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IndiGo की Strategic Mistake ने Aviation Sector को हिला दिया, Airline Industry के लिए Shocking Reality, अगर IndiGo और DGCA ने लिए 5 Strong Actions जिससे Future Air Travel हो सकता हैं बेहतर

IndiGo की Strategic Mistake ने Aviation Sector को हिला दिया, Airline Industry के लिए Shocking Reality, अगर IndiGo और DGCA ने ली Strong Actions तो Future Air Travel हो सकता हैं बेहतर

DGCA नया नियम और उसका मकसद

भारत में हवाई सफ़र और पायलटों की सुरक्षा को देखते हुए DGCA ने 1 नवंबर 2025 से नए FDTL नियम लागू कर दिए। मक़सद था पायलटों को ज़्यादा थकान से बचाना और यात्रियों की सुरक्षा को पहली तरजीह देना। लेकिन असली दिक़्क़त तब शुरू हुई जब इंडस्ट्री पूरी तरह इन बदलावों के लिए तैयार नहीं थी।

इन नए नियमों के हिसाब से – अब पायलटों और क्रू मेंबर्स को ड्यूटी करने के बाद पूरा आराम मिलना ज़रूरी है। पहले जैसे हफ्ते के सातों दिन लगातार उड़ान भरते रहना या एक के बाद एक कई फ्लाइट्स पकड़ना अब मुमकिन नहीं होगा। मतलब, एयरलाइंस चाहें या न चाहें, उन्हें अपने क्रू को आराम देना ही पड़ेगा क्योंकि थका हुआ पायलट जहाज़ तो उड़ा सकता है, लेकिन वो सौ फ़ीसदी सुरक्षित उड़ान की गारंटी नहीं दे सकता।

रात की उड़ानों को भी सीमित किया गया है पहले जहां रात में कई-कई लैंडिंग्स करवाई जाती थीं, अब उसकी गिनती घटा दी गई है। सुनने में छोटा बदलाव लगता है, लेकिन इसका असर पूरे रोस्टर पर पड़ता है। एक पायलट कम उड़ाएगा, तो उसकी जगह दूसरा चाहिए और अगर वो भी आराम पर है, तो फ्लाइट खड़ी रह जाएगी।

सीधी भाषा में कहें तो DGCA ने रोस्टरिंग को ज़्यादा “इंसानी” बनाया है यानी मशीन की तरह लगातार उड़ाओ और टाइम टेबल पूरा करो वाली सोच ख़त्म। अब स्वास्थ्य, तन-मन की हालत और थकान को भी बराबर अहमियत दी जा रही है।

इरादा बिल्कुल सही था पायलट फिट रहेंगे, तो उड़ान सुरक्षित रहेगी; और जब उड़ान सुरक्षित होगी, तो यात्री भी बेफ़िक्र रहेंगे। लेकिन जैसे अक्सर भारत में होता है नियम लागू तो कर दिए गए, मगर पहले से पूरी तैयारी और प्लानिंग नहीं की गई। एयरलाइंस को अलर्ट तो किया गया, लेकिन काफ़ी समय तक रोस्टर अपडेट नहीं हुए, न्यू पायलट रिक्रूटमेंट और शेड्यूलिंग एडजस्टमेंट सही वक्त पर नहीं हो पाए।

नतीजा ये हुआ कि नियम तो बहुत अच्छे थे, मगर सिस्टम अचानक बदल गया और एयरलाइंस को एकदम से इतने बड़े बदलावों को संभालना पड़ा। कहीं पायलट आराम पर चले गए, तो कहीं रोस्टर खाली रह गए। कई एयरलाइंस के पास बैकअप क्रू भी नहीं था। इसी वजह से फ़्लाइट्स एक के बाद एक कैंसिल होती चली गईं और सबसे ज़्यादा परेशानी यात्रियों को झेलनी पड़ी।

एक तरह से कहें तो क़ायदे अच्छे थे, नीयत भी अच्छी थी, मगर ज़मीन पर अमल की तैयारी ही अधूरी थी। आज हालत ये है कि एयरलाइंस मजबूरी और दबाव में अपनी शेड्यूलिंग सुधारने की कोशिश कर रही हैं नए पायलटों की भर्ती हो रही है, फ्लाइट टाइमिंग बदली जा रही है, और रात की उड़ानों का बैलेंस दुबारा तय किया जा रहा है।

अगर ये एडजस्टमेंट समय पर हो जाते तो DGCA के नियमों को “इमरजेंसी झटके” की जगह “स्मूद बदलाव” कहा जाता। लेकिन अब एयरलाइन इंडस्ट्री को सीख मिल गई है कि सिर्फ़ नियम बदलना काफी नहीं ज़मीनी तैयारी और लॉजिस्टिक्स भी उसी लेवल पर होना ज़रूरी है।

आख़िर में उम्मीद सिर्फ़ इतनी है जब पायलट पूरी तरह आराम कर चुका होगा, तब कॉकपिट में बैठा उसका हर फ़ैसला और हर कंट्रोल ऑपरेशन बेहतर होगा। और यही तो असल मक़सद है — सेफ़ उड़ान, सुरक्षित यात्री, और फिट पायलट।

IndiGo के लिए “Strategic Mistake” तैयारी क्यों न हुई?

सबसे पहली और बड़ी दिक़्क़त सामने आई पायलट और क्रू की कमी। नए नियम लागू होने से पहले ही एयरलाइंस के पास जितने पायलट और क्रू मेंबर्स थे, वो पहले से ही कम पड़ रहे थे। मतलब, सिस्टम पहले ही सीमा पर चल रहा था और जैसे ही FDTL वाला नया नियम लागू हुआ, दबाव और भी ज़्यादा बढ़ गया।

अब हर पायलट को ज़्यादा आराम देना था, लगातार उड़ान नहीं करवा सकते थे, और रात की फ्लाइट्स भी कम करनी थीं। इससे हुआ ये कि पहले जितनी उड़ानें रोज़ाना चल जाती थीं, अब वो चल ही नहीं पा रहीं। नतीजा? कई-कई फ़्लाइट्स इसलिए रद्द करनी पड़ीं क्योंकि पायलट/क्रू ही उपलब्ध नहीं था। मामला सीधा था फ्लाइट तैयार थी, यात्री मौजूद थे, लेकिन जहाज़ उड़ाने वाला क्रू नहीं मिला।

फिर आता है नेटवर्क का आकार। IndiGo कोई छोटी-मोटी एयरलाइन नहीं है। ये भारत की सबसे बड़ी घरेलू एयरलाइन है रोज़ हज़ारों उड़ानें ऑपरेट करती है, सैकड़ों रूट्स पर उड़ती है, और लाखों यात्री इसके भरोसे रहते हैं।

इतने बड़े नेटवर्क को नए DGCA नियमों के हिसाब से ढालना कोई छोटा काम नहीं था ये एक पूरा लॉजिस्टिक ऑपरेशन है, जिसमें शेड्यूलिंग, पायलट असाइनमेंट, फ्लाइट टाइमिंग, बेस ट्रांसफर, सब बदलना पड़ता है।

मगर ऐसा लगता है कि एयरलाइन ने इस बदलाव को पहले से ठीक से प्लान नहीं किया। शायद अंदाज़ा नहीं लगाया कि इसका असर कितना बड़ा होगा। इसी वजह से Aviation विशेषज्ञों ने इसे “strategic mistake” तक कहा क्योंकि इतने बड़े नेटवर्क पर निर्भर ऑपरेशन में बदलाव आख़िरी वक़्त पर नहीं किए जाते, बल्कि महीनों पहले टेस्टिंग और ट्रायल के साथ लागू किए जाते हैं।

और कहानी यहीं ख़त्म नहीं हुई ऊपर से अन्य समस्याएँ भी मिल गईं। जब हालात संभालने की ज़रूरत थी, तभी दूसरी परेशानियाँ भी आ धमकीं टेक्निकल दिक्कतें, चेक-इन सिस्टम में एरर, एयरपोर्ट पर भीड़, handling slow, मौसम, देरी और डायवर्जन, कुछ एयरपोर्ट पर congestion मतलब, जिस समय सिस्टम को आराम और राहत चाहिए थी, उसी समय और स्ट्रेस डालने वाली चीज़ें भी आ गईं।

इन सबका नतीजा क्या हुआ? नए नियम + क्रू की कमी + टेक्निकल/लॉजिस्टिक दिक्कतें एकदम perfect storm बन गया ऐसा तूफ़ान जिसमें हर चीज़ एक-दूसरे पर असर डालती रही और पूरी एयरलाइन हिल गई। कहने को ये एक बदलाव था, लेकिन असल में पूरा सिस्टम हिल गया जहाज रनवे पर था, यात्री गेट पर खड़े थे, टिकट बुक थी… और फिर भी उड़ान रद्द।

साफ़ शब्दों में इरादा अच्छा था, नियम भी ज़रूरी थे, लेकिन जिस तरह से तैयारी और प्लानिंग होनी चाहिए थी, वह पहले नहीं हुई। और इसी कमी का असर सबसे ज़्यादा यात्रियों पर पड़ा।

क्या हुआ व्यापक उड़ान रद्द / देरी, यात्रियों की परेशानी

सबसे बड़ा झटका तब लगा जब 2–3 दिसंबर 2025 को सिर्फ़ दो दिनों में IndiGo ने एक दिन में 200 से ज़्यादा उड़ानें रद्द और कई उड़ानें घंटों तक विलंबित कर दीं। यानी हालात अचानक बिगड़ नहीं रहे थे मामला पूरी तरह हाथ से फिसल चुका था। और ये सिलसिला बस एक–दो दिन नहीं रुका। पूरा महीना यात्रियों की परीक्षाओं जैसा बन गया।

कुल मिलाकर नवंबर 2025 में 1,232 फ्लाइट्स प्रभावित हुईं जिनमें से लगभग 755 कैंसिलेशन सीधे तौर पर क्रू / FDTL नियमों की वजह से हुए। यानी आधे से भी ज़्यादा रद्द उड़ानें पायलट/क्रू उपलब्ध न होने के कारण थीं। जहाज़ चलाने को विमान था, यात्री थे, टिकट थी — लेकिन उड़ाने वाला नहीं।

इसका असर अब सिर्फ़ एयरलाइन तक सीमित नहीं रहा। एयरपोर्ट्स पर नज़ारा पूरी तरह अफ़रा-तफ़री जैसा था लंबी कतारें, यात्री इधर-उधर भटकते हुए, बोर्ड पर बार-बार फ्लाइट रद्द / डिले फ्लैश, बहुत से यात्री बिना सूचना फ्लाइट मिस कर बैठे, कई यात्रियों को चेक-इन सिस्टम में एरर भी झेलनी पड़ी|

लोगों की हालत ऐसी थी जैसे कोई बड़ी मेट्रो लाइन अचानक बंद हो जाए और लाखों लोग रास्ते में अटक जाएँ बस फर्क इतना कि यहाँ बात सफ़र की नहीं, पूरी प्लानिंग और भरोसे की थी। सालों से IndiGo की पहचान समय की पाबंदी (On-Time Performance) रही है लेकिन इस संकट ने उसकी वही पहचान हिला दी।

OTP इतनी बुरी तरह गिर गई कि केवल 35% उड़ानें ही समय पर पहुँच पाईं। यानि हर 100 यात्रियों में से लगभग 65 या तो घंटों इंतज़ार में अटके रहे या फिर उनकी उड़ान रद्द हो गई सोचिए कैसा गुस्सा, कैसा तनाव, कैसी मजबूरी होगी!

ईमानदारी से कहें तो, रिफंड, वैकल्पिक उड़ानें, माफ़ी ईमेल ये सब बाद की बातें हैं। जब एक यात्री अपने घर से बैग पैक करके निकलता है क्योंकि उसे इंटरव्यू अटेंड करना है, किसी शादी में शामिल होना है, डॉक्टर की अपॉइंटमेंट है, या परिवार से मिलना है तो उसके लिए सही समय पर पहुँचना ही सबसे बड़ा भरोसा होता है।

और वही भरोसा एक झटके में टूट गया नतीजा ये हुआ कि साधारण यात्री, जिसे बस समय पर अपनी मंज़िल पहुँचना था, उसे अब अनिश्चित इंतज़ार, परेशानियाँ, पैसों का नुकसान और सफ़र पर अविश्वास झेलना पड़ा।

बहुत से लोग पहली बार महसूस कर रहे थे कि फ्लाइट टिकट होने का मतलब ये नहीं कि उड़ान भी मिल जाएगी। और जब बातें भरोसे से ज़्यादा किस्मत पर आ जाएँ तो सिस्टम में भरोसा कमज़ोर हो ही जाता है।

“Strategic Mistake” की आलोचना क्यों हो रही है

बहुत से लोग और एविएशन इंडस्ट्री के जानकार इसे खुलकर कह रहे हैं कि ये पूरा संकट अचानक नहीं आया ये तैयारी की कमी का नतीजा था। IndiGo (और शायद कुछ दूसरी एयरलाइंस भी) जानती थीं कि नए DGCA नियम आने वाले हैं, पायलटों को ज़्यादा आराम देना होगा, रात की उड़ानें घटेंगी और क्रू शेड्यूल पूरी तरह बदल जाएगा।
मगर इसके बावजूद, एयरलाइन ने पहले से वो ज़ोरदार तैयारी नहीं की, जो इतने बड़े बदलाव के लिए ज़रूरी थी।

इतने बड़े नेटवर्क के लिए रोस्टर को दुबारा डिज़ाइन करना आसान काम नहीं होता सैकड़ों रूट्स, हज़ारों उड़ानें, अलग-अलग शहरों में बेस, और हर जगह अलग क्रू की ज़रूरत। हर पायलट, हर शेड्यूल, हर टाइम स्लॉट सब कुछ फिर से सेट करना पड़ता है।

और यहां पर ही गलती हो गई। एयरलाइन के पास वक़्त था, लेकिन बदलाव के लिए जो मेहनत और दूरदर्शिता चाहिए थी वो दिखाई नहीं दी। अगर सच बोलें तो नए नियम आने से पहले पायलटों की भर्ती बढ़ानी थी, क्रू को अलग-अलग शहरों में ट्रांसफर करना था, बैकअप क्रू बनाना था, और सबसे ज़रूरी बात alternate schedule तैयार रखना था, ताकि नया सिस्टम चालू होते ही ऑपरेशन स्मूथ रहे।

पर इसका उल्टा हो गया नियम लागू हो गए, लेकिन ज़मीन पर तैयारी पूरी नहीं थी। ऐसे भारी बजट, भारी संसाधन और भारी यात्री-भार वाली एयरलाइन में, सिर्फ़ नियम लागू कर देना और फिर इंतज़ार करना कि सब खुद-बखुद संभल जाएगा, ये सोचना ही सबसे बड़ी भूल थी।

असल में इस तरह के बदलाव के लिए contingency plan, backup crew pool, emergency scheduling, pre-trial phase सब तैयार होने चाहिए थे। अगर ये सब होता तो सिस्टम पर दबाव पड़ता, लेकिन operational collapse नहीं होता।

इसी वजह से इंडस्ट्री के कई विशेषज्ञों ने इसे साफ शब्दों में “strategic mistake” कहा मतलब, नियम लागू तो कर दिए, लेकिन रणनीतिक तैयारी नहीं की।

नए नियम के लाभ और DGCA की प्रतिक्रिया

यह दौर IndiGo के लिए बहुत मुश्किल और तनाव भरा रहा, इसमें कोई शक नहीं। लेकिन सच्चाई यह भी है कि पुराने नियमों में भी कई बड़ी कमियाँ थीं पायलटों की थकान (fatigue) बढ़ रही थी, ओवर-वर्क का दबाव था, और इससे उड़ान सुरक्षा पर सीधे असर पड़ने का ख़तरा था।

इसी वजह से नए FDTL नियम लाए गए थे। इनका मक़सद बिल्कुल साफ़ और नेक था पायलटों की थकान कम करना, क्रू को इंसानी तरीके से आराम देना, लगातार उड़ान का प्रेशर कम करना, लंबे समय में हवाई यात्रा को सुरक्षित और भरोसेमंद बनाना यानी अगर तर्क (logic) की बात करें नियम सही थे, नीयत सही थी।

दिक़्क़त सिर्फ़ तैयारी में, रणनीति में, और समय देने में रह गई। नियम लागू कर देना काफी नहीं होता उसके लिए सिस्टम, manpower, logistic और emergency planning पहले से खड़ी करनी पड़ती है। यहीं पर व्यवहारिक कमी रह गई, जिसकी कीमत एयरलाइन और यात्रियों दोनों को चुकानी पड़ी।

अब इस पूरे मामले पर DGCA (नागरिक विमानन नियामक) सक्रिय हो गया है। DGCA ने इस प्रकरण की जांच का आदेश दे दिया है एयरलाइन से पूरी रिपोर्ट, mitigation plan (सुधार योजना) और ऐसा फिर न हो इसके लिए ठोस उपाय मांगे गए हैं।

DGCA ने स्पष्ट कहा है कि कुल cancellations में से 755 उड़ानें crew / FDTL constraints के कारण रद्द हुईं। मतलब मामला सिर्फ़ मौसम, तकनीकी खराबी या भीड़ का नहीं था, बल्कि नए roster नियमों के अनुपालन से सीधे जुड़ा हुआ था।

DGCA का संकेत साफ़ है भविष्य में ऐसी स्थिति रोकनी है तो एयरलाइंस को अपनी crew planning, roster design, contingency mechanisms और backup / buffer crew system को मजबूत बनाना पड़ेगा।

अगर IndiGo और अन्य एयरलाइंस पर्याप्त पायलट भर्ती करें, night-flying के लिए alternate teams बनाएं, और नए नियमों के हिसाब से roster buffers बढ़ाएँ तो आगे ऐसा operational chaos शायद टल सकता है।

इस पूरे संकट का मतलब: यात्रियों, विमानन उद्योग और देश के लिए

देखो, इस पूरी कहानी में सबसे ज़्यादा मुश्किलें आम यात्रियों को झेलनी पड़ीं। जिन लोगों ने टिकट बुक कर रखे थे उनके ट्रिप्स बिगड़ गए, छुट्टियाँ खराब हो गईं, बिज़नेस मीटिंग्स मिस हो गईं, कई लोग इमरजेंसी में कहीं पहुंचना चाहते थे पर फँस गए। मतलब लोगों की प्लानिंग, पैसा, टाइम और दिमाग सब का बुरा हाल हो गया। हर कोई परेशान और गुस्से में था, और होना भी चाहिए आखिर गलती उनकी तो नहीं थी।

अब बात करते हैं एयरलाइन इंडस्ट्री की। यह पूरा मामला असल में एक तगड़ी चेतावनी है। सिर्फ बड़े-बड़े एयरपोर्ट्स पर उड़ानें बढ़ा देना, ज्यादा प्लेन्स खरीद लेना, और सस्ता टिकट देकर मार्केट में रेस जीत लेना बस इससे काम नहीं चलता।

एविएशन में क्रू की वेल-बीइंग, सुरक्षा, नियमों का सही पालन, और इमरजेंसी प्लान भी उतनी ही ज़रूरी चीज़ें हैं। अगर इनमें लापरवाही हो जाए तो सिस्टम एक झटके में ढह सकता है जैसा अभी देखने को मिला।

अब बात नियम और सुरक्षा की। जो नए FDTL नियम आए थे उनका मकसद बिल्कुल सही था। पायलट ज़्यादा थकें नहीं, सुरक्षा प्रभावित न हो, यात्री सफ़र आराम से और भरोसे के साथ करें| इन सब बातों के लिए ये नियम सही थे और ज़रूरी भी थे। लेकिन लागू करने के दौरान की तैयारी कच्ची रह गई। अगर तैयारी पक्की होती तो नियम किसी परेशानी की वजह नहीं बनते बल्कि फायदे देते।

सुधार की ज़रूरत सोच में बदलाव की ज़रूरत। यह मामला सिर्फ “फ्लाइट लेट या कैंसल” वाला नहीं है| यह एक बहुत बड़ा सबक है कि IndiGo जैसी बड़ी एयरलाइन को भी नियम बदलते ही तुरंत स्ट्रैटेजिक और इंसानी (humane) नजरिए से काम करना चाहिए।

मतलब पहले से ये सब होना चाहिए था roster बदलने की प्लानिंग पायलट और crew की संख्या बढ़ाना, बैकअप टीम रखना, emergency scheduling, passengers को timely updates देने की व्यवस्था अगर समय रहते ये सब किया जाता तो इतना बड़ा ऑपरेशनल हंगामा शायद नहीं होता।

आगे क्या? अगर DGCA और IndiGo मिलकर सही सुधार, पूरी पारदर्शिता और यात्रियों के लिए बेहतर सिस्टम तैयार करते हैं तो भविष्य में ऐसा संकट दोबारा आने की संभावना बहुत कम होगी।

पर अभी के लिए ये पूरा मामला एक “Strategic Mistake” बन गया है, जिसने हजारों यात्रियों के भरोसे को हिला कर रख दिया। लोग आज भी कह रहे हैं “टिकट तो हमने IndiGo का लिया था… लेकिन भरोसा हमसे ले लिया गया।”

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