Table of Contents
क्यों बना फोकस Microsoft पर
Norway Sovereign Wealth Fund ने इस साल Microsoft की AGM में Satya Nadella के खिलाफ किन दो अहम बातों पर मतदान किया :पहला इस फंड ने Nadella को बोर्ड का चेयर (Chair) दोबारा बनाए जाने के प्रस्ताव के खिलाफ वोट डाला।
यानी, उन्हें नहीं लगा कि एक ही शख्स CEO और बोर्ड चेयर दोनों बने यह सही गवर्नेंस है। दूसरा उन्होंने Nadella की सैलरी / पारिश्रमिक (compensation package) के खिलाफ भी वोट किया।
उन्हें माना कि इतनी भारी-भरकम पगार ख़ासकर जब यह पैकेज शेयरों और पुरस्कारों (stock awards) में हो वाजिब नहीं। अगर चाहें, तो मैं बाकी शेयरधारकों की “हाँ”-मत के पीछे क्या तर्क थे, वो भी बता सकता हूँ ताकि पूरी तस्वीर दिखे।
बोर्ड चेयर vs CEO — दोहरी भूमिका पर आधारित आपत्ति
नॉर्वे वाला जो बड़ा फंड है ना उसकी एक साफ-सुथरी पॉलिसी है कि किसी भी कंपनी में CEO और बोर्ड चेयर दोनों कुर्सियाँ एक ही शख्स के पास नहीं होनी चाहिए।
उनके हिसाब से, ताक़त बराबर बँटी रहनी चाहिए, वरना फैसले लेते वक़्त पारदर्शिता कम हो जाती है।इस बार उन्होंने Satya Nadella की दोनों पोस्ट (CEO + Chair) पर दोबारा तैनाती को मंज़ूर नहीं किया।
उनका कहना है कि अगर CEO ही बोर्ड का सरदार भी बन जाए, तो कंपनी में checks and balances कमज़ोर पड़ जाते हैं यानी फैसलों पर रोक-टोक, पूछताछ और जवाबदेही कम हो सकती है।
उनकी समझ में, इतनी बड़ी सार्वजनिक कंपनी (public-listed giant) में सारी ताक़त एक ही इंसान के हाथ में आ जाना ख़तरे की घंटी जैसा है।इसलिए उन्होंने कहा कि कंपनी चाहे कितनी भी शानदार क्यों न हो, गवर्नेंस साफ़ और बैलेंस्ड होना ज़रूरी है तभी शेयरहोल्डर्स और कंपनी दोनों की हिफ़ाज़त बनी रहती है।
ऐक्सेसिव Compensation Package — “ज़्यादा बोनस, कम शर्तें” को नकार
दूसरी बड़ी आपत्ति Executive Pay, यानी बॉस-लेवल सैलरी को लेकर थी।नॉर्वे वाले फंड को लगा कि Satya Nadella की तन्ख़्वाह, बोनस और बाकी फायदे जो पैकेज में हैं वो हद से ज़्यादा भारी-भरकम हैं, इसलिए उन्होंने उस पर सीधा “ना” बोल दिया।
फंड का कहना कुछ ऐसा है कि अमेरिका की बड़ी कंपनियों में अक्सर होता ये है कि टॉप बॉस को करोड़ों में पेमेंट दे दिया जाता है, लेकिन इसके पीछे कोई लंबी पाबंदी या लॉक-इन शर्तें नहीं होतीं।

मतलब बोनस मिला और तुरंत कैश, बस कहानी ख़त्म।लेकिन नॉर्वे फंड का नज़रिया अलग है उनके हिसाब से कम से कम पे पैकेज का कुछ हिस्सा ऐसा होना चाहिए जो कंपनी की लंबी उम्र और हितों से जुड़ा रहे।
यानी टॉप बॉस तभी फायदा उठाए जब कंपनी भी सालों तक अच्छे से आगे बढ़े।सिर्फ आज का बोनस नहीं भविष्य की ज़िम्मेदारी भी।
क्या यह सिर्फ Nadella के खिलाफ था? नहीं यह वोट केवल Satya Nadella के लिए नहीं था, बल्कि Microsoft जैसी बड़ी-बड़ी दिग्गज कंपनियों को एक चेतावनी और मैसेज की तरह देखा जा रहा है कि कॉर्पोरेट गवर्नेंस का लेवल ऊँचा होना चाहिए, वरना दुनिया देख रही है।
इसलिए फंड ने साथ ही मानवाधिकार रिपोर्टिंग (Human Rights Report) जैसे प्रस्तावों के पक्ष में भी वोट किया ताकि कंपनी अपने ग्लोबल बिज़नेस के सामाजिक और पर्यावरणीय असर पर भी ध्यान दे।
यानी सिर्फ मुनाफ़ा नहीं, इंसानियत और ज़िम्मेदारी भी मायने रखती है। इससे बिल्कुल साफ़ हो गया कि नॉर्वे फंड का नज़रिया सिर्फ पैसे कमाने तक सीमित नहीं है।
वो चाहते हैं पारदर्शिता, जवाबदेही, लंबी अवधि की स्थिरता और कंपनी का तिजारती नहीं, बल्कि ज़िम्मेदार रवैयाकहने का मतलब नफ़ा कमाओ, लेकिन दुनिया और शेयरहोल्डर्स के भरोसे की क़ीमत पर नहीं।
Microsoft का रिएक्शन — वोटिंग के बावजूद Nadella को मिली मंजूरी
हाँ, नॉर्वे फंड ने कड़ा विरोध किया, लेकिन बाकी शेयरधारकों ने Satya Nadella की दोबारा नियुक्ति और उनके Executive Pay Package को समर्थन दे दिया।
इसका मतलब साफ़ है कि नॉर्वे फंड की नीति और आवाज़ अकेली रह गई और Microsoft की व्यवस्था पहले जैसी थी, वैसी ही आगे भी चलती रहेगी।
क्यों यह घटना इतनी अहम है Corporate Governance का असली सवालयह वोट सिर्फ कोई “स्टॉक मार्केट वाली खबर” नहीं था…इसने एक बहुत बड़ा और गंभीर सवाल खड़ा कर दिया:
क्या एक ही व्यक्ति के पास इतना जटिल और विशाल अधिकार होना सही है?CEO + Board Chair + Compensation पर प्रभाव क्या यह शक्ति का अत्यधिक केंद्रीकरण नहीं?
जब कंपनी इतनी बड़ी हो, और दुनिया भर में लाखों निवेशक हों तो क्या सिर्फ प्रबंधन या मालिकों की ही मर्जी चलेगी? Checks & Balances कहाँ जाएंगे?जवाबदेही कौन सुनिश्चित करेगा?
इस वोट ने एक छिपा हुआ संदेश भी सामने ला दिया कि आधुनिक टेक कंपनियों की दुनिया में Corporate Governance के नियम और संतुलन कितने आवश्यक हैं।क्योंकि अगर शक्ति पूरी तरह एक ही व्यक्ति के हाथ में सिमट जाए,तो परिणाम चाहे शानदार आएं… लेकिन जवाबदेही का भाव कमजोर पड़ जाता है।
तो हाँ, प्रस्ताव पास हो गया, Microsoft की व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं हुआ…लेकिन पूरी कॉरपोरेट दुनिया के लिए यह घटना एक बड़ा सवाल छोड़ गई: विकास का असली भविष्य क्या है सारी ताकत एक हाथ में, या ज़िम्मेदारी सबके बीच बाँटकर?
क्या एग्जीक्यूटिव पेज और बड़े बोनस को सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारियों के साथ बाँधा जाए?
अगर इन सवालों पर सच-मुच गंभीरता से सोचा गया, तो आने वाले वक्त में टेक दिग्गज कंपनियों की पूरी बनावट नीतियाँ, फैसले लेने का तरीका और पारदर्शिता सब बदल सकते हैं।यानी यह बहस सिर्फ “एक वोट” की बात नहीं है भविष्य की corporate दुनिया तक जा रही है।
अंतरराष्ट्रीय असर दुनिया भी देख रही है, भारत भीनॉर्वे फंड जैसा बड़ा निवेशक जो कदम उठा रहा है, वह सिर्फ Microsoft तक सीमित नहीं है।
यह पूरे global बाजार को संदेश दे रहा है कि बड़ा निवेश अब सिर्फ मुनाफ़े से नहीं जुड़ा बल्कि ज़िम्मेदारी, ethics और लंबी उम्र वाली वैल्यू से जुड़ा है।
भारत के निवेशक भी चाहे वो खुद शेयर खरीदते हों या mutual funds / pension funds के ज़रिए निवेश करते हों अब ऐसी ही नीतियों की तरफ ध्यान दे रहे हैं, जहां कंपनी long-term value के साथ सामाजिक ज़िम्मेदारी निभाए।
नॉर्वे फंड का वोट असल में क्या दिखाता हैये साफ़ दिखाता है कि दुनिया के बड़े निवेशक अब सिर्फ पैसे नहीं देख रहे।अब वो मांग कर रहे हैं नैतिकता (ethics) जवाबदेही (accountability) दीर्घकालिक स्थिरता (long-term sustainability)भले ही इस बार Satya Nadella को दोबारा चुन लिया गया।
लेकिन संस्थागत निवेशकों का मिज़ाज बदल चुका है। अब वो सिर्फ “performance” नहीं बल्कि ज़िम्मेदारी और transparency भी चाहते हैं।
आगे का रास्ता कंपनियाँ क्या सीखेंअगर Microsoft जैसी दिग्गज कंपनियाँ आगे भी investors, कर्मचारियों, सरकारों और समाज सबका भरोसा बनाए रखना चाहती हैं,तो उन्हें सिर्फ तकनीक और मुनाफा नहीं,बल्कि पारदर्शिता, संतुलन और ज़िम्मेदारी को भी अपने corporate संस्कार का हिस्सा बनाना पड़ेगा।
क्योंकि 2025 का यह वोट सिर्फ एक मीटिंग या एक रिज़ल्ट नहीं —यह Corporate Governance में आने वाले बड़े बदलाव की दस्तक हो सकता है।
यह भी पढ़ें –



