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Nagpur में चल रही बड़ी टैक्स जांच: अस्पतालों पर IT Department की नज़र
महाराष्ट्र का शहर Nagpur, जिसे लोग “मेडिकल हब” के नाम से भी जानते हैं, इन दिनों एक बड़ी टैक्स जांच की वजह से सुर्खियों में है। खबरें कहती हैं कि यहाँ के करीब 150 अस्पतालों (कुछ रिपोर्टों में 130 से ज़्यादा बताए गए हैं) को IT Department ने अपने रडार पर लिया है।
वजह इन अस्पतालों के कैश ट्रांजैक्शन यानी नकद लेन-देन में गड़बड़ी के संकेत मिले हैं। यह जांच IT Department की Intelligence और Criminal Investigation (I & CI) विंग द्वारा की जा रही है। यानी सिर्फ औपचारिक जांच नहीं, बल्कि एक गंभीर और गहराई से चल रही कार्रवाई।
दरअसल, इन अस्पतालों को नोटिस भेजकर कहा गया है कि वे अपने पिछले वित्तीय वर्ष (FY 2024-25) के सभी नकद प्राप्तियों, बिलिंग रिकॉर्ड, वाउचर और वित्तीय दस्तावेजों को पेश करें। विभाग की नज़र इस बात पर है कि कहीं इन अस्पतालों ने बड़ी रकम का टैक्स छुपाने या रिपोर्ट न करने की कोशिश तो नहीं की।
IT Department जांच का मुख्य फोकस क्या है?
कानून के अनुसार, अगर किसी मरीज का इलाज ₹2 लाख या उससे ज़्यादा का है और वह भुगतान कैश में किया गया है, तो अस्पताल को यह लेन-देन “Statement of Financial Transactions (SFT)” के ज़रिए सरकार को रिपोर्ट करना ज़रूरी होता है।
लेकिन IT Department जांच में पाया गया कि कई अस्पतालों ने यह रिपोर्टिंग या तो की ही नहीं, या फिर कैश पेमेंट को छोटे-छोटे हिस्सों में बाँटकर दिखाया, ताकि ₹2 लाख की सीमा से नीचे रहा जाए और मामला सिस्टम में दर्ज न हो। यानी सीधी भाषा में कहें तो, टैक्स से बचने का खेल खेला गया।
कैसे पकड़ी गई गड़बड़ी?
IT Department की टीम ने डिजिटल ट्रांजैक्शन, बैंक रिकॉर्ड और मरीजों के पेमेंट हिस्ट्री को मिलाकर देखा। कई जगहों पर कैश में बड़ी रकम ली गई, लेकिन उसका कोई औपचारिक एंट्री या रिपोर्टिंग नहीं थी। कई अस्पतालों में मरीजों से ₹2 लाख की बजाय 1.5 लाख या 1.9 लाख के स्लिप में पेमेंट दिखाया गया, ताकि रिपोर्टिंग रेंज से नीचे रहा जा सके।

क्यों ज़्यादा है कैश ट्रांजैक्शन?
Nagpur और उसके आसपास के इलाके जैसे विदर्भ, छत्तीसगढ़, और मध्यप्रदेश के बॉर्डर वाले इलाके से बहुत से मरीज इलाज कराने यहाँ आते हैं। कई बार गाँव या छोटे कस्बों से आने वाले मरीजों के पास ऑनलाइन या डिजिटल पेमेंट की सुविधा नहीं होती, इसलिए वो कैश में भुगतान करते हैं। यही वजह है कि यहाँ के अस्पतालों में कैश लेन-देन की मात्रा हमेशा ज़्यादा रहती है। लेकिन अब यही बात जांच के घेरे में आ गई है।
IT Department की कार्रवाई और असर
अभी तक यह साफ नहीं है कि कुल कितनी रकम टैक्स चोरी या अनियमितता की श्रेणी में आएगी, लेकिन विभाग की सक्रियता देखकर इतना तो तय है कि मामला काफी गंभीर है। जिन अस्पतालों को नोटिस भेजा गया है, उनसे 15 दिनों के भीतर सभी सबूत और हिसाब-किताब पेश करने को कहा गया है। अगर कोई संस्था सहयोग नहीं करती या जानकारी छुपाती है, तो उनके खिलाफ पेनल्टी, सर्वे और यहां तक कि रेड (छापा) जैसी कार्रवाई भी हो सकती है।
आने वाले समय में क्या होगा?
IT Department का कहना है कि आने वाले हफ्तों में इस जांच का दायरा और बढ़ाया जा सकता है। यानी सिर्फ नागपुर ही नहीं, बल्कि महाराष्ट्र के दूसरे शहरों जैसे पुणे, औरंगाबाद, नासिक और मुंबई के कुछ बड़े अस्पताल भी जांच में शामिल किए जा सकते हैं।
IT Department का मकसद साफ है यह समझना कि मेडिकल सेक्टर में कितना पैसा कानूनी तौर पर दर्ज नहीं किया जा रहा है। साथ ही सरकार यह भी चाहती है कि कैश ट्रांजैक्शन की पारदर्शिता बढ़ाई जाए, ताकि ब्लैक मनी का इस्तेमाल रोका जा सके।
यह मामला सिर्फ टैक्स चोरी का नहीं है, बल्कि मेडिकल सिस्टम की ईमानदारी और पारदर्शिता से जुड़ा है। जब अस्पताल जैसे संस्थान जो समाज की सेवा का प्रतीक माने जाते हैं वित्तीय अनियमितता में लिप्त पाए जाते हैं, तो भरोसे पर गहरी चोट लगती है।
अब देखना यह है कि यह जांच कहाँ तक जाती है, और क्या वाकई बड़े नामों का खुलासा होता है या मामला फिर फाइलों में दबकर रह जाएगा। फिलहाल, नागपुर में हलचल तेज़ है| अस्पतालों के अकाउंट सेक्शन में अफरा-तफरी मची है, डॉक्टर और मैनेजमेंट मीटिंग्स में व्यस्त हैं, और टैक्स विभाग हर दिन नई लिस्ट तैयार कर रहा है। “नकद की ताक़त कभी-कभी परेशानी भी बन जाती है और अब नागपुर के अस्पताल यही बात अच्छे से समझ रहे हैं।”
IT Department कार्रवाई के चलते मुख्य प्रश्न और चुनौतियाँ
रिपोर्टिंग का फॉर्मूलू – कैसे खेला गया खेल
कई अस्पताल ये कह रहे हैं कि नकद में भुगतान तो मिला, लेकिन उसे SFT फॉर्म में रिपोर्ट नहीं किया गया। कुछ ने तो चालाकी से लेन-देन को छोटे-छोटे हिस्सों में बाँट दिया, ताकि ₹2 लाख की लिमिट को पार न करें।

उदाहरण के तौर पर अगर किसी मरीज का बिल ₹2.5 लाख का था, तो उन्होंने उसे तीन हिस्सों में बाँट दिया ₹90,000, ₹90,000 और ₹70,000 ताकि कोई भी एंट्री ₹2 लाख से ऊपर न दिखे।
अब सोचिए, ये सब कागज़ी खेल कितना बारीक और जोखिम भरा है, लेकिन विभाग की नज़रों से ये बातें छुप नहीं पाईं। यही वजह है कि अब IT Department की टीम इस रिपोर्टिंग के हर छोटे-से-छोटे डिटेल को खंगाल रही है।
राशि का निर्धारण – किसने कितना दिया, कैसे दिया
IT Department अब इस पर भी ध्यान दे रहा है कि इलाज के दौरान कुल कितनी रकम दी गई, उसमें से कितना हिस्सा नकद था और कितना डिजिटल या चेक के ज़रिए। कानून के मुताबिक अस्पताल के पास इसका पूरा और साफ रिकॉर्ड होना चाहिए, लेकिन कई मामलों में ऐसा कुछ मिला ही नहीं। कहीं बिल अधूरा था, कहीं वाउचर गायब थे, और कहीं मरीज के नाम पर नकद रिसीट ही नहीं थी। यानी सीधी बात हिसाब-किताब पूरा “गड़बड़झाला” है।
अब IT Department के अफसर अस्पतालों के अपने रिपोर्ट किए गए आंकड़ों की तुलना बैंक स्टेटमेंट्स, बिल बुक्स और वाउचरों से कर रहे हैं। यह काम आसान नहीं है इसमें बहुत समय, मेहनत और संसाधन लग रहे हैं। हर एक रिकॉर्ड को मिलाया जा रहा है ताकि पता लगाया जा सके कि कहीं कोई रकम दबाई तो नहीं गई। यानी अब अस्पतालों के लिए “बुक्स में एडजस्टमेंट” करना आसान नहीं रहेगा।
नकदी-उपयोग की प्रवृत्ति – ज़मीनी हकीकत
अब सवाल उठता है कि आखिर इतना कैश ट्रांजैक्शन क्यों होता है? असल में, Nagpur और उसके आस-पास के इलाके जैसे विदर्भ, मध्यप्रदेश बॉर्डर और ग्रामीण ज़िले यहाँ के ज़्यादातर मरीज नकद में भुगतान करना पसंद करते हैं।
कई लोगों के पास न तो UPI की सुविधा होती है, न ही बैंक कार्ड या ऑनलाइन ट्रांसफर का ज्ञान। इसलिए अस्पतालों में कैश का चलन स्वाभाविक है। लेकिन अब वही प्रवृत्ति अस्पतालों के लिए सिरदर्द बन गई है, क्योंकि विभाग को हर पेमेंट का सबूत चाहिए चाहे वो छोटा हो या बड़ा।
प्रतिष्ठान की छवि – भरोसे पर सवाल
यह जांच सिर्फ पैसे की बात नहीं है, बल्कि अस्पतालों की छवि और भरोसे से भी जुड़ी है। जो मल्टी-स्पेशालिटी अस्पताल समाज में “सेवा” और “ईमानदारी” की मिसाल माने जाते हैं, अगर वही टैक्स चोरी या छुपे लेन-देन में शामिल पाए जाते हैं, तो मरीजों का भरोसा हिल जाता है। स्वास्थ्य सेवा सिर्फ इलाज देने का नाम नहीं, बल्कि पारदर्शिता और जवाबदेही का प्रतीक भी है।
नागपुर के लिए विशेष महत्व
Nagpur, जिसे मध्य भारत का मेडिकल हब कहा जाता है, वहाँ के अस्पतालों पर हमेशा लोगों का गहरा भरोसा रहा है। यहाँ इलाज के लिए सिर्फ महाराष्ट्र ही नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और यहाँ तक कि तेलंगाना से भी मरीज आते हैं। लोगों को यकीन रहता है कि Nagpur में बढ़िया डॉक्टर, अच्छी सुविधाएँ और सही इलाज मिलेगा। लेकिन अब जो मामला सामने आया है कैश ट्रांजैक्शन और रिपोर्टिंग की गड़बड़ियाँ उसने उस भरोसे को थोड़ा हिला दिया है।
अब सोचिए, जब कोई मरीज इलाज के लिए अस्पताल जाता है, तो उसे इस बात की फिक्र नहीं होती कि उसका बिल सही बन रहा है या नहीं। उसे बस ये चाहिए कि डॉक्टर अच्छा इलाज करे और सब कुछ ईमानदारी से हो।
लेकिन जब ऐसे मामले सामने आते हैं जहाँ अस्पतालों पर नकद लेन-देन छिपाने या हिसाब तोड़-मरोड़ के आरोप लगते हैं, तो मरीज के मन में डर बैठना लाज़मी है। लोग सोचने लगते हैं “क्या हमसे ज़्यादा पैसे तो नहीं लिए गए? क्या बिल में कुछ गड़बड़ है?”
स्वास्थ्य सेवा का मतलब सिर्फ इलाज देना नहीं होता, बल्कि भरोसा देना भी होता है। और अगर भरोसा ही डगमगा जाए, तो पूरी व्यवस्था पर सवाल उठने लगते हैं। यही वजह है कि टैक्स और फाइनेंशियल पारदर्शिता यहाँ उतनी ही ज़रूरी है जितनी मरीज की जान बचाना। अगर कोई अस्पताल सरकारी नियमों की अनदेखी करता है, तो वो सिर्फ कानून नहीं तोड़ रहा, बल्कि मानवता और नैतिकता की भी मर्यादा लांघ रहा है।
यह मामला हमें ये भी याद दिलाता है कि ईमानदारी सिर्फ डॉक्टर के हाथों में नहीं, बल्कि अस्पताल की अकाउंट बुक में भी होनी चाहिए। IT Department की यह जांच दरअसल एक संदेश है कि चाहे निजी अस्पताल हो या सरकारी, हर संस्था को वित्तीय नियमों का पालन करना ही होगा। अब वक्त आ गया है कि हेल्थ सेक्टर भी अपने कामकाज को पूरी पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ करे।
क्योंकि आख़िर में, इलाज सिर्फ शरीर का नहीं होता सिस्टम की ईमानदारी का भी होता है। अगर सिस्टम साफ़ है, तो भरोसा भी कायम रहेगा, और नागपुर फिर उसी पहचान के साथ जाना जाएगा “जहाँ इलाज के साथ इंसाफ़ भी मिलता है।”
Nagpur के अस्पतालों पर IT विभाग की नज़र: अब हर कैश ट्रांजैक्शन का पूरा हिसाब देना होगा
Nagpur के मेडिकल हब में इन दिनों एक बड़ी हलचल मची हुई है। IT Department ने शहर के करीब 150 अस्पतालों पर जांच का दायरा बढ़ा दिया है। यह जांच सिर्फ “टैक्स चोरी” तक सीमित नहीं है बल्कि अब मामला पारदर्शिता, ईमानदारी और जवाबदेही तक पहुँच गया है।
पुरानी फाइलें अब खुलेंगी IT Department की डिमांड बढ़ी
आयकर विभाग अब अस्पतालों से कह रहा है कि वे पिछले वित्तीय वर्षों (Financial Years) के सारे जरूरी दस्तावेज जमा करें, बैंक स्टेटमेंट, वाउचर और मरीज रजिस्टर, कैश और डिजिटल ट्रांजैक्शन का ब्योरा अगर किसी अस्पताल ने SFT (Statement of Financial Transactions) रिपोर्ट नहीं की है या जानबूझकर ट्रांजैक्शन को टुकड़ों में दिखाया है, तो उसे नोटिस मिलना तय है। इसके बाद विभाग पेनल्टी या डिडक्शन (काट-छाँट) जैसी कार्रवाई भी कर सकता है।
नकद लेन-देन का पैटर्न समझने में जुटा विभाग
IT Department अब ये भी जानना चाहता है कि आखिर अस्पतालों में कैश ट्रांजैक्शन का कल्चर इतना ज्यादा क्यों है। इसके लिए वे यह डेटा स्टडी कर रहे हैं| कितने प्रतिशत मरीज नकद में भुगतान करते हैं, कितने डिजिटल या चेक से, और नकदी के इस्तेमाल की यह प्रवृत्ति किन अस्पतालों में ज्यादा है। इससे यह पता चलेगा कि कौन-से अस्पताल ज़्यादा कैश ले रहे हैं और किस हद तक नियमों की अनदेखी की जा रही है।
मरीजों के लिए भी सबक: बिल ज़रूर लें, रिकॉर्ड रखें
इस जांच का असर सिर्फ अस्पतालों तक सीमित नहीं रहेगा। अब मरीजों को भी जागरूक होने की ज़रूरत है। उन्हें ये समझना होगा कि हर भुगतान का बिल लेना ज़रूरी है, बिल में दिए गए राशि और इलाज का विवरण सही होना चाहिए, और अगर उन्होंने नकद भुगतान किया है, तो उसका प्रमाण जरूर रखें। इससे न सिर्फ मरीज सुरक्षित रहेंगे, बल्कि सिस्टम में पारदर्शिता भी बढ़ेगी।
अस्पतालों पर नया दबाव: ईमानदार रिपोर्टिंग अब मजबूरी
अब अस्पतालों के सामने एक नया दबाव बन रहा है फाइनेंशियल ऑडिटिंग और रिपोर्टिंग का। उन्हें अपनी बुक-किपिंग, रिकॉर्ड सिस्टम, और रिपोर्टिंग प्रोसेस को सुधारना होगा। अगर पहले कभी आंकड़े छिपाए गए, तो अब ऐसा करना मुश्किल होगा, क्योंकि विभाग के पास डिजिटल डेटा-ट्रैकिंग सिस्टम पहले से कहीं ज़्यादा मजबूत हो चुका है।
यह सिर्फ टैक्स की बात नहीं नैतिक जिम्मेदारी भी है
असल में यह मामला सिर्फ “टैक्स चोरी” का नहीं है, बल्कि एक नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी का है। स्वास्थ्य सेवा का काम सिर्फ इलाज देना नहीं, बल्कि ईमानदारी और भरोसा कायम रखना भी है। अगर अस्पताल अपनी रिपोर्टिंग ठीक से नहीं करते, तो यह सिर्फ कानून का उल्लंघन नहीं बल्कि भरोसे की भी तोड़फोड़ है।
मिलजुलकर सुधार की ज़रूरत
इस वक्त ज़रूरत है कि – मरीज, अस्पताल प्रबंधन, राज्य प्रशासन, और टैक्स विभाग सब मिलकर एक साफ-सुथरा सिस्टम बनाएं। जहाँ अस्पताल सिर्फ इलाज देने का काम करें, और वित्तीय सफाई व पारदर्शिता को भी अपनी प्राथमिकता बनाएं। जब मरीज को भरोसा होगा कि उसने सही इलाज लिया, सही रकम दी और अस्पताल ने सही रिकॉर्ड रखा तभी असली भरोसा दोबारा लौटेगा।
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