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Bihar Election 2025: लोकतंत्र का पहला चरण पूरा
6 नवंबर 2025 को Bihar Election 2025 का पहला दौर पूरा हो गया। पूरा माहौल कुछ ऐसा था जैसे पूरा सूबा लोकतंत्र के इस जश्न में डूब गया हो। कुल 18 ज़िलों की 121 विधानसभा सीटों पर लोगों ने बड़ी तादाद में बाहर निकलकर वोट डाले।
करीब 7 करोड़ 40 लाख मतदाता इस पहले चरण में शामिल हुए और शाम तक 60.13% वोटिंग दर्ज हुई जो पिछले दस सालों में सबसे ज़्यादा है। ये आंकड़ा सिर्फ़ नंबर नहीं, बल्कि बिहार की जनता के जोश और जागरूकता की निशानी है।
इस बार का Bihar Election इसलिए भी ख़ास है क्योंकि यही तय करेगा कि अब जनता का झुकाव किस तरफ़ है क्या वो नितीश कुमार की NDA सरकार को एक और मौका देना चाहती है, या फिर तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन को नई राह दिखाने का मौक़ा देने के मूड में है।
शाम पाँच बजे तक कुल 60.13% वोटिंग हुई। ज़्यादा वोटिंग वाले इलाकों में बेगूसराय (67.32%), गोपालगंज (64.96%) और मुज़फ़्फरपुर (64.63%) शामिल रहे। वहीं कुछ जगहों पर वोटिंग थोड़ी कम रही, जैसे पटना में 55.02% और शेखपुरा में 52.36%।
दोपहर एक बजे तक तक़रीबन 42% लोग वोट डाल चुके थे, मगर जैसे-जैसे सूरज ढलने लगा, लोगों का जोश और बढ़ता गया। कई जगहों पर लंबी कतारें दिखीं, और बूथों पर माहौल कुछ ऐसा था जैसे कोई त्यौहार हो।
चुनाव आयोग ने कहा कि मतदान पूरी तरह शांतिपूर्ण और उत्साह भरा रहा। अगर 2020 के Bihar Election से तुलना करें तो उस वक्त पहले चरण में 56% के आसपास वोटिंग हुई थी, जबकि इस बार चार फीसदी से ज़्यादा इज़ाफ़ा हुआ है। यानी साफ़ है कि जनता इस बार बदलाव या फिर से सत्ता दोनों ही मुद्दों को लेकर बेहद संजीदा है।
मतदान प्रक्रिया: सख़्त सुरक्षा और तकनीकी निगरानी
सुबह ठीक 7 बजे से ही Bihar Election के पहले चरण की वोटिंग की शुरुआत हो गई थी। सर्द हवाओं और हल्की धुंध के बीच लोग अपने-अपने घरों से निकलने लगे, हाथों में वोटर स्लिप और चेहरों पर उम्मीद की चमक थी। कहीं नौजवान दोस्त साथ में वोट डालने पहुंचे, तो कहीं बुज़ुर्ग अमन-ओ-चैन की दुआ करते हुए अपने हक़ का इस्तेमाल करने निकले।
ये सिलसिला शाम 6 बजे तक चलता रहा कुछ इलाकों में लाइनें इतनी लंबी थीं कि लोगों को सूरज ढलने के बाद भी इंतज़ार करना पड़ा। 18 ज़िलों में करीब 33 हज़ार से ज़्यादा मतदान केंद्र बनाए गए थे, जहाँ हर बूथ पर पूरी तरह व्यवस्था की गई थी कि किसी को कोई परेशानी न हो।
जिन इलाकों को संवेदनशील या नाज़ुक माना गया था, वहाँ शाम 5 बजे तक ही वोटिंग खत्म कर दी गई ताकि सुरक्षा में कोई चूक न हो। हर बूथ पर CCTV कैमरे और लाइव रिपोर्टिंग सिस्टम लगाए गए थे, जिससे हर हलचल पर नज़र रखी जा सके।
महिलाओं के लिए तो इस बार ख़ास इंतज़ाम किया गया था ‘पिंक बूथ’ यानी ऐसे मतदान केंद्र जहाँ पूरी ज़िम्मेदारी महिला कर्मियों के हाथ में थी। इन बूथों पर माहौल कुछ अलग ही था फूलों से सजा दरवाज़ा, मुस्कुराती अधिकारी और वोट डालने आईं औरतों के चेहरों पर गर्व की झलक।
सुरक्षा के लिए भी भारी इंतज़ाम किए गए थे। करीब 1 लाख 20 हज़ार से ज़्यादा सुरक्षा कर्मी तैनात थे सीआरपीएफ, बीएमपी और स्थानीय पुलिस बल के जवान हर गली, हर बूथ के आसपास चौकन्ने खड़े थे। उनकी मौजूदगी से लोगों को भरोसा मिला कि वे बेख़ौफ़ होकर वोट डाल सकते हैं।
कुल मिलाकर, Bihar Election का ये पहला चरण एक अमनभरा, जोश से लबरेज़ और उम्मीदों से भरा दिन रहा। हर उम्र, हर तबके के लोगों ने महसूस किया कि उनका वोट ही उनके सूबे की तक़दीर लिखने वाला है।

आरोप-प्रत्यारोप: राजनीति का तापमान बढ़ा
Bihar Election के दिन बिहार में एक बड़ी चर्चा हर तरफ़ सुनाई दी मतदाता सूची का झगड़ा, यानी “नाम कटने” का मामला। कई जगहों पर लोग सुबह से लाइन में खड़े रहे, लेकिन जब वोट डालने की बारी आई तो पता चला कि उनका नाम ही लिस्ट में नहीं है। ऐसे में ग़ुस्सा और मायूसी दोनों ही दिखाई दी।
विपक्षी पार्टियों ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया। RJD के नेता तेजस्वी यादव और कांग्रेस की प्रियंका गांधी ने खुलकर आरोप लगाया कि “राज्य में करीब 65 लाख से ज़्यादा मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से हटा दिए गए हैं।” तेजस्वी ने तो इसे “हाई-टेक वोट चोरी” का नाम दिया उनका कहना था कि इस बार तकनीक का इस्तेमाल वोट छीनने के लिए किया गया है, न कि जनता की आवाज़ सुनने के लिए।
हालाँकि, चुनाव आयोग (ECI) ने इन आरोपों को तुरंत खारिज कर दिया। आयोग की तरफ़ से कहा गया कि हर चुनाव से पहले मतदाता सूची में नियमित सुधार किया जाता है। इस बार 21 लाख 53 हज़ार नए मतदाता जोड़े गए हैं, और केवल 3.6 लाख नाम हटाए गए हैं वो भी नियमों के मुताबिक़। आयोग ने साफ़ कहा कि “वोट चोरी” जैसी बात पूरी तरह बेबुनियाद है।
इसके अलावा, कुछ बूथों पर तकनीकी गड़बड़ियों की भी शिकायतें मिलीं। कहीं बिजली गुल हो गई, तो कहीं EVM मशीनें धीरे चलने लगीं। कुछ जगहों पर तो लोगों को घंटों इंतज़ार करना पड़ा। हालाँकि, आयोग की तकनीकी टीमों ने मौके पर जाकर तुरंत हालात संभाल लिए।
कई मतदाताओं ने मीडिया से कहा कि जब वे अपने मतदान केंद्र पहुँचे, तो उन्हें बताया गया कि उनका नाम सूची में नहीं है जिससे उन्हें बिना वोट डाले ही लौटना पड़ा| ऐसे नज़ारे खासकर पटना, औरंगाबाद और गया के कुछ बूथों पर देखने को मिले। कहीं-कहीं पर तो मतदाताओं और कर्मचारियों के बीच बहस भी हो गई।
पटना और औरंगाबाद में मामूली झड़पों की भी खबरें आईं। कहा जा रहा है कि एक प्रत्याशी की गाड़ी पर पथराव तक हुआ, मगर शुक्र है कि किसी बड़ी हिंसा या जान-माल के नुक़सान की बात सामने नहीं आई। सुरक्षा बलों ने समय रहते हालात पर क़ाबू पा लिया और वोटिंग का माहौल फिर से शांत बना दिया।
कुल मिलाकर, दिनभर ये मामला “नाम कटने” और “तकनीकी दिक्कतों” के आरोपों से घिरा रहा। लोगों का कहना था “हम तो सुबह से निकले थे अपने वोट का हक़ निभाने, मगर लिस्ट से नाम गायब देखकर दिल टूट गया।” लेकिन प्रशासन और चुनाव आयोग का दावा है कि जो भी शिकायतें आईं, उनका समाधान मौके पर कर दिया गया।
Bihar Election: नेताओं के बयान और तीखे हमले
Bihar Election पहले चरण की वोटिंग ख़त्म होते ही बिहार का सियासी तापमान और बढ़ गया है। दिनभर मतगणना से ज़्यादा चर्चा रही नेताओं के बयानात की हर पार्टी अपने-अपने अंदाज़ में जनता के मूड को समझाने और अपने पक्ष में हवा बनाने की कोशिश में जुटी दिखी।
सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया पर ट्वीट किया “बिहार ने एक बार फिर विकास और स्थिरता के लिए मतदान किया है। NDA पर विश्वास जताने के लिए जनता का तह-ए-दिल से शुक्रिया।”
मोदी का ये बयान पूरे आत्मविश्वास से भरा था, जैसे उन्हें यक़ीन हो कि जनता ने इस बार भी ‘डबल इंजन सरकार’ पर भरोसा कायम रखा है। उन्होंने इसे “विकास की जीत” और “स्थिरता का संदेश” बताया।
वहीं दूसरी तरफ़ तेजस्वी यादव (RJD) का लहजा बिलकुल अलग था। उन्होंने पत्रकारों से कहा “ये वोट बदलाव का इशारा है। जनता बेरोज़गारी, महंगाई और भ्रष्टाचार से परेशान है। अब लोग नई दिशा और नई उम्मीद की तलाश में हैं।”
तेजस्वी के बयान से साफ़ झलकता है कि महागठबंधन को लगता है जनता इस बार सत्ता बदलने के मूड में है। उनकी बातों में एक जोश भी था और एक शिकायत भी जैसे वो कहना चाह रहे हों कि बिहार को अब नए सिरे से सोचना होगा।
इस बीच पुनीत किशोर, जो जन सुराज पार्टी के नेता हैं, उन्होंने भी अपनी बात बड़े सधे अंदाज़ में रखी। उन्होंने कहा “अब वक्त आ गया है कि बिहार को एक नया रास्ता दिखाया जाए। हमारी राजनीति को जात-पात और झगड़ों से ऊपर उठकर काम और ईमान की तरफ़ जाना होगा।”
इन तमाम बयानों से साफ़ है कि पहले चरण की वोटिंग के बाद राजनीतिक माहौल और भी गरम हो गया है। हर पार्टी अपने हिसाब से जनता की नब्ज़ टटोल रही है कौन किसकी तरफ़ झुका है, ये तो आने वाले चरण बताएँगे लेकिन इतना तो तय है कि इस बार बिहार की जनता चुप नहीं है; वो सोच-समझकर, पूरी सजगता के साथ अपने सूबे की तक़दीर लिख रही है।
किसकी सरकार बनने की संभावना?
इस बार बिहार के मैदान में मुकाबला एकदम सीधा और दिलचस्प है NDA बनाम Mahagatbandhan। एक तरफ़ हैं नितीश कुमार और बीजेपी की जोड़ी, और दूसरी तरफ़ तेजस्वी यादव के नेतृत्व में Mahagatbandhan, जिसमें आरजेडी, कांग्रेस और वाम दल साथ खड़े हैं। इन दोनों गठबंधनों के बीच असली जंग तो इन्हीं 121 सीटों से शुरू हुई है, लेकिन तस्वीर पूरी तरह साफ़ होने में अभी वक्त है।
इसके अलावा, मैदान में कुछ और खिलाड़ी भी हैं जो सियासत का हिसाब गड़बड़ा सकते हैं। जन सुराज के नेता प्रशांत किशोर (PK) ने भले ही बड़ी-बड़ी रैलियाँ की हों, मगर अब वो कुछ सीटों पर असली असर दिखा सकते हैं खासकर उन इलाकों में जहाँ लोग पारंपरिक पार्टियों से नाराज़ हैं। वहीं एलजेपी (रामविलास गुट) भी कुछ जगहों पर दलित वोट बैंक में सेंध लगा सकती है। यानी तस्वीर साफ़ तो है, लेकिन पूरी नहीं।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि गाँवों और कस्बों में Mahagatbandhan की पकड़ थोड़ी मज़बूत दिख रही है। ग्रामीण मतदाता बेरोज़गारी, शिक्षा और रोज़मर्रा की दिक्कतों से परेशान हैं, इसलिए उनका झुकाव तेजस्वी यादव की तरफ़ जाता दिख रहा है। वहीं, शहरी इलाकों और महिला मतदाताओं में एनडीए को बढ़त मिलती नज़र आ रही है। कई महिलाएँ कह रही थीं “हमने वोट विकास और सुरक्षा के नाम पर दिया है।”

सबसे दिलचस्प बात ये है कि युवा वोटर इस बार मुद्दों पर वोट कर रहा है। उसे जात-पात से ज़्यादा रोज़गार, शिक्षा और अवसरों की परवाह है। कई कॉलेज स्टूडेंट्स ने कहा कि वो अब वही सरकार चाहते हैं जो नौकरियाँ और स्किल डेवलपमेंट पर काम करे, ना कि सिर्फ़ वादे करे।
पहले चरण के बाद दोनों ही पक्ष अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं। एनडीए कह रहा है कि ये वोट जनता के “भरोसे और विकास” का सबूत है, जबकि महागठबंधन इसे “परिवर्तन की लहर” बता रहा है। दोनों की बयानबाज़ी से माहौल और भी तपा हुआ है।
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि अगर आने वाले चरणों में यही रुझान बरकरार रहा, तो सत्ता परिवर्तन की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन साथ ही वे ये भी जोड़ते हैं “नितीश कुमार और मोदी फैक्टर को हल्के में नहीं लिया जा सकता। दोनों का प्रशासनिक और सियासी अनुभव बिहार की राजनीति में अब भी एक बड़ा असर रखता है।”
यानी मुकाबला बराबरी का है कहीं भरोसे की लड़ाई है, कहीं बदलाव की। और बिहार की जनता इस बार तय कर रही है कि आने वाले पाँच सालों में किसके हाथ में अपने सूबे की बागडोर सौंपनी है।
आगे क्या? – दूसरा चरण और मतगणना
अब Bihar Election का अगला पड़ाव शुरू होने वाला है। पहले चरण की वोटिंग के बाद अब सबकी निगाहें आने वाले चरणों पर टिक गई हैं। Bihar Election दूसरा चरण 11 नवंबर 2025 को होगा, जबकि तीसरा और आख़िरी चरण 17 नवंबर 2025 को संपन्न होगा।
इसके बाद सबका इंतज़ार ख़त्म होगा 24 नवंबर 2025 को, जब मतगणना (काउंटिंग डे) के नतीजे सामने आएँगे और तय होगा कि बिहार की गद्दी पर “विकास” बैठेगा या “बदलाव”। चुनाव आयोग की ओर से इस बार बेहद सख़्त और आधुनिक इंतज़ाम किए गए हैं।
आयोग ने कहा है कि “नतीजे पूरी तरह पारदर्शी होंगे और रीयल-टाइम अपडेट्स के साथ जारी किए जाएँगे।” पहली बार बिहार में डिजिटल मॉनिटरिंग सिस्टम लागू किया गया है, जिससे वोट गिनती के हर स्तर पर नज़र रखी जा सकेगी। यानी अगर कहीं भी ज़रा-सी भी गड़बड़ी या देरी होती है, तो उसकी जानकारी तुरंत कंट्रोल रूम तक पहुँचेगी।
आयोग का कहना है कि इस बार गिनती की प्रक्रिया “एकदम साफ़ और भरोसेमंद” होगी। अब सवाल ये है कि ये Bihar Election इतना अहम क्यों माना जा रहा है? असल में, ये सिर्फ़ विधानसभा का चुनाव नहीं, बल्कि बिहार की सियासी तस्वीर को बदलने वाला मोड़ भी हो सकता है।
नितीश कुमार के लिए यह Bihar Election एक राजनीतिक परीक्षा है क्योंकि दो दशकों से सूबे की सियासत में उनका बड़ा दबदबा रहा है। लेकिन अब जनता यह देखना चाहती है कि क्या वही पुरानी राह चलेगी या कोई नई सोच सामने आएगी। उनके लिए ये “विश्वसनीयता और नेतृत्व” दोनों की परख है।
वहीं तेजस्वी यादव के लिए यह मौका है खुद को मुख्यमंत्री पद के असली दावेदार के रूप में साबित करने का। उनके समर्थकों में जबरदस्त जोश है और वे यह दिखाना चाहते हैं कि बिहार अब युवा सोच के साथ आगे बढ़ने को तैयार है।
राष्ट्रीय स्तर पर भी यह Bihar Election बेहद अहम है। राजनीतिक जानकार इसे प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता का ‘सेमी-फाइनल’ कह रहे हैं, क्योंकि 2026 के लोकसभा चुनाव से पहले यह आख़िरी बड़ा राज्य है जहाँ सीधा इम्तिहान है क्या मोदी-नितीश का भरोसा कायम रहेगा या जनता नई दिशा चुनेगी?
और अब बात करें बिहार की जनता की तो पहले चरण के नतीजों ने यह साफ़ कर दिया है कि लोकतंत्र का असली रंग बिहार में जिंदा है। 60% से ज़्यादा मतदान महज़ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि यह जनता का संदेश है कि “हम जाग चुके हैं, और अब अपनी तक़दीर खुद लिखेंगे।”
हाँ, वोटर-लिस्ट विवाद, बूथ की दिक्कतें और नेताओं के आरोप-प्रत्यारोप इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया की पारदर्शिता पर ज़रूर सवाल उठाते हैं, मगर इसके बावजूद लोगों का जोश और भागीदारी बताती है कि बिहार अब बदलाव या भरोसे किसी एक रास्ते पर साफ़-साफ़ फ़ैसला करने को तैयार है।
अब नज़रें टिकी हैं 11 नवंबर के अगले चरण पर, जहाँ एक बार फिर जनता अपने वोट से बताएगी कि उसे कौन-सा रास्ता पसंद है। और आख़िर में, 24 नवंबर को आने वाले नतीजे तय करेंगे कि बिहार की किस्मत पर अब “विकास की मुहर” लगेगी या “बदलाव की दस्तक” सुनी जाएगी।
आयोग के मुताबिक़ इस बार डिजिटल काउंटिंग सिस्टम से हर वोट की निगरानी होगी। हर विधानसभा सीट के नतीजे रीयल-टाइम में वेबसाइट और ऐप पर दिखेंगे। यानी अब कोई भी उम्मीदवार या पार्टी यह नहीं कह सकेगी कि गिनती में गड़बड़ी हुई है। चुनाव आयोग ने साफ़ कहा है कि “हम हर स्तर पर पारदर्शिता के लिए वचनबद्ध हैं।”
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अगर यही जागरूकता बनी रही, तो Bihar Election इस बार नई दिशा ले सकती है। हालाँकि “नितीश-मोदी फैक्टर” को अब भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता दोनों नेताओं की लोकप्रियता और संगठन की पकड़ गहरी है। लेकिन “बदलाव की चाह” का असर भी कम नहीं है, खासकर युवाओं और महिलाओं में।
Bihar Election सिर्फ़ सत्ता की लड़ाई नहीं, बल्कि जनता की सोच, उम्मीद और आत्मविश्वास की कहानी है। हर वोट में एक सपना छुपा है किसी के लिए बेहतर रोज़गार का, किसी के लिए शिक्षा और सुरक्षा का, तो किसी के लिए सिर्फ़ इज़्ज़त और सुने जाने का। अब सबकी नज़रें 11 और 24 नवंबर पर हैं, जहाँ ये तय होगा कि बिहार की राजनीति का नया पन्ना कौन लिखेगा विकास की कलम से या बदलाव की स्याही से।
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