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SIR Drive Latest News: Election commission का Bold Decision और 6 States को Relief, पर Bengal में Rising Concern

SIR Drive Latest News: Election commission का Bold Decision और 6 States को Relief, पर Bengal में Rising Concern

SIR Drive: 6 राज्यों में Roll Revision Deadline बढ़ी

भारत का चुनावी माहौल इस समय काफ़ी नाज़ुक और संवेदनशील दौर से गुज़र रहा है। Election Commission of India (ECI) ने हाल ही में Special Summary Revision 2026, जिसे आम लोगों की भाषा में SIR Drive कहा जाता है, उससे जुड़ा एक अहम और बड़ा फ़ैसला लिया है।

इस फ़ैसले के तहत देश के 6 राज्यों में वोटर लिस्ट की जांच और सुधार की आख़िरी तारीख बढ़ा दी गई है, लेकिन पश्चिम बंगाल को किसी तरह की मोहलत या एक्सटेंशन नहीं दिया गया। इसी वजह से यह मुद्दा तेजी से राजनीतिक गर्मी पैदा कर रहा है और हर पार्टी अपने-अपने अंदाज़ में इसे उठा रही है।

अब सबसे पहले समझते हैं कि SIR Drive होता क्या है और इसकी ज़रूरत क्यों पड़ती है?

SIR Drive, यानी Special Summary Revision, चुनाव आयोग की एक सालाना प्रक्रिया है। इसे इसलिए किया जाता है क्योंकि: नए नौजवान वोटरों को वोटर लिस्ट में शामिल किया जा सके| जिन लोगों की एंट्री गलती से दो-दो बार है, या जिनकी मृत्यु हो चुकी है, उन्हें लिस्ट से हटाया जा सके| अगर किसी का घर बदला है, तो उसका वोटर कार्ड भी सही पते पर अपडेट हो सके और सबसे ज़रूरी बात, चुनाव की पारदर्शिता, साफ़गोई और सटीकता बनी रहे

यह पूरी प्रक्रिया उन राज्यों में और भी अहम हो जाती है जहाँ अगले साल चुनाव होने वाले हों या जहाँ आबादी और शहरीकरण बहुत तेज़ी से बदल रहा हो। ऐसे इलाक़ों में लोगों की आवाजाही ज़्यादा रहती है, इसलिए लिस्ट को अपडेट रखना बेहद ज़रूरी माना जाता है वरना कई हक़दार लोग वोट नहीं डाल पाते और कई फालतू या ग़लत नाम लिस्ट में रह जाते हैं।

किन 6 राज्यों को Election commission ने समय-सीमा बढ़ाकर राहत दी?

Election commission ने जिन राज्यों में Roll Revision Deadline बढ़ाई है, उनमें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, छत्तीसगढ़ और दिल्ली (UT) शामिल हैं। इन सभी राज्यों की प्रशासनिक टीमों ने चुनाव आयोग को साफ़-साफ़ बताया था कि अभी भी काफ़ी काम बाकी है कहीं नए वोटरों ने फॉर्म समय पर भर ही नहीं पाए, कहीं सरकारी टीमें फील्ड में देर से पहुँचीं, और कई जगह त्योहार, छुट्टियाँ और स्थानीय चुनावों की वजह से फाइलों में पेंडेंसी बहुत बढ़ गई थी।

इन हालात को देखते हुए आयोग ने इन राज्यों को राहत देते हुए अतिरिक्त दिन दे दिए, ताकि वोटर लिस्ट का काम अच्छे से और सुकून के साथ पूरा किया जा सके। लेकिन असली सवाल यह है कि सिर्फ West Bengal को ही एक्सटेंशन क्यों नहीं मिला? यहीं से पूरा विवाद शुरू होता है और सियासी माहौल और ज़्यादा गरमाने लगता है।

Election commission का आधिकारिक रुख क्या है?

Election commission का कहना है कि: बंगाल में रोल रिवीजन का पूरा काम पहले से ही तय टाइमटेबल के हिसाब से ठीक-ठाक चल रहा था। राज्य प्रशासन की तरफ़ से किसी भी तरह की अतिरिक्त समय की औपचारिक सिफ़ारिश नहीं भेजी गई थी। मैदानी स्तर पर कर्मचारियों की तैनाती भी पूरी थी और काम रुकने जैसी कोई सिचुएशन नहीं थी।

इसीलिए, आयोग का मत था कि पश्चिम बंगाल को एक्सटेंशन की ज़रूरत ही नहीं पड़ती, और इस आधार पर उसे अतिरिक्त दिन नहीं दिए गए। अब भले ही Election commission अपनी तकनीकी वजहें बता रहा हो, लेकिन राजनीतिक दल इस पर ज़बरदस्त सवाल उठा रहे हैं और यही वजह है कि यह मामला धीरे-धीरे एक बड़ा सियासी मुद्दा बनता जा रहा है।

राजनीतिक दलों का आरोप

कई राजनीतिक पार्टियों खासकर TMC और वामपंथी दलों ने चुनाव आयोग पर सीधे-सीधे उंगली उठाते हुए कहा है कि बंगाल में अभी भी लाखों नाम वोटर लिस्ट में जुड़ ही नहीं पाए हैं। उनका कहना है कि ग्रामीण इलाक़ों में Booth Level Officers (BLO) ठीक से काम नहीं कर पा रहे, कई जगह तो लोग घंटों चक्कर काटकर लौट जाते हैं।

कुछ नेताओं ने तो यह तक आरोप लगा दिया कि Election commission जान-बूझकर बंगाल को निशाना बना रहा है, यानी एक तरह से मनमानी की जा रही है। इन बयानों के बाद सियासी माहौल और भी गर्म हो गया है, मानो हवा में ही तनाव बढ़ गया हो।

क्या वाकई बंगाल की वोटर लिस्ट में दिक्कतें हैं? जमीनी रिपोर्टों में कुछ चुनौतियाँ साफ़ तौर पर सामने आई हैं: ग्रामीण क्षेत्रों में Form–6 अपलोड बहुत धीमा कई ब्लॉकों में इंटरनेट की दिक्कतें हैं, ऊपर से कर्मचारियों की कमी भी। इसी वजह से नए वोटरों की एंट्री ऑनलाइन अपलोड होने में देर लग रही है। लोग फॉर्म जमा कर देते हैं, लेकिन सिस्टम पर अपडेट होने में वक्त लग जाता है।

BLO की उपलब्धता सीमित: कुछ जिलों में पंचायत के काम, त्योहारों और छुट्टियों की वजह से BLO पूरे समय उपलब्ध नहीं थे। इससे घर-घर वेरिफिकेशन समय पर पूरा नहीं हो पाया।

युवाओं को जागरूक करने की कमी: 18–19 साल के नए नौजवान वोटरों तक SIR Drive की जानकारी ठीक से पहुँच ही नहीं पाई। प्रचार-प्रसार कम रहा, और कई युवा इस प्रक्रिया से अनजान ही रह गए। फिर भी, चुनाव आयोग का कहना है कि राज्य को जो समय मिला था, वह काम पूरा करने के लिए काफी था, और अतिरिक्त दिनों की कोई जरूरत नहीं पड़ी।

किस तरह प्रभावित होंगे Bengal के वोटर?

अगर एक्सटेंशन नहीं मिलता, तो इसका सीधा असर आम लोगों पर पड़ेगा। सबसे पहली बात जो लोग आख़िरी दिनों में फॉर्म जमा करते हैं, यानी Late Applicants, उनके नाम शायद वोटर लिस्ट में शामिल ही न हो पाएँ। ग्रामीण इलाक़ों में तो हालात और मुश्किल हो सकते हैं, क्योंकि वहाँ Form–6 और Form–8 की एंट्री पहले ही धीमी चल रही है। ऐसे में कई लोगों के फॉर्म अधूरे रह जाने का खतरा है।

इसके अलावा, राजनीतिक पार्टियाँ इस मुद्दे को हाथों-हाथ उठा सकती हैं। “Missing Voters” यानी ग़ायब वोटरों का पूरा मामला चुनाव से पहले एक बड़ा सियासी हथियार बन सकता है।

Times of India के मुताबिक, अगली लिस्ट में 10–12 लाख वोटरों के नाम ऊपर-नीचे हो सकते हैं कुछ नए शामिल होंगे, कुछ हटाए जाएँगे। यानी पूरा नैरेटिव चुनाव से पहले ही बदल सकता है, और राजनीति में हलचल तेज़ हो सकती है।

विपक्ष और सत्ता पक्ष की प्रतिक्रियाएँ

TMC का बयान

TMC ने एकदम साफ़ लहज़े में कहा: “Election commission बंगाल के साथ हमेशा अलग बर्ताव करता है। लाखों छात्रों और नए वोटरों का हक़ छीन लिया गया है।” उनका कहना है कि यह फैसला जनता की आवाज़ को कमज़ोर कर देगा।

BJP का बयान

BJP का रुख बिल्कुल उल्टा है। उनका कहना है: “WB प्रशासन खुद लापरवाह है। EC ने बिलकुल सही फैसला लिया है। जो काम आराम से पहले कर लेना चाहिए, वह आख़िरी दिन तक टालते रहते हैं। सारा दोष चुनाव आयोग पर डालना गलत है।”

Left Front का बयान

लेफ्ट पार्टियों ने दोनों पक्षों की आलोचना करते हुए कहा: “राज्य सरकार हो या Election commission किसी ने भी जनता के अधिकारों को पूरी गंभीरता से नहीं लिया। इससे आम लोगों की दिक्कतें और बढ़ेंगी।”

कुल मिलाकर, भले यह फैसला ऊपर से मामूली लगे, लेकिन चुनावी साल में इसकी अहमियत बहुत बड़ी है। एक छोटी-सी तारीख बढ़ाने या न बढ़ाने से ही लाखों वोटरों की आवाज़, राजनीतिक माहौल और पूरे चुनावी समीकरण पर सीधा असर पड़ सकता है।

एक्सटेंशन मिलने से क्या फर्क पड़ता?

अगर West Bengal को भी समय-सीमा बढ़ाई जाती, तो हालात काफी अलग हो सकते थे। सबसे पहले तो 4–5 लाख नए वोटर आराम से लिस्ट में जुड़ सकते थे। BLO को भी ग्रामीण इलाक़ों में दोबारा घर-घर वेरिफिकेशन करने का पूरा वक़्त मिल जाता।

त्योहारों, छुट्टियों और पंचायत के कामों की वजह से जो बैकलॉग जमा हो गया था, उसे भी आराम से पूरा किया जा सकता था। विपक्ष भी अपनी आशंकाएँ कम करता और चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता यानि साफ़गोई और बढ़ जाती। लेकिन अब जबकि एक्सटेंशन नहीं मिला, मामला एक साधारण प्रशासनिक निर्णय से निकलकर सीधे चर्चा और विवाद का विषय बन गया है।

Election commission का नियम: हर राज्य को एक जैसा एक्सटेंशन देना ज़रूरी नहीं बहुत से लोग मानते हैं कि Election commission को सभी राज्यों के लिए समान तारीखें रखनी चाहिए। लेकिन आयोग का आधिकारिक प्रोटोकॉल कुछ और कहता है, हर राज्य की जमीनी रिपोर्ट (Field Report) अलग होती है।

एक्सटेंशन तभी दिया जाता है जब State CEO यानी राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी इसकी सिफ़ारिश भेजें। Election commission अपने-आप, बिना लिखित अनुरोध के तारीख नहीं बढ़ाता। यानी साफ़ शब्दों में कहें, तो WB प्रशासन ने पूरी और औपचारिक सिफ़ारिश भेजी ही नहीं, इसलिए एक्सटेंशन मिलना लगभग नामुमकिन था।

आम वोटर क्या करें? (ज़रूरी और काम की जानकारी)

अगर आप पश्चिम बंगाल के वोटर हैं और चाहते हैं कि आपका नाम पक्का वोटर लिस्ट में आए, तो ये बातें ज़रूर करें:
तुरंत Form–6, Form–8, Form–7 सबमिट करें

ऑनलाइन वेबसाइट:
https://voters.eci.gov.in

अपने BLO से संपर्क करें
हर बूथ पर BLO का मोबाइल नंबर चिपका होता है ज़रूरत पड़े तो वहीं से मदद मिल जाएगी।

Voter Helpline App डाउनलोड करें
इस ऐप से आप: अपना नया नाम जोड़ सकते हैं, पता (Address) अपडेट कर सकते हैं और अपनी एप्लीकेशन की वर्तमान स्थिति भी देख सकते हैं यानी, वोटर लिस्ट से जुड़ी सारी जानकारी आपकी उंगलियों पर मिल जाएगी।

आगे क्या? क्या Bengal को अभी भी राहत मिल सकती है?

इस पूरे मामले पर अब राजनीतिक दबाव लगातार बढ़ रहा है। अगर आने वाले दिनों में: बड़े पैमाने पर Missing Voters से जुड़ी शिकायतें चुनाव आयोग तक पहुँचती हैं, राज्य के CEO (मुख्य चुनाव अधिकारी) अपनी ओर से विस्तृत रिपोर्ट भेजते हैं, या फिर मामले को लेकर High Court में कोई याचिका दाख़िल की जाती है, तो संभव है कि Election commission इसके लिए एक अतिरिक्त या सप्लीमेंट्री विंडो खोलने पर विचार करे।

लेकिन सच यह भी है कि इसकी संभावना अभी बहुत ही कम और सीमित मानी जा रही है, क्योंकि आयोग तकनीकी नियमों से बाहर जाकर कोई कदम उठाने में अक्सर झिझकता है।

निष्कर्ष (Conclusion)

Election Commission का यह फैसला 6 राज्यों की Roll Revision Deadline बढ़ाना, लेकिन West Bengal को एक्सटेंशन न देना आने वाले महीनों में एक बड़ा और गंभीर राजनीतिक मुद्दा बन सकता है।

एक तरफ़ Election commission का कहना है कि वह पूरी तरह तकनीकी रिपोर्ट, नियमों और शेड्यूल के आधार पर ही फैसले ले रहा है; दूसरी तरफ़ विपक्ष इसे “चुनावी हताशा और मायूसी पैदा करने वाली नीति” बता रहा है और खुलकर आलोचना कर रहा है।

चुनाव बिल्कुल नज़दीक खड़े हैं, और ऐसे समय में वोटर लिस्ट का हर नाम, हर संशोधन, और हर डेडलाइन बेहद अहम हो जाती है क्योंकि यही कुछ बातें आगे चलकर पूरे चुनावी समीकरण को प्रभावित करती हैं। बंगाल में इस फैसले के राजनीतिक, सामाजिक और ज़मीनी असर आने वाले समय में और भी साफ़ दिखाई देंगे, और यह देखना दिलचस्प होगा कि मामला शांत होता है या और ज़्यादा तूल पकड़ता है।

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