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Delhi के आकाश में गुज़र गया एक ख़तरा-अलर्ट
Delhi -एनसीआर की हवा इस दीवाली के बाद फिर से ज़हर बन चुकी है। ऐसा लग रहा है जैसे शहर ने एक बार फिर “साँस लेना भी मुश्किल” वाला दर्जा हासिल कर लिया हो। पिछले कुछ दिनों में हवा की हालत इतनी बिगड़ी है कि हवा-गुणवत्ता सूचकांक AQI तेजी से ऊपर चढ़ गया है|

अब इसे सिर्फ “खराब” नहीं बल्कि “बहुत खराब” और “गंभीर” कैटेगरी में रखा जा रहा है। चलिए ज़रा आसान ज़ुबान में समझते हैं कि ये सब हुआ कैसे, क्यों हुआ, इसका असर किन पर पड़ा और आगे क्या किया जा सकता है।
दीवाली के बाद हवा में जहर क्यों घुल गया?
त्योहार के बाद, यानि मंगलवार और बुधवार को, Delhi की हवा अचानक भारी हो गई। पटाखों के धुएँ, गाड़ियों के धुएँ और खेतों में पराली जलने के असर ने मिलकर पूरा माहौल धुँधला कर दिया।
स्विट्ज़रलैंड की एयर मॉनिटरिंग कंपनी AQI ने Delhi को “दुनिया का सबसे ज़्यादा प्रदूषित बड़ा शहर” बताया। वहीं, CPCB (Central Pollution Control Board) के आंकड़ों के मुताबिक बुधवार सुबह Delhi का औसत AQI करीब 345 दर्ज हुआ जो कि “बहुत खराब” कैटेगरी में आता है।
लेकिन हालात यहीं नहीं रुके। गुरुवार तक Delhi और एनसीआर के कई इलाकों में हालात और बिगड़ गए। आनंद विहार जैसे इलाकों में AQI 428 तक पहुँच गया जो “गंभीर” स्तर है। मतलब, ये वो हालत है जहाँ साफ हवा में साँस लेना किसी लक्ज़री जैसा लगने लगता है।
लोगों पर इसका क्या असर पड़ रहा है?
अब बात करें लोगों की तो असर हर किसी पर पड़ रहा है बूढ़ों से लेकर बच्चों तक। साँस लेने में तकलीफ़, गले में जलन, आँखों में खुजली और सर दर्द जैसी शिकायतें लगातार बढ़ रही हैं।
अस्थमा, ब्रॉन्काइटिस और एलर्जी वाले लोगों के लिए तो यह हवा सीधे खतरे जैसी है। डॉक्टरों का कहना है कि इतने ज़हरीले धुएँ में रहना रोज़ाना कई सिगरेट पीने जैसा नुकसान देता है। एक डॉक्टर ने मज़ाकिया लेकिन कड़वी बात कही “दिल्ली में बिना सिगरेट पिए भी आप स्मोकर बन जाते हैं।”
मौसम क्या कह रहा है?
मौसम विभाग और प्रदूषण मॉनिटर करने वाली एजेंसियों ने चेतावनी दी है कि आने वाले कुछ दिनों में राहत मिलने की उम्मीद बहुत कम है। क्योंकि इस वक्त हवा की गति बहुत कम है, और तापमान भी नीचे जा रहा है, जिससे ज़हरीले कण नीचे ही अटके रहते हैं। सीधे शब्दों में कहें तो हवा में घुला धुआँ ऊपर उठ ही नहीं पा रहा, इसलिए पूरा शहर उस ज़हर को रोज़ साँस के साथ अंदर खींच रहा है।
पराली और ट्रैफिक – दो बड़े कसूरवार: हर साल की तरह इस बार भी दो मुख्य कारण सामने आए हैं पराली जलाना: पंजाब, हरियाणा और आसपास के राज्यों में खेतों में पराली जलाने का असर दिल्ली तक आता है।
ट्रैफिक का धुआँ: त्योहारों के समय लोगों का आना-जाना बढ़ जाता है, जिससे सड़कें जाम रहती हैं और वाहनों का धुआँ हवा में घुलता रहता है। दोनों मिलकर हवा को ऐसा बना देते हैं जैसे किसी ने धुआँ और धूल का कॉकटेल बना दिया हो।
कारण: क्यों इतनी तेजी से बिगड़ा हालात?
(अ) त्योहार का असर – पटाखों का माहौल: दीवाली की रात आसमान रौशनी से नहीं, धुएँ से भर गया। हर तरफ पटाखों के धमाके गूंजते रहे, और उसी के साथ हवा में ज़हरीले कणों की मात्रा कई गुना बढ़ गई। खासतौर पर PM2.5 यानी बहुत बारीक धूल के कण, जो सीधा फेफड़ों में जाकर असर करते हैं, उनकी मात्रा अचानक उछल गई।
सरकार ने “ग्रीन पटाखे” जलाने की इजाज़त दी थी, लेकिन सच्चाई ये है कि उसका असर बहुत सीमित रहा। लोगों ने हर तरह के पटाखे फोड़े और नतीजा ये हुआ कि दीवाली की रात का जश्न सुबह तक ज़हर में बदल गया।
(ब) मौसमी और भूगोल से जुड़ी वजहें: अक्टूबर से नवंबर का वक्त वैसे भी उत्तर भारत के लिए मुश्किल होता है। इस मौसम में तापमान गिरता है, हवा की गति धीमी हो जाती है, और नमी बढ़ जाती है यानी जो भी धुआँ, धूल और ज़हरीले कण हवा में घुलते हैं, वो ऊपर नहीं उठ पाते और हमारे आस-पास ही फँस जाते हैं।
इसके साथ ही आसपास के राज्यों जैसे पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की प्रथा इस समय अपने चरम पर होती है। उस धुएँ का बड़ा हिस्सा हवा के साथ उड़कर Delhi और एनसीआर तक आ जाता है। ऊपर से उद्योगों का धुआँ, निर्माण कार्यों की धूल और वाहनों का उत्सर्जन, सब मिलकर हवा को जहरीला बना देते हैं। कह सकते हैं कि ये “साँसों पर हमला” एक जगह से नहीं, बल्कि पूरे इलाके से मिलकर हो रहा है।
(स) नापतौल और आंकड़ों की कहानी दिलचस्प बात ये है कि हवा की हालत बताने वाले आंकड़े भी एक-दूसरे से अलग निकल रहे हैं। CPCB (सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड) के मुताबिक दिल्ली के कुछ इलाकों में AQI 300 से 400 के बीच था जो “बहुत खराब” कैटेगरी में आता है।
लेकिन वहीं AQI जैसे अंतरराष्ट्रीय प्लेटफ़ॉर्म के कुछ सेंसर ने 1,100 से ऊपर का आंकड़ा दिखाया, जो सीधा “सर्वाधिक खतरनाक” स्तर होता है। अब ये फर्क क्यों? क्योंकि हर जगह मापने के उपकरण, तकनीक और लोकेशन अलग होती हैं। लेकिन बात का मतलब एक ही है चाहे कोई भी आंकड़ा देख लो, दिल्ली की हवा ज़हर बन चुकी है।
दीवाली के पटाखे, ठंडी पड़ती हवा, पराली का धुआँ और ट्रैफिक का धुआँ सब मिलकर ऐसा हाल बना चुके हैं कि साँस लेना अब एक जंग जैसा लगने लगा है। हवा में ताज़गी नहीं, बल्कि जहर घुल चुका है… और अब वक्त आ गया है कि लोग सिर्फ मास्क नहीं, सोच भी बदलें।
असर: लोगों पर और स्वास्थ्य पर
इस जहरीली हवा का मतलब साफ है अब तो एक सामान्य और पूरी तरह से सेहतमंद इंसान को भी साँस लेने में मुश्किल होने लगी है। आँखों में जलन, गले में खुजली, खाँसी-जुकाम जैसी परेशानियाँ अब आम बात बन चुकी हैं। अस्पतालों और क्लीनिकों में मरीजों की भीड़ बढ़ने लगी है।
सबसे ज़्यादा खतरा उन लोगों को है जो पहले से बीमार हैं जैसे अस्थमा (Asthma), ब्रोंकाइटिस (Bronchitis) या साँस से जुड़ी कोई पुरानी बीमारी। इसके अलावा छोटे बच्चे और बुज़ुर्ग लोग भी इस हवा में सबसे ज़्यादा परेशान हो रहे हैं। डॉक्टरों की सलाह है कि ऐसे लोग बिना ज़रूरत घर से बाहर ना निकलें, और अगर निकलना ही पड़े तो मास्क पहनना ज़रूरी है।
रिपोर्ट्स और स्टडीज़ ये बताती हैं कि दीवाली के बाद Delhi-एनसीआर में हवा का ज़हर कई गुना बढ़ जाता है। मतलब, त्योहार की एक रात का धुआँ पूरे हफ़्ते तक शहर पर छाया रहता है। ये न सिर्फ एक सेहत का मसला है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक नुकसान का भी कारण बनता जा रहा है।
जब हवा इतनी खराब हो जाती है, तो स्कूल बंद करने की नौबत आ जाती है। दिहाड़ी मज़दूर, रिक्शा चालक, डिलीवरी बॉय, या कोई भी इंसान जो दिनभर बाहर काम करता है उन सबकी रोज़ी पर सीधा असर पड़ता है। हवा सिर्फ फेफड़ों में नहीं घुसती, जेब पर भी वार करती है।
हालात ऐसे हैं कि अब ये सिर्फ पर्यावरण का नहीं, इंसानी ज़िन्दगी का मसला बन चुका है। हवा में वो सुकून नहीं बचा, जो कभी “साँस” कहलाता था अब तो हर साँस में एक हल्का डर शामिल है।
क्या उपाय हो रहे हैं? और कितने कारगर?
Delhi-एनसीआर में हवा की बिगड़ती हालत को देखते हुए Graded Response Action Plan (GRAP) का Stage-II लागू कर दिया गया है। इसका मतलब है कि अब प्रदूषण रोकने के लिए सख़्त कदम उठाए जा रहे हैं।
इस प्लान के तहत निर्माण कार्यों पर रोक, सड़कों की धूल पर काबू, और सड़कों पर चलने वाले वाहनों की संख्या कम करने के निर्देश दिए गए हैं। यानी अब जो भी चीज़ हवा में धूल या धुआँ बढ़ाती है, उस पर लगाम कसने की कोशिश हो रही है।
Delhi सरकार ने इस साल भी सिर्फ “ग्रीन पटाखों” की अनुमति दी थी, मगर हकीकत ये है कि कई जगहों से नियम तोड़ने की खबरें आई हैं। दीवाली की रात आसमान पटाखों से नहीं, धुएँ से भर गया और अब वही धुआँ शहर की हवा में टिका हुआ है।
लोगों को सलाह दी जा रही है कि सुबह और शाम के समय कम से कम बाहर निकलें, बाहर जाएँ तो मास्क जरूर पहनें, और ज़रूरत से ज़्यादा शारीरिक मेहनत या व्यायाम बाहर ना करें।
हालाँकि सरकार और एजेंसियाँ अपनी तरफ़ से कदम उठा रही हैं, लेकिन सच्चाई ये है कि अभी तक असर बहुत कम दिखा है। वजह ये है कि ये समस्या किसी एक चीज़ से नहीं, बल्कि कई कारणों से मिलकर बनी है पटाखे, पराली, ट्रैफिक, मौसम और धूल सब एक साथ मिलकर हवा को जहरीला बना रहे हैं।
सीधे लफ़्ज़ों में कहें तो ये मल्टीफैक्टोरियल यानी “कई सिरों वाला” मुद्दा है और जब तक हर सिर को एक साथ नहीं पकड़ा जाएगा, तब तक ये धुआँ कम नहीं होने वाला।
लोग अब बस यही दुआ कर रहे हैं कि हवा में फिर से थोड़ी रौनक और राहत लौट आए… ताकि साँस लेना दोबारा एक आसान सी बात बन सके।
Delhi की हवा फिर बनी ज़हर: दीवाली के बाद प्रदूषण ने दी खतरनाक चेतावनी
Delhi-एनसीआर में इस वक्त हवा का हाल बेहाल है। मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले कुछ दिनों तक हालात में कोई बड़ा सुधार होने की उम्मीद नहीं है, क्योंकि हवा की गति बहुत कम है और तापमान लगातार नीचे जा रहा है। ऐसे में हवा में घुला ज़हर ऊपर नहीं उठ पा रहा, और पूरा इलाका एक मोटे धुएँ की परत में लिपट गया है।
अगर अगले कुछ दिनों तक मौसम ऐसा ही रहा तो प्रदूषण का स्तर “आपातकालीन स्थिति” (Emergency Level) तक पहुँच सकता है यानी वो हालात जब साँस लेना भी सेहत के लिए खतरा बन जाता है। ये पहली बार नहीं हो रहा; पिछले कई सालों से यही पैटर्न दोहराया जा रहा है|
दीवाली के बाद हवा ज़हरीली, आसमान धुँधला और लोग बीमार। सिर्फ पटाखे नहीं, कई वजहें हैं जिम्मेदार हर साल दीवाली के बाद पटाखों पर सारी उंगली उठाई जाती है, लेकिन सच्चाई ये है कि समस्या सिर्फ पटाखों तक सीमित नहीं है।
निर्माण स्थलों से उड़ती धूल, सड़कों पर गाड़ियों का धुआँ, कारखानों का उत्सर्जन, और खेती के बाद पराली जलाना, ये सब मिलकर हवा को जहरीला बना देते हैं। पटाखों ने तो बस आग लगाई, लेकिन मौसम की ठंडक और धीमी हवा ने उस धुएँ को पूरे शहर में फैला दिया।
लोग क्या कर सकते हैं छोटे कदम, बड़ा असर
ये लड़ाई सिर्फ सरकार या एजेंसियों की नहीं, बल्कि हर नागरिक की ज़िम्मेदारी है। अगर लोग कुछ आसान चीज़ों पर अमल करें, तो बड़ी राहत मिल सकती है बाहर निकलते वक्त मास्क पहनें, पब्लिक ट्रांसपोर्ट या कार-पूल का इस्तेमाल करें, घरों में वेंटिलेशन सही रखें, और कोशिश करें कि फालतू गाड़ियों का इस्तेमाल कम हो। ये छोटे-छोटे कदम मिलकर बड़ी राहत दे सकते हैं। आखिर हवा हम सबकी है और अगर हमने इसे बचाया नहीं, तो आगे साँस लेना और मुश्किल हो जाएगा।
इस साल की दीवाली के बाद हवा ने फिर से एक खामोश चेतावनी दे दी है प्रदूषण सिर्फ एक त्योहार की समस्या नहीं, बल्कि एक मौसमी, सामाजिक और तकनीकी संकट है। हर साल वही कहानी दोहराई जाती है, बस तारीखें बदलती हैं।
उपाय किए जा रहे हैं GRAP-II लागू है, धूल और निर्माण कार्यों पर रोक लगी है, लोगों को सतर्क किया जा रहा है लेकिन जमीनी असर आने में वक्त लगेगा। अब ज़रूरत है दीर्घकालिक सोच की, जहाँ विकास के साथ साफ हवा भी मिले। क्योंकि आख़िर में “रौशनी की दीवाली तो हर साल आएगी, लेकिन अगर हवा ही साफ़ न रही, तो दीये भी धुएँ में खो जाएँगे…” इसलिए हमारा यह फ़र्ज़ है कि हम हवा को साफ़ रखें|
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