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Player Safety Matters: उत्तर भारत में Winter Cricket पर BCCI के सामने Tough Challenge, Rajeev Shukla का बयान और उसके पीछे की पूरी कहानी

Player Safety Matters: उत्तर भारत में Winter Cricket पर BCCI के सामने Tough Challenge, Rajeev Shukla का बयान और उसके पीछे की पूरी कहानी

Rajeev Shukla ने क्या कहा?

भारतीय क्रिकेट के अंदरूनी गलियारों में एक बार फिर ज़ोरदार बहस छिड़ गई है। इस बार मामला किसी खिलाड़ी के चयन या कप्तानी का नहीं, बल्कि उत्तर भारत में सर्दियों के मौसम में क्रिकेट मैच कराए जाने का है। BCCI के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट Rajeev Shukla ने हाल ही में एक कार्यक्रम के दौरान इस मुद्दे पर खुलकर अपनी राय रखी, जिसके बाद क्रिकेट की दुनिया में हलचल तेज़ हो गई है।

Rajeev Shukla ने साफ़ कहा कि सर्दियों के महीनों में उत्तर भारत में क्रिकेट खेलना न तो खिलाड़ियों के लिए ठीक है और न ही खेल की क्वालिटी के लिए। उनका मानना है कि जब मौसम ही साथ न दे, तो मैदान पर अच्छा क्रिकेट देखने की उम्मीद करना बेमानी हो जाता है।

जैसे ही उनका यह बयान सामने आया, वैसे ही क्रिकेट फैंस, खिलाड़ी और क्रिकेट से जुड़े लोग इस पर चर्चा करने लगे, क्योंकि इसका सीधा असर रणजी ट्रॉफी, घरेलू टूर्नामेंट और यहां तक कि अंतरराष्ट्रीय मैचों की मेज़बानी पर भी पड़ सकता है।

Rajeev Shukla के मुताबिक़ दिसंबर और जनवरी के महीने उत्तर भारत के लिए सबसे मुश्किल होते हैं। दिल्ली, कानपुर, लखनऊ, मोहाली और धर्मशाला जैसे शहरों में इस दौरान

कड़ाके की ठंड

घना कोहरा

बढ़ता हुआ प्रदूषण

हवा में नमी

और ज़मीन पर भारी ओस

ये सब मिलकर क्रिकेट खेलने की परिस्थितियों को बेहद मुश्किल बना देते हैं। ऐसे माहौल में न तो खिलाड़ियों को खेल में मज़ा आता है और न ही दर्शकों को स्टेडियम में बैठकर मैच देखने में कोई खास दिलचस्पी रह जाती है।

Rajeev Shukla ने बड़ी सधी हुई लेकिन कड़ी बात कहते हुए कहा, “क्रिकेट खुले मैदान में खेला जाने वाला खेल है। जब सामने कुछ दिखाई ही न दे, हाथ ठंड से सुन्न हो जाएँ और सांस लेने में परेशानी होने लगे, तो ऐसे हालात में न खिलाड़ी अपना बेस्ट दे पाते हैं और न ही दर्शकों को सही एंटरटेनमेंट मिलता है।”

सर्दियों में क्रिकेट की असली परेशानी क्या है?

सर्द मौसम में क्रिकेट खेलने की सबसे बड़ी मार खिलाड़ियों की सेहत पर पड़ती है। ठंड के कारण

तेज़ गेंदबाज़ों की मांसपेशियों में खिंचाव आ जाता है

फील्डिंग करते वक्त उंगलियों में चोट लगने का खतरा बढ़ जाता है

बल्लेबाज़ों को गेंद की रफ्तार और मूवमेंट समझने में दिक्कत होती है

कई बार तो खिलाड़ी पूरी कोशिश के बावजूद अपने नैचुरल गेम के मुताबिक खेल ही नहीं पाते।

Rajeev Shukla ने इस पर और भी गंभीर बात कही। उनका कहना है कि सर्दियों के मौसम में इंजरी का खतरा 30 से 40 फीसदी तक बढ़ जाता है, और इसका सबसे ज़्यादा असर युवा खिलाड़ियों पर पड़ता है, जो अपने करियर की शुरुआत में ही चोटिल हो जाते हैं। ऐसे में उनका आत्मविश्वास भी टूटता है और आगे का करियर भी खतरे में पड़ सकता है।

कुल मिलाकर, Rajeev Shukla का मानना है कि अगर भारतीय क्रिकेट को लंबे वक्त तक मज़बूत और सेहतमंद रखना है, तो मौसम को नज़रअंदाज़ करके फैसले नहीं लिए जा सकते।

कोहरे और खराब विज़िबिलिटी का असर

उत्तर भारत में सर्दियों के मौसम में सुबह और शाम का कोहरा कोई नई बात नहीं है। अकसर हालात ऐसे हो जाते हैं कि मैदान के एक सिरे से दूसरा सिरा तक साफ़ दिखाई नहीं देता। ऐसे में क्रिकेट खेलना अपने आप में एक बड़ी चुनौती बन जाता है। कोहरे की वजह से

अंपायरों के फैसलों पर सवाल उठने लगते हैं

फील्डर्स के लिए हवा में जाती गेंद पकड़ना मुश्किल हो जाता है

बल्लेबाज़ों को बॉल ट्रैक करने में परेशानी होती है

और मैच को बार-बार रोकना पड़ता है

कई बार हालात इतने खराब हो जाते हैं कि खेल को समय से पहले ही खत्म करना पड़ता है। रणजी ट्रॉफी से लेकर अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों तक, ऐसे कई मौके देखे जा चुके हैं जब कोहरे ने पूरे मैच का मज़ा किरकिरा कर दिया।

प्रदूषण: एक अनदेखी लेकिन बेहद गंभीर परेशानी

सर्दियों में उत्तर भारत की एक और बड़ी समस्या है प्रदूषण। खासतौर पर दिल्ली-एनसीआर और उसके आसपास के इलाकों में इस मौसम में एयर क्वालिटी इंडेक्स यानी AQI कई बार खतरनाक स्तर तक पहुँच जाता है। हवा इतनी ज़हरीली हो जाती है कि आम लोगों को सांस लेने में तकलीफ़ होने लगती है, तो खिलाड़ियों का हाल समझा जा सकता है।

Rajeev Shukla ने इस पर चिंता जताते हुए कहा, “खिलाड़ियों को मास्क लगाकर मैदान में खेलते देखना, क्रिकेट जैसे खूबसूरत खेल की सही तस्वीर नहीं पेश करता।”

प्रदूषण का सीधा असर खिलाड़ियों की स्टैमिना पर पड़ता है। लंबे स्पेल डालने वाले गेंदबाज़ जल्दी थक जाते हैं, बल्लेबाज़ों की सांस फूलने लगती है और फील्डिंग के दौरान ऊर्जा जल्दी खत्म हो जाती है। इतना ही नहीं, खराब हवा की वजह से खिलाड़ियों की लंग्स कैपेसिटी कम होती है और मैच या ट्रेनिंग के बाद उनका रिकवरी टाइम भी बढ़ जाता है।

यानी साफ़ शब्दों में कहें तो, कोहरा और प्रदूषण मिलकर सर्दियों में उत्तर भारत के क्रिकेट को ऐसा बना देते हैं, जहाँ खेल से ज़्यादा जद्दोजहद नज़र आती है।

क्या दक्षिण भारत बेहतर विकल्प है?

Rajeev Shukla के इस बयान के बाद क्रिकेट हलकों में एक बार फिर यह सवाल ज़ोर पकड़ने लगा है कि क्या सर्दियों के पूरे क्रिकेट कैलेंडर को दक्षिण भारत की तरफ शिफ्ट कर देना चाहिए? यानी जब उत्तर भारत ठंड, कोहरे और प्रदूषण से जूझ रहा हो, तब क्रिकेट ऐसे इलाकों में कराया जाए जहाँ मौसम खेल के मुफ़ीद हो।

दक्षिण भारत के शहर इस मामले में पहले से ही बेहतर माने जाते हैं। यहां सर्दियों के मौसम में

मौसम ज़्यादातर स्थिर और संतुलित रहता है

हवा अपेक्षाकृत साफ़ होती है, प्रदूषण बहुत कम होता है

मैदान पर विज़िबिलिटी साफ़ रहती है, जिससे खेल बिना रुकावट चलता है

और सबसे बड़ी बात, दर्शकों की मौजूदगी भी अच्छी रहती है

इसी वजह से चेन्नई, बेंगलुरु, हैदराबाद, तिरुवनंतपुरम और विशाखापत्तनम जैसे शहरों को पहले से ही विंटर क्रिकेट हब माना जाता है। यहां सर्दियों में भी क्रिकेट बिना किसी बड़ी परेशानी के आराम से खेला जाता है।

Rajeev Shukla का साफ़ मानना है कि, “अगर भारत को पूरे साल क्रिकेट खेलना है, तो वेन्यू का चुनाव मौसम को ध्यान में रखकर ही करना चाहिए। मौसम के खिलाफ जाकर क्रिकेट कराना समझदारी नहीं है।”

उनके मुताबिक, जब हालात खिलाड़ियों और दर्शकों दोनों के लिए अनुकूल हों, तभी क्रिकेट का असली मज़ा सामने आता है। ऐसे में सर्दियों के दौरान दक्षिण भारत को ज़्यादा मौके देना, आने वाले वक्त में भारतीय क्रिकेट के लिए एक व्यावहारिक और समझदारी भरा कदम साबित हो सकता है।

BBCI के सामने चुनौती

हालाँकि काग़ज़ पर यह फैसला जितना आसान लगता है, हकीकत में उतना ही मुश्किल है। BCCI के सामने इस मामले में कई तरह की चुनौतियाँ खड़ी हैं, जिन्हें नज़रअंदाज़ करना मुमकिन नहीं है।

सबसे पहला और बड़ा दबाव उत्तर भारत के राज्यों की तरफ से आएगा। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा जैसे बड़े क्रिकेट बोर्ड कभी नहीं चाहेंगे कि उनसे घरेलू या अंतरराष्ट्रीय मैचों की मेज़बानी छिन जाए। इन राज्यों में क्रिकेट सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि इज़्ज़त, पहचान और सियासी अहमियत से भी जुड़ा हुआ है। ऐसे में कोई भी बोर्ड आसानी से पीछे हटने को तैयार नहीं होगा।

दूसरी बड़ी परेशानी है इन्फ्रास्ट्रक्चर और कमाई का सवाल। सर्दियों में होने वाले मैचों से सिर्फ क्रिकेट बोर्ड ही नहीं, बल्कि स्टेडियम से जुड़े कर्मचारी, होटल, टैक्सी वाले, लोकल दुकानदार और आसपास की पूरी लोकल इकोनॉमी को फ़ायदा होता है। अगर सर्दियों के मैच उत्तर भारत से हटते हैं, तो इससे करोड़ों रुपये के रेवेन्यू पर सीधा असर पड़ सकता है, जिसे बीसीसीआई भी नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती।

तीसरी और सबसे संवेदनशील चुनौती है घरेलू क्रिकेट का संतुलन। रणजी ट्रॉफी जैसे बड़े टूर्नामेंट में BCCI की जिम्मेदारी बनती है कि हर राज्य को बराबर मौके मिलें। अगर कुछ राज्यों को बार-बार बड़े मैच मिलें और कुछ को लगातार नज़रअंदाज़ किया जाए, तो इससे असंतोष और विवाद पैदा होना तय है।

यानी साफ़ तौर पर कहा जाए तो, सर्दियों में उत्तर भारत में क्रिकेट कम करने का फैसला सिर्फ मौसम का नहीं, बल्कि सियासत, पैसा और संतुलन तीनों का मामला है।

खिलाड़ियों की राय क्या कहती है?

Rajeev Shukla के इस बयान के बाद सिर्फ क्रिकेट प्रशासक ही नहीं, बल्कि कई मौजूदा और पूर्व क्रिकेटर भी खुलकर उनके समर्थन में सामने आए हैं। खिलाड़ियों का कहना है कि जो लोग मैदान पर उतरकर खेलते हैं, वही सर्दियों के हालात की असली तकलीफ़ समझ सकते हैं।

तेज़ गेंदबाज़ों का मानना है कि ठंड के मौसम में रन-अप लेना आसान नहीं होता। पैरों में जकड़न आ जाती है और हाथों में सही ग्रिप बनाना भी मुश्किल हो जाता है। गेंद पर पकड़ ढीली पड़ते ही न लाइन कंट्रोल में रहती है और न ही स्विंग या सीम मूवमेंट वैसी मिल पाती है जैसी मिलनी चाहिए।

विकेटकीपर्स के लिए हालात और भी ज़्यादा सख्त हो जाते हैं। उन्हें कई-कई घंटे लगातार झुककर खड़े रहना पड़ता है। ठंडी हवा और ज़मीन से उठती नमी की वजह से कमर, घुटनों और उंगलियों में तेज़ दर्द होने लगता है। कई कीपर्स का कहना है कि 6–7 घंटे विकेट के पीछे खड़ा रहना किसी इम्तिहान से कम नहीं होता।

युवा खिलाड़ियों के मामले में खतरा और भी बढ़ जाता है। शरीर पूरी तरह मैच के दबाव का आदी नहीं होता, ऐसे में ठंड की वजह से इंजरी का रिस्क काफी बढ़ जाता है। एक छोटी सी चोट भी उनके करियर की रफ्तार धीमी कर सकती है।

हालाँकि हर खिलाड़ी इस मुद्दे पर एक जैसी राय नहीं रखता। कुछ सीनियर और अनुभवी खिलाड़ियों का कहना है कि “अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में हर तरह की परिस्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए।” उनके मुताबिक, विदेशी दौरों पर भी अलग-अलग मौसम और हालात मिलते हैं, इसलिए खिलाड़ियों को मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत होना चाहिए।

क्या पूरी तरह रोक लगाना मुमकिन है?

Rajeev Shukla ने इस बात को साफ़ कर दिया है कि यह कोई तुरंत लागू होने वाला फ़रमान नहीं है। यह सिर्फ एक सुझाव नहीं, बल्कि नीति के स्तर पर शुरू हुई एक गंभीर बातचीत है। बीसीसीआई इस पर सभी पक्षों की राय सुनकर ही कोई ठोस फैसला लेगी।

फिलहाल कुछ व्यावहारिक विकल्पों पर चर्चा की जा रही है, जैसे —

सर्दियों में सिर्फ डे मैच कराए जाएँ

सीमित ओवरों के मुकाबलों को तरजीह दी जाए

ज़्यादा प्रदूषण वाले शहरों से मैच हटाए जाएँ

उत्तर भारत में क्रिकेट सिर्फ फरवरी–मार्च के महीनों तक सीमित रखा जाए

आगे का रास्ता क्या होगा?

कुल मिलाकर देखा जाए तो Rajeev Shukla का बयान भारतीय क्रिकेट के लिए एक चेतावनी भी है और एक मौका भी। अगर BCCI

खिलाड़ियों की सेहत

खेल की क्वालिटी

और दर्शकों के अनुभव

इन तीनों बातों को सबसे ऊपर रखती है, तो सर्दियों में उत्तर भारत में क्रिकेट को सीमित करना या कुछ वक्त के लिए रोक देना एक समझदारी भरा और व्यावहारिक फैसला साबित हो सकता है।

अब सबकी नज़रें आने वाले महीनों पर टिकी हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि BCCI इस सुझाव को सिर्फ चर्चा तक सीमित रखती है या इसे नीति का रूप भी देती है। लेकिन इतना तय है कि “विंटर क्रिकेट” पर बहस अब टलने वाली नहीं है।

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