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Cough Syrup Case: जब दवाई ही बन गई मौत की वजह!
Cough Syrup Case: जिसे ज़िंदगी बचाने के लिए बनाया जाता है, वही अगर मौत का ज़रिया बन जाए, तो सोचिए कितना दर्दनाक मंजर होता होगा। इंसान जिस पर भरोसा करता है, वही अगर उसकी जान ले ले तो उस हादसे का असर सिर्फ एक परिवार पर नहीं, पूरे समाज पर पड़ता है। हाल ही में ऐसा ही एक डरावना मामला सामने आया है — भारत में दूषित कफ सिरप (Cough Syrup) का, जिसने कई मासूम बच्चों की ज़िंदगी छीन ली।

ये कोई छोटी-मोटी बात नहीं है, बल्कि एक ऐसी त्रासदी है जिसने हमारी हेल्थ सिस्टम और दवा नियामक व्यवस्था दोनों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। ये हादसा किसी एक शहर या राज्य तक सीमित नहीं रहा ये तो पूरे देश को झकझोर देने वाला मामला बन गया है।
सबसे ज़्यादा चर्चा इस मामले की मध्य प्रदेश में हुई ख़ासकर छिंदवाड़ा (Chhindwara), बैतूल (Betul) और पांढुर्ना (Pandhurna) जैसे इलाकों में। वहाँ जो हुआ, उसने हर माँ-बाप के दिल में डर बसा दिया है।
खबरों के मुताबिक़, कई छोटे बच्चों ने जब ये कफ सिरप लिया, तो कुछ ही घंटों या दिनों में उनकी तबियत बिगड़ने लगी। किसी को उल्टियाँ हुईं, किसी को तेज़ बुखार, और फिर हालत इतनी बिगड़ गई कि किडनी फेल्योर हो गया। डॉक्टरों ने पूरी कोशिश की, मगर सब बेकार साबित हुआ।
पहले बताया गया कि 17 बच्चों की मौत हुई है, लेकिन बाद में ये संख्या बढ़कर 20 से 21 तक पहुँच गई। और सबसे दर्दनाक बात इनमें ज़्यादातर बच्चे पाँच साल से भी छोटे थे। वो बच्चे, जो अभी ठीक से बोल भी नहीं पाते, जिन्होंने स्कूल का बैग तक नहीं उठाया था वो अब सिर्फ याद बनकर रह गए।
मकसद एक था खांसी ठीक करनी थी। मगर नतीजा ज़िंदगी छिन गई। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर ये कैसे हुआ? कौन जिम्मेदार है इन नन्हीं जानों की मौत का? यह घटना सिर्फ एक दवा या कंपनी की गलती नहीं, बल्कि हमारे सिस्टम की नाकामी को दिखाती है जहाँ जांच ढीली है, नियंत्रण कमजोर है, और कभी-कभी ज़िंदगी से ज़्यादा सस्ता पड़ जाता है मुनाफ़ा।
Cough Syrup Case किन किन राज्यों में हुए-
ये मामला सिर्फ एक राज्य तक सीमित नहीं रहा पूरा देश और दुनिया इस डर में जी रही है कि कहीं दवाई ही जान न ले ले। राजस्थान से भी एक दर्दनाक खबर आई। सीकर (Sikar) और भरतपुर (Bharatpur) के आसपास के इलाकों में एक पाँच साल का बच्चा दवाई लेने के बाद अचानक बीमार पड़ा, और कुछ ही घंटों में उसकी मौत हो गई। डॉक्टरों ने पूरी कोशिश की, लेकिन सब बेकार गया। अब इस पर जाँच चल रही है (षपरान्वेषण जारी) मगर सवाल वही है, आखिर ज़िम्मेदार कौन?
तेलंगाना में भी मामला गंभीर हो गया। वहाँ के स्टेट ड्रग कंट्रोल एडमिनिस्ट्रेशन (DCA) ने दो कफ सिरप Relife और Respifresh TR के इस्तेमाल पर तुरंत रोक लगाने का आदेश दे दिया है। दोनों सिरप में “adulturation” यानी मिलावट के सबूत मिले हैं, जो सीधा शरीर को नुकसान पहुँचा सकते हैं।
हरियाणा सरकार ने भी इस पर सख़्ती दिखाई। उन्होंने Coldrif Cough Syrup को सभी रिटेल दुकानों से हटाने का आदेश दिया है और उस पर warning label लगाने को कहा है ताकि कोई गलती से भी इसे इस्तेमाल न करे। वहीं पंजाब ने तो एक कदम आगे बढ़कर Coldrif Syrup को “non-standard quality” यानी घटिया क्वालिटी का बताते हुए पूरी तरह बैन कर दिया है।
अब बात यहीं खत्म नहीं होती। ये मामला भारत की सीमाओं से निकलकर दुनिया के कई देशों तक पहुँच चुका है। साल 2022 में गाम्बिया (Gambia) में भारतीय निर्मित कफ सिरप से 66 बच्चों की मौत हुई थी हाँ, 66 मासूम ज़िंदगियाँ सिर्फ इसलिए चली गईं क्योंकि दवा में जहर मिला हुआ था।
कारण: दवाई में अशुद्धियाँ, नियामक चूक
मासूम बच्चों की मौत की मुख्य वजह वही दवाई बन गई, जो उन्हें ठीक करने के लिए दी गई थी। इन कफ सिरपों में विषैले रसायन पाए गए खासकर Diethylene Glycol (DEG) और कभी-कभी Ethylene Glycol।
उदाहरण के तौर पर, Coldrif सिरप में परीक्षण में 48.6% तक DEG पाया गया जबकि वैध सीमा सिर्फ 0.1% है। यानी ये दवा हज़ारों गुना ज़्यादा जहरीली थी। इसी तरह Respifresh TR और Relife में भी DEG मिला हुआ था क्रमशः 1.342% और 0.616%।
ये रसायन शरीर में पहुँचते ही किडनी (गुर्दे) को नुकसान पहुँचाते हैं, जिससे किडनी फेल्योर हो सकता है। शुरुआत में लक्षण सामान्य सर्दी-जुकाम जैसे लगते हैं बुखार, खांसी, कमजोरी मगर कुछ ही समय में हालत इतनी बिगड़ जाती है कि मौत तक पहुँच सकती है।
दूसरे कारण भी हैं: कच्चे माल में गड़बड़ी औद्योगिक ग्रेड सामग्री का इस्तेमाल, जबकि फार्मास्यूटिकल ग्रेड होना चाहिए था। गुणवत्ता नियंत्रण की कमी हर बैच का परीक्षण नहीं करना। नियामक निगरानी कमजोर राज्य और केंद्र स्तर पर जाँच और कार्रवाई में देरी। स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता की कमी अक्सर दवाओं का प्रयोग डॉक्टर की सलाह के बिना।
अब बात करते हैं कार्रवाई की सरकार, पुलिस और न्याय व्यवस्था ने कदम उठाए हैं। मध्य प्रदेश में इस मामले में मांसहत्या (manslaughter) की प्राथमिकी दर्ज की गई। Coldrif बनाने वाली कंपनी Sresan Pharmaceuticals के मालिक S. Ranganathan को गिरफ्तार किया गया।
साथ ही prescribing डॉक्टरों और अन्य आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ भी जांच शुरू कर दी गई है। यह पूरा मामला दिखाता है कि कैसे कमज़ोर निगरानी, लापरवाही और मुनाफ़ा लालच मिलकर मासूम बच्चों की ज़िंदगी छीन लेते हैं। सच में, ये हादसा सिर्फ़ एक दवा की गलती नहीं, बल्कि हमारी सिस्टम की नाकामी का भी आईना है।
प्रतिबंध, होल्डिंग, रिकॉल
Cough Syrup Case में कदम उठाए जाने लगे हैं। सबसे पहले, Coldrif सिरप को अलग-अलग राज्यों में पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया। यानी अब इसे कहीं भी बेचना या इस्तेमाल करना मना है। Respifresh TR और Relife सिरप को भी रीकॉल कर लिया गया और इनके उत्पादन पर रोक लगा दी गई।
तेलंगाना (Telangana) DCA ने तो तुरंत ही “stop use notice” जारी कर दिया। मतलब, लोग तुरंत इसे इस्तेमाल करना बंद करें और अगर पास में स्टॉक है, तो उसे जमा कर दें। साथ ही ड्रग इंस्पेक्टरों ने हर जगह जाँच और कार्रवाई शुरू कर दी सभी फार्मेसियों, सरकारी और निजी अस्पतालों में संदिग्ध सिरप को जब्त किया जा रहा है।
इसका मकसद साफ़ है मासूमों की जान बचाना और दूषित दवाओं को बाज़ार से हटाना। सच कहें तो, यह कदम थोड़ा देर से आया है, लेकिन अब कम से कम लोग सतर्क हो रहे हैं और प्रशासन ने भी सख़्ती दिखाना शुरू कर दिया है।
नियामक सुधार एवं दिशा-निर्देश
Cough Syrup Case के बाद केंद्रीय और राज्य स्तर पर भी सख़्ती शुरू हो गई है। CDSCO ने सभी राज्य दवा नियंत्रकों को पत्र लिखा और हर राज्य इकाई को सख्त जांच बढ़ाने का निर्देश दिया। यानी अब हर बैच, हर कंपनी पर कड़ी नज़र रखी जाएगी।
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (NHRC) ने भी कदम उठाया और मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश की सरकारों को नोटिस भेजा। उन्हें आदेश दिया गया कि इस घटना की पूरी जांच करें और जिम्मेदारों को सज़ा दें।
कुछ राज्यों ने तो और आगे बढ़कर नई गाइडलाइन भी जारी की – Cough Syrup Case पर चेतावनी लेबल लगाना। बिक्री पर रोक लगाना। चिकित्सकों को सावधानी बरतने के निर्देश देना। बिहार सरकार ने राज्य में वितरित सभी कफ सिरपों का पुनः परीक्षण करने का आदेश दिया। और गुजरात जैसे प्रमुख फार्मा केंद्रों में निरीक्षण बढ़ा दिया गया, ताकि भविष्य में ऐसे हादसे न हों।
लेकिन इस पूरे मामले में गलतियाँ और लापरवाही भी साफ़ दिख रही हैं दो साल पहले इंदौर में जहरीले कफ सिरप के सैंपल फेल हो गए थे, लेकिन मामला दबा दिया गया। अनुचित परीक्षण प्रणाली – राज्य स्तर की प्रयोगशालाओं की विश्वसनीयता पर सवाल। फार्मा कंपनियों और राजनेताओं का दबाव – भ्रष्टाचार की आशंका बढ़ जाती है।
निगरानी का अभाव – विक्रेताओं के स्तर पर दवाओं की सत्यापन प्रक्रिया नहीं होती। इन सब वजहों से लोक विश्वास को भी झटका लगा – लोग अब मेडिकल सिस्टम पर सवाल उठाने लगे हैं। असल में, यह सिर्फ़ दवा की गलती नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की चूक और लापरवाही का परिणाम है।
समाधान और आगे की राह
इस पूरे मामले से साफ़ हो गया है कि सिर्फ़ दवा बनाना ही काफी नहीं, बल्कि उसके हर कदम पर सख़्त निगरानी और पारदर्शिता होना बेहद ज़रूरी है। कुछ जरूरी कदम जो उठाए जा सकते हैं –
गुणवत्ता नियंत्रण कड़ा करें – हर बैच का परीक्षण अनिवार्य हो और उसका निष्कर्ष जनता के लिए भी उपलब्ध कराया जाए। नियामक निगरानी मजबूत करें – केंद्र और राज्य की संयुक्त टीम हर स्तर पर दवाओं की जांच करे। स्वतंत्र लैब नेटवर्क – NABL-मान्यता प्राप्त लैब्स जो निष्पक्ष और भरोसेमंद जाँच कर सकें।
दवा वितरण चेन पारदर्शी बनाएं – कच्चे माल से लेकर दुकानों तक हर स्टेप ट्रेस किया जा सके। सख़्त दंडात्मक कार्रवाई – दोषी कंपनियों और उनके प्रबंधन को जीवन कारावास या भारी जुर्माना दिया जाए। लोक शिक्षा और डॉक्टर प्रशिक्षण – लोगों को समझाएँ कि दवाओं का अंधाधुंध इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, खासकर बच्चों में।
राष्ट्रीय हेल्थ रिसर्च और डेटा प्रणाली संदिग्ध मौतों की त्वरित पहचान और विश्लेषण हो। अंतर्राष्ट्रीय सहयोग – देशों के बीच दवा सुरक्षा मानकों को साझा करना और सीख लेना। ये सिर्फ़ तकनीकी कदम नहीं हैं, बल्कि मानवीय और नैतिक जिम्मेदारी भी हैं।
Cough Syrup Case से हुई मौतें केवल एक राज्य या शहर की समस्या नहीं हैं। यह हमारी स्वास्थ्य प्रणाली, नियामक तंत्र और समाज की चेतना की भी त्रासदी है। जब एक साधारण दवा, जिसे हम भरोसे से लेते हैं, वह खतरनाक बन जाए, तो यह सिर्फ़ टेक्नोलॉजी का मुद्दा नहीं, बल्कि हमारी ज़िम्मेदारी भी बन जाती है।
भारत में हाल की घटनाओं ने यह साफ़ कर दिया है कि दवा सुरक्षा प्रणाली में स्थायी सुधार बेहद जरूरी है। सरकार, न्यायपालिका और समाज सभी के लिए यह एक सख़्त चुनौती है कि हम कभी भी ऐसी त्रासदी दोबारा न देख पाएँ।
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