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Domestic violence की भयावह तस्वीर
UP के बहुचर्चित ज़िले बहराइच से एक ऐसा खौफ़नाक Domestic violence मामला सामने आया है जिसने इंसानियत की हदें हिला कर रख दी हैं। यहाँ के रहने वाले हरिकृष्ण नाम के शख़्स ने अपनी ही बीवी फूला देवी (45) की बेरहमी से हत्या कर दी और फिर उसके जिस्म को अपने घर में बिस्तर के नीचे दफन कर दिया। ज़रा सोचिए जिस जगह पर उस औरत की जान ली गई, उसी जगह पर उसका शौहर बारह दिन तक चैन की नींद सोता रहा, जैसे कुछ हुआ ही न हो।

पुलिस की रिपोर्ट के मुताबिक, ये मामला Domestic violence और मारपीट से शुरू हुआ था। बताया जा रहा है कि 6 अक्टूबर के बाद फूला देवी से उनके मायके वालों का कोई संपर्क नहीं हो पाया। पहले तो सबको लगा कि शायद वह किसी रिश्तेदार के यहाँ गई होंगी, लेकिन जब कई दिन तक कोई खबर न मिली तो शक गहराने लगा।
आख़िरकार 13 अक्टूबर को उनके भाई ने थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई। पुलिस ने जांच शुरू की और गाँव वालों से पूछताछ की तो कई बातें सामने आईं। तभी गाँव के एक पड़ोसी भाई ने बताया कि हरिकृष्ण के घर के कमरे में कुछ गड़बड़ है वहाँ की मिट्टी ताज़ा खुदाई जैसी लग रही थी, जैसे हाल ही में वहाँ कुछ दबाया गया हो।
पुलिस ने जब मौके पर पहुंचकर बिस्तर हटवाया और ज़मीन खुदवाई, तो जो नज़ारा सामने आया उसने सबको सन्न कर दिया। करीब छः फीट गहराई से फूला देवी का शव बरामद हुआ। शरीर सड़ने लगा था, जिससे अंदाज़ा लगाया गया कि कम से कम 10 से 12 दिन पहले उसकी मौत हो चुकी थी।
उस वक़्त तक हरिकृष्ण फरार हो चुका था। पुलिस ने तुरंत हत्या का मुक़दमा दर्ज कर लिया और अब उसकी तलाश में कई टीमें लगाई गई हैं। बताया जा रहा है कि आरोपी को पकड़ने के लिए स्थानीय गाँवों के साथ-साथ बॉर्डर इलाक़ों में भी सर्च ऑपरेशन चलाया जा रहा है।
लोगों का कहना है कि पति-पत्नी के बीच अक्सर झगड़े और तकरार होती थी। कई बार पड़ोसी उनके घर से चिल्लाने-झगड़ने की आवाज़ें सुनते थे, लेकिन किसी ने यह नहीं सोचा था कि बात इतनी आगे बढ़ जाएगी कि एक दिन हरिकृष्ण अपनी बीवी की जान ले लेगा।
गाँव में इस Domestic violence घटना के बाद डर और हैरानी का माहौल है। किसी को यक़ीन नहीं हो रहा कि कोई आदमी अपनी पत्नी को मार कर उसी के ऊपर 12 दिन तक सो सकता है। एक बुज़ुर्ग पड़ोसी ने मीडिया से बात करते हुए कहा “हम तो सोच भी नहीं सकते थे कि वो ऐसा कर जाएगा। वो हमेशा चुप-चाप रहता था, लेकिन अंदर क्या चल रहा था, कोई नहीं जानता था।”
पुलिस के मुताबिक, पोस्ट-मार्टम रिपोर्ट से साफ़ हुआ है कि फूला देवी की मौत गला घोंटने से हुई थी। यानी हरिकृष्ण ने पहले अपनी पत्नी का गला दबाया और फिर उसे बिस्तर के नीचे दफन कर दिया, ताकि किसी को शक न हो।
अब सवाल ये है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ? क्या ये सिर्फ एक घरेलू झगड़ा था जो इतनी बड़ी त्रासदी में बदल गया, या फिर इसके पीछे कोई और गहरी वजह थी? पुलिस अभी इस पहलू पर भी जांच कर रही है कि क्या आरोपी के किसी और से संबंध थे या कोई आर्थिक या मानसिक दबाव उसे इस हद तक ले गया।
लेकिन जो बात सबसे डराने वाली है वो ये कि बारह दिन तक उसी कमरे में रहकर, उसी बिस्तर पर सोते हुए, हरिकृष्ण ने किसी को भी शक नहीं होने दिया। उसने अपने गुनाह को ऐसे छुपाया जैसे कुछ हुआ ही न हो।
पुलिस अफसरों का कहना है कि इस केस ने पूरे इलाके को हिला दिया है। ऐसी क्रूरता, ऐसा बर्ताव उन्होंने शायद ही पहले देखा हो। जांच अधिकारी ने कहा “यह केस हमें सिर्फ एक हत्या नहीं, बल्कि एक आदमी के अंदर छिपे अंधेरे का आईना दिखा रहा है।” अब पूरा गाँव इस उम्मीद में है कि आरोपी को जल्द से जल्द पकड़ा जाए और फूला देवी को न्याय मिले।
Domestic violence घटना ने एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि घरेलू हिंसा कितनी खतरनाक शक्ल ले सकती है। अक्सर लोग “घर का मामला” कहकर ऐसे झगड़ों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं, लेकिन कई बार वही झगड़े जानलेवा साबित होते हैं।
यह Domestic violence कहानी सिर्फ एक औरत की नहीं, बल्कि उन सभी औरतों की आवाज़ है जो सालों तक चुप रहकर सहती रहती हैं कभी समाज के डर से, कभी अपने बच्चों की खातिर, और कभी इसलिए क्योंकि उन्हें लगता है कि सब ठीक हो जाएगा।
पर सच्चाई यह है कि जब तक हम बोलेंगे नहीं, तब तक ऐसी हत्याएँ होती रहेंगी। इसलिए ज़रूरत है कि हम ऐसे मामलों को सिर्फ “समाचार” की तरह न देखें, बल्कि सबक की तरह लें कि किसी भी रिश्ते में हिंसा की शुरुआत को नज़रअंदाज़ करना, ख़ुद अपनी बर्बादी को न्योता देना है।
Domestic violence: क्यों-और-कैसे कारण
ऐसे Domestic Violence (घरेलू हिंसा) के मामले वाक़ई बहुत गहरी चिंता का विषय होते हैं। ये सिर्फ एक घर या एक परिवार की कहानी नहीं होती, बल्कि ये हमारे पूरे समाज की सोच और संवेदनाओं पर सवाल उठाते हैं। बहराइच का ये मामला भी कुछ वैसा ही है जहाँ एक पति ने अपनी बीवी की हत्या कर दी, उसे घर के अंदर दफन किया, और फिर बारह दिन तक उसी बिस्तर पर सोता रहा, जैसे कुछ हुआ ही न हो।
अब ज़रा सोचिए, इंसान के अंदर कितना सन्नाटा और कितना अंधेरा भर गया होगा कि वो इतनी बड़ी वारदात के बाद भी डर, पछतावा या शर्म महसूस नहीं करता। यहीं से शुरू होती है उस घरेलू हिंसा की कहानी, जो धीरे-धीरे किसी के मन में ज़हर की तरह फैलती है।
घरेलू माहौल – झगड़े, तनाव और टूटते रिश्ते
अक्सर ऐसे मामलों की जड़ घर के भीतर के झगड़े, आपसी कलह, और मानसिक तनाव में होती है। पति-पत्नी के बीच की छोटी-छोटी नोकझोंक अगर वक्त रहते सुलझाई न जाए तो वो धीरे-धीरे हिंसा की शक्ल ले लेती है। कई बार मर्द अपनी मर्दानगी के घमंड में, औरत को कमज़ोर या अधीन समझता है। उसे लगता है कि वो चाहे कुछ भी करे, कोई उसे रोक नहीं सकता। ऐसी ही सोच Domestic Violence को जन्म देती है।
गाँव के लोगों का कहना है कि हरिकृष्ण और फूला देवी के बीच अक्सर झगड़े होते रहते थे। कई बार आवाज़ें बाहर तक सुनाई देती थीं, लेकिन किसी ने दखल नहीं दिया क्योंकि लोगों को लगता था, “घर की बात है, आपस में सुलझ जाएगी।” और यही चुप्पी एक दिन खून में बदल गई।
लाश छुपाने की कोशिश – 12 दिन की खामोशी
इस Domestic violence मामले का सबसे डरावना हिस्सा ये है कि आरोपी ने अपनी पत्नी के शव को बिस्तर के नीचे दफन किया और बारह दिन तक उसी पर सोता रहा। सोचिए, इंसानियत कहाँ चली गई? कितनी पत्थर दिली और बेरुख़ी चाहिए होती है ऐसा करने के लिए।
ये बात भी साफ़ झलकाती है कि उसे न तो किसी कानून का डर था, न समाज की निगाहों की परवाह। वो इतना बेफिक्र था कि उसे लगता था कोई पकड़ेगा भी नहीं। यह उस सामाजिक निगरानी-सिस्टम की कमजोरी को भी दिखाता है जहाँ आसपास के लोग, पड़ोसी या रिश्तेदार किसी ने भी इतने दिनों तक कोई शक नहीं किया।
पुलिस-निगरानी और देरी से कार्रवाई
इस केस में एक और अहम पहलू है पुलिस-निगरानी की कमी। फूला देवी के परिवार ने 6 अक्टूबर के बाद जब संपर्क नहीं किया, तो उन्हें लगा कि वो कहीं बाहर होंगी। 13 अक्टूबर को जाकर गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज हुई, यानी पूरे सात दिन तक आरोपी को खुला वक्त मिल गया अपने गुनाह को छुपाने का।
अगर समय रहते पुलिस सक्रिय होती, अगर लोकल चौकी या ग्राम प्रहरी ने ध्यान दिया होता, तो शायद फूला देवी आज ज़िंदा होतीं। पुलिस ने अब हत्या का मामला दर्ज कर लिया है और आरोपी की तलाश जारी है, मगर सवाल यह है कि ऐसी घटनाएँ बार-बार क्यों दोहराई जा रही हैं?
समाज और सिस्टम की चुप्पी
Domestic Violence की सबसे बड़ी वजह है समाज की चुप्पी। हमारे गाँव और छोटे कस्बों में आज भी लोग सोचते हैं कि “पति-पत्नी का मामला है, इसमें क्यों पड़ना।” लेकिन यही सोच एक दिन किसी की जान ले लेती है। अगर शुरुआत में ही किसी ने आवाज़ उठाई होती, किसी ने पुलिस को बताया होता, तो शायद ये दर्दनाक हादसा टल सकता था।
Domestic violence ये मामला बताता है कि घरेलू हिंसा सिर्फ घर की चारदीवारी तक सीमित नहीं रहती, इसका असर पूरे समाज पर पड़ता है। हर बार जब कोई औरत चुप रहती है, या कोई पड़ोसी आँख मूँद लेता है, तो कहीं न कहीं एक और फूला देवी अपने घर में दबी रह जाती है या फिर हमेशा के लिए खामोश हो जाती है।
हमें समझना होगा कि Domestic Violence कोई निजी झगड़ा नहीं है ये एक अपराध है, और इससे किसी को भी बख्शा नहीं जाना चाहिए। अगर आपके आसपास कोई औरत रोज़-रोज़ ज़ुल्म झेल रही है, किसी के घर से चिल्लाने की आवाज़ आती है, तो चुप मत रहिए। वो “घर का मामला” नहीं, बल्कि “समाज का मामला” है।
पुलिस, पंचायत और समाज तीनों को मिलकर ऐसे मामलों में तुरंत दखल देना चाहिए। सिर्फ कानून बनाने से कुछ नहीं होगा, जब तक लोगों की सोच नहीं बदलेगी। यह घटना हमें एक गहरा सबक देती है कभी भी घरेलू हिंसा को मामूली बात समझकर टालना नहीं चाहिए। क्योंकि जिस घर में चुप्पी बस जाती है, वहाँ खामोशी ही सबसे बड़ा गुनाह बन जाती है।
सामाजिक-मानविकी दृष्टि से चिंताएँ
ये Domestic Violence (घरेलू हिंसा) का मामला सिर्फ एक आम क्राइम स्टोरी नहीं है, बल्कि ये हमारे समाज के ताने-बाने में पड़ी गहरी दरारों को दिखाता है। बहराइच की ये घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर आज भी एक औरत अपने ही घर में कितनी असुरक्षित है। जहाँ उसे प्यार और अपनापन मिलना चाहिए, वहीं कई बार उसे ज़ुल्म, डर और खामोशी का सामना करना पड़ता है।
महिलाओं की सुरक्षा और रिश्तों की असुरक्षा
हर बार जब कोई Domestic Violence का केस सामने आता है, तो वो सिर्फ एक घर की बात नहीं होती वो पूरे समाज की सोच और संवेदना पर सवाल उठाता है। फूला देवी का मामला भी यही कहता है कि महिलाओं की सुरक्षा आज भी बड़ी चिंता का विषय है।
रिश्तों में जो प्यार, भरोसा और सम्मान होना चाहिए, वो कई बार हिंसा, शक और झगड़े में बदल जाता है।ऐसे में एक औरत की ज़िंदगी कब प्यार से खौफ़ तक पहुँच जाती है, किसी को पता ही नहीं चलता।
गाँव की औरतें अब भी डर के साये में जीती हैं कभी “लोग क्या कहेंगे” का डर, कभी “घर टूट जाएगा” की चिंता। पर अब वक्त आ गया है कि इन डर की दीवारों को तोड़ा जाए और हर औरत को ये एहसास कराया जाए कि घरेलू हिंसा सहना भी एक गुनाह है।
आरोपी की मानसिक स्थिति और मनोवैज्ञानिक पहलू
Domestic violence केस का एक और बड़ा पहलू है आरोपी की मानसिक स्थिति (mental condition) । कोई इंसान अपनी ही पत्नी की हत्या कैसे कर सकता है और फिर 12 दिन तक उसी के शव के ऊपर सो सकता है? यह सिर्फ एक अपराध नहीं, बल्कि मानसिक विकृति (psychological disturbance) का भी संकेत है।
शायद हरिकृष्ण के अंदर लंबे समय से कोई आक्रोश, असंतोष या दबाव पल रहा था, जो एक दिन फट पड़ा। ऐसे मामलों से हमें ये समझना होगा कि Domestic Violence सिर्फ गुस्से या झगड़े का नतीजा नहीं, बल्कि कई बार अंदरूनी मानसिक बीमारियों और अनकहे तनावों की वजह से भी होता है। समाज को इस पहलू पर भी गंभीरता से ध्यान देना होगा मानसिक स्वास्थ्य (mental health) अब कोई हल्की बात नहीं रही।
समाज और निगरानी की कमी
इस पूरे Domestic violence मामले ने ये भी दिखा दिया कि हमारे समाज में निगरानी और चेतना कितनी कमज़ोर है। फूला देवी 6 अक्टूबर से गायब थीं, लेकिन उनके परिवार या गाँव ने 13 अक्टूबर तक कोई पुख़्ता कदम नहीं उठाया। जब तक गुमशुदगी की शिकायत दर्ज हुई, तब तक आरोपी को सबूत मिटाने का पूरा वक्त मिल चुका था।
यहाँ सवाल उठता है कि गाँव, परिवार और सामाजिक ढाँचा कब जागता है? क्यों हम किसी की तकलीफ़ को तब तक नहीं देखते जब तक वो कब्र में दफन न हो जाए? अगर आस-पास के लोग थोड़ा ध्यान देते, अगर समाज थोड़ा ज़िम्मेदार होता, तो शायद ये दर्दनाक हादसा कभी नहीं होता।
पुलिस और न्याय-प्रणाली की भूमिका
पुलिस ने अब इस केस को गंभीरता से लिया है हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया है और आरोपी की तलाश जारी है। फॉरेंसिक टीम ने शव को पोस्ट-मॉर्टम के लिए भेजा, ताकि मौत का सही कारण पता लगाया जा सके। घर के अंदर मिली “ताज़ा मिट्टी” और अन्य सबूतों पर भी वैज्ञानिक जांच जारी है।
यहाँ न्याय-प्रक्रिया (justice process) की गति बहुत अहम है।समय पर कार्रवाई ही ऐसी घटनाओं को दोहराने से रोक सकती है। अगर पुलिस और सामाजिक रिपोर्टिंग सिस्टम तेज़ी से काम करे, तो कई और जिंदगियाँ बचाई जा सकती हैं।
समाज को क्या सीख लेनी चाहिए
अब इस केस की अगली कड़ी में पुलिस आरोपी से पूछताछ करेगी क्यों उसने ऐसा किया? क्या कोई पूर्व नियोजित हत्या (murder planning) थी या कोई अचानक हुआ झगड़ा? साथ ही घरेलू विवाद, पति-पत्नी के रिश्तों की स्थिति, और समाज की प्रतिक्रिया पर भी जांच होगी। ये केस हमें बहुत बड़ा सबक देता है कभी भी Domestic Violence को “घर का मामला” कहकर अनदेखा मत कीजिए। हर ऐसी चुप्पी एक नई त्रासदी को जन्म देती है।
अगर किसी घर से रोज़ झगड़े की आवाज़ें आ रही हैं, तो समझ लीजिए कि वहाँ सिर्फ शब्दों की नहीं, शायद ज़िंदगी की भी लड़ाई चल रही है। और जब तक समाज अपनी आँखें खोलकर देखना नहीं सीखेगा, तब तक ऐसी कहानियाँ बार-बार सामने आती रहेंगी|
उत्तरी भारत के इस गाँव में
ऐसे मामलों से निपटने के लिए कुछ ज़रूरी कदम उठाना बेहद जरूरी है, ताकि Domestic Violence जैसी घटनाओं पर काबू पाया जा सके।
फटाफट कार्रवाई का सिस्टम:
गाँव या शहर में किसी भी तरह की गुमशुदगी या हिंसा की शिकायतें जल्दी और आसान तरीके से दर्ज हों। ताकि समय रहते पुलिस और अधिकारियों को पता चले और तुरंत कार्रवाई हो सके।
घरेलू हिंसा पर नजर रखने वाले:
स्थानीय समाजसेवकों को ट्रेनिंग दी जाए कि वे Domestic Violence के शुरुआती संकेत पहचान सकें और तुरंत संबंधित अधिकारियों या पुलिस तक जानकारी पहुँचा सकें।
मानसिक सेहत की जागरूकता:
ख़ासकर गाँव और छोटे कस्बों में मानसिक स्वास्थ्य की सेवाओं के बारे में लोगों को बताना ज़रूरी है। ताकि लोग डर या शर्म के बिना मदद लेने आगे आएँ। गाँवों में समय-समय पर घरों का निरीक्षण किया जाए, सामाजिक बैठकें और जागरूकता कार्यक्रम हों। इससे लोगों में सतर्कता और चेतना बढ़ेगी।
मीडिया और सार्वजनिक चर्चा:
Domestic violence घटनाओं पर खुलकर चर्चा हो, ताकि समाज में महिलाओं की सुरक्षा की अहमियत समझी जाए। मीडिया, सोशल मीडिया और स्थानीय समुदाय मिलकर जागरूकता फैलाएँ। इन सभी कदमों को सही तरीके से लागू किया जाए, तो गाँव-शहर में Domestic Violence के मामले कम होंगे और समाज में सुरक्षा और हिफाज़त की भावना मजबूत होगी।
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