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“The Taj Story” का Powerful Trailer रिलीज़: History से सवाल, Paresh Rawal और Zakir Hussain की बहस और जज़्बात

“The Taj Story” का Powerful Trailer रिलीज़: History से सवाल, Paresh Rawal और Zakir Hussain की बहस और जज़्बात

“The Taj Story” का ट्रेलर रिलीज़

16 अक्टूबर 2025 को जब “The Taj Story” का ट्रेलर लॉन्च हुआ, तो मानो सोशल मीडिया से लेकर चाय की दुकानों तक बस इसी फिल्म की बातें होने लगीं। फ़िल्म प्रेमियों और इतिहास के दीवानों के लिए ये ट्रेलर किसी तोहफ़े से कम नहीं लेकिन साथ ही इसने एक ऐसी बहस भी छेड़ दी है, जो शायद आने वाले दिनों में और गहरी होगी।

The Taj Story ट्रेलर की शुरुआत में ही एक रहस्यमयी सा माहौल बन जाता है। कैमरा धीरे-धीरे ताजमहल पर घूमता है वो नर्म धूप, संगमरमर की चमक, और पीछे से आती आवाज़ें मानो कोई बीता वक़्त दोबारा ज़िंदा हो गया हो। और फिर एंट्री होती है विष्णु दास की, जिसे Paresh Rawal ने बड़े ही शानदार अंदाज़ में निभाया है। वो एक गाइड है, लेकिन सिर्फ़ गाइड नहीं एक ऐसा शख़्स जो सवाल उठाने से डरता नहीं।

वो ताजमहल की कहानी को सिर्फ़ एक “मकबरा” नहीं मानता। उसके लिए ये इमारत एक “राज़” है एक ऐसी गहराई जिसमें इतिहास की मिट्टी के नीचे दबी हुई सच्चाइयाँ सांस ले रही हैं। विष्णु दास कहता है कि “इतिहास वो नहीं जो लिखा गया… इतिहास वो है जो छुपा दिया गया।” और यहीं से कहानी शुरू होती है एक जिज्ञासा से, जो धीरे-धीरे एक मिशन में बदल जाती है।

ट्रेलर में दिखाया गया है कि विष्णु दास सरकार से मांग करता है कि ताजमहल पर DNA टेस्ट कराया जाए ताकि सच और झूठ की परतें खुल सकें। यह माँग सुनते ही माहौल गरमा जाता है। कुछ लोग इसे “देश की विरासत से छेड़छाड़” कहते हैं, तो कुछ कहते हैं, “अगर सच है, तो डर कैसा?”

फिर आता है फिल्म का वो हिस्सा जिसने सबको बांध लिया कोर्टरूम ड्रामा। जज के सामने दो विचार खड़े हैं एक तरफ़ आस्था, दूसरी तरफ़ तर्क। एक तरफ़ दस्तावेज़, दूसरी तरफ़ यकीन। एक तरफ़ इतिहास, दूसरी तरफ़ सदीयों से चली आ रही मान्यताएँ।

इस बहस में जब जाकिर हुसैन का किरदार एंट्री लेता है, तो माहौल और भी दिलचस्प हो जाता है। उनके और Paresh Rawal के बीच जो संवाद हैं वो दिल में उतर जाते हैं। एक डायलॉग तो सीधा दिमाग़ में बैठ जाता है: “अगर सच्चाई इतनी ही मज़बूत है, तो उसे परखने से डर क्यों?” फिल्म का ट्रेलर सिर्फ़ कहानी नहीं दिखाता ये सोचने पर मजबूर करता है। क्या हमने जो इतिहास पढ़ा, वो पूरा सच है? या फिर कुछ बातें वक्त की धूल के नीचे दबा दी गईं?

विज़ुअल्स की बात करें तो ट्रेलर लाजवाब है। ताजमहल के हर फ्रेम में एक शेरियत-सी नफ़ासत है कैमरे का हर एंगल, हर रोशनी का टुकड़ा, उस इमारत की शान को महसूस कराता है। बैकग्राउंड म्यूज़िक में हल्की सी सूफ़ियाना झलक है, जो दिल को छू जाती है।

Paresh Rawal का अभिनय हमेशा की तरह दमदार है उनके चेहरे की झुर्रियों में भी एक जिद नज़र आती है, और आवाज़ में ऐसा भरोसा कि दर्शक उनके साथ खड़ा महसूस करता है। वहीं जाकिर हुसैन अपनी गंभीरता और तर्कपूर्ण अंदाज़ से एक अलग वजन लाते हैं।

ट्रेलर के आख़िर में जो सीन दिखाया गया है कोर्ट के बाहर हजारों लोगों की भीड़, एक तरफ़ नारे लगाते लोग, दूसरी तरफ़ कैमरे और माइक थामे मीडिया वो इस बात का संकेत देता है कि फिल्म सिर्फ़ स्क्रीन पर नहीं, दिलों में भी बहस छेड़ेगी।

“The Taj Story” एक ऐसी फिल्म लग रही है जो सिर्फ़ मनोरंजन नहीं करेगी, बल्कि सोचने पर मजबूर करेगी कि ताजमहल की सफ़ेद दीवारों के पीछे कौन सी कहानी अब तक अनकही रह गई है?

The Taj Story ट्रेलर ने जो माहौल बनाया है, उससे साफ़ है कि फिल्म में इतिहास, आस्था और सियासत तीनों की टक्कर देखने को मिलेगी। और Paresh Rawal का यह डायलॉग शायद आने वाले हफ्तों तक चर्चा में रहेगा “सवाल पूछना गुनाह नहीं… जवाब छुपाना है।” यक़ीनन, “The Taj Story” का यह ट्रेलर न सिर्फ़ curiosity जगाता है, बल्कि ये एहसास भी दिलाता है कि सिनेमा अभी भी वो ताकत रखता है जो समाज को आईना दिखा सके।

विवाद का दौर — ट्रेलर से पहले

फिल्म “The Taj Story” रिलीज़ से पहले ही सुर्ख़ियों में आ गई थी लेकिन वजह फिल्म की कहानी नहीं, बल्कि उससे जुड़ी कंट्रोवर्सी थी। जैसे ही इसका पहला पोस्टर सामने आया, सोशल मीडिया पर हंगामा मच गया।

पोस्टर में दिखाया गया था कि ताजमहल की गुंबद ऊपर उठ रही है, और उसके नीचे से एक शिवलिंग जैसा ढांचा दिखाई दे रहा है। बस, यहीं से बवाल शुरू हो गया। लोगों ने इसे धार्मिक भावनाओं से जुड़ा मामला बना दिया। कई यूज़र्स ने कहा कि यह “धर्म का मज़ाक उड़ाने” की कोशिश है, तो कुछ ने कहा कि मेकर्स जानबूझकर विवाद खड़ा कर रहे हैं ताकि फिल्म का प्रचार हो सके।

ट्विटर (अब X), इंस्टाग्राम और फेसबुक पर #BoycottTajStory जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे। कुछ लोगों ने लिखा कि “इतिहास के नाम पर आस्था से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं होगा”, जबकि कुछ ने कहा कि “सवाल पूछना गुनाह नहीं है, सच्चाई सामने आनी चाहिए।”

इस पूरे हंगामे के बीच, फिल्म के डायरेक्टर और लीड एक्टर Paresh Rawal सामने आए और उन्होंने सफाई दी। उन्होंने कहा “The Taj Story कोई धार्मिक फिल्म नहीं है। हमारा मकसद किसी की भावना को ठेस पहुँचाना नहीं, बल्कि इतिहास, तथ्य और विश्वास के बीच बातचीत शुरू करना है।” उन्होंने आगे कहा कि फिल्म में जो दिखाया गया है, वो किसी एक सोच या विचारधारा को बढ़ावा देने के लिए नहीं, बल्कि दर्शकों को सोचने पर मजबूर करने के लिए है।

मगर The Taj Story विवाद तो जैसे अब फिल्म की किस्मत का हिस्सा बन चुका था। कुछ इतिहासकारों ने भी सवाल उठाए| क्या इतनी संवेदनशील थीम को पर्दे पर दिखाते वक्त फिल्ममेकर इतनी ज़िम्मेदारी निभा पाएंगे, जितनी ज़रूरत है? कई लोगों ने कहा कि “इतिहास को सिनेमा के रंग में रंगना आसान नहीं होता।” कहीं न कहीं ये डर भी था कि फिल्म कहीं आस्था और तर्क के बीच की महीन लकीर को पार न कर दे।

हालाँकि Paresh Rawal और मेकर्स लगातार ये दोहराते रहे कि फिल्म का मकसद संवाद (conversation) पैदा करना है, विवाद (controversy) नहीं। उनका कहना था कि “हर देश का इतिहास सिर्फ किताबों में नहीं, लोगों की सोच में भी दर्ज होता है। अगर हम उसे सवालों की रौशनी में देखेंगे, तभी असली तस्वीर सामने आएगी।”

इन सब के बावजूद, ये साफ़ हो गया कि फिल्म को रिलीज़ से पहले ही इमोशनल और पॉलिटिकल तूफ़ान का सामना करना पड़ा है। कुछ लोग इसे “साहसिक कदम” बता रहे हैं, तो कुछ इसे “अनावश्यक छेड़छाड़” मान रहे हैं।

पर एक बात तो तय है “The Taj Story” अब सिर्फ़ एक फिल्म नहीं रही| बल्कि एक बहस का मुद्दा बन चुकी है जहाँ लोग अपनी-अपनी सोच, अपनी आस्था, और अपने इतिहास की समझ लेकर आमने-सामने हैं।

निर्देशक-लेखक की हिम्मत, कलाकारों की भूमिका और अभिनय की झलक

फिल्म “The Taj Story” के निर्देशक और लेखक तुषार अमरीश गोयल इस फिल्म को एक साधारण कहानी नहीं, बल्कि “इतिहास की नई व्याख्या” के रूप में देख रहे हैं। ट्रेलर देखकर साफ़ समझ आता है कि उनका मकसद सिर्फ़ दर्शकों का मनोरंजन करना नहीं, बल्कि उन्हें सोचने पर मजबूर करना भी है।

ट्रेलर से एक बात बिल्कुल साफ़ झलकती है ये फिल्म “विश्वास बनाम दस्तावेजी इतिहास” के टकराव पर बनी है। यानी एक तरफ़ वो चीज़ें जो लोगों की आस्था का हिस्सा हैं, और दूसरी तरफ़ वो तथ्य जो किताबों और रिकॉर्ड्स में दर्ज हैं। इस लड़ाई में हर एक डायलॉग, हर सीन और हर किरदार की अहमियत है।

Paresh Rawal जो फिल्म में विष्णु दास का किरदार निभा रहे हैं, पूरी कहानी की आत्मा जैसे लगते हैं। वो एक ऐसे शख़्स की भूमिका में हैं जो निडर है, सवाल पूछने से नहीं डरता, और सच्चाई तक पहुँचने के लिए हर हद पार करने को तैयार है।

The Taj Story ट्रेलर में उनका एक सीन खास ध्यान खींचता है जब वो सरकार से ताजमहल का DNA टेस्ट कराने की मांग करते हैं। यह मांग सिर्फ़ एक लाइन नहीं, बल्कि उस किरदार की सोच और हिम्मत का सबूत है।

वहीं जाकिर हुसैन का रोल भी उतना ही दमदार है। वो कहानी के उस पक्ष का प्रतिनिधित्व करते हैं जो तर्क, कानून और पुरानी धारणाओं के बीच खड़ा है। उनका किरदार मानो ये याद दिलाता है कि हर सवाल का जवाब सिर्फ़ भावना से नहीं, तथ्य और समझ से भी देना पड़ता है।

इसके अलावा, फिल्म में अमृता खानविलकर, स्नेहा वाघ और नमित दास जैसे कलाकार भी हैं, जिन्होंने अपने किरदारों के ज़रिये कहानी को और गहराई दी है। अमृता खानविलकर एक मजबूत महिला किरदार में नज़र आ रही हैं, जो भावनाओं और समझ के बीच पुल का काम करती है।

स्नेहा वाघ का किरदार थोड़ा भावनात्मक है, जो समाज की सोच और डर दोनों को बख़ूबी दर्शाता है। वहीं नमित दास एक युवा पत्रकार के रूप में दिख रहे हैं, जो सच और सनसनी के बीच उलझा हुआ है यानी वो प्रतिनिधित्व करता है आज के मीडिया का।

इन सभी किरदारों की खासियत यही है कि ये सिर्फ अभिनय नहीं कर रहे, बल्कि एक संवेदनशील मुद्दे को बेहद संवेदनशीलता से पेश कर रहे हैं। क्योंकि “The Taj Story” जैसी फिल्म का विषय बहुत नाज़ुक है थोड़ा भी असंतुलन हुआ तो बात समझ से बहस और बहस से विवाद तक पहुँच सकती है। तुषार अमरीश गोयल के निर्देशन में ये फिल्म एक तरह से सोच की यात्रा बन जाती है जहाँ हर दृश्य एक सवाल उठाता है, और हर जवाब एक नया विचार जन्म देता है।

ट्रेलर से ये भी महसूस होता है कि फिल्म सिर्फ़ इतिहास पर नहीं, बल्कि हमारे नजरिए पर भी सवाल उठाती है। क्या हमने जो मान लिया, वही सच है? या फिर कहीं कुछ और भी है, जो अब तक अनकहा रहा?

कुल मिलाकर, “The Taj Story” के ट्रेलर ने ये साबित कर दिया है कि ये फिल्म सिर्फ़ मनोरंजन का ज़रिया नहीं होगी बल्कि एक ऐसी बौद्धिक और भावनात्मक यात्रा, जो दर्शकों को सोचने, सवाल करने और शायद अपने यकीन पर दोबारा नज़र डालने पर मजबूर कर देगी।

क्या नया है इस विषय में?दर्शकों की प्रतिक्रिया और उम्मीदें

ताजमहल पर अब तक न जाने कितनी किताबें लिखी जा चुकी हैं, कितने रिसर्च पेपर, कितनी बहसें और डॉक्यूमेंट्रीज़ बन चुकी हैं लेकिन फिल्म “The Taj Story” का ट्रेलर देखकर ऐसा लगता है कि यह फिल्म उन सब सीमाओं से आगे बढ़ने की कोशिश कर रही है।

इस बार कहानी सिर्फ़ इतिहास की तारीख़ों और दस्तावेज़ों में बंद नहीं है, बल्कि इसमें विज्ञान, सवाल और जिज्ञासा की नई परतें जुड़ गई हैं। ट्रेलर में सबसे बड़ा मुद्दा जो सामने आता है, वो है “ताजमहल का DNA टेस्ट।” यानी सवाल यह नहीं कि ताजमहल किसने बनवाया, बल्कि यह कि क्या हम इतिहास को सिर्फ़ लिखी हुई बातों से मानें, या अब विज्ञान की कसौटी पर भी परखें?

ये विचार अपने आप में बड़ा और बोल्ड है। विष्णु दास का किरदार (परेश रावल द्वारा निभाया गया) जब यह मांग उठाता है, तो वो सिर्फ़ एक बात नहीं कह रहा होता वो पीढ़ियों से चली आ रही धारणाओं को खुली चुनौती दे रहा होता है।

वो मानो पूछ रहा हो “क्या हमने कभी उस बात पर सवाल उठाया, जो हमें बचपन से सच के रूप में सिखाई गई?” ट्रेलर में ये भी दिखाया गया है कि यह लड़ाई सिर्फ़ इतिहास की नहीं, विचारों की भी है। और इस लड़ाई का मैदान बनता है कोर्टरूम, जहाँ एक तरफ़ कानून और तर्क हैं, और दूसरी तरफ़ आस्था और परंपरा।

न्यायालय को इस फिल्म में सिर्फ़ फ़ैसला सुनाने की जगह नहीं दी गई है बल्कि उसे एक विचार मंच की तरह दिखाया गया है, जहाँ सच, झूठ, भावना और तर्क सबका सामना होता है। जैसे ही ट्रेलर रिलीज़ हुआ, सोशल मीडिया पर हलचल मच गई। किसी ने इसे “बहादुर कदम” कहा, तो किसी ने इसे “धार्मिक विवाद को हवा देने वाला” बताया।

कुछ लोगों को यह कहानी रोमांचक लगी, तो कुछ ने इसे इतिहास से खिलवाड़ करार दिया। लेकिन यही तो ऐसी फिल्मों की असली खूबी होती है वो लोगों को सोचने पर मजबूर कर देती हैं। वो एक ऐसा सवाल छोड़ जाती हैं, जो दिल और दिमाग़ दोनों में गूंजता रहता है।

कई दर्शकों ने उम्मीद जताई है कि फिल्म निष्पक्ष नज़रिया रखेगी यानी किसी एक पक्ष की नहीं, बल्कि सच की बात करेगी। लोग चाहते हैं कि कहानी में न धर्म का पक्ष झुके, न राजनीति का बस इंसाफ़ और हकीकत की बात हो। वहीं आलोचक (critics) थोड़ा सावधान लहज़े में कह रहे हैं कि “इतिहास जैसे संवेदनशील विषय पर फिल्म बनाना आसान नहीं है।”

निष्कर्ष: ट्रेलर ने क्या दिया है?

“The Taj Story” का ट्रेलर सिर्फ़ शोर मचाने वाला नहीं है, बल्कि सीधे तौर पर एक चुनौती है हमारी सोच, हमारी मान्यताओं और हमारे इतिहास की कहानियों के सामने।

ट्रेलर साफ़ दिखाता है कि यह फिल्म केवल मनोरंजन के लिए नहीं है। यह दर्शकों को सोचने, सवाल करने और बहस में शामिल होने का निमंत्रण देती है। चाहे विषय कितना ही संवेदनशील क्यों न हो, फिल्म का मकसद है कि इतिहास और आस्था दोनों पर सवाल उठ सकें और दर्शक खुद तय करें कि क्या सच है और क्या सिर्फ़ मान्यता।

फिल्म 31 अक्टूबर 2025 को रिलीज़ होगी। तब पता चलेगा कि ट्रेलर ने जो उम्मीदें और जिज्ञासा पैदा की हैं, वह पूरी हो पाती हैं या नहीं। तब तक यह सिर्फ़ शुरुआत है। शुरुआत है बहस की, शुरुआत है विचार की, और सबसे अहम इतिहास की नयी व्याख्या की शुरुआत।

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