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Nagpur में Leopard के Attack से 7 लोग हुए घायल, तेंदुए की दहशत से लोग हुए परेशान फॉरेस्ट डिपार्टमेंट से बचाव की मांग

Nagpur में Leopard के Attack से 7 लोग हुए घायल, तेंदुए की दहशत से लोग हुए परेशान फॉरेस्ट डिपार्टमेंट से बचाव की मांग

Nagpur से Leopard ने दी दहशत, 7 लोग हुए घायल

हाल ही में Nagpur शहर में एक ऐसी घटना हुई जिसने पूरे मोहल्ले में दहशत फैला दी। हुआ यूँ कि एक Leopard अचानक पारडी के रिहायशी इलाक़े शिव नगर और भवानीनगर में भटकता हुआ आ गया। सुबह का वक़्त था, करीब साढ़े छह से साढ़े सात बजे के बीच, लोग अपने-अपने दरवाज़ों पर, गलियों में या छतों पर अपनी रोज़ की रूटीन में लगे हुए थे। तभी अचानक लोगों ने देखा कि तेंदुआ बिल्कुल घरों के आस-पास, गली-कूचों में घूम रहा है।

कुछ ही पलों में माहौल ऐसा हो गया कि हर तरफ़ चिल्लाहट, भागदौड़ और अफ़रातफरी मच गई। तेंदुआ जैसे ही आगे बढ़ा, उसने कई जगह हमला किया और करीब सात लोग ज़ख़्मी हो गए। इनमें से एक शख़्स की तबियत इतनी नाज़ुक हो गई कि उसे फ़ौरन ICU में भर्ती करना पड़ा।

सबसे डरावना लम्हा तब आया जब एक छोटा बच्चा उसके बिल्कुल क़रीब था। चश्मदीद बता रहे हैं कि Leopard कुछ सेकंड तक उसी बच्चे की तरफ़ घूरता रहा, फिर अचानक झपटा और लोग अपनी जान बचाकर इधर-उधर भागने लगे। पूरा इलाक़ा खौफ़ में डूब गया, और लोगों के दिलों में यह खयाल बैठ गया कि किसी भी वक़्त कुछ भी हो सकता था।

Nagpur Forest Department और राहत-बचाव कार्य

घटना की ख़बर मिलते ही वन विभाग और लोकल वाइल्डलाइफ़ टीम हरकत में आ गई। किसी ने वक्त ज़ाया नहीं किया फौरन ही रेस्क्यू टीम को रवाना कर दिया गया। करीब साढ़े नौ बजे के आसपास Transit Treatment Centre की पूरी टीम मौके पर पहुँच गई और पूरे इलाक़े को घेरकर हालात काबू में लेने की कोशिश शुरू कर दी।

Leopard को काबू में करने के लिए ट्रैंक्विलाइज़र का सहारा लिया गया। जो वीडियो सामने आया है, उसमें साफ़ दिख रहा है कि तेंदुआ एक छत से दूसरी छत पर कूदता फिर रहा था, कभी गली में भागता, कभी घरों की दीवारों पर चढ़ जाता यानी पूरा मोहल्ला जैसे अचानक जंगल में बदल गया हो।

काफ़ी मशक्कत के बाद आखिरकार उसे सुरक्षित तरीके से पकड़ लिया गया, और वहां मौजूद लोगों ने एक लंबी राहत की सांस ली। जितने भी लोग ज़ख़्मी हुए थे, उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया। अल्लाह का शुक्र है कि किसी की जान को बड़ा ख़तरा नहीं हुआ। अलग-अलग जगह से आई रिपोर्टों में 5 से 7 लोगों के घायल होने की बात सामने आई है।

लेकिन सबसे सोचने वाली बात ये है कि यह पहली बार नहीं हुआ। इसी तेंदुए को — या शायद कोई दूसरा — कुछ हफ़्ते पहले भांडेवाड़ी और MIHAN जैसे इलाक़ों में भी देखा जा चुका है। इस वजह से अब यह शक और भी गहरा होता जा रहा है कि नागपुर शहर और उसके आसपास के जंगल आपस में इतने नज़दीक आ चुके हैं कि इंसान और जंगली जानवर बार-बार आमने-सामने आ रहे हैं।

Conflict का कारण और सरकार की चिंता

वन मंत्री गणेश नाईक ने खुलकर कहा है कि महाराष्ट्र में इंसानों और Leopard के बीच टकराव तेज़ी से बढ़ रहा है। उन्होंने यह भी समझाया कि अगर हमें हालात काबू में रखने हैं, तो सबसे पहले तेंदुओं के रहने के लिए सुरक्षित और अलग से तय किए गए इलाके बनाने ही होंगे, ताकि वे शहर या रिहायशी बस्तियों में ना भटकें।

उनकी पूरी रणनीति का एक बड़ा हिस्सा यह है कि जंगलों में Leopard के लिए काफ़ी मात्रा में शिकार मौजूद हो, ताकि उन्हें खाने की तलाश में इंसानी इलाक़ों की तरफ़ न आना पड़े। इसी वजह से उन्होंने सुझाव दिया है कि जंगलों में बकरियाँ छोड़ने का प्लान बनाया जाए ताकि तेंदुए अपने खाने के लिए जंगल के अंदर ही रहें, बाहर आने की ज़रूरत ही न पड़े।

इसके अलावा, सरकार ने Leopard की आबादी को धीरे-धीरे नियंत्रित करने के लिए स्टरलाइजेशन (नसबंदी) जैसा तरीका अपनाने की बात भी कही है, ताकि आने वाले समय में ऐसे हमलों और टकराव के मामले कम होते जाएँ।

सरकार सिर्फ़ वन्यजीवों की नहीं सोच रही बल्कि उन लोगों की भी फ़िक्र कर रही है जिनकी ज़िंदगी इस संघर्ष में प्रभावित हो रही है। इसलिए वित्तीय मदद, मुआवज़ा और जंगल विभाग में रोजगार जैसी योजनाओं पर भी विचार किया जा रहा है, ताकि जिन परिवारों को नुकसान पहुंचा है, उन्हें सहारा मिल सके और वे एक सुरक्षित, चैन की ज़िंदगी जी सकें।

Nagpur वासियों का डर: सुरक्षा, सावधानी और सवाल

Leopard जैसे ही शहर के अंदर आया, लोगों में ऐसा खौफ़ बैठ गया कि अब कोई भी रात को बाहर निकलने में पहले जैसा आराम महसूस नहीं कर रहा। माँ–बाप तो बच्चों को अकेले गली तक भेजने में भी हिचकिचा रहे हैं। हर किसी के दिल में एक ही बात घूम रही है पता नहीं कब, कहाँ से कोई जंगली जानवर फिर सामने आ जाए।

सोशल मीडिया पर जो वीडियो वायरल हुआ है, उसने लोगों को और ज़्यादा बेचैन कर दिया। एक के बाद एक ऐसी घटनाएँ होने से नागरिकों का प्रशासन और नेताओं पर भरोसा भी हल्का-सा डगमगा गया है। लोग कह रहे हैं कि अगर शहर के बीचों-बीच तेंदुआ आ सकता है, तो सुरक्षा व्यवस्था आखिर कहाँ है?

यही वजह है कि कुछ स्थानीय नेता और कई आम नागरिक इस मामले को इतना गंभीर मान रहे हैं कि वे इसे “राज्य आपदा” घोषित करने की मांग कर रहे हैं ताकि सरकार इस पूरे मामले को सिर्फ़ एक सामान्य घटना न समझे, बल्कि इसे प्राथमिकता देकर लोगों की सुरक्षा, देखभाल और पुर्नवास पर पूरा ध्यान दे।

आगे क्या हो सकता है — चुनौतियाँ और संभव समाधान

अब सबसे ज़रूरी बात यह है कि इंसानों और जंगली जानवरों के बीच जो यह लगातार बढ़ता टकराव है, उसे कैसे रोका जाए। सबसे पहले तो यही समझना होगा कि रिहायशी इलाक़ों और जंगल के बीच कुछ दूरी और साफ़ सीमाएँ बनाना बेहद ज़रूरी है। जब शहर जंगल की तरफ़ फैलता जाता है, तो जानवरों के पास इंसानी बस्तियों में आने के अलावा कोई चारा नहीं बचता। अगर जंगल की हदें तय होंगी, तो तेंदुओं के शहर तक पहुँचने की संभावना अपने आप कम हो जाएगी।

प्रशासन की ज़िम्मेदारी भी कम नहीं है। CCTV कैमरे, ट्रैप कैमरे, रात की गश्त, और लगातार निगरानी — ये सब इसलिए जरूरी हैं ताकि जैसे ही तेंदुआ कहीं दिखे, फौरन कार्रवाई की जा सके और लोग सुरक्षित रहें। थोड़ी-सी लापरवाही कई बार बड़ी घटना में बदल सकती है।

इसके साथ ही लोगों को भी जागरूक होना पड़ेगा। जंगल, जंगल ही होता है जंगली जानवरों का घर। अगर लोग कूड़ा-करकट, खाने के बचे टुकड़े या जानवरों के अवशेष जंगल के पास फेंकेंगे, तो जानवर तो आएँगे ही। भांडेवाड़ी में भी तेंदुओं के आने की वजह अकसर कूड़ा-यार्ड ही बताया गया था। यानी इंसानी लापरवाही कई बार इस पूरी मुश्किल को और बढ़ाती है।

वन विभाग की एक बड़ी जिम्मेदारी यह भी है कि जंगल में तेंदुओं के लिए पर्याप्त शिकार मौजूद रहे जैसे बकरियाँ वगैरह। जब उन्हें जंगल में ही खाना मिल जाएगा, तो वे रिहायशी इलाक़ों में आने की कोशिश नहीं करेंगे। साथ ही, तेंदुओं की आबादी को नियंत्रित करने (जैसे स्टरलाइजेशन) और जंगलों को नई-नई प्रजातियों से मजबूत करने जैसे कदम भी काफी असरदार साबित हो सकते हैं।

और सबसे अहम बात पुनर्वास और सहायता। जिन परिवारों पर तेंदुए के हमले का असर पड़ा है, जिनकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी डर में बदल गई है, उन्हें आर्थिक मदद, सुरक्षा और रोज़गार जैसी सुविधाएँ मिलनी ही चाहिए, ताकि वे इस सदमे से निकलकर फिर से सामान्य ज़िंदगी जी सकें।

नागपुर की हालिया घटनाओं ने साफ दिखा दिया है कि अब जंगल और इंसानी बस्तियाँ बहुत नज़दीक आ चुकी हैं। शहर बढ़ रहा है और जंगल सिकुड़ रहा है यही वजह है कि ऐसे मामले बार-बार सामने आ रहे हैं। अगर अभी हम सब मिलकर सावधानी न बरतें और समन्वय से काम न करें, तो आगे ऐसी घटनाएँ और भी बढ़ सकती हैं।

लेकिन उम्मीद अभी बाकी है। सरकार और वन विभाग दोनों एक्टिव हैं, कदम उठाए जा रहे हैं, और लोग भी अब ज़्यादा सतर्क हो गए हैं। बस जरूरत इतनी है कि जंगल को जंगल की तरह रहने दिया जाए और इंसानी आबादी को उसकी हद में रखा जाए। अगर यह संतुलन बन गया, तो शहर में अमन और सुरक्षा दोनों कायम रह सकती हैं।

इसके अलावा, एक और अहम पहलू जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता, वह है स्कूलों और मोहल्लों में जागरूकता अभियान चलाना। बच्चों, बुज़ुर्गों और आम लोगों को यह बताया जाना चाहिए कि अगर कभी अचानक Leopard दिख जाए तो कैसे बर्ताव करना है भागना नहीं है, शोर नहीं करना है, और सुरक्षित जगह पर जाकर तुरंत वन विभाग या पुलिस को खबर देनी है। कई बार घबराहट ही हादसों की सबसे बड़ी वजह बनती है।

साथ ही, स्थानीय समुदायों की भागीदारी भी बहुत जरूरी है। जब मोहल्ले के लोग मिलकर निगरानी, सफाई और सुरक्षा में हिस्सा लेते हैं, तो ऐसे खतरों को बहुत हद तक कम किया जा सकता है। सामूहिक जागरूकता और समझ ही असल में शहर को सुरक्षित बनाती है।

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