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Delhi में AQI Severe Alert हर साल वही कहानी
दीवाली की रात जैसे ही खत्म होती है, पटाखों की आवाज़ थमती है, और अगली सुबह जब लोग खिड़की खोलते हैं, तो रौशनी की जगह धुएँ और धुंध का कंबल नजर आता है। हर साल की तरह इस बार भी वही कड़वी सच्चाई लौट आई है खुशियों की रात के बाद, दमघोंटू सुबह का सामना।

इस बार भी मौसम विभाग और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पोस्ट-दीवाली स्मॉग अलर्ट जारी किया है। मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि 19 से 21 अक्टूबर के बीच Delhi NCR का एयर क्वालिटी इंडेक्स AQI ‘गंभीर (Severe)’ श्रेणी को पार कर सकता है यानी वो स्तर जहाँ हवा में सांस लेना भी नुकसानदेह बन जाता है
क्यों बढ़ता है प्रदूषण दीवाली के बाद?
ये सवाल हर साल उठता है, लेकिन जवाब वही पुराने हैं मगर हालात हर साल और भी खराब होते जा रहे हैं। दीवाली के बाद हवा जहरीली बनने के पीछे कई वजहें हैं, जो मिलकर Delhi को एक “गैस चेंबर” बना देती हैं।
पटाखों का धुआँ और केमिकल गैसें: पटाखों में इस्तेमाल होने वाले रसायन जैसे सल्फर, नाइट्रेट्स, कार्बन और हैवी मेटल जलने के बाद हवा में मिलकर एक जहरीला धुआँ बनाते हैं। ये धुआँ हवा में कई दिनों तक तैरता रहता है और सांस के ज़रिए हमारे शरीर में घुस जाता है।
पराली जलने का असर: पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में फसल कटाई के बाद पराली जलाई जाती है। इसका धुआँ हवा के साथ बहकर दिल्ली तक पहुँचता है। जब ये धुआँ दिल्ली की पहले से मौजूद प्रदूषित हवा में मिलता है, तो शहर का आसमान पूरी तरह धूसर हो जाता है।
ठंडी और स्थिर हवाएँ
इस मौसम में हवाएँ बहुत धीमी और ठंडी होती हैं। इससे प्रदूषक फैल नहीं पाते, और नीचे ही जमा हो जाते हैं। धुआँ ज़मीन के करीब अटक जाता है, और यही वो स्मॉग बनता है जो आंखों में जलन, सांस लेने में तकलीफ़ और सीने में भारीपन पैदा करता है।
वाहनों और फैक्ट्रियों का धुआँ:
Delhi में लाखों गाड़ियाँ रोज़ सड़कों पर उतरती हैं, जिनसे निकलने वाला धुआँ हवा की पहले से बिगड़ी हालत को और बदतर बना देता है। ऊपर से फैक्ट्रियों और निर्माण स्थलों का धूल-धुआँ इस जहरीले मिश्रण में अपनी हिस्सेदारी डाल देता है|
Delhi बन रही है “गैस चेंबर”
Delhi की हालत ऐसी हो जाती है कि सूरज की रोशनी भी ठीक से नहीं दिखती। आसमान में धुंध की मोटी चादर छा जाती है, सड़कों पर ट्रैफिक लाइट्स तक धुंधली दिखने लगती हैं। लोग मास्क पहनते हैं, पर फिर भी आंखों में जलन, गले में खराश और सांस लेने में परेशानी से बच नहीं पाते।
2023 में दीवाली के अगले दिन Delhi का औसत AQI 450 के पार चला गया था जो मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक श्रेणी में आता है। इस बार दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC) का कहना है कि हालात शायद पिछले साल से भी ज़्यादा खराब हो सकते हैं।
डॉक्टरों और एक्सपर्ट्स की चेतावनी
स्वास्थ्य विशेषज्ञ साफ़ चेतावनी दे रहे हैं इस हवा में बुजुर्गों, बच्चों और अस्थमा या दिल के मरीज़ों के लिए बाहर निकलना बेहद खतरनाक हो सकता है। डॉक्टरों के मुताबिक, हवा में मौजूद PM2.5 और PM10 जैसे छोटे-छोटे कण हमारे फेफड़ों में जाकर जमा हो जाते हैं, जिससे सांस की बीमारियाँ, खांसी, थकान और दिल की दिक्कतें बढ़ सकती हैं।
पटाखों का असर कुछ घंटे की खुशी, कई दिनों की तकलीफ
हालाँकि सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी (NGT) ने Delhi और NCR में पटाखों की बिक्री और जलाने पर साफ़-साफ़ पाबंदी लगा रखी है, लेकिन हकीकत में ये आदेश हर साल काग़ज़ों तक ही सीमित रह जाते हैं। दीवाली की रात जैसे ही आती है, लोग रोक-टोक को भूलकर फिर वही पुरानी गलती दोहराते हैं पटाखों की बरसात और धुएँ की बारिश।
इस साल भी कुछ ऐसा ही हुआ। सोशल मीडिया पर कई वीडियो वायरल हुए, जिनमें साफ़ दिख रहा था कि अलग-अलग इलाक़ों में लोग खुलकर पटाखे जला रहे हैं। बहुत से लोग ‘ग्रीन पटाखों’ के नाम पर प्रतिबंधित पटाखे फोड़ते नज़र आए मतलब नाम भले बदल गया हो, मगर असर वही ज़हरीला धुआँ ही रहा।
कितना नुकसान पहुँचाते हैं ये पटाखे?
पर्यावरण विशेषज्ञों के मुताबिक, दीवाली की रात Delhi और आस-पास के इलाक़ों में करीब 4,000 से 5,000 टन तक PM2.5 और PM10 कण हवा में मिल जाते हैं। ये वही बेहद सूक्ष्म प्रदूषक कण हैं जो दिखाई तो नहीं देते, लेकिन हमारी हर साँस के साथ फेफड़ों में उतर जाते हैं।
एक बार जब ये कण शरीर के अंदर चले जाते हैं, तो धीरे-धीरे सांस की तकलीफ़, अस्थमा, खांसी, और दिल की बीमारियाँ बढ़ाने लगते हैं। डॉक्टरों का कहना है कि ये ज़हरीले कण सिर्फ़ हवा नहीं बिगाड़ते, बल्कि इम्यून सिस्टम को भी कमज़ोर कर देते हैं यानि असर सिर्फ़ बाहर नहीं, अंदर तक जाता है।
डॉक्टरों की चेतावनी: “धुआँ दीवाली की रात तक नहीं रुकता”
AIIMS के मशहूर डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने इस बार एक बेहद अहम बात कही। उनका कहना है – “पटाखों से निकलने वाला धुआँ सिर्फ़ कुछ घंटे नहीं रहता। यह वातावरण में कई दिनों तक जमा रहता है, और जैसे-जैसे तापमान गिरता है, हवा की गुणवत्ता और भी खराब होती जाती है।”
उनकी बात बिल्कुल सच है। ठंडी हवा भारी हो जाती है और ऊपर नहीं उठती यानी पटाखों से निकला धुआँ ज़मीन के आस-पास ही फँस जाता है। सुबह जब लोग बाहर निकलते हैं, तो वही धुआँ उनके फेफड़ों में उतर जाता है। इसलिए डॉक्टरों की सलाह है कि दीवाली के बाद कुछ दिन सुबह-सुबह टहलने या दौड़ने से बचें, खिड़कियाँ बंद रखें, और घर में अगर मुमकिन हो तो एयर प्यूरीफ़ायर चलाएँ।
“रोक सिर्फ़ नाम की, अमल कोई नहीं”
यह भी कड़वी सच्चाई है कि Delhi में पटाखों पर रोक का अमल बेहद कमजोर है। पुलिस और प्रशासन हर साल सख़्ती की बात करते हैं, मगर दीवाली की रात जैसे ही आती है, कानून की आवाज़ पटाखों के धमाकों में दब जाती है।
कई जगहों पर तो खुलेआम ऑनलाइन और ब्लैक मार्केट में पटाखे बेचे गए। ‘ग्रीन पटाखे’ का नाम देकर वही पुराने केमिकल भरे बम और रॉकेट जलाए गए। लोगों का कहना है “बस एक दिन की बात है”, लेकिन उस एक रात का असर कई दिनों तक हमारी साँसों में बना रहता है।
दीवाली खुशियों का त्योहार है रोशनी, अपनापन और मिठास का। मगर जब उसी रात का धुआँ अगले दिन बच्चों और बुज़ुर्गों की साँसें रोकने लगे, तो सोचिए, क्या ये सच में खुशी रह जाती है? सच्ची दीवाली वो होगी, जब हम पटाखों की जगह दीयों से रोशनी फैलाएँ, धुएँ की जगह दुआएँ बाँटें, और आसमान को ज़हर से नहीं, उम्मीदों की चमक से भरें।
पराली की समस्या दिल्ली का ‘अनचाहा मेहमान’
हर साल की तरह इस बार भी पराली जलाने का मसला फिर से चर्चा में आ गया है। अक्टूबर का महीना शुरू होते ही पंजाब और हरियाणा के खेतों में धान की कटाई पूरी होती है, और उसके बाद किसान अपनी जमीन साफ़ करने के लिए पराली को आग लगा देते हैं। अब ये आग तो कुछ घंटों की होती है, लेकिन इसका धुआँ हफ़्तों तक आसमान में तैरता रहता है और आखिरकार Delhi -NCR की हवा में मिलकर ज़हर घोल देता है।
पराली जलाने की बढ़ती घटनाएँ
सफर (System of Air Quality and Weather Forecasting and Research) के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक, सिर्फ़ पंजाब में ही अब तक 7,000 से ज़्यादा पराली जलाने के केस दर्ज किए जा चुके हैं। ये आंकड़ा साफ़ दिखाता है कि समस्या हर साल की तरह इस बार भी काबू में नहीं आई। जहाँ एक ओर किसान इसे मजबूरी बताते हैं, वहीं दूसरी ओर पर्यावरण विशेषज्ञ इसे दिल्ली की सांसों का सबसे बड़ा दुश्मन मानते हैं।
पश्चिमी हवाएँ जब चलती हैं, तो ये धुएँ का बादल सीधा Delhi और आसपास के इलाक़ों की ओर बढ़ता है। वहाँ पहले से मौजूद वाहनों, फैक्ट्रियों और पटाखों के धुएँ के साथ मिलकर हवा को और भी जहरीला बना देता है।
दिल्ली की हवा पर असर
इस धुएँ का असर Delhi वालों की ज़िंदगी पर साफ़ नज़र आता है। सुबह का आसमान धुंध से भर जाता है, सूरज की किरणें भी जैसे धुएँ की चादर में छिप जाती हैं। लोगों की आँखों में जलन, गले में खराश और साँस लेने में तकलीफ़ बढ़ जाती है।
कई जगहों पर स्कूल बंद करने और कंस्ट्रक्शन रोकने जैसी नौबत आ जाती है। डॉक्टरों का कहना है कि ये धुआँ सिर्फ़ एलर्जी नहीं बढ़ाता, बल्कि फेफड़ों और दिल दोनों को गंभीर नुकसान पहुँचाता है खासकर बुज़ुर्गों और बच्चों के लिए ये और भी ख़तरनाक है।
किसानों की मजबूरी भी है असली वजह
अब सवाल ये उठता है कि किसान ऐसा करते क्यों हैं? असल में, धान की कटाई के बाद खेतों में जो पराली बच जाती है, उसे हटाने के लिए न तो सस्ता श्रम मिलता है, न सस्ता साधन। खेती की लागत पहले ही बढ़ चुकी है, इसलिए किसान आग लगाकर तेज़ और सस्ता तरीका अपनाते हैं, ताकि अगली फसल गेहूँ की बुवाई वक्त पर हो सके।
किसानों का कहना है कि अगर सरकार उन्हें मशीनें और मुआवज़ा सही समय पर दे, तो वो पराली जलाने के बजाय उसे खेत में ही रीसायकल कर सकते हैं। लेकिन जब मदद देर से या अधूरी मिलती है, तो वो फिर से पुराना तरीका ही अपनाते हैं आग लगाना।
सरकार के उपाय – मगर असर कम
Delhi सरकार ने पिछले कुछ सालों में “स्मॉग टावर”, “एंटी-स्मॉग गन” और “रेड लाइट ऑन, गाड़ी ऑफ़” जैसे अभियान शुरू किए हैं। मकसद है हवा को कुछ हद तक साफ़ रखना, लेकिन एक्सपर्ट्स का कहना है कि ये सब अस्थायी उपाय हैं। असल समस्या खेतों में है, और जब तक वहाँ की खेती की नीति और फसल चक्र नहीं बदलेंगे, तब तक दिल्ली की हवा यूँ ही दूषित होती रहेगी।
असली हल – खेती का नया रास्ता
कई विशेषज्ञों का मानना है कि अगर पंजाब और हरियाणा में किसान धान की जगह कम पानी वाली और जल्दी पकने वाली फसलें अपनाएँ, तो पराली की समस्या काफी हद तक घट सकती है।
सरकार चाहे तो किसानों को पराली प्रबंधन मशीनें, सब्सिडी, और फसल बीमा देकर उन्हें पराली जलाने से रोक सकती है। मगर जब तक ये नीतियाँ जमीन पर लागू नहीं होतीं, तब तक दिल्ली की हवा और लोगों की सांसें हर साल इसी धुएँ की गिरफ्त में रहेंगी।
पराली जलाना सिर्फ़ किसानों की या सरकार की नहीं, बल्कि हम सबकी ज़िम्मेदारी का मामला है। जब तक हम सब मिलकर इसका हल नहीं निकालेंगे, तब तक हर अक्टूबर-नवंबर में दिल्ली का आसमान यूँ ही धुंध से ढका रहेगा, और लोग कहेंगे “फिर से वही मौसम आ गया… जब साँस लेना भी मुश्किल लगता है।”
मौसम की भूमिका ठंडी हवा, स्थिर वातावरण
अक्टूबर के आख़िरी हफ़्ते में जैसे ही रातें ठंडी होने लगती हैं, तापमान में गिरावट आती है और हवा की रफ्तार भी कम हो जाती है। जब हवा धीमी हो जाती है, तो प्रदूषक ज़मीन के करीब फँस जाते हैं और हवा में जम जाते हैं।
मौसम विभाग का कहना है “इस बार हवा की गति 5 किमी/घंटा से भी कम रहेगी, जिससे स्मॉग की मोटी परत आसानी से नहीं टूटेगी।” यानि, दीवाली के बाद कम से कम 3 से 4 दिन तक दिल्ली की हवा में कोई सुधार देखने को नहीं मिलेगा।
वाहनों और निर्माण का असर
दिल्ली में करीब 1.2 करोड़ से ज़्यादा वाहन पंजीकृत हैं। इनमें से बहुत से अब भी पुराने डीज़ल वाहन हैं, जिनसे निकलने वाला धुआँ हवा को और जहरीला बना देता है। इसके अलावा, शहर में लगातार निर्माण कार्य, धूल उड़ाने वाले प्रोजेक्ट्स और औद्योगिक धुआँ भी प्रदूषण में इज़ाफ़ा करते हैं।
सामान्य लोगों की समझ में ये छोटे-छोटे कारण रोज़मर्रा की ज़िंदगी में देखने में नहीं आते, लेकिन मिलकर ये हवा को साँस लेने लायक नहीं छोड़ते। दिल्ली सरकार के कदम – GRAP दिल्ली सरकार ने ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) के तहत कुछ अहम कदम उठाए हैं:
निर्माण कार्यों पर आंशिक रोक
डीज़ल वाहनों की निगरानी
स्कूलों में आउटडोर खेल गतिविधियों पर नियंत्रण
सड़क पर पानी का छिड़काव
एंटी-स्मॉग गन का इस्तेमाल
लेकिन सवाल ये है कि ये उपाय दीर्घकालिक असर डाल पाएँगे या नहीं। एक तरफ़ ये उपाय प्रदूषण को थोड़ा कम कर सकते हैं, तो दूसरी तरफ़ जड़ से समस्या का समाधान नहीं कर पाएँगे।
स्वास्थ्य पर असर और समाधान
Delhi की हवा: साइलेंट किलर बनती जा रही है
WHO यानी वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार, वायु प्रदूषण अब बस “साइलेंट किलर” बन चुका है।Delhi जैसे शहरों में रहने वाले लोगों को साल के लगभग 8 महीने तक खराब या बेहद खराब हवा में सांस लेनी पड़ती है। इसका असर सिर्फ बुज़ुर्गों और बच्चों पर नहीं, बल्कि गर्भवती महिलाओं, हृदय रोगियों और फेफड़ों की बीमारियों वाले लोगों पर भी बहुत गंभीर रूप से पड़ता है।
स्वास्थ्य पर असर
डॉक्टरों के मुताबिक, प्रदूषित हवा से कई तरह की समस्याएँ बढ़ जाती हैं: अस्थमा और ब्रोंकाइटिस के केस बढ़ जाते हैं आँखों में जलन और एलर्जी होती है थकान, चक्कर और नींद की कमी महसूस होती है दीर्घकालिक असर – फेफड़ों की क्षमता कम हो जाती है
इसलिए विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि दीवाली के बाद लोग:
एन95 मास्क का इस्तेमाल करें, सुबह की सैर और आउटडोर एक्सरसाइज से बचें, घरों में एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल बढ़ाएँ, बच्चों और बुज़ुर्गों को बाहर जाने से बचाएँ
Delhi की हवा को साफ़ करना सिर्फ सरकार की ज़िम्मेदारी नहीं, Delhi की हवा को साफ़ करने में हर नागरिक की भागीदारी बहुत अहम है। सिर्फ़ “पटाखे मत जलाओ” कह देने से कुछ नहीं बदलेगा, जब तक लोग खुद जिम्मेदारी नहीं उठाएँगे।
कुछ छोटे लेकिन असरदार कदम:
पब्लिक ट्रांसपोर्ट का ज़्यादा इस्तेमाल करें. अपने वाहनों की सर्विसिंग और एमिशन टेस्ट समय पर कराएँ, घर और ऑफिस में पौधे लगाएँ – जैसे मनी प्लांट, स्नेक प्लांट, पीस लिली, कचरा या प्लास्टिक जलाने से बचें. स्थानीय स्तर पर प्रदूषण रिपोर्टिंग को बढ़ावा दें, अगर हम सब मिलकर ये छोटी-छोटी कोशिशें करें,. तो हवा में असली बदलाव संभव है।
दीवाली का असली संदेश
दीवाली का मतलब सिर्फ़ रोशनी और खुशियाँ नहीं, बल्कि अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ना है। लेकिन अगर हमारी अपनी खुशियाँ दूसरों की साँसें छीनने लगें, तो हमें रुककर सोचना चाहिए।
Delhi की हवा अब सिर्फ़ एक शहर की समस्या नहीं रही, ये पूरे उत्तर भारत का साझा संकट बन चुकी है। अगर अब भी हम नहीं चेते, तो आने वाले सालों में दीवाली की चमक के साथ आँखों की जलन और खाँसी भी “नया सामान्य” बन जाएगी।
इसलिए इस बार दीवाली के बाद सबसे बड़ा संकल्प यही होना चाहिए “हम अपनी आने वाली पीढ़ी को साफ हवा में सांस लेने का हक़ देंगे।” हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए हमारी यह ज़िम्मेदारी है कि हम पर्यावरण को सुरक्षित रखें जिससे आने वाली पीढ़ी को एक साफ़ और सुंदर वातावरण मिले। धन्यवाद!
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