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MP की Dark Diwali: सोशल मीडिया रील्स ने कैसे बढ़ाई “Carbide Gun” की Fierce tendency, 14 बच्चों की ली जान

MP की Dark Diwali: सोशल मीडिया रील्स ने कैसे बढ़ाई “Carbide Gun” की Fierce tendency, 14 बच्चों की ली जान

Carbide Gun: Diwali त्योहार, एक त्रासदी

इस साल मध्यप्रदेश की Diwali कुछ ऐसी रही कि रोशनी और खुशी की जगह ग़म और दिल फाड़ देने वाली तस्वीरें ज़्यादा बन कर रह गईँ। खबरें पढ़ कर दिल बैठ सा गया बच्चे भी शामिल, सैकड़ों लोग अपनी आँखों पर चोटें लेकर अस्पतालों में पहुंचे। माँ-बाप के आँसू, टूटी हुई हँसी और घरों में पसरा सन्नाटा त्योहार का वो रंग कहाँ गायब हो गया, पर सच यही है कि इस बार दिवाली ने एक काला चेहरा दिखाया।

लोगों ने जिस चीज़ का इस्तेमाल किया, उसे आम बोलचाल में “Carbide Gun” कहा जा रहा है। असल में ये कोई खिलौना नहीं, न ही मज़ाक की चीज़ है ये घर में आसानी से बना लिया जाने वाला एक ख़तर विस्फोटक औज़ार है। थोड़ा सा प्लास्टिक या पीवीसी पाइप, कभी-कभी टिन का छोटा डब्बा, और उस में calcium carbide (CaC₂) नाम का रसायन डाल कर पानी मिलाया जाता है।

पानी के साथ मिलते ही ये रसायन acetylene गैस बनाता है और उसी गैस को ज़रा-सी आग से जला दिया जाए तो ज़ोरदार धमाका हो जाता है। धमाके से आवाज़ के साथ-साथ उड़ते हुए प्लास्टिक और लोहे के तुकड़े निकलते हैं, जो आँखों, चेहरे और शरीर को भयंकर चोट पहुँचा सकते हैं।

पहले इसका इस्तेमाल खेतों में पक्षियों या बंदरों को भगाने के लिए होता था लोग उसे ‘मंकी रिपेलर गन’ कह कर काम में लेते थे। मगर फ़राह और बेवकूफ़ी में ये चीज़ अब त्योहारों पर भी चल निकली है। दिल की आवाज़ कहती है जो चीज़ खेत में जानी थी, उसे घरों में चलाना हयात के लिए ख़तरा बन गया। आँखें नाज़ुक होती हैं; एक छोटी सी चिंगारी या उड़ता हुआ टुकड़ा किसी की पूरी ज़िंदगी बदल सकता है।

कहने का मकसद साफ़ है बेरुख़ी और लापरवाही का नतीजा बहुत दर्दनाक होता है। अगर आपने या आपके रिश्तेदारों ने कभी ऐसी चीज़ देखी हो, तो फ़ौरन पुलिस/अस्पताल को सूचित करें और बच्चों को ऐसी चीज़ों से बिल्कुल दूर रखें।

Diwali रौशनी का त्योहार है उसे ज़ख्मों और आँसुओं से पाटना नहीं चाहिए। थोड़ा सा ख़याल, थोड़ा सा हिफाज़त, और थोड़ा सा इल्म बस यही चाहिए ताकि आने वाली दिवाली फिर से रोशन, खुशमिज़ाज और बेपरवाह हो सके।

सोशल मीडिया और रील्स का क्रूर रोल

यहाँ सबसे संजीदा बात ये है इस खतरनाक रुझान को बढ़ावा मिला सोशल मीडिया के रील्स और उन DIY (खुद करो) धमाके वाले वीडियोज़ से। यूट्यूब और इंस्टाग्राम पर “Firecracker Gun Challenge” जैसे टैग वाले वीडियो खूब चल रहे थे।

मासूम बच्चे और नवयुवक उन छोटे-बड़े क्लिप्स को देखकर उत्साहित हो गए दिल में आ गया, “मैं भी कर के दिखाऊँगा।” एक आठ साल के नन्हे ने कहा, “मैंने यूट्यूब पर देखा था, पापा से गन मंगवाई।” वीडियो में इन उपकरणों को जैसे कोई खिलौना या मज़ेदार गैज़ेट दिखाया जा रहा था|

किसी ने खतरे का सही एहसास तक नहीं कराया। नतीजा यह हुआ कि उत्सुकता ने लोगों को खुद बनाना या खरीदना सिखा दिया। खरीद-बिक्री और निर्माण कम होने की बजाय बढ़ गए, और त्योहार की खुशियाँ कुछ ही पल में हादसे में बदल गईँ।

अंकड़े दिल दहला देने वाले हैं मध्यप्रदेश में इस दिवाली करीब 300 से ज़्यादा लोग, खासकर बच्चे, आंखों पर चोट लेकर अस्पताल पहुँचे; कुछ जिलों में 14 नन्हों ने अपनी रोशनी खो दी। भोपाल के हमीदिया अस्पताल समेत कई अस्पतालों में ये मामला पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी बन गया।

जिला प्रशासन ने इन उपकरणों की बिक्री, बाटना और सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियोज़ पर रोक लगाने के आदेश जारी किए मगर सवाल ये है कि रोक के साथ-साथ लोगों में चेतना और निहायत ज़रूरी है।

क्यों इतनी बड़ी वजह बनी Carbide Gun?

Diwali की रौशनी के पीछे का अँधेरा: “Carbide Gun” और मासूम आँखों का दर्द

इस साल मध्यप्रदेश की Diwali हमेशा के लिए यादों में दर्ज हो गई लेकिन Diwali और मिठास के लिए नहीं, बल्कि उन ज़ख्मों के लिए जो आँखों और दिलों दोनों में लग गए। त्योहार के जोश में जहाँ लोग सजावट, दीये, मिठाइयों और पटाखों में डूबे थे, वहीं कई घरों में खुशियाँ मातम में बदल गईं। अस्पतालों के गलियारों में बैठे माँ-बाप के रोते चेहरे, बच्चों की पट्टी बंधी आँखें और दर्द से कराहते स्वर ये सब तस्वीरें किसी फिल्म का दृश्य नहीं, हक़ीक़त थीं।

उत्साह और शौक जब “कुछ नया” करने का जोश समझदारी पर भारी पड़ जाए

हर Diwali में लोगों के दिल में एक बात होती है कुछ नया किया जाए, कुछ अलग किया जाए ताकि यादगार रहे। दिवाली का माहौल ही ऐसा होता है हर तरफ़ रौशनी, सजावट, संगीत, और सोशल मीडिया की चमक।

इंस्टाग्राम, यूट्यूब और फेसबुक पर हर कोई अपनी “यूनिक Diwali” दिखाना चाहता है। इसी चाह में कई नौजवान और बच्चे ऐसी चीज़ें करने लगते हैं जो देखने में “मज़ेदार” लगती हैं, मगर असल में बेहद ख़तरनाक होती हैं।

सोशल मीडिया पर “अनूठा करो”, “ट्रेंडिंग बनो”, “कूल लगो” जैसे संदेश हर तरफ़ हैं। लेकिन समस्या यह है कि किशोर उम्र में उत्साह अक्सर समझदारी को पीछे छोड़ देता है। जब सोशल मीडिया पर कोई वीडियो वायरल होता है, तो कई बच्चे बिना सोचे-समझे वैसा करने की कोशिश करने लगते हैं।

जानकारी की कमी जब ‘मज़े का सामान’ बन जाए मौत का औज़ार

“Carbide Gun” सुनने में जैसे कोई खिलौना लगे, पर असलियत में ये एक छोटा बम है। ये कोई पटाखा नहीं, न ही दुकानों में मिलने वाला लाइसेंसी आइटम। ये घरों में बनाया जाने वाला विस्फोटक उपकरण है जिसमें प्लास्टिक या टिन का पाइप, calcium carbide (CaC₂) नाम का रसायन, और पानी मिलाकर acetylene गैस पैदा की जाती है। फिर लाइटर या माचिस से इस गैस को जलाया जाता है और धमाका हो जाता है। तेज आवाज़, चिंगारियाँ और उड़ते हुए टुकड़े जो आँखों और चेहरे को काट देते हैं।

वीडियो में इसे “मज़ेदार गन” या “जगमग धमाका” दिखाया गया, जिससे बच्चे सोचने लगे कि Carbide Gun तो कोई नया पटाखा है। लेकिन डॉक्टरों ने साफ़ कहा“यह आँखों के लिए ज़हर है।” रेटिना जल सकती है, फट सकती है, और इंसान अपनी नज़र हमेशा के लिए खो सकता है।

भोपाल के एक नेत्र-विशेषज्ञ ने बताया, “जब Carbide Gun धमाका होता है, तो जो प्लास्टिक या लोहे के टुकड़े उड़ते हैं, वे शार्पनल की तरह आँख में घुस जाते हैं। ऐसे मामलों में सर्जरी भी कई बार काम नहीं करती।”

नियंत्रण का अभाव कानून बना, मगर ज़मीन पर अमल नहीं हुआ

अब सवाल उठता है कि जब खतरा इतना बड़ा था, तो रोकथाम क्यों नहीं हुई? असल में, प्रशासन ने इन उपकरणों पर बैन तो लगाया था लेकिन अमल ज़मीन पर ढीला रहा। इंटरनेट और सड़क किनारे दुकानों पर इनकी बिक्री जारी रही। लोग इन्हें खेतों के नाम पर खरीद रहे थे, मगर असल में त्योहार के मज़े के लिए इस्तेमाल कर रहे थे।

कई जिलों में पुलिस को बाद में जाकर पता चला कि बच्चे यूट्यूब देखकर खुद ये गन बना रहे हैं पाइप, पानी और कैल्शियम कार्बाइड से। एक छोटे से पैकेट में मिलने वाली ये चीज़ सस्ती थी, इसलिए हर किसी की पहुँच में थी। पर किसी ने यह नहीं समझाया कि “सस्ती चीज़” कभी-कभी “सबसे महंगी भूल” साबित हो जाती है।

सोशल मीडिया का असर जब रील्स बन गईं हादसे की वजह

रील्स और चैलेंज की दुनिया में आज हर बच्चा “वायरल स्टार” बनना चाहता है। “Firecracker Gun Challenge” जैसे टैग वाले वीडियोज़ ने इस खतरनाक चीज़ को “हॉट ट्रेंड” बना दिया। वीडियो में लोग धमाका करके मुस्कुरा रहे थे, थम्स-अप दे रहे थे और बच्चे देख रहे थे कि यह तो आसान और मज़ेदार है। लेकिन न वीडियो में चेतावनी थी, न ख़तरे की झलक।

Carbide Gun: प्रभाव आँखें, ज़िंदगियाँ और परिवार सब झुलस गए

अस्पतालों के रिकॉर्ड बताते हैं कि सिर्फ़ मध्यप्रदेश में इस बार करीब 300 से ज़्यादा लोग, ज़्यादातर बच्चे, “Carbide Gun” से घायल हुए। 14 बच्चों ने अपनी दृष्टि हमेशा के लिए खो दी। भोपाल के हमीदिया हॉस्पिटल और इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर के बड़े अस्पतालों में नेत्र विभागों में भीड़ लग गई।

एक पिता रोते हुए बोले –
“पहले तो लगा मामूली जलन है, फिर जब डॉक्टर ने कहा कि बच्चा अब देख नहीं पाएगा… तो ज़िंदगी जैसे रुक गई।”

एक और माँ ने बताया –
“बेटा दोस्तों के साथ खेल रहा था, गन मुँह के पास रखी थी, तभी फट गई। अब उसकी एक आँख हमेशा के लिए चली गई।”

डॉक्टरों का कहना है कि कई केस ऐसे हैं जहाँ बच्चे पहले “थोड़ा-सा जलने” की शिकायत लेकर आए, और जाँच में पता चला कि अंदर रेटिना फट चुकी है। कई बच्चों का इलाज चल रहा है, पर डॉक्टर भी मान रहे हैं “हर आँख बच नहीं सकती।”

क्या उपाय हो सकते हैं?

अब ज़रूरत इस बात की है कि हम सिर्फ़ हादसों पर अफ़सोस न करें, बल्कि उनसे कुछ सीखें भी। समाज, घर-परिवार, सरकार सबको अपनी भूमिका निभानी होगी ताकि आने वाले त्योहार फिर से खुशियों का प्रतीक बनें, न कि डर और दर्द का।

सामाजिक जागरूकता बढ़ाना समझदारी ही सबसे बड़ी सुरक्षा है

आज सबसे पहली ज़रूरत है जागरूकता की। लोगों को समझना होगा कि सोशल मीडिया पर दिखने वाली हर चीज़ सही या सुरक्षित नहीं होती। माता-पिता, स्कूल और समाज सबको मिलकर बच्चों को यह सिखाना होगा कि “वायरल” का मतलब सुरक्षित नहीं होता। कई बार जो वीडियो मज़ेदार लगते हैं, वे दरअसल बेहद ख़तरनाक होते हैं।

मीडिया-साक्षरता यानी Media Literacy की ज़रूरत पहले से कहीं ज़्यादा है। बच्चों को यह समझाना होगा कि जो चीज़ फोन की स्क्रीन पर दिखती है, वो हकीकत में वैसी नहीं होती। रील्स का चमकदार जादू सिर्फ कुछ सेकंड का होता है, लेकिन उसका अंजाम ज़िंदगी भर का दर्द बन सकता है।

ऑनलाइन वीडियो और कंटेंट पर नियंत्रण डिजिटल दुनिया में भी निगरानी चाहिए

आज सोशल मीडिया हमारी ज़िंदगी का हिस्सा बन गया है। मगर इसके साथ ज़िम्मेदारी भी आती है। राज्य और ज़िला प्रशासन ने अब सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे यूट्यूब, इंस्टाग्राम, फेसबुक, और स्नैपचैट से अनुरोध किया है कि ऐसे वीडियोज़ को तुरंत हटाया जाए जो “Carbide Gun” जैसे खतरनाक उपकरणों का प्रदर्शन या इस्तेमाल दिखाते हैं।

यानी अब सिर्फ़ ज़मीन पर नहीं, इंटरनेट पर भी चौकीदारी ज़रूरी है। क्योंकि आज का बच्चा मोबाइल स्क्रीन से ही सब सीखता है अगर वहीं खतरा दिखेगा, तो हादसे भी वहीं से शुरू होंगे। इसलिए प्लेटफॉर्म्स को यह समझना होगा कि मनोरंजन और सुरक्षा के बीच की रेखा बहुत पतली है।

सरकारें चाहें तो इस दिशा में और मज़बूत कदम उठा सकती हैं जैसे कि “सुरक्षित डिजिटल चैलेंज” बनाना, जो बच्चों को सकारात्मक और सुरक्षित तरीके से एक्सप्रेशन का मौका दे। ताकि वो रचनात्मकता दिखाएँ, मगर जोखिम न लें।

बिक्री-नियंत्रण और कानूनी कार्रवाई कानून का डंडा भी ज़रूरी है

मध्यप्रदेश के इंदौर ज़िले ने इस दिशा में एक अहम कदम उठाया है। यहाँ “Carbide Gun” जैसे उपकरणों का निर्माण, बिक्री और उपयोग पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया है। जो कोई भी इन नियमों का उल्लंघन करेगा, उसके खिलाफ़ कानूनी कार्रवाई और जुर्माने का प्रावधान रखा गया है।

यह सख़्ती वक़्त की ज़रूरत है क्योंकि जब लोग डर से नहीं, तो कानून से ही सही रास्ते पर लौटते हैं। लेकिन साथ ही यह भी ज़रूरी है कि पुलिस, प्रशासन और जनता मिलकर इस रोक को अमल में लाएँ। सिर्फ़ आदेश जारी कर देना काफी नहीं उसकी निगरानी भी उतनी ही अहम है।

घर-परिवार की सख़्ती प्यार भरी नसीहत ही सबसे बड़ा बचाव है

किसी भी हादसे से पहले, परिवार की नज़र ही पहला पहरा होता है। माता-पिता को त्योहारों में बच्चों के मनोरंजन पर ध्यान रखना चाहिए वे क्या देख रहे हैं, क्या बना रहे हैं, किस चीज़ में दिलचस्पी ले रहे हैं। त्योहार का मतलब है खुशियाँ, लेकिन “अनियंत्रित जोश” कभी-कभी बहुत महँगा पड़ जाता है।

अगर बच्चा किसी नई चीज़ में ज़्यादा दिलचस्पी दिखा रहा है, तो उससे खुलकर बात करें। डाँटने या रोकने के बजाय समझाएँ कि “जो चीज़ दूसरों के लिए नुकसानदेह हो सकती है, वो मज़ा नहीं, खतरा है।”

कई बार बच्चे ये सब इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे वे “हीरो” लगेंगे, “ट्रेंड” में रहेंगे। मगर उन्हें यह बताना ज़रूरी है कि असली हीरो वही है जो दूसरों की और अपनी सुरक्षा का ख़्याल रखे।

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