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Gaza Strip में Israel ने किया बड़ा हमला
मध्य पूर्व की नाज़ुक सियासी फिज़ा में एक बार फिर ज़बरदस्त हलचल मच गई है। अमेरिका की बीच-बचाव वाली सीज़फायर डील, जो वैसे ही बहुत कमज़ोर और नाज़ुक थी, अब एक नए झटके की शिकार हो गई है। Israel ने Gaza पट्टी में अचानक से सैन्य कार्रवाई कर दी वो भी तब, जब कुछ ही हफ़्ते पहले दोनों तरफ़ ने शांति की उम्मीद जगाई थी।
मंगलवार की रात और बुधवार की सुबह के बीच Israel वायुसेना ने Gaza के अलग-अलग इलाक़ों में भारी बमबारी की। स्थानीय हेल्थ एजेंसियों और रेस्क्यू टीमों के मुताबिक़, अब तक कम-से-कम 30 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि दर्जनों लोग ज़ख्मी बताए जा रहे हैं। ये हमला इज़राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के दफ़्तर से “पावरफुल स्ट्राइक्स” के नाम पर मंज़ूर किया गया था।
Israel का कहना है कि यह ऑपरेशन उनकी सेना पर हुए एक हमले का जवाब है। उनका दावा है कि हमास के समर्थकों ने ग़ाज़ा के एक हिस्से में इज़राइली जवानों पर फायरिंग की, जिससे सीज़फायर का उल्लंघन हुआ। वहीं दूसरी तरफ़ हमास ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। उनका कहना है कि उन्हें ऐसे किसी हमले की कोई जानकारी नहीं है, और ये सब “बेनियाद इल्ज़ामात” हैं।
अमेरिका के उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस ने इस पूरे मसले पर बयान देते हुए कहा कि, “ऐसी छोटी-मोटी झड़पें होती रहती हैं, मगर हमारी समझ में सीज़फायर अभी भी क़ायम है।” हालांकि, ज़मीनी हक़ीक़त कुछ और बयां कर रही है ग़ाज़ा की गलियों में धुआँ और मलबा पसरा हुआ है, लोग अपने घरों से पलायन कर रहे हैं, और हर तरफ़ डर का माहौल है।
Gaza की स्थानीय मीडिया रिपोर्टों में बताया गया है कि इस बार के हमले में रिहायशी इमारतें, एक स्कूल और दो क्लिनिक भी निशाने पर आए हैं। कई परिवार रातों-रात अपने घर छोड़ने को मजबूर हो गए। बच्चों और बुज़ुर्गों की हालत बेहद ख़राब बताई जा रही है अस्पतालों में जगह की कमी हो चुकी है, और दवाइयों का स्टॉक भी लगभग ख़त्म होने को है।
Israel की तरफ़ से कहा गया है कि ये ऑपरेशन “सीमित दायरे” में था और केवल “आतंकी ठिकानों” को निशाना बनाया गया, लेकिन ग़ाज़ा के लोगों का कहना है कि बम उनके घरों पर गिरे हैं, आतंकियों के ठिकानों पर नहीं।
इस बीच, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हलचल तेज़ हो गई है। यूनाइटेड नेशंस और यूरोपियन यूनियन ने दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील की है। मिस्र और क़तर जैसे देश फिर से मध्यस्थता की कोशिशों में जुट गए हैं, ताकि हालात को फिर से काबू में लाया जा सके।

मगर सच्चाई ये है कि अब दोनों तरफ़ का भरोसा टूट चुका है। लोग अब इस “शांति” को सिर्फ़ एक दिखावा मानने लगे हैं एक ऐसी डोर जो हर बार टूट जाती है, और उसके बाद बस दर्द, ख़ून और मलबा ही बचता है।
Gaza के एक बुज़ुर्ग ने स्थानीय चैनल से बात करते हुए कहा “हर बार हमें कहा जाता है कि अब अमन आएगा, मगर हर बार हमारे बच्चे, हमारे घर और हमारे ख़्वाब मिट्टी में मिल जाते हैं।”
इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि मध्य पूर्व में शांति अब भी बहुत दूर की बात है। Israel और हमास के बीच यह टकराव शायद थमे, लेकिन भरोसे की जो दरार पड़ चुकी है, उसे भरना अब बेहद मुश्किल नज़र आ रहा है।
क्या है समस्या का मूल?
यह हमला उस सीज़फायर के लिए एक बहुत बड़ा इम्तिहान बन गया है, जिसे अमेरिका की मध्यस्थता से बड़ी मुश्किलों के बाद लागू किया गया था। दुनिया भर में इसे एक “उम्मीद की शुरुआत” माना जा रहा था, मगर अब वही सीज़फायर डगमगाने लगी है।
असल मसला कुछ यूँ है Gaza में अब भी हज़ारों लोग लापता हैं। बहुत सारे लोग या तो मलबे में दबे हुए हैं, या उनकी तलाश अब तक जारी है। जंग के बाद की तबाही इतनी ज़्यादा है कि राहत और रेस्क्यू टीमें पूरी तरह से थक चुकी हैं। जगह-जगह मलबा बिखरा हुआ है, और भारी मशीनों की कमी की वजह से खोज-बीन का काम बहुत धीरे चल रहा है।
दूसरा बड़ा झगड़ा हमास पर लगे आरोपों का है। Israel का कहना है कि हमास ने उन इज़राइली बंधकों या मारे गए सैनिकों के शव वापस नहीं किए, जिनके बारे में सीज़फायर डील में साफ़ तौर पर लिखा गया था कि उन्हें जल्द लौटाया जाएगा। यह उस समझौते की एक अहम शर्त थी और उसका न निभाया जाना इज़राइल के लिए “धोखे” जैसा है।
Israel ने यह भी कहा है कि उनके सैनिकों पर गोली चलाई गई, जो उनके हिसाब से “लाल लाइन” पार करने जैसा है। इसी को उन्होंने अपने जवाबी हमले का औचित्य बताया यानी “अगर हम पर हमला होगा, तो हम चुप नहीं बैठेंगे।”
मगर दूसरी तरफ़ Gaza की हालत बहुत खराब है। वहाँ के अस्पताल, रेस्क्यू एजेंसियाँ और स्थानीय मीडिया लगातार बता रहे हैं कि इस पूरे सैन्य ऑपरेशन में सबसे ज़्यादा नुकसान आम लोगों को हुआ है। कई रिहायशी इमारतें मलबे में बदल गई हैं, बच्चों और बुज़ुर्गों की मौतें हुई हैं, और सैकड़ों लोग ज़ख्मी हालत में अस्पतालों तक नहीं पहुँच पा रहे।
एक डॉक्टर ने स्थानीय चैनल से बात करते हुए कहा “हमारे पास ना दवाइयाँ हैं, ना बिजली। ज़ख़्मी लोग सड़कों पर तड़प रहे हैं, और एम्बुलेंसें भी बमबारी के डर से बाहर नहीं निकल पा रहीं।”
हालात इतने संगीन हैं कि बहुत से परिवार अब Gaza छोड़ने की सोच रहे हैं, लेकिन बाहर निकलने के सारे रास्ते या तो बंद हैं या सेना के कब्ज़े में। शहरों में खामोशी और डर का साया छा गया है बस बमों की आवाज़ें, धुएँ के बादल और रोते-बिलखते लोग नज़र आते हैं।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नज़रें अब एक बार फिर इस पूरे मसले पर टिक गई हैं। मिस्र, क़तर और संयुक्त राष्ट्र फिर से कोशिश कर रहे हैं कि हालात काबू में आएँ, लेकिन जमीनी हकीकत ये है कि अब भरोसे की डोर टूट चुकी है। एक बुज़ुर्ग फ़लस्तीनी ने मीडिया से कहा “हर बार कहते हैं अमन आएगा, मगर हर बार हमारे बच्चे मिट्टी में मिल जाते हैं। अब तो अमन का वादा भी ज़ख़्म जैसा लगता है।”
नागरिकों की स्थिति – सबसे संवेदनशील पहलू
Gaza पट्टी में रहने वाले आम लोग इस हालात के सबसे बड़े शिकार बन रहे हैं। वहाँ की ज़िंदगी पहले ही मुश्किल थी, लेकिन अब हालात और भी बदतर होते जा रहे हैं। हर गली, हर मोहल्ले में बस चीख़ें, मलबा और डर का साया है। अस्पतालों में ज़ख़्मियों की भीड़ लगी हुई है डॉक्टर थके हुए हैं, दवाइयाँ कम पड़ गई हैं, और खून-मरीज दोनों की कमी एक साथ महसूस हो रही है।
Gaza सिविल डिफेंस एजेंसी ने बताया है कि मलबे के नीचे अब भी कई लोग दबे हुए हैं और रेस्क्यू टीमें उन्हें निकालने की कोशिश कर रही हैं। धूल, धुएँ और तबाही के बीच यह काम बहुत मुश्किल हो गया है। कई जगह मशीनें नहीं हैं, लोग हाथों से मलबा हटाकर अपने अपने प्रियजनों को ढूंढ रहे हैं।
एक कार को निशाना बनाए जाने की भी खबर है उसमें पाँच लोगों की मौके पर मौत हो गई। इसके अलावा, एक बड़े अस्पताल के पीछे का हिस्सा भी हमले की चपेट में आ गया। यह बेहद ख़तरनाक बात है, क्योंकि स्वास्थ्य संस्थानों पर हमला इंसानियत के खिलाफ़ माना जाता है। वहाँ पहले ही डॉक्टरों और नर्सों की कमी थी, अब अस्पतालों के ढाँचे को भी नुकसान पहुँचा है।
Gaza में पहले से ही हालात बिगड़े हुए थे जंग के बाद के प्रभाव, टूटी हुई इमारतें, अव्यवस्थित पुनर्निर्माण और राहत सामग्री की कमी ने लोगों की कमर तोड़ दी थी। इस नए हमले ने उस नाज़ुक ढाँचे को और भी हिला दिया है।

अब सबसे बड़ा सवाल यही है क्या यह सीज़फायर वाकई टिक पाएगा? अगर छोटे-छोटे हमले ऐसे ही चलते रहे, तो पूरे समझौते का धराशायी होना सिर्फ़ वक्त की बात है। यह साफ़ दिख रहा है कि दोनों पक्षों में भरोसा लगभग खत्म हो चुका है। एक-दूसरे पर इल्ज़ाम और जवाबी इल्ज़ाम का सिलसिला जारी है, और जो देश या संगठन बीच-बचाव की कोशिश कर रहे हैं, उनके लिए हालात को संभालना बहुत मुश्किल हो गया है।
ऐसी हिंसा ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी बेचैन कर दिया है। संयुक्त राष्ट्र और मानवीय संगठन पहले ही चेतावनी दे चुके हैं कि ग़ाज़ा में इंसानियत का सबसे बड़ा संकट पैदा हो चुका है लोग भूखे हैं, बेघर हैं, और डर में जी रहे हैं।
आने वाले दिनों में इस ताज़ा हमले का असर और गहराई से दिखेगा राहत सामग्री पहुँचाने में मुश्किल बढ़ेगी, विस्थापन यानी पलायन और ज़्यादा होगा, अस्पतालों पर बोझ और बढ़ेगा, और सबसे अहम बात, शांति प्रक्रिया फिर से पटरी से उतर सकती है।
Gaza के एक युवा ने स्थानीय चैनल से बात करते हुए कहा हम अब थक चुके हैं। हमें ना जंग चाहिए, ना राजनीति। बस अपने बच्चों के लिए अमन की एक साँस चाहिए। इस जुमले में ग़ाज़ा के लाखों लोगों की पुकार छिपी है एक ऐसी पुकार जो हर बार बमों की आवाज़ में दब जाती है।
आगे क्या हो सकता है?
मध्य पूर्व की इस पेचीदा और नाज़ुक सियासी सूरत में अब मध्यस्थ देशों की भूमिका फिर से अहम हो गई है। मिस्र (Egypt) और अमेरिका ख़ासकर डोनाल्ड ट्रम्प की सरकार एक बार फिर कोशिशों में जुट गई हैं कि किसी तरह इस टूटते हुए समझौते को बचाया जा सके। पहले भी अमेरिका ने कई बार हस्तक्षेप कर के हालात को काबू में करने की कोशिश की थी, और इस बार भी वह सक्रिय नज़र आ रहा है।
सूत्रों के मुताबिक़, अगर हमास ने बंधकों या मारे गए इज़राइली सैनिकों के शवों को लौटाने में देरी की, तो इज़राइल का रवैया और सख़्त हो सकता है। Israel सेना “कड़ा जवाब” देने के मूड में दिख रही है और अगर ऐसा हुआ, तो पूरे इलाके में हिंसा दोबारा भड़क सकती है।
Gaza में मानवीय राहत पहुँचाने का काम भी इस बीच बहुत धीमा हो गया है। अगर सैन्य कार्रवाई और बढ़ती गई, तो राहत एजेंसियों के लिए वहाँ काम करना लगभग नामुमकिन हो जाएगा।
इसका सबसे बुरा असर उन लोगों पर पड़ेगा जो पहले से बेघर या विस्थापित हो चुके हैं शरणार्थी कैंपों में भीड़ बढ़ेगी, खाने-पीने की चीज़ों की कमी होगी, और बीमार लोगों के लिए इलाज मिलना और मुश्किल बन जाएगा।
राजनीतिक तौर पर देखा जाए तो यह पूरा मामला Israel के लिए भी आसान नहीं है। अंदरूनी राजनीति में नेतन्याहू की सरकार पर पहले से ही दबाव बढ़ रहा है कुछ लोग सरकार से “ज़्यादा सख़्त रवैया” अपनाने की मांग कर रहे हैं, तो कुछ कह रहे हैं कि अब वक्त आ गया है कि शांति को असली रूप दिया जाए। वहीं, हमास भी इस मौके पर अपनी “क़ौमी पकड़” मज़बूत करने में जुट गया है, ताकि लोगों के बीच उसका असर बना रहे।
असल में यह हमला सिर्फ़ एक “सैन्य कार्रवाई” नहीं है यह उस नाज़ुक अमन की उम्मीद पर एक बड़ा सवालिया निशान है, जिसे हाल ही में इतनी मेहनत से बुना गया था। ग़ाज़ा के आम लोग इस पूरे संघर्ष के बीच सबसे ज़्यादा पीड़ित हैं। उनका कोई कसूर नहीं, लेकिन जंग की आग में वही सबसे ज़्यादा झुलसते हैं।
अगर दोनों तरफ़ से भरोसे की डोर नहीं संभाली गई और जवाबी हमले फिर शुरू हो गए, तो हालात पलभर में फिर से बिगड़ सकते हैं। शांति का दिखावा टूट जाएगा और इलाक़ा एक बार फिर हिंसा और तबाही की लपटों में घिर जाएगा।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह मामला सिर्फ़ सियासत या सरहदों का नहीं है इसके केंद्र में इंसान हैं, जिनकी ज़िंदगियाँ, उनके बच्चे, और उनका दर्द दांव पर लगा हुआ है। ग़ाज़ा की गलियों में जो सन्नाटा है, वह सिर्फ़ तबाही का नहीं, बल्कि उस उम्मीद का है जो बार-बार टूटती रही है।
अगर हालात पर काबू नहीं पाया गया, तो यह संघर्ष एक और “मानवीय त्रासदी” का रूप ले सकता है जहाँ फिर वही कहानी दोहराई जाएगी: बमबारी, मलबा, रोते हुए बच्चे और इंसानियत की लाशें।
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