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Bihar Exit Polls 2025: NDA की Powerful Comeback Story – जनता ने फिर जताया Trust, 148 सीटों की Historic Lead!

Bihar Exit Polls 2025: NDA की Powerful Comeback Story – जनता ने फिर जताया Trust, 148 सीटों की Historic Lead!

Bihar Exit Polls 2025 के मुख्य अनुमान

Bihar Election एक बार फिर गर्म है पूरे सूबे की 243 विधानसभा सीटों पर दो चरणों में वोटिंग पूरी हो चुकी है। पहला चरण 6 नवंबर को और दूसरा 11 नवंबर को हुआ।
चुनाव आयोग (Election Commission of India) के मुताबिक़, इस बार वोटिंग का जोश ज़बरदस्त रहा दोनों चरणों को मिलाकर लगभग 67 फ़ीसदी लोगों ने वोट डाले, जो पिछले कई चुनावों के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा है। यही वजह है कि बहुत से लोग इसे “इतिहास बनाने वाला चुनाव” कह रहे हैं।

अब जब वोटिंग पूरी हो चुकी है, तो तमाम Bihar Exit Polls सामने आने लगे हैं और इनमें एक साफ़ इशारा दिख रहा है कि इस बार नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (NDA) यानी बीजेपी-जेडीयू का गठबंधन मज़बूत वापसी करने जा रहा है।

अगर बात करें अलग-अलग सर्वे की, तो ज़्यादातर Bihar Exit Polls ने NDA को 130 से 160 सीटों के बीच दिखाया है, जो सीधा-सीधा बहुमत की लाइन को पार करता है| मिसाल के तौर पर, “पीपुल्स पल्स” नाम के सर्वे ने NDA को 133 से 159 सीटें, जबकि महागठबंधन (तेजस्वी यादव वाला ग्रुप) को 75 से 101 सीटें मिलने का अंदाज़ा लगाया है। वहीं, जन सुराज पार्टी (प्रशांत किशोर का दल) के लिए उम्मीद कुछ खास नहीं दिखाई दे रही उसे 0 से 5 सीटें तक सीमित बताया गया है।

एक और बड़ा सर्वे, दैनिक भास्कर का, कहता है कि NDA 145 से 160 सीटें जीत सकती है, जबकि महागठबंधन को 73 से 91 सीटों का दायरा मिल सकता है। कुछ पोल्स ने तो इससे भी आगे बढ़कर NDA को और मज़बूत बताया है जैसे “मेट्राइज” सर्वे ने एनडीए को 147 से 167 सीटें तक का आंकड़ा दिया है।

हालाँकि एक सर्वे ऐसा भी है जो इस रुझान से बिल्कुल अलग खड़ा है उसका नाम है “जर्नो मिरर”। इस पोल ने उल्टा महागठबंधन को 130 से 140 सीटें और एनडीए को 100 से 110 सीटें मिलने की बात कही है। लेकिन कुल मिलाकर, ज्यादातर सर्वे इस बात पर एकमत हैं कि एनडीए के पलड़े में भारी बढ़त है और सत्ता की वापसी तय नज़र आ रही है।

अब बात करें उस मशहूर आंकड़े की जो सुर्खियों में छाया हुआ है “148 सीटों” का। दरअसल, कई चैनलों और एजेंसियों ने सारे Bihar Exit Polls का “पोल ऑफ पोल्स” यानी औसत निकालकर ये नतीजा दिया कि एनडीए करीब 148 सीटें जीत सकती है। यही वजह है कि मीडिया हेडलाइन्स में लिखा जा रहा है

अब ज़रा सोचिए बिहार विधानसभा में कुल 243 सीटें हैं, और सरकार बनाने के लिए चाहिए 122 सीटों का जादुई आंकड़ा। अगर NDA वाक़ई 148 सीटों के आस-पास पहुँचता है, तो ये ना सिर्फ़ बहुमत से ऊपर होगा बल्कि एक आरामदायक जीत मानी जाएगी जिसमें गठबंधन को किसी सहारे की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।

इस पूरे माहौल में लोगों के बीच भी काफी चर्चा है कहीं लोग कह रहे हैं कि “नीतीश कुमार की किस्मत फिर खुलने वाली है”, तो कहीं आवाज़ें उठ रही हैं कि “तेजस्वी की कोशिश अधूरी रह गई”। जो भी हो, इतना तो तय है कि बिहार की राजनीति फिर एक नया मोड़ लेने वाली है, और 14 नवंबर को जब असली नतीजे आएँगे, तो हर निगाह उसी स्क्रीन पर टिकी होगी।

संभावित कारण NDA क्यों आगे दिख रहा है?

अब ज़रा बात करते हैं कि आखिर एनडीए को बढ़त मिलती हुई क्यों नज़र आ रही है इसके पीछे कुछ बहुत अहम वजहें हैं जो बिहार के इस चुनाव को समझने में मदद करती हैं।

इस बार बिहार में वोटिंग का जोश देखने लायक था। दोनों चरणों को मिलाकर करीब 67 फ़ीसदी लोगों ने वोट डाले, जो अपने आप में बड़ी बात है। सबसे ख़ास बात ये रही कि महिलाओं ने इस बार बड़ी तादाद में घरों से निकलकर वोट डाला।

गाँवों से लेकर शहरों तक, औरतों की लाइनें बूथों के बाहर लंबी-लंबी दिखाई दीं। रिपोर्ट्स में तो ये भी कहा जा रहा है कि महिला वोटर्स ने इस बार NDA को भारी समर्थन दिया, ख़ासकर नीतीश कुमार की “महिला सुरक्षा और स्कीमों” की वजह से।

कई गांवों में औरतें कहती मिलीं “भैया, घर में शांति रही, राशन-स्कूल-सड़क का काम हुआ, तो वोट उसी को देंगे।” यानी, महिलाओं का वोट इस बार गेम चेंजर साबित हो सकता है।

विकास का नारा और “काम करने वाली सरकार” की इमेज

NDA ने इस बार अपने प्रचार में एक ही लाइन को बार-बार दोहराया “काम दिखा है, भरोसा निभा है।” बीजेपी और जेडीयू दोनों ने अपने पुराने कामों को गिनाया सड़कों का जाल, बिजली की स्थिति, महिला सहायता योजनाएँ, और रोज़गार से जुड़ी स्कीमें।

चुनावी माहौल में जनता को यही महसूस कराया गया कि “सत्ता की स्थिरता” ही बिहार के विकास की कुंजी है। कई चुनावी विश्लेषक कहते हैं कि “लोगों ने विकास के नाम पर एनडीए को चुना” यानी जनता को बदलाव नहीं, बल्कि भरोसे की सरकार चाहिए थीजो बात आम आदमी की ज़बान में यूँ कही जा सकती है “भाई, सबने देखा कि नीतीश-सरकार में कुछ तो हुआ है, अब बस थोड़ा और सुधार चाहिए।”

विपक्ष की कमजोरी और “जन सुराज” की नई एंट्री

अब अगर बात करें विपक्ष की, तो इस बार महागठबंधन (MGB) को जितनी उम्मीद थी, उतनी लहर नहीं दिखी। तेजस्वी यादव ने “परिवर्तन” और “रोज़गार” का नारा ज़रूर दिया, लेकिन ज़मीन पर उसका उतना असर नहीं दिखा जितनी चर्चा थी।

दूसरी तरफ़, प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी की एंट्री ने वोटों में थोड़ा बँटवारा कर दिया। हालांकि सर्वे बताते हैं कि जन सुराज को सिर्फ़ 0 से 5 सीटों तक मिल सकती हैं, लेकिन इनका असर कुछ इलाकों में महागठबंधन के नुकसान के तौर पर ज़रूर देखा गया।

कई जानकार कहते हैं कि “जन सुराज ने म.गठबंधन का वोट काटा, एनडीए को फायदा पहुँचा दिया।” यानि, विपक्ष एकजुट तो दिखा, पर उसकी लय और रणनीति उतनी मज़बूत नहीं रही।

NDA के लिए “इज़्ज़त की लड़ाई” भी थी

ये चुनाव सिर्फ़ सत्ता का नहीं बल्कि इज़्ज़त का मसला भी था। NDA के लिए ये एक प्रतीकात्मक जंग थी क्योंकि अगर इस बार भी बिहार उनके पास रहता है, तो उनकी पकड़ और मजबूत हो जाएगी। बीजेपी और जेडीयू दोनों के लिए ये साबित करने का मौका था कि जनता अब भी उन्हीं पर भरोसा करती है। कह सकते हैं कि ये इमेज को बचाने की जंग थी और लगता है कि उन्होंने मैदान संभाल लिया है।

साफ़ है, इन चार वजहों ने मिलकर NDA को एक ठोस बढ़त दिला दी है। और जैसा माहौल बन रहा है, उससे लगता है कि जनता ने इस बार “काम और क़ायदे की राजनीति” को तरजीह दी है, न कि सिर्फ़ नारों और जोश को।

चुनौतियाँ और “क्या हो सकता है”

अब भले ही ज़्यादातर Bihar Exit Polls NDA के हक़ में मज़बूत इशारे दे रहे हैं, लेकिन सियासत की दुनिया में सब कुछ इतना आसान नहीं होता। कुछ ऐसे जोखिम और अनिश्चितताएँ भी हैं जो नतीजों को किसी भी वक़्त पलट सकती हैं।

सबसे पहले तो ये याद रखना ज़रूरी है कि Bihar Exit Polls बस एक अंदाज़ा होता है, कोई अंतिम सच नहीं। इतिहास गवाह है कई बार एग्जिट पोल्स ने जो तस्वीर दिखाई, असली नतीजे उससे बिलकुल अलग निकले। कई बड़े पार्टी नेता भी खुलेआम कह रहे हैं कि “जनता का मूड आख़िरी पल में बदल जाता है, और पोल्स हमेशा सही नहीं होते।”

दूसरी बात, बिहार जैसे सूबे में वोटिंग का समीकरण बहुत जटिल है यहाँ हर इलाक़े की अपनी कहानी होती है: कहीं जाति का असर, कहीं धर्म का संतुलन, कहीं स्थानीय मुद्दे भारी पड़ जाते हैं। कई बार एक छोटे-से इलाक़े में उठी लहर पूरे ज़िले का नतीजा बदल देती है। इसलिए यह मान लेना कि पूरा राज्य एक दिशा में वोट करेगा, थोड़ा जल्दबाज़ी होगी।

इसके अलावा, अगर महागठबंधन (MGB) के किसी उपगठबंधन ने अपने गढ़ों में अच्छा प्रदर्शन कर लिया, या फिर एनडीए के भीतर कहीं आपसी मनमुटाव ने असर डाल दिया, तो नतीजों में उलटफेर हो सकता है। बिहार की राजनीति में ऐसे पलटवार कई बार देखे गए हैं “जहाँ जीत पक्की लग रही थी, वहाँ एक सीट से हार हो जाती है।”

फिर बात आती है महिलाओं और प्रवासी वोटर्स की। इस बार महिलाओं की भागीदारी काफी बढ़ी है, और बड़ी तादाद में बाहर काम करने वाले बिहारी वोट डालने लौटे हैं। अब इन दोनों वर्गों ने किस ओर झुककर वोट दिया ये बात नतीजों के आने पर ही साफ़ होगी। इसी तरह मतदाता सूची में हुए बदलाव और नए वोटर्स का रुझान भी तय करेगा कि आख़िरी तस्वीर कैसी बनेगी।

कुल मिलाकर कहा जाए तो माहौल भले ही एनडीए के फ़ेवर में नज़र आ रहा है, मगर बिहार की सियासत में आख़िरी पन्ना हमेशा सबसे दिलचस्प होता है। और जैसा लोग कहते हैं “बिहार में हवा कब पलट जाए, कोई नहीं जानता यहाँ आख़िरी वोट तक खेल जारी रहता है।”

राजनीतिक अर्थ और अगले कदम

अब भले ही ज़्यादातर Bihar Exit Polls NDA के हक़ में मज़बूत इशारे दे रहे हैं, लेकिन सियासत की दुनिया में सब कुछ इतना आसान नहीं होता। कुछ ऐसे जोखिम और अनिश्चितताएँ भी हैं जो नतीजों को किसी भी वक़्त पलट सकती हैं।

सबसे पहले तो ये याद रखना ज़रूरी है कि एग्जिट पोल बस एक अंदाज़ा होता है, कोई अंतिम सच नहीं। इतिहास गवाह है कई बार एग्जिट पोल्स ने जो तस्वीर दिखाई, असली नतीजे उससे बिलकुल अलग निकले। कई बड़े पार्टी नेता भी खुलेआम कह रहे हैं कि “जनता का मूड आख़िरी पल में बदल जाता है, और पोल्स हमेशा सही नहीं होते।”

दूसरी बात, बिहार जैसे सूबे में वोटिंग का समीकरण बहुत जटिल है यहाँ हर इलाक़े की अपनी कहानी होती है: कहीं जाति का असर, कहीं धर्म का संतुलन, कहीं स्थानीय मुद्दे भारी पड़ जाते हैं। कई बार एक छोटे-से इलाक़े में उठी लहर पूरे ज़िले का नतीजा बदल देती है। इसलिए यह मान लेना कि पूरा राज्य एक दिशा में वोट करेगा, थोड़ा जल्दबाज़ी होगी।

इसके अलावा, अगर महागठबंधन (MGB) के किसी उपगठबंधन ने अपने गढ़ों में अच्छा प्रदर्शन कर लिया, या फिर NDA के भीतर कहीं आपसी मनमुटाव ने असर डाल दिया, तो नतीजों में उलटफेर हो सकता है। बिहार की राजनीति में ऐसे पलटवार कई बार देखे गए हैं “जहाँ जीत पक्की लग रही थी, वहाँ एक सीट से हार हो जाती है।”

फिर बात आती है महिलाओं और प्रवासी वोटर्स की। इस बार महिलाओं की भागीदारी काफी बढ़ी है, और बड़ी तादाद में बाहर काम करने वाले बिहारी वोट डालने लौटे हैं। अब इन दोनों वर्गों ने किस ओर झुककर वोट दिया ये बात नतीजों के आने पर ही साफ़ होगी। इसी तरह मतदाता सूची में हुए बदलाव और नए वोटर्स का रुझान भी तय करेगा कि आख़िरी तस्वीर कैसी बनेगी।

कुल मिलाकर कहा जाए तो माहौल भले ही एनडीए के फ़ेवर में नज़र आ रहा है, मगर बिहार की सियासत में आख़िरी पन्ना हमेशा सबसे दिलचस्प होता है। और जैसा लोग कहते हैं “बिहार में हवा कब पलट जाए, कोई नहीं जानता यहाँ आख़िरी वोट तक खेल जारी रहता है।”

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