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Bihar Election: नामांकन प्रक्रिया शुरू : पहले चरण की तैयारी
Bihar Election: बिहार की सियासत इन दिनों इतनी गरम है कि लगता है जैसे हवा में भी ताज़ा-ताज़ा चुनाव की खुशबू घुली हो। पसीना भी अब सोच-समझकर निकल रहा है हर बयान, हर रैली, हर चाल पर लोगों की नज़रें टिकी हैं।

चुनाव की तारीख़ों का एलान होते ही सोमवार से पूरे बिहार में हलचल मच गई है। हर पार्टी, हर गठबंधन और हर नेता अपने-अपने पत्ते खोलने लगा है। अब जनता भी इंतज़ार में है कि कौन किसके साथ जाएगा और किसकी किस्मत चमकेगी।
Bihar Election: पहले चरण की 121 सीटों पर नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। उम्मीदवारों को अपने काग़ज़ दाखिल करने के लिए 17 अक्टूबर तक का वक्त दिया गया है। उसके बाद 18 अक्टूबर को इन नामांकनों की जांच (scrutiny) होगी यानी कौन सही है, कौन बाहर। जो लोग पीछे हटना चाहें, उनके लिए आख़िरी तारीख़ 20 अक्टूबर रखी गई है।
इसके बाद Bihar Election दूसरे चरण की 122 सीटों के लिए भी प्रक्रिया शुरू होगी। वोटिंग दो फेज़ में होगी पहले 6 नवंबर को और फिर 11 नवंबर को। इसके बाद 14 नवंबर को नतीजों की गिनती होगी और उसी दिन तय होगा कि बिहार की गद्दी पर कौन बैठेगा।
नामांकन खुलते ही माहौल में एक अलग ही रौनक आ गई है। सड़कों पर पोस्टर-बैनर, सोशल मीडिया पर वीडियो, और नुक्कड़-चौराहों पर बहस हर जगह चुनाव की गूंज सुनाई दे रही है। हर दल के नेता सीटों की जोड़-घटाव में लगे हैं कौन कहाँ से लड़ेगा, किसको टिकट मिलेगा, और किसको बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा ये सब अब खुलकर सामने आ रहा है।
लालू यादव की पार्टी RJD अपनी परंपरागत ताक़त को फिर से चमकाने की कोशिश में है, वहीं नीतीश कुमार एक बार फिर अपने “सुशासन बाबू” वाले इमेज को बचाने में जुटे हैं। बीजेपी अपनी पूरी फौज के साथ मैदान में है, और नए चेहरे भी अब सियासी रंग में रंगने लगे हैं।
गाँव-गाँव में अब बस एक ही बात चल रही है “इस बार कौन आएगा?” चाय की दुकानों से लेकर चौपालों तक, हर किसी की ज़ुबान पर सियासत है। कोई कहता है “अबकी बार बदलाव चाहिए”, तो कोई कहता है “काम बोलता है”।
बिहार की ये गर्मी अब नवंबर तक और बढ़ने वाली है। आने वाले दिनों में रैलियाँ होंगी, रोड शो होंगे, और वादों की बरसात भी। मगर जनता भी अब समझदार है वो जानती है कि कौन सिर्फ़ बोलता है और कौन सच में कुछ करता है।
सियासत के इस मैदान में अब हर कदम तौलकर रखना होगा, क्योंकि इस बार मुकाबला सीधा नहीं दिलचस्प होने वाला है। और बिहार की मिट्टी, जो हमेशा राजनीति की धड़कन रही है, वो फिर एक बार इतिहास लिखने को तैयार है।सीट बंटवारे और गठबंधन जटिलताएँ
NDA – BJP & LJP बीच सौदा पक्का?
भाजपा और लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के बीच आखिरकार बात कुछ बनती नज़र आ रही है। पहले जहाँ LJP 40 सीटों पर ज़ोर दे रही थी, वहीं अब उसने अपना रुख थोड़ा नरम किया है और 25–26 सीटों पर समझौता करने के लिए तैयार दिख रही है। अभी इस बात की आधिकारिक घोषणा तो नहीं हुई है, मगर सियासी गलियारों में चर्चा जोरों पर है कि दोनों दलों के बीच बातचीत काफ़ी “सकारात्मक” माहौल में आगे बढ़ी है।
कहा जा रहा है कि ये समझौता NDA के लिए किसी बड़े राहत भरे कदम से कम नहीं है। क्योंकि पिछले कुछ हफ़्तों से सीट बँटवारे को लेकर अंदर ही अंदर खींचतान चल रही थी हर पार्टी चाहती थी कि ज़्यादा से ज़्यादा सीटें उसके हिस्से में आएँ। अब जब भाजपा और LJP में यह सहमति बनने लगी है, तो गठबंधन की तस्वीर कुछ साफ़ होती दिख रही है।
LJP पहले अपने दम पर ज़्यादा दावे कर रही थी उनका कहना था कि “हमने ज़मीनी स्तर पर काफ़ी काम किया है, इसलिए हमें पूरा हक़ है कि हमें ज़्यादा सीटें मिलें।” मगर भाजपा के नेताओं ने समझदारी दिखाते हुए तालमेल का रास्ता चुना और धीरे-धीरे बात संभाल ली। अब दोनों दलों में माहौल कुछ ठंडा हुआ है और माना जा रहा है कि जल्द ही इसकी औपचारिक घोषणा भी हो जाएगी।
दूसरी तरफ़, महागठबंधन के खेमे में हालात अभी भी कुछ उलझे हुए हैं। वामपंथी दल यानी CPI और CPI-M ने 35 सीटों की माँग रख दी है। उनका कहना है कि इस बार उन्हें चुनाव में मज़बूत हिस्सेदारी चाहिए, वरना वे अपनी राह अलग भी चुन सकते हैं। साथ ही, उन्होंने ये भी साफ़ कहा है कि तेजस्वी यादव को ही मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाया जाए।
अब यहाँ दिक्कत ये है कि कांग्रेस और RJD के बीच सीट बँटवारे को लेकर अब तक कोई ठोस समझौता नहीं हो पाया है। दोनों ही दल अपनी-अपनी पकड़ मज़बूत करने में लगे हैं। कांग्रेस चाहती है कि उसे पिछली बार से ज़्यादा सीटें मिलें, जबकि RJD मानने को तैयार नहीं। ऊपर से वामपंथी दलों की माँग ने माहौल को और पेचीदा बना दिया है।
ऐसे में, NDA जहाँ अपने गठबंधन को “मजबूत और एकजुट” दिखाने की कोशिश कर रहा है, वहीं महागठबंधन के नेताओं को अपने अहं और इच्छाओं को थोड़ा काबू में रखकर आगे बढ़ना होगा। क्योंकि जनता को अब सिर्फ़ वादे नहीं, एकजुटता और स्थिरता चाहिए।
राजनीति की इस ज़मीन पर हर कदम फूँक-फूँककर रखना पड़ता है। NDA के पास अब ये मौका है कि वो एक मज़बूत संदेश दे कि उनके बीच एकता है और वे बिहार के भविष्य के लिए तैयार हैं। वहीं महागठबंधन को यह दिखाना होगा कि उनके भीतर मतभेद नहीं, “विविधता में एकता” की ताक़त है।
अंदरखाने की बात ये भी चल रही है कि बीजेपी अपने पुराने सहयोगियों के साथ-साथ कुछ नए छोटे दलों से भी संपर्क में है, ताकि किसी भी स्थिति में उसकी सीटें या वोट शेयर पर असर न पड़े। दूसरी ओर, RJD अपने परंपरागत वोट बैंक को मज़बूत करने में जुटा है खासकर युवाओं और ग्रामीण इलाकों में।
जोरदार वादे और तीखी प्रतिक्रियाएँ
बिहार की सियासत में आज एक बड़ा धमाका हुआ, जब आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने अपने चुनावी मंच से एलान किया कि अगर महागठबंधन की सरकार बनी, तो हर परिवार को कम से कम एक सरकारी नौकरी दी जाएगी। उन्होंने पूरे जोश और आत्मविश्वास के साथ कहा, “हम सत्ता में आएंगे तो 20 दिन के अंदर इस वादे को कानूनी रूप देंगे, और 20 महीने के भीतर इसे पूरी तरह लागू कर देंगे।”
तेजस्वी के इस बयान के बाद पूरे बिहार की राजनीति जैसे गरमा गई। चाय की दुकानों से लेकर चौपालों तक, हर जगह बस एक ही चर्चा “भाई, सच में हर घर को नौकरी मिलेगी क्या?”
कांग्रेस ने तेजस्वी के इस ऐलान का पूरा समर्थन किया है। पार्टी के नेताओं ने कहा कि यह सिर्फ़ आरजेडी का नहीं, बल्कि पूरे महागठबंधन का साझा वादा है। उनका कहना है कि बिहार में बेरोज़गारी सबसे बड़ी समस्या है, और अब वक्त आ गया है कि हर परिवार के युवाओं को सम्मानजनक रोज़गार मिले।
लेकिन दूसरी तरफ़ एनडीए ने इस वादे पर ज़बरदस्त पलटवार किया है। बीजेपी और जेडीयू के नेताओं ने इसे “हवाई सपना” और “अव्यवहारिक” बताते हुए चुटकी ली है। एक नेता ने तंज कसते हुए कहा “क्या अगली बार तेजस्वी जी चाँद और मंगल पर फार्महाउस देने का वादा भी करेंगे?”
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने अंदाज़ में जवाब दिया कि उनकी सरकार ने पिछले कार्यकाल में भी रोजगार बढ़ाने के कई कदम उठाए हैं। उन्होंने कहा, “हम झूठे वादे नहीं करते, जो कहते हैं वो निभाते हैं।” नीतीश ने यह भी जोड़ा कि इस बार एनडीए जनता के सामने “विश्वसनीय वादों” के साथ उतरेगा, न कि सिर्फ़ सुर्खियाँ बटोरने वाले घोषणाओं के साथ।
तेजस्वी यादव के समर्थकों के बीच इस ऐलान को लेकर जबरदस्त उत्साह है। सोशल मीडिया पर हैशटैग #OneFamilyOneJob ट्रेंड कर रहा है। आरजेडी के कार्यकर्ता कह रहे हैं कि यह वादा सिर्फ़ चुनावी जुमला नहीं, बल्कि “गरीब और मध्यम वर्ग की उम्मीदों की रोशनी” है।
हालांकि विरोधी दलों का कहना है कि बिहार की मौजूदा आर्थिक स्थिति में इतनी बड़ी संख्या में सरकारी नौकरियाँ देना लगभग नामुमकिन है। उनका कहना है कि तेजस्वी यादव ने बिना सोचे-समझे सिर्फ़ जनता को लुभाने के लिए ये बयान दिया है।
लेकिन यह भी सच है कि बिहार में बेरोज़गारी का मसला आज हर घर की कहानी बन चुका है। लाखों युवा रोज़गार के लिए बाहर जाने को मजबूर हैं। ऐसे में अगर कोई नेता “हर घर नौकरी” का सपना दिखाता है, तो जनता का दिल जीतना मुश्किल नहीं होता।
मतदाता सूची विवाद और न्यायालय की दखल
Bihar Election की सियासत में नई हलचल मतदाता सूची पर बवाल, दल-बदल का दौर और AAP का बड़ा दांव
Bihar Election की राजनीति इन दिनों फिर से गर्म है। इस बार मुद्दा है मतदाता सूची की “स्पेशल इंटेंसिव रिवीज़न” (SIR) यानी मतदाता सूची की खास समीक्षा। इस पूरी प्रक्रिया के बाद करीब 65 लाख नाम हटाए जाने की खबर सामने आई है। निर्वाचन आयोग ने इस नई सूची को 22 साल बाद “सबसे शुद्ध” यानी “साफ़-सुथरी” लिस्ट बताया है और कहा है कि अब ये मॉडल पूरे देश के लिए मिसाल बनेगा।
लेकिन मामला यहीं खत्म नहीं हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरी प्रक्रिया पर नज़र डालते हुए कहा कि जिन लोगों के नाम इस सूची से हटाए गए हैं, उन्हें अपील करने का पूरा अधिकार दिया जाए। अदालत ने ये भी हिदायत दी कि झूठे हलफनामों (affidavits) के मामलों की ठीक से जांच की जाए, और चेतावनी दी “बहुत ज़्यादा जुनून और कम तर्क से लोकतंत्र कमजोर होता है।”
अब इस पूरी कहानी ने बिहार के चुनावी माहौल को हिला दिया है। विपक्षी दल सवाल उठा रहे हैं कि आखिर इतनी बड़ी संख्या में नाम कैसे और क्यों हटाए गए? लोग कह रहे हैं कि कहीं ये सब किसी सियासी चाल का हिस्सा तो नहीं? लोकतंत्र की साख और निष्पक्षता पर अब बहस छिड़ गई है।
इधर पार्टी की टूट-फूट और नए चेहरों का खेल भी ज़ोरों पर है। आज की बड़ी खबर ये रही कि तीन जेडीयू (JDU) नेता आरजेडी (RJD) में शामिल हो गए हैं। इससे तेजस्वी यादव के खेमे को नई ताकत मिली है। जानकारों का कहना है कि ये “मिड-मैच मोहभंग” का संकेत है यानी चुनावी बीच रास्ते में नेताओं का मन बदल जाना। शायद अब कई नेता दिल्ली की सियासत छोड़कर फिर से बिहार की ज़मीन पर ध्यान दे रहे हैं।
और इसी बीच एक और धमाका कर दिया आम आदमी पार्टी (AAP) ने। पार्टी ने साफ़ एलान कर दिया है कि वो बिहार की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में पार्टी ने कहा कि उसका फोकस होगा “शिक्षा, स्वास्थ्य और भ्रष्टाचार पर वार।”
AAP ने अपने अभियान को “काम की राजनीति” के तौर पर पेश किया है। उनका कहना है कि बिहार को अब ऐसी सरकार चाहिए जो बातें नहीं, काम करे। वो “दिल्ली मॉडल” को बिहार में लाने की तैयारी में हैं।
सियासी जानकार मानते हैं कि अगर AAP ने पूरा दम लगाया, तो ये चुनावी समीकरण को हिला सकता है। क्योंकि अब मुकाबला सिर्फ NDA और महागठबंधन के बीच नहीं रहेगा एक तीसरा मोर्चा भी मैदान में उतर आया है।
चुनाव आयोग की तैयारियाँ और नई व्यवस्थाएँ
Bihar Election 2025: नई तकनीक, नए वादे और जनता की नई सोच
बिहार में इस बार चुनावी माहौल कुछ अलग ही रंग में रंगा हुआ है। निर्वाचन आयोग ने मतदान प्रक्रिया को ज्यादा पारदर्शी और आसान बनाने के लिए 17 नई पहलें (initiatives) शुरू की हैं। इनमें से एक सबसे दिलचस्प सुविधा है mobile deposit facility, जो मतदान केंद्रों के बाहर दी जाएगी। यानी अब वोटर को अपने मोबाइल या अन्य सामान को लेकर लंबी लाइन में खड़ा नहीं रहना पड़ेगा। इससे वोट डालना पहले से ज्यादा आसान और सुविधाजनक बन जाएगा।
आयोग का दावा है कि इस बार की मतदाता सूची को पूरी तरह “शुद्ध” किया गया है। पिछले कई दशकों से चली आ रही गड़बड़ियों को ठीक करने की कोशिश की गई है, ताकि जनता को बेहतर अनुभव मिले और हर वोट सही हाथ में जाए। आयोग का कहना है कि ये सुधार न सिर्फ चुनाव को निष्पक्ष बनाएंगे, बल्कि बिहार को “मतदान प्रबंधन” का एक उदाहरण भी बनाएंगे।
इस बीच, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने आत्मविश्वास भरे अंदाज़ में कहा कि इस बार भी एनडीए की सरकार बनेगी। उन्होंने कहा कि बिहार “विकास और सुशासन” का प्रतीक बन चुका है और जनता फिर से एनडीए पर भरोसा जताएगी। उनके मुताबिक, ये नई तकनीकी और प्रशासनिक पहलें चुनावी मशीनरी को और भरोसेमंद, आधुनिक और पारदर्शी बनाएंगी।
लेकिन जनता की सोच अब सिर्फ तकनीक तक सीमित नहीं रही। इस बार रोज़गार और सरकारी नौकरियाँ सबसे बड़ा मुद्दा बन गए हैं। तेजस्वी यादव का “One Family, One Job” वाला वादा लोगों के दिल में जगह बना रहा है। बेरोज़गार युवाओं और मध्यम वर्ग के परिवारों के लिए ये नारा उम्मीद की किरण जैसा है।
वहीं, सीमांचल क्षेत्र में एक और बहस गर्म है “घुसपैठिया” टैग को लेकर। कई मुस्लिम इलाकों में लोगों के बीच डर और असुरक्षा का माहौल बन गया है। उन्हें लग रहा है कि यह राजनीतिक बयानबाज़ी कहीं न कहीं उन्हें निशाना बना रही है। ऐसे में, माहौल थोड़ा तनावपूर्ण भी हो गया है।
उधर, दलों में प्रत्याशियों को चुनने की प्रक्रिया पर भी खास नज़रें हैं। इस बार लोगों की मांग है कि टिकट स्थानीय चेहरों और परिचित नेताओं को मिले ऐसे लोग जो वाकई जनता को जानते हों, उनकी समस्याएँ समझते हों और उनके बीच रहते हों। जनता को अब “दिल से जुड़े नेता” चाहिए, सिर्फ़ भाषण देने वाले नहीं।
इसके साथ ही नए और छोटे दलों जैसे AAP और जन सुराज (Jan Suraaj) को अब अपना मौका दिख रहा है। जनता का एक तबका पारंपरिक दलों से थोड़ा उकताया हुआ नज़र आ रहा है। AAP ने “शिक्षा, स्वास्थ्य और भ्रष्टाचार विरोधी” एजेंडे के साथ मैदान में उतरकर मुकाबले को और दिलचस्प बना दिया है।
इस चुनाव में सोशल मीडिया भी एक बड़ा हथियार बन चुका है। व्हाट्सएप ग्रुप्स, फेसबुक पेज, इंस्टा रील्स और यूट्यूब वीडियो सब जगह चुनावी प्रचार का शोर है। अब नेता सिर्फ़ मंचों पर नहीं, मोबाइल स्क्रीन पर भी दिखाई दे रहे हैं।
बिहार की जनता इस बार पहले से ज्यादा सजग और समझदार दिख रही है। लोग अब सिर्फ़ वादों पर भरोसा नहीं कर रहे, बल्कि काम करने की क्षमता, निष्ठा और ईमानदारी को भी कसौटी पर रख रहे हैं।
कुल मिलाकर, इस बार का चुनाव केवल सत्ता की लड़ाई नहीं ये जनता की उम्मीदों और भरोसे की परीक्षा है। और बिहार की धरती, जो हमेशा से राजनीति का केंद्र रही है, एक बार फिर इतिहास लिखने की तैयारी में है।अब यह तो कुछ ही दिनों में समय बताएगा कि बिहार में सरकार किसकी बनेगी, कौन जनता का दिल जीतेगा और किसे अपने वादे निभाने का मौका मिलेगा। आप बने रहें हमारे साथ Info Source News पर Bihar Election की ताज़ा खबरों के लिए धन्यवाद |
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