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E20 नीति और Nitin Gadkari का दृष्टिकोण
Nitin Gadkari ने तय किया था कि पेट्रोल में 20% तक E20 Ethanol मिलाने वाला E20 प्रोग्राम साल 2030 तक पूरा किया जाएगा। लेकिन सरकार ने इसे तय समय से पाँच साल पहले, यानी 2025 तक ही पूरा कर दिखाया। इस कदम का मकसद है कि भारत को तेल के लिए दूसरे देशों पर ज़्यादा निर्भर न रहना पड़े, किसानों की जेब में ज़्यादा पैसा पहुँचे, हवा में फैलने वाला प्रदूषण कम हो और देश की ऊर्जा सुरक्षा मज़बूत बने।

यानी सीधे शब्दों में कहें तो सरकार चाहती है कि किसानों को गन्ना और दूसरी फसलें बेचने का एक नया बड़ा बाज़ार मिले, पेट्रोल महँगा न पड़े, और साथ ही गाड़ियों से निकलने वाला धुआँ भी थोड़ा कम हो।
इसीको लेकर केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने बार-बार जनता के सामने बताया कि इथेनॉल को “साफ-सुथरा ईंधन” माना जा सकता है, और यह “गाँव की अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने वाला कदम” है। उन्होंने कहा कि ये बदलाव सिर्फ़ गाड़ियों के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए फायदेमंद साबित होगा।
Nitin Gadkari का कहना है कि असली दिक़्क़त तो “पेट्रोल लॉबी” को है, क्योंकि उन्हें अपने मुनाफ़े में कटौती होती नज़र आ रही है। उन्होंने साफ़ कहा कि भारत में इथेनॉल मिलाकर पेट्रोल का हर तरह से टेस्ट और जाँच हो चुकी है, और लोगों को डराने की जो बातें फैलाई जा रही हैं, वो पूरी तरह बेबुनियाद हैं।
विपक्षी आरोप क्या Nitin Gadkari का परिवार फायदा उठा रहा है?
कांग्रेस के बड़े नेता और प्रवक्ता पवन खेड़ा ने गंभीर आरोप लगाया है कि नितिन गडकरी के दोनों बेट निखिल और सारंग सीधे-सीधे इथेनॉल बनाने वाली कंपनियों से फायदा उठा रहे हैं। उनका कहना है कि जिस वक्त सरकार ने इथेनॉल को पेट्रोल में मिलाने की नीति पर ज़ोर देना शुरू किया, उसी समय गडकरी के परिवार से जुड़ी कंपनियों की कमाई अचानक आसमान छूने लगी।
मिसाल के तौर पर, निखिल गडकरी की कंपनी Cian Agro Industries का हाल देख लीजिए। जून 2024 में इस कंपनी का कारोबार करीब 18 करोड़ रुपये का था। लेकिन सिर्फ़ एक साल बाद, जून 2025 तक यह कारोबार बढ़कर सीधे 523 करोड़ रुपये तक पहुँच गया। यानि साल भर में इतनी ज़बरदस्त छलांग कि आम लोग सुनकर हैरान रह जाएँ।
सिर्फ़ इतना ही नहीं, कंपनी के शेयर (स्टॉक) की कीमत में भी ग़ज़ब का उछाल आया। जहाँ पहले एक शेयर की कीमत लगभग ₹37 थी, वहीं एक साल में यह बढ़कर करीब ₹638 तक पहुँच गई। यानी लगभग 2184% की बढ़ोतरी, जो अपने आप में चौंकाने वाली बात है।
अब ऐसे आंकड़े देखकर सवाल उठना लाज़मी है। विपक्ष का कहना है कि ये सब सिर्फ़ किसी आम बाज़ार की ताक़त या मेहनत का नतीजा नहीं है, बल्कि ये सरकार की बनाई गई नीति से मिला सीधा फायदा है। यानी असली सवाल यही है—क्या यह इथेनॉल वाली नीति सच में किसानों की मदद करने के लिए थी, या फिर इसका ज़्यादा फायदा गडकरी परिवार और कुछ चुनिंदा कंपनियों को पहुँचाने के लिए निकाला गया?
जानें असली तस्वीर क्या है?
अस्थिर इंजन और माइलेज
कांग्रेस का कहना है कि पेट्रोल में 20% इथेनॉल (E20) मिलाने से गाड़ियों पर सीधा असर पड़ रहा है। उनका दावा है कि इससे इंजन की लाइफ यानी उम्र कम हो जाती है और गाड़ी का माइलेज भी घट जाता है। कई ग्राहकों ने तो यह तक कहा है कि पहले उनकी गाड़ी एक लीटर में जितना चलती थी, अब उसी में 20% से लेकर 50% तक कम चल रही है। यानी पेट्रोल ज़्यादा जल रहा है और जेब पर ज़्यादा बोझ पड़ रहा है।
लेकिन दूसरी तरफ, सरकार से जुड़ी बड़ी संस्थाएँ जैसे ARAI (Automotive Research Association of India) और SIAM (Society of Indian Automobile Manufacturers) ने इन दावों को बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया कहा है। उनका कहना है कि असली सच्चाई यह है कि E20 Ethanol पेट्रोल से गाड़ियों के माइलेज पर बहुत हल्का असर पड़ता है—बस 2 से 4% तक की कमी आती है। और यह असर इतना बड़ा या खतरनाक नहीं है कि लोगों को डरना पड़े।
यानी एक तरफ कांग्रेस और कुछ लोग कह रहे हैं कि गाड़ी का माइलेज आधा हो गया है, तो वहीं तकनीकी एजेंसियाँ साफ़ बोल रही हैं कि नुकसान मामूली है और गाड़ियों की परफॉर्मेंस लगभग वैसी ही बनी रहती है।
पर्यावरण और संसाधन से जुड़ी चिंताएँ
कांग्रेस ने इस पूरी इथेनॉल नीति पर एक और बड़ा सवाल खड़ा किया है। उनका कहना है कि इथेनॉल बनाने के लिए कपास का कचरा, लकड़ी के टुकड़े या फिर दूसरी बेकार चीज़ों का इस्तेमाल होना चाहिए था, लेकिन सरकार इसे बनाने के लिए सीधे-सीधे सस्ती और ज़रूरी कृषि फसलों का उपयोग कर रही है।
विपक्ष का तर्क है कि जब गन्ना, मक्का या दूसरी खाने-पीने वाली फसलों को इथेनॉल बनाने में इस्तेमाल किया जाएगा, तो इससे आम जनता के लिए खाने का सामान महँगा हो सकता है। सीधी भाषा में कहें तो इससे खाद्य संकट (Food Crisis) जैसी स्थिति खड़ी हो सकती है, जहाँ ज़रूरी अनाज और सामान की कमी हो जाए और दाम आसमान छूने लगें।
सिर्फ यही नहीं, इथेनॉल बनाने की प्रक्रिया में पानी का बहुत ज़्यादा इस्तेमाल होता है। कांग्रेस का कहना है कि सिर्फ 1 लीटर इथेनॉल बनाने में करीब 3000 लीटर पानी लग जाता है। अब सोचिए, जहाँ पहले से ही देश के कई हिस्सों में किसान पानी की कमी से जूझ रहे हैं, वहाँ अगर इतनी बड़ी मात्रा में पानी इथेनॉल बनाने में लगाया जाएगा, तो आगे चलकर पानी का संकट और भी गहरा सकता है।
यानी विपक्ष साफ़-साफ़ चेतावनी दे रहा है कि अगर सरकार ने यह तरीका नहीं बदला, तो आगे चलकर किसानों और आम जनता—दोनों पर इसका बुरा असर पड़ सकता है।
क्या Nitin Gadkari ने अपने परिवार को लाभान्वित किया?
देखा जाए तो Nitin Gadkari खुद पेट्रोलियम मंत्री नहीं हैं, फिर भी वह E20 Ethanol को लेकर सबसे आगे बढ़कर उसकी वकालत कर रहे हैं। यह बात इसलिए भी चर्चा में है क्योंकि उनका परिवार लंबे समय से साखर (शुगर) उद्योग से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा, इथेनॉल और ईंधन से जुड़े कारोबार में उनके दोनों बेटे भी सक्रिय बताए जाते हैं।
यही वजह है कि विपक्ष लगातार यह सवाल उठा रहा है कि Nitin Gadkari इथेनॉल की पैरवी क्यों कर रहे हैं—क्या यह देशहित में है या फिर परिवार और अपनी कंपनियों के हित में?
हालाँकि, अब तक ऐसा कोई ठोस मामला सामने नहीं आया है जिसे लेकर न्यायपालिका या सरकार ने औपचारिक जाँच की हो और उसका नतीजा जनता के सामने रखा गया हो। यानी आरोप तो ज़रूर लग रहे हैं, लेकिन अदालत या किसी सरकारी रिपोर्ट से अभी तक इसकी पुष्टि नहीं हुई है।
कांग्रेस ने यहाँ तक माँग कर दी है कि इस पूरे मामले की लोकपाल (Lokpal) से जाँच करवाई जाए। लेकिन गौर करने वाली बात यह भी है कि विपक्षी दलों के पास अभी तक कोई पुख़्ता सबूत नहीं है जिसे दिखाकर यह साफ़ कहा जा सके कि गडकरी या उनके परिवार ने सचमुच इस नीति से सीधा फायदा उठाया है।
Nitin Gadkari की प्रतिक्रिया और सरकारी रुख
Nitin Gadkari ने विपक्ष के लगाए गए सारे आरोपों को पूरी तरह नकार दिया है। उनका कहना है कि यह सब बेबुनियाद बातें हैं और इन्हें जानबूझकर पेट्रोलियम लॉबी फैला रही है, क्योंकि इथेनॉल की बढ़ती लोकप्रियता से उनके मुनाफ़े पर असर पड़ रहा है। गडकरी ने इन दावों को “पूरी तरह गलत और भ्रामक” बताया।
उन्होंने साफ़ कहा कि E20 Ethanol मिलाकर पेट्रोल का भारत में हर स्तर पर तकनीकी परीक्षण और जाँच हो चुकी है। देश के रिसर्च सेंटर और वैज्ञानिक संस्थान इसकी सुरक्षा और गुणवत्ता को पहले ही परख चुके हैं। इतना ही नहीं, गडकरी ने यह भी याद दिलाया कि भारत ने पेट्रोल में 20% इथेनॉल मिलाने का जो लक्ष्य 2030 तक रखा था, उसे सरकार ने पाँच साल पहले ही, यानी 2025 तक हासिल कर लिया। यह अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है।
दूसरी तरफ, पेट्रोलियम मंत्रालय ने भी स्थिति साफ़ कर दी है। मंत्रालय का कहना है कि E20 Ethanol पेट्रोल से गाड़ियों के माइलेज पर जो असर पड़ता है, वह बहुत ही हल्का और मामूली है। वैज्ञानिक परीक्षणों में पाया गया है कि माइलेज में थोड़ी-बहुत कमी तो होती है, लेकिन वह इतनी बड़ी नहीं है कि गाड़ियों की परफ़ॉर्मेंस बिगड़ जाए या आम लोगों को भारी नुकसान हो।
सीधे शब्दों में कहें तो सरकार और गडकरी दोनों का मानना है कि इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल पर फैल रही अफवाहें सिर्फ़ डर पैदा करने और जनता को गुमराह करने के लिए हैं, जबकि असलियत में यह ईंधन भारत के लिए ज़्यादा सुरक्षित, सस्ता और टिकाऊ विकल्प है।
सोशल मीडिया और आम राय—क्या जनता चिंतित है?
कई लोग सोशल मीडिया और पब्लिक प्लेटफॉर्म पर लिख रहे हैं कि पहले खुद गडकरी की अपनी कंपनी इथेनॉल बनाती थी, और अब वही कंपनियाँ उनके बेटों के नाम पर चल रही हैं। वहीं दूसरी ओर, लोगों का कहना है कि गन्ने से इथेनॉल बनाने में बहुत बड़ा पर्यावरणीय नुकसान होता है, क्योंकि सिर्फ़ 1 लीटर इथेनॉल बनाने के लिए करीब 3000 लीटर पानी खर्च हो जाता है।
ऐसी टिप्पणियाँ साफ़ दिखाती हैं कि जनता के बीच इस पूरी नीति को लेकर भरोसे की कमी है। लोग सोच रहे हैं कि क्या यह योजना सच में देश और किसानों के भले के लिए है, या फिर इसके पीछे कोई और मक़सद छिपा हुआ है।
असल में यह विवाद सिर्फ़ गडकरी या उनके परिवार पर लगे आरोप भर नहीं हैं। यह उससे कहीं बड़ा सवाल है कि जब सरकार कोई नीति बनाती है तो उसमें पारदर्शिता (transparency), ईमानदारी और जनता का हित कितना ध्यान में रखा जाता है।
अगर सच में Nitin Gadkari या उनके परिवार की कंपनियों को इस नीति से फायदा हो रहा है, तो यह नैतिकता और न्याय के लिहाज़ से सही नहीं माना जाएगा। लेकिन दूसरी तरफ, अगर इस नीति का असली उद्देश्य सिर्फ़ इतना है कि प्रदूषण कम हो, किसानों की आमदनी बढ़े और विदेशों से तेल मँगाने की ज़रूरत घटे, तो फिर यह कदम देश के लिए सही दिशा में उठाया गया माना जाएगा।
आख़िर में सच्चाई सामने लाने का ज़िम्मा सिर्फ़ लोकपाल या अदालत की जाँच ही निभा सकती है। अभी तक जो बयान और आँकड़े सामने आए हैं, उनमें दोनों तरफ़ की बातें मौजूद हैं—विपक्ष अपने तर्क और आरोपों के साथ खड़ा है, तो सरकार अपनी सफाई और आंकड़ों के साथ। लेकिन असली सच क्या है, यह तस्वीर अभी पूरी तरह साफ़ नहीं हो पाई है।
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