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Bihar Election 2025: NDA को Jitan Ram Manjhi की चेतावनी
बिहार चुनाव 2025 का माहौल अब गर्मी पकड़ चुका है। सियासी गलियारों में चर्चाएँ तेज़ हैं और हर पार्टी अपनी पकड़ मजबूत करने में जुटी हुई है। इसी बीच NDA गठबंधन के अंदर सीट बंटवारे को लेकर बड़ी हलचल मच गई है। हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) के मुखिया और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री Jitan Ram Manjhi ने खुले शब्दों में चेतावनी दे डाली है।

मांझी का कहना है कि उनकी पार्टी के साथ गठबंधन में नाइंसाफी की जा रही है। उन्हें लगता है कि NDA ने HAM को “कमतर” समझ लिया है और अगर ऐसा ही चलता रहा, तो इसके गंभीर नतीजे हो सकते हैं।
बीजेपी और जेडीयू के बीच कई हफ्तों से सीट बंटवारे की बातचीत चल रही थी। आखिरकार जो फॉर्मूला सामने आया, उसमें बीजेपी और जेडीयू को 101-101 सीटें, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को 29 सीटें, जबकि रालोजपा और HAM को सिर्फ 6-6 सीटें दी गईं।
बस यहीं से मांझी की नाराज़गी खुलकर सामने आ गई। उन्होंने इस बंटवारे को “बेहद असंतुलित” बताया और कहा कि उनकी पार्टी को कम से कम 15 सीटें मिलनी चाहिए थीं जो उनकी सामाजिक और राजनीतिक ताकत के हिसाब से बिलकुल जायज़ मांग है।
मांझी ने ये भी साफ कह दिया कि अगर HAM को इज़्ज़त नहीं दी गई, तो वे चुनावी मैदान से किनारा करने का फैसला कर सकते हैं। उनकी यह बात अब NDA के लिए सिरदर्द बन गई है, क्योंकि मांझी का असर दलित और पिछड़े वर्गों में काफी गहरा है।
बिहार की राजनीति में मांझी को “किंगमेकर” की भूमिका में देखा जाता है। उनकी पार्टी भले छोटी हो, लेकिन उसका जनाधार मज़बूत है। इसलिए अगर HAM अलग राह पकड़ती है, तो NDA के वोटों में बड़ी सेंध लग सकती है।
अब सारा मामला BJP और JDU के कोर्ट में है क्या वो मांझी की नाराज़गी दूर कर पाएँगे, या फिर HAM गठबंधन से अलग होकर नया सियासी मोर्चा बनाएगी? एक बात तो तय है मांझी की ये नाराज़गी अब सिर्फ सीटों तक सीमित नहीं रही, बल्कि बिहार की सियासत में तूफ़ान ला सकती है।
HAM की चेतावनी का NDA पर असर
जीतन राम मांझी की इस चेतावनी ने NDA के अंदर हलचल मचा दी है। बीजेपी और जेडीयू दोनों के बड़े-बड़े नेता अब मांझी साहब को मनाने में जुट गए हैं। खबरों के मुताबिक, बीजेपी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने भी खुद मांझी से बातचीत की है, ताकि हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) को गठबंधन में बनाए रखा जा सके।
हालांकि, अभी तक यह साफ नहीं हुआ है कि मांझी की मांगे मानी गई हैं या नहीं। कोई आधिकारिक एलान भी नहीं हुआ है। लेकिन अंदरखाने की खबरें बता रही हैं कि दोनों तरफ से बातचीत लगातार चल रही है।
NDA के लिए यह हालात थोड़े टेंशन वाले हैं, क्योंकि मांझी की नाराज़गी अगर लंबी चली, तो इसका असर सीधे दलित और पिछड़े तबकों के वोट बैंक पर पड़ सकता है। बिहार की सियासत में इन वोटों की अहमियत किसी से छुपी नहीं है ये वही तबका है जो कई सीटों का फैसला तय करता है।
अब बीजेपी और जेडीयू दोनों कोशिश कर रहे हैं कि मांझी साहब को किसी तरह मना लिया जाए और बात सुलझ जाए। क्योंकि अगर HAM ने गठबंधन से किनारा किया, तो इसका नुकसान सीधा एनडीए की झोली से वोटों के रूप में निकलेगा।
राजनीतिक गलियारों में इस वक्त बस यही चर्चा है “क्या मांझी मानेंगे या NDA से दूरी बना लेंगे?” जवाब जो भी हो, इतना तय है कि मांझी की यह चाल बिहार चुनाव 2025 की कहानी का सबसे बड़ा मोड़ साबित हो सकती है।
चुनावी समीकरण और संभावित प्रभाव
HAM की अहमियत को नजरअंदाज करना NDA के लिए बड़ा रिस्क बन सकता है। क्योंकि हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) की पकड़ दलितों और पिछड़े तबकों में काफी मजबूत है। अगर HAM इस बार चुनाव में NDA के साथ नहीं उतरती, तो वोटों का बड़ा हिस्सा खिसक सकता है और ये नुकसान बीजेपी-जेडीयू गठबंधन को भारी पड़ सकता है।
विपक्षी महागठबंधन (INDIA) इसी मौके को भुनाने की कोशिश में है। वो HAM के साथ किसी संभावित गठबंधन के संकेत दे रहा है, जिससे NDA की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं।
अब अगर बात करें HAM की सियासी ताकत की, तो ये पार्टी बिहार की राजनीति में अपनी ठोस जगह बना चुकी है। जीतन राम मांझी को दलित समाज का बड़ा लीडर माना जाता है, और उनकी पार्टी को पिछड़े वर्गों में अच्छी खासी लोकप्रियता हासिल है।
HAM का वोट बैंक ज़्यादातर दक्षिण बिहार और उन इलाकों में फैला है जहां पहले से महागठबंधन का असर रहा है। ऐसे में अगर HAM NDA से अलग होती है या विपक्षी गठबंधन का हिस्सा बनती है, तो पूरे चुनावी समीकरण बदल सकते हैं।
कह सकते हैं कि मांझी की पार्टी किसी भी गठबंधन के लिए “किंगमेकर” साबित हो सकती है। उनके साथ या खिलाफ जाना दोनों ही सूरतों में चुनाव का पासा पलट सकता है। इसलिए NDA के लिए अब ये ज़रूरी हो गया है कि वो HAM को मनाए और अपनी तरफ बनाए रखे, वरना ये गलती सियासी तौर पर बहुत महंगी पड़ सकती है।
चुनावी मैदान में अब बस एक सवाल घूम रहा है “क्या मांझी NDA के साथ रहेंगे या पलड़ा विपक्ष की तरफ झुकेगा?” जिसका जवाब ही तय करेगा कि बिहार की गद्दी पर कौन बैठेगा।
NDA में संतुलन बनाने की चुनौती
NDA के लिए सबसे बड़ी चुनौती इस वक्त यही है कि अपने पूरे गठबंधन को एकजुट और मजबूत बनाए रखा जाए। सभी दलों के बीच तालमेल और भरोसा कायम रहना बहुत ज़रूरी है। खासकर HAM की नाराज़गी को दूर करना, वरना ये गुस्सा चुनावी मैदान में NDA के लिए सिरदर्द बन सकता है।
अगर जीतन राम मांझी की पार्टी को सीटों का सही बँटवारा नहीं मिला, तो ये मामला गंभीर हो सकता है। बीजेपी और जेडीयू दोनों ही चाहते हैं कि HAM उनके साथ बना रहे, मगर सीटों की हिस्सेदारी को लेकर अभी भी मनमुटाव और असहमति की खाई नज़र आ रही है। यही खींचतान चुनाव से पहले बिहार की सियासत में नया ड्रामा और हलचल पैदा कर सकती है।
जहाँ तक मांझी साहब की बात है, उनकी चेतावनी अब सिर्फ एक बयान नहीं रह गई बल्कि एक सीधा सियासी मैसेज है। उन्होंने साफ कह दिया है कि अगर NDA ने उनकी पार्टी को नजरअंदाज किया, तो नतीजे बहुत गंभीर होंगे। ये कोई दिखावटी धमकी नहीं, बल्कि HAM की असली राजनीतिक ताकत का इज़हार है।
मांझी की ये बात सिर्फ NDA तक सीमित नहीं रही, इसका असर जनता और मीडिया दोनों में दिखाई दे रहा है। राजनीतिक हलकों में अब चर्चाएँ तेज़ हैं कि क्या HAM सच में NDA छोड़ सकता है?
कई सियासी विश्लेषक तो साफ कह रहे हैं कि मांझी का मूड अगर बदल गया, तो बिहार के चुनावी समीकरण पूरी तरह से हिल सकते हैं। दलित और पिछड़े तबके में उनकी पकड़ को देखते हुए, NDA के लिए ये मामला हल्के में लेने लायक नहीं है।
जनता पर असर और सामाजिक कारक
बिहार की जनता में दलित और पिछड़े तबकों का बड़ा हिस्सा हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) के साथ जुड़ा हुआ है। मांझी साहब का इन वर्गों में खास असर माना जाता है। अगर HAM नाराज़ होती है या चुनाव में हिस्सा नहीं लेती, तो इसका सीधा असर NDA के वोट बैंक पर पड़ेगा। कई वोटर का रुझान बदल सकता है, और ये बात बीजेपी-जेडीयू गठबंधन के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है।
विपक्षी महागठबंधन (INDIA) तो पहले से ही इसी मौके की तलाश में है। वो पूरी कोशिश करेगा कि HAM की नाराज़गी का फायदा उठाकर उसे अपने पाले में खींच ले। अगर ऐसा हुआ, तो बिहार की सियासत में बड़ा उलटफेर देखने को मिल सकता है जो सामाजिक और राजनीतिक दोनों संतुलनों को हिला देगा।
जीतन राम मांझी की हाल की चेतावनी NDA के लिए किसी “अलार्म बेल” से कम नहीं है। उन्होंने साफ कहा है कि अगर उनकी पार्टी को गठबंधन में इज़्ज़त नहीं दी गई, तो इसके गंभीर नतीजे देखने को मिलेंगे। अब यह NDA पर है कि वो मांझी की बातों को समझदारी से ले या अनदेखा करे।
गठबंधन के लिए यह बेहद ज़रूरी है कि वो हर सहयोगी पार्टी की भावना का ख्याल रखे, खासकर HAM जैसी पार्टी का, जो ज़मीनी स्तर पर असर रखती है। अगर HAM को सम्मानजनक सीटें और ठीक-ठाक प्रतिनिधित्व दिया गया, तो NDA एक मजबूत और भरोसेमंद गठबंधन के रूप में मैदान में उतर सकता है।
लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ, तो HAM की नाराज़गी NDA के लिए बड़ा झटका साबित हो सकती है। मांझी की रणनीति और उनका अगला कदम चुनाव के नतीजों को गहराई से प्रभावित कर सकता है।
कुल मिलाकर, बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में HAM की भूमिका बेहद निर्णायक रहने वाली है। NDA को अब यह समझना होगा कि एकजुटता ही जीत की कुंजी है क्योंकि अगर गठबंधन में दरार आई, तो उसका सीधा फायदा विपक्ष को मिलेगा।
अगर NDA ने सबको साथ लेकर चलना सीखा, तो जीत तय है; वरना मांझी की नाराज़गी सियासत का रुख ही बदल सकती है।
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