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Bihar Election 2025: RJD ने उतारे 71, Congress को मिले 25 सीटें: बिहार में INDIA गठबंधन की सबसे Big परीक्षा क्या RJD और कांग्रेस साथ रह पाएँगे?

Bihar Election 2025: RJD ने उतारे 71, Congress को मिले 25 सीटें: बिहार में INDIA गठबंधन की सबसे Big परीक्षा क्या RJD और कांग्रेस साथ रह पाएँगे?

Bihar Election सीट बंटवारे की कहानी: मजबूरी या रणनीति?

Bihar Election एक बार फिर से गर्म हो गई है और इस बार वजह है INDIA गठबंधन (Indian National Developmental Inclusive Alliance) के भीतर सीट बंटवारे को लेकर मचा घमासान।बात तो मिलजुलकर लड़ने की थी, लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि सहमति के पीछे असहमति की एक लंबी कहानी छिपी हुई है।

दरअसल, हाल ही में घोषित सीट बंटवारे में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने 71 सीटों पर अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है, जबकि कांग्रेस पार्टी को सिर्फ 25 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा है। ये आंकड़े सिर्फ चुनावी गणित नहीं दिखाते ये इस बात की भी झलक देते हैं कि विपक्षी एकता की ज़मीन कितनी मज़बूत या कितनी दरक चुकी है।

कई महीनों से बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर बैठकों और बातचीतों का सिलसिला चलता रहा, लेकिन INDIA गठबंधन के भीतर सीट शेयरिंग का फॉर्मूला बार-बार उलझता गया। RJD, जो इस गठबंधन में सबसे बड़ा और सबसे पुराना खिलाड़ी है, ने शुरू से ही साफ़ कह दिया था कि वो “लीड पार्टी” की भूमिका से पीछे नहीं हटेगा।

उधर कांग्रेस का मानना है कि राष्ट्रीय स्तर पर जब INDIA गठबंधन की पहचान उसी से जुड़ी है, तो बिहार में भी उसका सम्मानजनक हिस्सा होना चाहिए। फिलहाल स्थिति कुछ यूँ है: RJD: 71 सीटें, कांग्रेस: 25 सीटें, वाम दल (CPI, CPI-M, CPI-ML): अभी चर्चा जारी

अन्य सहयोगी दल: प्रतीक्षा में

RJD का तर्क साफ है उसका जमीनी संगठन, कार्यकर्ताओं का नेटवर्क और वोट बैंक कांग्रेस से कहीं ज़्यादा मजबूत है, इसलिए चुनावी रणनीति की “ड्राइविंग सीट” उसी के पास रहनी चाहिए। वहीं कांग्रेस का कहना है कि बिहार सिर्फ राज्य की लड़ाई नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति का मंच भी है और अगर INDIA गठबंधन को भविष्य में एक मज़बूत विकल्प बनना है, तो सम्मानजनक साझेदारी जरूरी है।

अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या यह सीट बंटवारे का मुद्दा सिर्फ चुनावी गणित तक सीमित रहेगा, या फिर ये गठबंधन की आत्मा को झकझोर देगा? क्योंकि इतिहास गवाह है बिहार की राजनीति में सीटों का समीकरण अक्सर दिलों के रिश्ते बिगाड़ देता है।

अब देखना ये है कि क्या तेजस्वी यादव और कांग्रेस नेतृत्व मिलकर इस सियासी तकरार को ठंडा कर पाते हैं या फिर INDIA गठबंधन की एकता इस बार भी सिर्फ मंच की तस्वीरों तक सीमित रह जाएगी। बिहार की जनता फिलहाल बस यही देख रही है “कौन देगा बेहतर विकल्प एकजुट विपक्ष या बिखरी हुई उम्मीदें?”

गठबंधन की आंतरिक खींचतान: एकता की परीक्षा

हालांकि RJD और कांग्रेस ने अब तक मंच पर या मीडिया के सामने कोई तीखा बयान नहीं दिया है, लेकिन अंदरखाने की जो खींचतान और रस्साकशी चल रही है, वो किसी से छिपी नहीं है। दोनों दलों के बीच की इस “मीठी तकरार” में अब कड़वाहट की झलक साफ़ दिखने लगी है।

Times of India के सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस ने शुरुआत में 40 से ज़्यादा सीटों की मांग रखी थी। उनका कहना था कि गठबंधन में बराबरी का भाव रहना चाहिए, ताकि लड़ाई “साझी” लगे। लेकिन RJD ने इस मांग को लगभग ठुकरा दिया और अपनी ही रणनीति पर अडिग रही।

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा “हम चाहते थे कि गठबंधन की लड़ाई बराबरी की हो, लेकिन RJD इसे ऐसे पेश कर रही है जैसे ये ‘हमारी सरकार बनाम बाकी सब’ की लड़ाई हो।”

वहीं दूसरी ओर, RJD का रुख भी बिल्कुल साफ है। तेजस्वी यादव के करीबी सूत्रों का कहना है “हम गठबंधन की भावना के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन हमारा असली लक्ष्य BJP को हराना है। इसके लिए हमें ज़मीनी हक़ीक़त के हिसाब से फैसले लेने होंगे, भावनाओं के नहीं।” यानी बात साफ़ है दोनों दलों के बीच यह सिर्फ सीट शेयरिंग की बहस नहीं रह गई, बल्कि अब यह राजनीतिक वर्चस्व की जंग बन चुकी है।

तेजस्वी यादव की ‘71 सीट’ चाल – मास्टरस्ट्रोक या जोखिम?

तेजस्वी यादव ने जब 71 सीटों पर एक साथ उम्मीदवार घोषित किए, तो यह महज़ एक राजनीतिक ऐलान नहीं था यह एक संदेश था। उन्होंने साफ़ दिखा दिया कि वह अब “फ्रंटफुट” पर खेलना चाहते हैं, किसी बैकसीट पर नहीं।

यह कदम दो मायनों में बेहद अहम माना जा रहा है

दबाव की राजनीति:
तेजस्वी का यह फैसला सीधे तौर पर कांग्रेस पर दबाव बढ़ाता है। अब कांग्रेस के सामने दो ही रास्ते हैं या तो वह सीमित सीटों पर समझौता करे, या फिर गठबंधन की एकता पर खुद सवाल उठने दे। RJD की यह चाल कहीं न कहीं यह दिखाने की कोशिश है कि बिहार में कमान उनके हाथ में है, और कांग्रेस को “सहयोगी” की भूमिका में रहना चाहिए, “साझीदार” की नहीं।

गठबंधन पर नियंत्रण:
RJD यह जताना चाहती है कि बिहार की जमीनी सियासत में असली ताक़त उसी के पास है कार्यकर्ता, संगठन और वोट बैंक सभी उसके मजबूत स्तंभ हैं। तेजस्वी का मक़सद यह भी है कि भले ही कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी पार्टी मानी जाती हो, लेकिन बिहार के मैदान में “गेम कंट्रोल” उन्हीं के पास रहेगा।

    हालांकि, ये रणनीति जितनी स्मार्ट लगती है, उतनी ही जोखिम भरी भी है। अगर कांग्रेस इस सीट बंटवारे से नाराज़ होकर स्वतंत्र रूप से अपने उम्मीदवार उतार देती है, तो वोटों का सीधा नुकसान विपक्ष को होगा और इसका फ़ायदा सीधे BJP के खाते में जाएगा।

    यानी, तेजस्वी की यह ‘71 सीट’ चाल या तो मास्टरस्ट्रोक साबित होगी, या फिर उल्टा वार बन जाएगी। अब देखना यह है कि आने वाले दिनों में INDIA गठबंधन इस सियासी तकरार को सुलझा पाता है या फिर “एकता की तस्वीर” सिर्फ पोस्टर तक ही सीमित रह जाएगी।

    INDIA गठबंधन की राष्ट्रीय छवि पर असर

    बिहार की सियासत एक बार फिर गरमा गई है, और इस बार वजह है सीटों का बंटवारा। INDIA गठबंधन (Indian National Developmental Inclusive Alliance) के अंदर जो खींचतान चल रही है, उसने पूरे माहौल को तपा दिया है। बिहार हमेशा से राजनीति का सेंटर रहा है यहाँ की सियासी चालें सिर्फ़ पटना तक सीमित नहीं रहतीं, दिल्ली तक असर डालती हैं।

    अब बात करें मौजूदा हालात की तो RJD और कांग्रेस के बीच का झगड़ा इस बात पर है कि कौन कितना बड़ा खिलाड़ी है। RJD ने 71 सीटों पर अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है, जबकि कांग्रेस को सिर्फ़ 25 सीटों पर मान जाना पड़ा। अब भले ही दोनों पार्टियाँ बाहर से “सब ठीक है” वाला चेहरा दिखा रही हों, लेकिन अंदर का माहौल कुछ और ही कहानी कह रहा है।

    2024 के लोकसभा चुनाव में बिहार को INDIA गठबंधन का मज़बूत गढ़ माना जा रहा था। लेकिन अब जब बंगाल में TMC अपनी राह पर है, पंजाब में AAP अपनी चाल चल रही है, और बिहार में RJD बनाम कांग्रेस की ठन गई है तो सवाल उठना लाज़मी है कि क्या सच में INDIA गठबंधन एक मज़बूत विकल्प बन पा रहा है?

    राजनीतिक जानकारों का कहना है कि यह सिर्फ सीटों की खींचतान नहीं है, बल्कि “लीडरशिप” यानी कौन आगे रहेगा, इस बात की लड़ाई भी है। राजनीतिक विश्लेषक संजय सिंह ने कहा “अगर राज्य स्तर पर ही दल आपस में एकमत नहीं हो पा रहे, तो इसका असर राष्ट्रीय स्तर पर ज़रूर दिखेगा। इससे गठबंधन की साख कमजोर पड़ सकती है।”

    अब बात करें जनता की तो बिहार की जनता इस पूरे ड्रामे को बड़ी दिलचस्पी से देख रही है। कुछ लोग इसे मनोरंजन की तरह ले रहे हैं, तो कुछ गुस्से में भी हैं।
    पटना यूनिवर्सिटी के एक छात्र ने मज़ाक में कहा “हम तो बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार और विकास की बात सुनना चाहते हैं, पर ये लोग तो टिकट बंटवारे की राजनीति में उलझे हैं।”

    वाकई, यह लाइन आज के युवाओं की सोच को पूरी तरह दिखाती है। लोग अब सिर्फ़ नारों से नहीं, काम और ईमानदार राजनीति से उम्मीद रखते हैं। लेकिन अगर गठबंधन के नेता पहले से ही कुर्सी के बँटवारे में फँस गए, तो जनता का भरोसा जीतना मुश्किल हो जाएगा।

    आख़िर में यही कहा जा सकता है कि बिहार की राजनीति में ये सीटों की जंग सिर्फ़ चुनावी नहीं, बल्कि “इज़्ज़त और असर” की लड़ाई बन चुकी है। अब देखना ये होगा कि क्या RJD और कांग्रेस अपने मतभेद भुलाकर साथ चल पाएँगे, या फिर ये गठबंधन भी बाकी राज्यों की तरह टूट की तरफ बढ़ जाएगा।

    आगे का रास्ता: क्या संभव है नया समीकरण?

    अभी के हालात में कांग्रेस और RJD, दोनों पार्टियाँ ये कह रही हैं कि बातचीत अब भी चल रही है। दोनों ने साफ़ किया है कि अभी फाइनल फैसला नहीं हुआ है, क्योंकि वाम दलों (CPI, CPI-M, CPI-ML वगैरह) की सीटें तय होना बाकी हैं। जब उनका रोल और हिस्सा तय हो जाएगा, तभी सीट बँटवारे का पूरा फार्मूला सामने आएगा।

    लेकिन सियासी गलियारों में चर्चा कुछ और ही है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अगर ये बातचीत आख़िरी वक्त तक लटकी रही और किसी नतीजे पर नहीं पहुँची, तो कुछ सीटों पर “फ्रेंडली फाइट” यानी दोस्ताना टक्कर की नौबत भी आ सकती है। मतलब एक ही सीट पर RJD और कांग्रेस, दोनों अपने-अपने उम्मीदवार मैदान में उतार देंगे।

    अब ज़रा सोचिए, तब नज़ारा कैसा होगा एक तरफ़ NDA (BJP और उसके साथी), और दूसरी तरफ़ INDIA गठबंधन, जो अंदर ही अंदर आपस में भिड़ा हुआ है! ऐसे में ये चुनाव सिर्फ़ NDA बनाम INDIA नहीं रहेगा, बल्कि कई जगहों पर “RJD बनाम कांग्रेस” का छोटा-सा मिनी युद्ध भी देखने को मिलेगा।

    राजनीति के जानकार कह रहे हैं कि अगर ऐसा हुआ, तो इसका सीधा फायदा भाजपा (BJP) को मिल सकता है, क्योंकि वोटों का बँटवारा होना तय है। लोग कह रहे हैं “दुश्मन को हराने से पहले, साथी से सुलह ज़रूरी है!” अगर इंडिया अलायंस एकजुट होकर रहेंगे तभी अपनी सरकार बना पाएंगे|

    एकता का इम्तिहान, बिहार बनेगा कसौटी

    RJD और कांग्रेस के बीच जो यह तनातनी चल रही है, उसे अब हर कोई INDIA गठबंधन की सबसे बड़ी परीक्षा मान रहा है। मामला सिर्फ़ सीटों का नहीं है, बल्कि यह इस बात की भी जाँच है कि क्या विपक्ष वाक़ई में एकजुट होकर बीजेपी को टक्कर दे सकता है या नहीं। वैसे देखा जाए तो बीजेपी को हराना थोड़ा मुश्किल जरूर है लेकिन सब एकजुट होकर इस पर हावी हो सकते हैं।

    अगर दोनों पार्टियाँ वक्त रहते आपसी मनमुटाव को सुलझा लेती हैं, तो यह विपक्ष के लिए एक तरह का “रीसेट बटन” साबित हो सकता है यानी एक नया मौका, जब वे फिर से एकजुट होकर जनता के मुद्दों पर फोकस कर सकें। लेकिन अगर यही खींचतान चलती रही, तो समझ लीजिए बिहार में बीजेपी का रास्ता और भी आसान हो जाएगा।

    तेजस्वी यादव और कांग्रेस लीडरशिप अब एक बड़े दोराहे पर खड़े हैं क्या वे सीटों की गिनती से ऊपर उठकर जनता की बात करेंगे? या फिर INDIA गठबंधन का नाम सिर्फ़ मंचों और पोस्टरों तक ही सीमित रह जाएगा? RJD ने जहाँ 71 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं, वहीं कांग्रेस को सिर्फ़ 25 सीटें मिली हैं।कांग्रेस को काफी कम सीटें मिली हैं, अब देखते हैं ये समय बताएगा कि किसकी सरकार बनेगी।

    लोग अब पूछ रहे हैं “क्या INDIA गठबंधन टूट की कगार पर है?”
    तेजस्वी का ये कदम कुछ लोगों को “सियासी मास्टरस्ट्रोक” लग रहा है, तो कुछ कह रहे हैं कि यह कांग्रेस को किनारे करने की कोशिश है। हर हाल में, बिहार की राजनीति में अब एक नई लकीर खिंच गई है तेजस्वी बनाम कांग्रेस। और इसका सीधा असर पूरे देश की विपक्षी राजनीति पर पड़ सकता है।

    अब देखना यह है कि बिहार की राजनीति में अब आगे क्या मोड़ आता है। अब बहुत ही जल्द बिहार में विधानसभा चुनाव होने ही वाले हैं। पूरे देश की नजरें बिहार राज्य पर ही टिकी हुई हैं। अब देखना यह है कि किसकी सरकार बिहार पर राज करेगी।

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