भावनाएँ थोड़ी ढीली पड़ जाती हैं।
यह भी पढ़े –



