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Amit Shah का चुनावी भाषण और Bihar Election में “जंगली राज बनाम सुशासन”
Bihar Election इस वक्त एक नए राजनीतिक युगांत के मोड़ पर खड़ी नज़र आ रही है। जैसे-जैसे Bihar Election नज़दीक आ रहे हैं 6 और 11 नवंबर को वोट डाले जाने हैं माहौल में गरमाहट और जुबानी जंग दोनों बढ़ते जा रहे हैं।
हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री Amit Shah ने बिहार की ज़मीन से एक बड़ी रैली को संबोधित करते हुए साफ़ कहा कि “यह चुनाव बिहार की किस्मत तय करेगा जंगलराज या सुशासन, इनमें से एक को चुनना है।”
यानी सीधा सवाल जनता के सामने क्या आप फिर से उस दौर में लौटना चाहते हैं, जब कानून-व्यवस्था नाम की कोई चीज़ नहीं थी, या फिर उस रास्ते पर चलना चाहते हैं जहाँ विकास, रोज़गार और स्थिरता की गारंटी हो?
बिहार की 243 विधानसभा सीटों पर दो चरणों में मतदान होना है पहला चरण 6 नवंबर को और दूसरा 11 नवंबर को। नतीजे 14 नवंबर को आएंगे। इन तारीख़ों के बीच पूरा राज्य एक राजनीतिक रणभूमि में बदल चुका है हर गली, हर चौपाल पर सिर्फ एक ही चर्चा है: “अबकी बार कौन?”
इस बार का मुकाबला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) और महागठबंधन (महागठबन्धन) के बीच सीधा और तीखा है। एक तरफ़ NDA, जो सुशासन और विकास की बात कर रहा है, तो दूसरी ओर महागठबंधन, जो बेरोज़गारी, महँगाई और जन-समस्याओं को लेकर सरकार पर वार कर रहा है।
Amit Shah ने अपने भाषण में ज़ोर देकर कहा कि “बिहार ने जब-जब एनडीए को मौका दिया, तब-तब यहाँ सड़कें बनीं, बिजली पहुँची, गाँवों में स्कूल और अस्पताल खुले। लेकिन जब सत्ता कुछ लोगों के हाथों में गई, तब अपराध बढ़ा, भ्रष्टाचार फैला और जनता डर के साए में जीने लगी।”
Amit Shah का इशारा साफ़ था उन्होंने “जंगलराज” शब्द का इस्तेमाल करते हुए नीतीश कुमार और एनडीए के दौर को “स्थिरता और सुरक्षा का समय” बताया। शाह ने कहा, “बिहार को अब तय करना है क्या उसे फिर वही पुराना अंधकार चाहिए या एक ऐसा भविष्य जहाँ बच्चों के हाथों में बंदूक नहीं, किताबें हों।”
लोगों की भीड़ में जोश था। रैली में Amit Shah ने राज्य के विकास का ज़िक्र करते हुए कहा कि मोदी सरकार ने बिहार को हर स्तर पर मज़बूत करने की कोशिश की है चाहे वह सड़क और रेल नेटवर्क हो, गाँव-गाँव में बिजली-पानी पहुँचाना हो या युवाओं के लिए रोजगार के अवसर बनाना।
Amit Shah के भाषण के मुख्य बिंदु
बिहार की सियासत में इस वक्त माहौल पूरी तरह चुनावी रंग में रंग चुका है। हर गली, हर नुक्कड़ पर अब सिर्फ एक ही चर्चा है “जंगलराज या सुशासन?” इसी बहस को और तेज़ कर दिया है केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की हालिया रैली ने, जहाँ उन्होंने साफ़-साफ़ कहा “अब बिहार की जनता को तय करना है कि राज्य की बागडोर किन हाथों में होनी चाहिए उन हाथों में जिनसे 15 साल तक जंगलराज फैला, या उन हाथों में जिनसे विकास और अमन आया।”

Amit Shah का यह बयान सिर्फ एक चुनावी हमला नहीं था, बल्कि एक स्पष्ट संदेश था — कि एनडीए अपने आप को “सुशासन” और “विकास” की पहचान के तौर पर पेश करना चाहता है।
एनडीए की पोज़िशनिंग: “सुशासन” का ब्रांड
शाह ने अपने भाषण में कहा कि नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी की जोड़ी ने बिहार में पिछले सालों में तरक़्क़ी की नई मिसालें क़ायम की हैं। सड़कों से लेकर बिजली, शिक्षा से लेकर महिलाओं की सुरक्षा तक हर क्षेत्र में सुधार हुआ है।
उन्होंने कहा कि एनडीए का गठबंधन पाँच दलों का है जिसे उन्होंने “पाँच पांडवों” की मिसाल दी। यानी यह संकेत कि एनडीए के भीतर एकजुटता और मज़बूती है, जबकि विपक्ष के खेमे में आपसी मतभेद और अविश्वास है।
Amit Shah ने कहा, “हमारे गठबंधन में एक मक़सद है बिहार को विकसित बनाना। लेकिन वहाँ (विपक्ष में) हर नेता सिर्फ अपना स्वार्थ देख रहा है।” उनका यह बयान साफ़ तौर पर रणनीतिक संदेश था कि एनडीए मज़बूत, संगठित और जनता के हित में काम करने वाला गठबंधन है।
विपक्ष पर हमला: “फिर से जंगलराज की तैयारी”
Amit Shah ने महागठबंधन पर करारा हमला बोलते हुए कहा कि “विपक्ष बिहार को फिर उसी अंधकार के दौर में ले जाने की तैयारी कर रहा है।” उन्होंने सवाल उठाया “अगर ये लोग सत्ता में आए तो क्या फिर से माफ़िया-राज लौटेगा? क्या फिर से अपराध, हत्याएँ और डर का माहौल बनेगा? क्या फिर से संविधान की मर्यादा टूटी जाएगी?”
इस तरह Amit Shah ने कानून-व्यवस्था और सुरक्षा के मुद्दे को अपने प्रचार का मुख्य केंद्र बना दिया है। उनकी पूरी रैली में यह संदेश बार-बार दोहराया गया कि “एनडीए शासन में जनता भयमुक्त है, लेकिन विपक्ष आने पर डर और अराजकता लौट आएगी।” उनके शब्दों में एक चुनौती भी थी और चेतावनी भी कि अगर जनता ने ग़लत फैसला लिया, तो “वो दिन” फिर लौट सकते हैं जिन्हें लोग भूलना चाहते हैं।
मतदाताओं से भावनात्मक अपील
Amit Shah ने सीधे जनता से मुख़ातिब होकर कहा: “आपको तय करना है क्या आप विकास, अमन और रोज़गार के रास्ते पर चलना चाहते हैं, या फिर उस दौर में लौटना चाहते हैं जहाँ अराजकता, डर और अस्थिरता का बोलबाला था?”
उनकी यह बात सिर्फ राजनीति नहीं, एक भावनात्मक अपील थी। उन्होंने विकास को “उम्मीद” और “स्थिरता” के रूप में पेश किया, जबकि जंगलराज को “अंधकार और डर” के प्रतीक के रूप में बताया।
लोगों के बीच यह बयान असर कर रहा है खासकर युवाओं और महिलाओं में। कई जगहों पर लोग कह रहे हैं कि “बात तो सही है, अब बिहार को पीछे नहीं जाना चाहिए।”
अगर सियासत की भाषा में कहा जाए तो यह चुनाव भरोसे की जंग बन चुका है। एनडीए चाहता है कि जनता उनके “विकास के मॉडल” पर भरोसा करे, जबकि विपक्ष यह साबित करने में लगा है कि एनडीए के वादे सिर्फ़ काग़ज़ों तक सीमित हैं।
लेकिन Amit Shah का अंदाज़ स्पष्ट है वे हर भाषण में यह माहौल बना रहे हैं कि “यह चुनाव सिर्फ सत्ता बदलने का नहीं, सोच और सिस्टम बदलने का है।” उनकी जुबान में जो जोश है, उसमें राजनीति से ज़्यादा भावनात्मक अपील झलकती है “हमने बिहार को आगे बढ़ाया है, और अब जनता को तय करना है कि वो आगे बढ़ना चाहती है या पीछे लौटना।”
बिहार की जनता का मूड
गाँवों और कस्बों में अब चर्चा का लहजा बदल रहा है। लोग कहते हैं “नीतीश का काम ठीक है, लेकिन बेरोज़गारी अभी भी बड़ी समस्या है।” दूसरी ओर कुछ लोग कहते हैं “कम से कम डर तो नहीं है, पहले तो शाम के बाद घर से निकलना मुश्किल था।”
यानी तस्वीर पूरी तरह साफ़ नहीं है, लेकिन इतना तय है कि शाह की अपील “जंगलराज बनाम सुशासन” के रूप में एक भावनात्मक नैरेटिव बन चुकी है जो मतदाताओं के ज़ेहन में गूंज रही है।
इस भाषण का राजनीतिक महत्व
बिहार के इस बार के चुनाव में माहौल बिल्कुल अलग दिखाई दे रहा है। अब मुकाबला सिर्फ जात-पात या सामाजिक समीकरणों का नहीं रह गया है, बल्कि “विकास” इस बार का असली मुद्दा बन चुका है।
अमित शाह और एनडीए की रैलियों से यह साफ़ झलक रहा है कि वे बिहार की राजनीति को “विकास-केंद्रित” दिशा में ले जाना चाहते हैं यानी अब बात सिर्फ कौन किस जाति का है, इस पर नहीं, बल्कि कौन राज्य को आगे ले जा सकता है, इस पर होनी चाहिए।
विकास-केंद्रित चुनावी रणनीति
Amit Shah ने अपने भाषणों में बार-बार यह बात दोहराई कि एनडीए की राजनीति “काम की राजनीति” है, न कि “बयानबाज़ी की।” उनके अनुसार, नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बिहार ने कई क्षेत्रों में तरक़्क़ी की है सड़कें बनीं, बिजली पहुँची, शिक्षा और स्वास्थ्य में सुधार हुआ, और गाँवों तक योजनाओं का असर दिखा।

उन्होंने कहा, “अब बिहार को उस दौर से बाहर आना है जब चुनाव सिर्फ जातियों की गिनती पर लड़े जाते थे। अब ज़रूरत है विकास की गिनती करने की।” इस तरह की बातें यह दिखाती हैं कि एनडीए खुद को “विकास का प्रतीक” बनाना चाहता है। उनका मक़सद साफ़ है बिहार के मतदाताओं को यह महसूस कराना कि “हमने किया है और आगे भी करेंगे।”
मतदाता-मानस और प्रतीकात्मक लड़ाई
Amit Shah ने अपने भाषण में “जंगलराज” जैसे शब्द का इस्तेमाल किया, जो सिर्फ एक राजनीतिक आरोप नहीं, बल्कि एक प्रतीक है इस शब्द में भय, अराजकता और बीते हुए डरावने दौर की याद छिपी है। लोगों के ज़ेहन में “जंगलराज” का मतलब है बिना कानून का राज, अपराध और अस्थिरता।
इसके ठीक उलट “सुशासन” और “विकास” जैसे शब्द भविष्य की उम्मीदों को जगाते हैं। इन शब्दों में रोशनी, आशा, रोज़गार, सुरक्षा और बेहतर कल की झलक है।
चुनौतियाँ और संभावित असर
बिहार के चुनावी माहौल में जहाँ एक तरफ “सुशासन बनाम जंगलराज” की बहस चल रही है, वहीं दूसरी ओर युवाओं की बेरोज़गारी, मतदाता सूची विवाद और बारिश से बिगड़ा प्रचार जैसे मुद्दे भी केंद्र में आ गए हैं। ये ऐसे मसले हैं जो सीधे-सीधे जनता की ज़िंदगी और उनके वोटिंग मूड को प्रभावित कर सकते हैं।
युवाओं की बेरोज़गारी सबसे बड़ा दर्द
बिहार के नौजवानों के बीच बेरोज़गारी इस वक्त सबसे बड़ी चिंता बन चुकी है। एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, 15 से 29 साल की उम्र के युवाओं में बेरोज़गारी की दर 9.9% तक पहुँच चुकी है। इसका मतलब यह है कि हर 10 में से लगभग 1 युवा काम की तलाश में भटक रहा है।
विपक्षी दल इस मुद्दे को ज़ोर-शोर से उठा रहे हैं। उनका कहना है कि बिहार के नौजवानों को सिर्फ़ वादे मिले हैं, रोजगार नहीं। तेजस्वी यादव ने तो यहाँ तक कहा, “सरकार ने हर साल 10 लाख नौकरियों का वादा किया था, लेकिन आज भी लाखों युवा अपने गाँवों में खाली बैठे हैं।”
दूसरी तरफ़ एनडीए का दावा है कि उन्होंने कई योजनाएँ शुरू की हैं स्किल डेवलपमेंट, इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग और लोकल एम्प्लॉयमेंट स्कीम्स लेकिन विपक्ष इन उपलब्धियों को नज़रअंदाज़ कर रहा है। फिर भी, ज़मीनी हकीकत यह है कि युवा वर्ग के अंदर नौकरी और भविष्य को लेकर बेचैनी बढ़ती जा रही है।
मतदाता सूची और SIR विवाद
विपक्ष ने एक और गंभीर मुद्दा उठाया है SIR यानी Special Intensive Revision का। विपक्ष का आरोप है कि इस प्रक्रिया के दौरान कई असली वोटरों के नाम मतदाता सूची से हटा दिए गए हैं। उनका कहना है कि “यह लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ है, जिससे जनता का भरोसा कमजोर हो सकता है।”
कई विपक्षी नेताओं ने चुनाव आयोग से शिकायत की है कि ग़लतियों की वजह से लाखों लोगों को मतदान का अधिकार नहीं मिल पाएगा। यह मामला अब चुनावी बहस का अहम हिस्सा बन चुका है, क्योंकि मतदाता सूची से नाम हटना किसी भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए बड़ा सवाल है।
NDA की ओर से हालांकि यह कहा जा रहा है कि SIR प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी है, और जो भी नाम हटाए गए हैं, वे अपूर्ण या दोहराए गए रिकॉर्ड थे। फिर भी, विपक्ष इस मसले को “जनता की आवाज़ दबाने की साज़िश” के रूप में पेश कर रहा है।
विपक्ष की विश्वसनीयता पर अमित शाह का सवाल
विपक्षी महागठबंधन के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है विश्वसनीयता। जनता के बीच यह धारणा बन रही है कि विपक्ष “सिर्फ़ विरोध की राजनीति” कर रहा है, विकल्प की राजनीति नहीं। लोगों का कहना है कि “सरकार की आलोचना तो हर कोई कर सकता है, लेकिन समाधान कौन देगा?”
Amit Shah ने इसी बात को निशाना बनाते हुए कहा कि, “विपक्ष सिर्फ़ बोलता है, काम नहीं करता। बिहार को अब ऐसे नेताओं की ज़रूरत है जो सिर्फ़ बातें नहीं, विकास की योजना लेकर आएँ।”
महागठबंधन के नेताओं के लिए यह साबित करना ज़रूरी हो गया है कि वे सिर्फ़ सरकार के खिलाफ नहीं, बल्कि बिहार के भविष्य के लिए एक ठोस विकास मॉडल भी रखते हैं। अगर वे ऐसा नहीं कर पाए, तो उनकी पूरी मुहिम “विरोध के नाम पर विरोध” बनकर रह जाएगी।
विपक्ष की चुनौती: सिर्फ बातें नहीं, सबूत चाहिए
अब चुनौती विपक्षी दलों के सामने है। अमित शाह ने सीधा तंज कसते हुए कहा कि विपक्ष के पास “काम का कोई रिकॉर्ड नहीं है, बस आरोपों का पुलिंदा है।” उन्होंने कहा, “जो लोग हर बार सिर्फ दूसरों पर उंगली उठाते हैं, वो अपने शासन का एक भी उदाहरण नहीं दे पाते।”
यानी अब विपक्ष को जनता के सामने विकल्प नहीं, सबूत पेश करने होंगे। सिर्फ यह कहना कि “हम बेहतर हैं” काफी नहीं होगा; उन्हें यह दिखाना पड़ेगा कि उनके पास भी सुशासन और विकास का कोई ठोस मॉडल है।
राजनीतिक विश्लेषकों का भी मानना है कि बिहार के मतदाता अब सिर्फ नारों से नहीं बहकते, वे काम और नीयत दोनों देखते हैं। इसलिए, विपक्ष को अब यह साबित करना होगा कि वे “पुराने जंगलराज” की छवि से अलग हैं और भविष्य के लिए कोई ठोस योजना रखते हैं।
जनता का मूड और ज़मीनी असर
गाँवों और कस्बों में लोग अब खुलकर कहने लगे हैं कि “बेरोज़गारी बहुत बढ़ गई है, लेकिन कानून-व्यवस्था भी जरूरी है।” कुछ लोग कहते हैं “हम काम चाहते हैं, पर शांति भी चाहिए।” यानी जनता अब समझदारी से सोच रही है उसे ना सिर्फ़ रोज़गार चाहिए, बल्कि स्थिर शासन भी चाहिए।
Bihar Election में अब हर मुद्दा चाहे बेरोज़गारी हो, वोटर लिस्ट विवाद या बारिश से बाधित प्रचार सब एक-दूसरे से जुड़कर एक बड़ा चुनावी नैरेटिव बना रहे हैं।
और इस नैरेटिव के केंद्र में है जनता की उम्मीदें, ग़ुस्सा और बदलते मिज़ाज की कहानी।
निर्णायक भूमिका युवा, नए वोटर और प्रवासी मज़दूर
Amit Shah का हालिया भाषण सिर्फ़ एक चुनावी रैली नहीं था, बल्कि एक बड़ा सियासी पैग़ाम था एक ऐसा संदेश जो ये बताने की कोशिश कर रहा था कि बिहार का चुनाव सिर्फ़ सरकार बदलने का नहीं, बल्कि दिशा तय करने का है। उनके लहजे में जो बात थी, वो साफ़ इशारा कर रही थी कि अब लड़ाई सिर्फ़ कुर्सी की नहीं, बल्कि बिहार के भविष्य की तस्वीर तय करने की है।
Amit Shah ने अपने भाषण में “जंगलराज” को एक छवि और प्रतीक के रूप में पेश किया यानी ऐसा दौर जिसे बिहार को अब पीछे छोड़ देना चाहिए। उन्होंने कहा कि बिहार को अब “डर और अराजकता” नहीं, बल्कि विकास और सुशासन की राह चुननी है।
उनका मक़सद था लोगों को ये एहसास दिलाना कि मतदान का मतलब सिर्फ़ वोट डालना नहीं, बल्कि राज्य की दिशा तय करना है। शाह ने जनता से भावनात्मक लहजे में अपील की कि “बिहार को अब उस दौर में नहीं लौटना चाहिए जहाँ अंधेरा था, बल्कि उस रास्ते पर चलना चाहिए जहाँ उजाला, रोज़गार और तरक़्क़ी है।”
उनकी इस अपील में एक रणनीतिक सोच भी छिपी थी विकास को वोट का केंद्र बनाना और विपक्ष को “पुराने सिस्टम” का प्रतीक दिखाना। लेकिन चुनौती आसान नहीं हालाँकि Amit Shah का यह संदेश असरदार ज़रूर था, पर यह कहना मुश्किल है कि इसका सीधा असर मतदाताओं पर कितना पड़ेगा। क्योंकि बिहार के सामने अब भी कई बड़ी चुनौतियाँ खड़ी हैं
बेरोज़गारी, जो युवाओं की सबसे बड़ी समस्या बन चुकी है, मतदाता-विश्वास की कमी, जिसे लेकर विपक्ष लगातार सवाल उठा रहा है, प्रशासनिक प्रक्रियाओं की धीमी रफ़्तार, और ऊपर से मौसम की मार, जिसने कई जगहों पर चुनावी प्रचार को प्रभावित किया है। इन सबके बीच यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या “विकास की बात” ज़मीनी हकीकत से तालमेल बिठा पाती है या नहीं।
इस बार बिहार के चुनाव में युवा वर्ग, पहली बार वोट देने वाले, और प्रवासी मज़दूर बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। युवाओं में उत्सुकता है, पर साथ ही नौकरी और भविष्य को लेकर बेचैनी भी। जो नौजवान पिछले कुछ सालों में रोज़गार की तलाश में दिल्ली, पंजाब या मुंबई गए थे, उनमें से बहुत से अब बिहार लौट आए हैं और अब वे अपने वोट से बदलाव की उम्मीद कर रहे हैं।
अगर Amit Shah भाषण की गहराई में जाएँ, तो उसका मूल संदेश यही था कि यह सिर्फ़ एक चुनाव नहीं, बल्कि एक दिशा तय करने का पल है। उन्होंने कहा था “यह वोट बिहार के अगले पाँच साल नहीं, बल्कि उसकी आने वाली पीढ़ियों की तक़दीर तय करेगा।”
वाक़ई, अगर कोई कहे कि “भाई, यह सिर्फ़ वोट नहीं यह दिशा-निर्देशन है”, तो बात बिल्कुल सही लगती है। क्योंकि इस बार का मतदान यह तय करेगा कि बिहार अतीत के डर से बाहर निकलता है या भविष्य के विकास को गले लगाता है।
अब सबकी नज़रें 6 और 11 नवंबर पर हैं, जब बिहार की 243 सीटों पर वोटिंग होगी। और 14 नवंबर को जब नतीजे आएँगे, तब साफ़ होगा कि बिहार की जनता ने किस रास्ते को चुना क्या उसने “जंगलराज की परछाई” को पीछे छोड़ दिया, या “विकास की गाड़ी” को और तेज़ी से आगे बढ़ा दिया।
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