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Parliament Winter Session 2025: Powerful फैसले और Democratic बहस के बीच लोकतंत्र की असली परीक्षा

Parliament Winter Session 2025: Powerful फैसले और Democratic बहस के बीच लोकतंत्र की असली परीक्षा

संसद का Winter Session 2025: 19 दिनों की हलचल

संसद का Winter Session 2025 इस साल 1 दिसंबर से 19 दिसंबर तक चला और आज औपचारिक तौर पर खत्म हो गया। कुल मिलाकर यह सत्र 19 दिनों का था, जिसमें 15 बैठकें हुईं। लेकिन अगर इस पूरे सत्र की फिज़ा को देखा जाए, तो यह वैसा शांत और सलीकेदार नहीं रहा, जैसा एक मज़बूत लोकतंत्र में उम्मीद की जाती है।

इस बार संसद का माहौल ज़्यादातर हंगामे, नारेबाज़ी और टकराव से भरा रहा। कई मौकों पर कार्यवाही शुरू होते ही विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच तीखी बहसें देखने को मिलीं, जो अक्सर शोर-शराबे में बदल गईं। इसकी वजह से कई अहम मुद्दों पर खुलकर चर्चा ही नहीं हो सकी, और सदन को बार-बार स्थगित करना पड़ा।

हालाँकि, इस शोर-शराबे के बीच कुछ ज़रूरी विधायी काम भी हुए और कुछ बिल पास किए गए, लेकिन बड़ी और गहरी बहसों की कमी साफ़ तौर पर महसूस की गई। जनता जिन सवालों के जवाब चाहती थी महँगाई, रोज़गार, सामाजिक न्याय और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दे उन पर वैसी संजीदा और लंबी चर्चा नहीं हो पाई, जैसी होनी चाहिए थी।

राजनीतिक तौर पर यह Winter Session 2025 काफी बंटा हुआ और तनातनी से भरा नजर आया। विपक्ष लगातार सरकार से जवाब मांगता रहा, जबकि सरकार ने अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने की कोशिश की। दोनों पक्षों के बीच भरोसे की कमी और संवाद का अभाव साफ दिखाई दिया, जिसने संसद की कार्यवाही को बार-बार प्रभावित किया।

कुल मिलाकर, Winter Session 2025 को एक ऐसे दौर के रूप में याद किया जाएगा, जो एक साथ चुनौतीपूर्ण भी था और निर्णायक भी। यह सत्र यह सवाल छोड़ गया कि क्या हमारी संसदीय राजनीति वाकई जनता के मसलों पर गंभीर बातचीत के लिए तैयार है, या फिर हंगामा ही अब बहस की जगह ले चुका है। लोकतंत्र की सेहत के लिए यह सोचना बेहद ज़रूरी है कि संसद का वक़ार और मक़सद कैसे दोबारा मज़बूत किया जाए।

Winter Session 2025 का औपचारिक समापन: ‘sine die’ तक

19 दिसंबर 2025 को संसद के Winter Session को ‘साइन डाई’ (sine die) के साथ स्थगित कर दिया गया, यानी अब इसकी अगली बैठक की कोई तारीख तय नहीं की गई। सीधे शब्दों में कहें तो संसद का यह दौर बिना किसी तय अगली तारीख के यहीं खत्म हो गया।

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सत्र के समापन पर कहा कि इस बार संसद की कार्यवाही की उत्पादकता 111 फीसदी रही। उन्होंने यह भी बताया कि राज्यसभा ने भी लगभग इसी तरह का सकारात्मक और संतोषजनक प्रदर्शन किया। हालांकि बाहर से देखने पर सत्र में हंगामा ज़्यादा दिखा, लेकिन आधिकारिक तौर पर इसे कामकाज के लिहाज़ से काफ़ी सफल बताया गया।

सत्र खत्म होने के बाद ओम बिरला ने सभी राजनीतिक दलों के सांसदों के साथ एक मुलाक़ात भी की। इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी समेत कई बड़े और अहम चेहरे मौजूद रहे। माहौल औपचारिक होने के साथ-साथ बातचीत वाला भी था, जहां सत्र के अनुभवों और आगे की राजनीति पर चर्चा हुई।

कुल मिलाकर, संसद के इस Winter Session 2025 का अंत सिर्फ़ कार्यवाही के स्थगन तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह विदाई, आपसी मुलाक़ात और सियासी बातचीत के साथ पूरा हुआ। इससे यह संदेश गया कि तमाम मतभेदों और बहसों के बावजूद, संसद लोकतंत्र का वह मंच है जहां संवाद की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है।

महत्वपूर्ण और विवादित विधेयक

इस Winter Session 2025 में VB-G RAM G बिल सबसे ज़्यादा चर्चा में रहा। सरकार इसे मनरेगा कानून की जगह लेकर आई, जिसमें ग्रामीण भारत के लिए 125 दिनों के रोज़गार की गारंटी देने का दावा किया गया है। सरकार का कहना है कि इससे गांवों में काम को ज़्यादा मज़बूती और सुरक्षा मिलेगी।

लेकिन विपक्ष को इस बिल का नाम बदलना और इसके असर दोनों ही रास नहीं आए। इसी मुद्दे पर सदन में ज़बरदस्त विरोध, नारेबाज़ी और हंगामा देखने को मिला। विपक्ष का कहना रहा कि पुराने कानून को हटाकर नया नाम देने से ज़मीनी सच्चाई नहीं बदलती, बल्कि कई सवाल और शंकाएँ खड़ी होती हैं।

इसके अलावा संसद ने SHANTI बिल भी पास किया, जिसका पूरा नाम है Sustainable Harnessing and Advancement of Nuclear Energy for Transforming India। इस बिल के ज़रिये निजी कंपनियों को परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में हिस्सा लेने की इजाज़त दी गई है।

प्रधानमंत्री ने इसे देश के लिए ऐतिहासिक और बदलाव लाने वाला क़दम बताया और कहा कि इससे ऊर्जा क्षेत्र में नई रफ़्तार आएगी। वहीं, विपक्षी दलों ने इस पर गंभीर आपत्तियाँ जताईं और कहा कि इससे सुरक्षा, पर्यावरण और जनहित को ख़तरा हो सकता है।

सरकार ने बीमा सुधार बिल भी पारित कराया, जिसके तहत बीमा क्षेत्र में FDI की सीमा बढ़ाकर 100 फीसदी कर दी गई। सरकार का दावा है कि इससे बीमा कवरेज बढ़ेगा, प्रीमियम कम होंगे और रोज़गार के नए मौके पैदा होंगे। हालांकि, विपक्ष का मानना है कि इससे विदेशी कंपनियों का दबदबा बढ़ सकता है और घरेलू हित प्रभावित हो सकते हैं।

इनके अलावा भी कई अन्य विधेयक और पहलें सामने आईं। कुछ बिलों को पास किया गया, जबकि कुछ को आगे की जाँच और चर्चा के लिए संयुक्त समिति या स्थायी समिति को भेज दिया गया। जैसे उच्च शिक्षा नियामक की नियुक्ति से जुड़ा बिल संयुक्त समिति के हवाले किया गया। बाज़ार सुरक्षा कोड से जुड़े बिल को स्टैंडिंग कमिटी में भेजा गया। साथ ही कुछ वित्तीय और तकनीकी संशोधनों वाले विधेयकों को भी मंज़ूरी दी गई।

कुल मिलाकर, यह Winter Session 2025 क़ानून बनाने के लिहाज़ से अहम रहा, लेकिन साथ ही विरोध, बहस और सियासी तकरार की तस्वीर भी साफ़ दिखाता रहा जिसमें हर बिल के साथ सहमति से ज़्यादा असहमति की आवाज़ें सुनाई देती रहीं।

Winter Session 2025 में हुई बहसें: लेकिन कुछ छूट गईं

यह Winter Session 2025 क़ानून बनाने के लिहाज़ से तो कामयाब माना गया, लेकिन जब बात बहस की गुणवत्ता और मुद्दों की गहराई की आई, तो इस पर लगातार सवाल उठते रहे। कई अहम मसले ऐसे थे, जिन पर देश खुली और गंभीर चर्चा की उम्मीद कर रहा था, मगर सदन के हंगामे ने उन आवाज़ों को दबा दिया।

प्रदूषण का मुद्दा इसका सबसे बड़ा उदाहरण रहा। दिल्ली-NCR में वायु गुणवत्ता बेहद ख़राब होने के बावजूद इस पर संसद में ठीक से बहस नहीं हो सकी। कुछ विपक्षी सांसदों ने इस गंभीर समस्या को उठाने की कोशिश की, लेकिन शोर-शराबे और बार-बार की स्थगन के चलते चर्चा आगे बढ़ ही नहीं पाई। नतीजा यह हुआ कि आम लोगों की साँसों से जुड़ा सवाल, संसद के एजेंडे से बाहर सा नज़र आया।

संसद में ‘वंदे मातरम्’ के 150 साल पूरे होने पर बहस और चुनावी सुधारों पर चर्चा भी रखी गई। इस दौरान माहौल काफ़ी गरम रहा। विपक्ष ने खास तौर पर चुनाव आयोग से जुड़े कानूनों और उसकी कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए। बहस में देशभक्ति, लोकतंत्र और चुनावी पारदर्शिता जैसे मुद्दे आपस में टकराते दिखे, जिससे सदन की सियासत और ज़्यादा तेज़ हो गई।

इसके अलावा विपक्ष ने बेरोज़गारी, राष्ट्रीय सुरक्षा, तकनीकी ढाँचे और देश की आर्थिक हालत जैसे अहम मसलों पर चर्चा की मांग की। मगर अफ़सोस की बात यह रही कि हंगामे, नारेबाज़ी और बार-बार के स्थगन के चलते इनमें से ज़्यादातर मुद्दे गहराई से उठ ही नहीं पाए।

कुल मिलाकर, यह सत्र इस बात की याद दिलाता है कि संसद में सिर्फ़ क़ानून पास होना ही काफ़ी नहीं है। लोकतंत्र की असली जान तो संजीदा बहस, सवाल-जवाब और जनता से जुड़े मुद्दों पर खुलकर बातचीत में होती है और यही पहलू इस सत्र में सबसे ज़्यादा खलता रहा।

हंगामे, स्थगन और राजनीति

यह Winter Session 2025 बिल्कुल भी शांत और सुलझा हुआ नहीं रहा। हालात ऐसे बने कि कई बार सदन की कार्यवाही रोकनी पड़ी। विपक्षी सांसदों ने कई मौकों पर वॉकआउट किया, स्थगन प्रस्ताव लाए गए, और माहौल बार-बार तनावपूर्ण होता चला गया। लोकसभा हो या राज्यसभा दोनों ही सदनों में हंगामे की वजह से बहस के कई घंटे बर्बाद हो गए।

इस पूरे माहौल ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया कि क्या संसद अब भी लोकतांत्रिक संवाद का सबसे बड़ा मंच बनी हुई है, या फिर यह धीरे-धीरे राजनीतिक नाटकों की जगह बनती जा रही है। जनता जिन मुद्दों पर गंभीर चर्चा देखना चाहती थी, वे शोर-शराबे के बीच कहीं खोते चले गए।

एक और खास बात जिसने सबका ध्यान खींचा, वह यह रही कि कुछ विधेयकों के पारित होने के दौरान काग़ज़ फाड़ने जैसे विरोध-प्रदर्शन भी सदन में देखने को मिले। यह दृश्य न सिर्फ़ चौंकाने वाला था, बल्कि इसने 21वीं सदी की राजनीति और संसद की गरिमा पर भी नई बहस छेड़ दी। कई लोगों ने सवाल उठाया कि विरोध का यह तरीका क्या लोकतांत्रिक मूल्यों के मुताबिक़ है, या फिर यह संसदीय मर्यादाओं से दूर जाने का संकेत है।

कुल मिलाकर, यह सत्र कामकाज से ज़्यादा टकराव, नाराज़गी और असहमति के लिए याद किया जाएगा जहां बातचीत कम और हंगामा ज़्यादा नज़र आया, और संसद की साख पर सवाल खड़े होते रहे।

Winter Session 2025 की “उत्पादकता” और आलोचना

लोकसभा अध्यक्ष ने बताया कि इस Winter Session 2025 में लोकसभा की उत्पादकता 111 फीसदी रही, जबकि राज्यसभा की उत्पादकता 121 फीसदी दर्ज की गई। सरकारी आँकड़ों के हिसाब से यह तस्वीर काफ़ी सकारात्मक दिखती है और यह इशारा करती है कि ज़्यादातर विधायी काम तय वक़्त पर पूरा कर लिया गया।

लेकिन विपक्ष और कई राजनीतिक जानकारों का कहना है कि उत्पादकता का मतलब सिर्फ़ बिल पास करना नहीं होता। उनके मुताबिक़ असली लोकतंत्र की पहचान तब होती है, जब सदन में खुलकर, बेझिझक और बिना डर के बहस हो सके। इस नज़रिये से देखें तो इस सत्र में कई मौकों पर बहस कमज़ोर और अधूरी नज़र आई, क्योंकि हंगामे और टकराव ने संवाद की जगह ले ली।

निष्कर्ष: लोकतंत्र का नाज़ुक संतुलन

संसद के Winter Session 2025 ने साफ़ कर दिया कि क़ानून बनाने की रफ़्तार और लोकतांत्रिक बहस का मौक़ा इन दोनों के बीच संतुलन बनाना कितना मुश्किल है। एक तरफ़ संसद ने कुछ बड़े और अहम बिल पास किए, तो दूसरी तरफ़ प्रदूषण, बेरोज़गारी और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों पर विस्तार से चर्चा होती नज़र नहीं आई।

यह सत्र राजनीतिक नेतृत्व, दलों के बीच टकराव और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के बीच चल रही खींचतान को भी सामने ले आया। इससे यह बात और साफ़ होती है कि लोकतंत्र सिर्फ़ संख्या-बल या बहुमत से मज़बूत नहीं होता, बल्कि वह तब मज़बूत बनता है जब मतभेदों के बावजूद बातचीत, सहनशीलता और बहस की तहज़ीब ज़िंदा रखी जाए।

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