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भारतीय विज्ञापन के Legend Piyush Pandey death at 70 जिंगल्स और स्लोगन्स की विरासत

भारतीय विज्ञापन के Legend Piyush Pandey death at 70 जिंगल्स और स्लोगन्स की विरासत

Piyush Pandey शुरुआती जीवन और पृष्ठभूमि

आज सुबह एक बेहद दुखभरी खबर आई भारत के सबसे बड़े ऐडमैन, कहानी सुनाने वाले उस्ताद और लोगों के दिलों में जगह बनाने वाले शख़्स, Piyush Pandey अब हमारे बीच नहीं रहे। 70 साल की उम्र में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन जो विरासत वो पीछे छोड़ गए हैं वो आने वाले वक्त तक लोगों के ज़ेहन में जिंदा रहेगी।

Piyush Pandey वो नाम जिसने ऐड को कला बना दिया

अगर आप कभी टीवी देखते हुए “फेविकॉल का मज़बूत जोड़”, “हर घर कुछ कहता है” या “चलो निकल पड़े” जैसे ऐड सुने हैं तो यक़ीन मानिए, आपने Piyush Pandey को महसूस किया है। वो सिर्फ ऐड नहीं लिखते थे, वो लोगों की ज़िंदगी, बोलचाल और जज़्बात को ब्रांड की ज़ुबान में ढाल देते थे।

जयपुर से दिल्ली तक – एक सादा शुरुआत

Piyush Pandey का जन्म 5 सितंबर 1955 को जयपुर, राजस्थान में हुआ था। बचपन से ही उनमें एक अलग चमक थी वो हर चीज़ में अपना स्टाइल डाल देते थे। पढ़ाई उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से की, जहाँ से उन्हें सोचने का एक नया नज़रिया मिला। कई लोग कॉलेज के बाद नौकरी की दौड़ में लग जाते हैं, पर पियूष जी हमेशा कहते थे “मुझे कुछ ऐसा करना है जो दिल को छू जाए।” और यही सोच उन्हें विज्ञापन की दुनिया में ले आई।

रेडियो से शुरू हुआ सफ़र

कम लोग जानते हैं कि Piyush Pandey ने अपने करियर की शुरुआत रेडियो जिंगल्स से की थी। वो अपने भाई प्रसून पांडे के साथ मिलकर छोटे-छोटे जिंगल्स में आवाज़ देते थे। यहीं से उन्हें समझ आया कि कैसे आवाज़, लय और शब्दों का मेल किसी दिल को छू सकता है। कहते हैं, वही जिंगल्स उनकी “जनभाषा” वाली सोच की नींव बने। उन्होंने तय किया कि वो ऐसे ऐड बनाएँगे जो आम आदमी की ज़ुबान में हों न कि सिर्फ अंग्रेज़ी बोलने वालों के लिए।

O&M (Ogilvy) से दुनिया तक

जब Piyush Pandey Ogilvy & Mather (O&M) से जुड़े, तब से भारतीय विज्ञापन जगत में एक नया दौर शुरू हुआ। उन्होंने ब्रांड्स को दिल से बोलने की कला सिखाई। Fevicol, Asian Paints, Cadbury Dairy Milk, Pidilite, SBI, Raymond, Vodafone, IPL इन सब ब्रांड्स के पीछे कहीं न कहीं पियूष का दिमाग, उनकी कलम और उनका दिल था।

उनका सबसे मशहूर ऐड “Fevicol ka jod hai, tootega nahi” आज भी लोगों की ज़ुबान पर चढ़ा हुआ है क्योंकि वो ऐड सिर्फ गोंद नहीं बेचता, वो इमोशन बेचता है जुड़ाव का एहसास।

जनभाषा के जादूगर

Piyush Pandey को ये बखूबी समझ थी कि भारत सिर्फ एक भाषा वाला देश नहीं है। इसलिए उन्होंने अपने ऐड में हिंदी, उर्दू, और देसी लहजे का जादू मिलाया। उनके ऐड में वो बोलचाल की मिठास थी, जो दिल को छू जाती थी जैसे किसी चाय वाले के पास बैठकर बातें कर रहे हों। उनका मानना था“अगर विज्ञापन तुम्हें मुस्कुरा दे, तो वो कामयाब है। अगर वो तुम्हें सोचने पर मजबूर करे, तो वो अमर है।”

अवॉर्ड्स से ज़्यादा लोगों का प्यार

Piyush Pandey को देश-विदेश में कई अवॉर्ड्स मिले लेकिन अगर आप उनसे पूछते, तो वो कहते थे “अवॉर्ड्स अच्छे हैं, पर असली खुशी तब मिलती है जब कोई आम आदमी तुम्हारा ऐड याद रखता है।” वो Padma Shri से सम्मानित किए गए, और Cannes Lions जैसे इंटरनेशनल प्लेटफॉर्म्स पर भारत का नाम रोशन किया। पर असली पहचान उन्हें लोगों की मुस्कान से मिली

Piyush Pandey: करियर का आरंभ और विज्ञापन जगत में प्रवेश

साल 1982 में Piyush Pandey ने Ogilvy & Mather India (जो अब Ogilvy India के नाम से जानी जाती है) में अपने सफ़र की शुरुआत की थी। उस वक़्त वो एक ट्रैनी अकाउंट एग्जीक्यूटिव थे यानी बस शुरुआत कर रहे थे, मगर उनके अंदर जो चमक थी, वो कुछ ही सालों में सबको नज़र आने लगी।

कुछ साल बाद उन्होंने क्रिएटिव डिपार्टमेंट में कदम रखा, और वहाँ जो जादू उन्होंने किया, उसने पूरे भारतीय ऐड-जगत का चेहरा बदल दिया। उन्होंने ऐड को सिर्फ “बेचने का ज़रिया” नहीं माना बल्कि उसे कहानी सुनाने का ज़रिया बना दिया।

आम लोगों की ज़ुबान, असली एहसास

Piyush Pandey के ऐड्स में जो सबसे ख़ास बात थी, वो थी जनभाषा की मिठास। वो बड़े-बड़े अंग्रेज़ी शब्दों के बजाय वही भाषा इस्तेमाल करते थे जो लोग चाय की दुकान, बस स्टॉप या चौपाल पर बोलते हैं। उनके ऐड्स में वो अपनापन और सादगी थी, जो सीधे दिल में उतर जाती थी। कोई दिखावा नहीं, कोई झूठा ग्लैमर नहीं बस सच्ची बातें, असली एहसास।

क्रिएटिविटी का नया चेहरा

जब Piyush Pandey Ogilvy के क्रिएटिव हेड बने, तो एजेंसी का पूरा माहौल ही बदल गया। उन्होंने लोगों को सिखाया कि विज्ञापन सिर्फ स्क्रिप्ट नहीं, जज़्बात होते हैं। उनके आइडियाज़ में देसीपन था, जो आम लोगों के दिलों को छू जाता था। उन्होंने दिखाया कि किसी प्रोडक्ट को प्रमोट करने के लिए ना तो ग्लैमर चाहिए, ना किसी बड़े स्टार की ज़रूरत बस एक सच्ची कहानी और सही शब्द काफ़ी हैं।

Ogilvy India का सुनहरा दौर

पियूष पांडे के नेतृत्व में Ogilvy India ने भारतीय विज्ञापन जगत में एक के बाद एक नए मुकाम हासिल किए। लंबे समय तक ये एजेंसी मार्केटिंग और क्रिएटिव रैंकिंग में सबसे ऊपर रही। क्योंकि उनके अंदर वो दूरदर्शिता थी जो सिर्फ क्लाइंट्स को खुश करने तक सीमित नहीं थी वो ऐसे ऐड्स बनाते थे जो लोगों के दिल में उतर जाएँ।

विज्ञापन से आगे — एक कहानीकार

पियूष पांडे सिर्फ ऐडमैन नहीं थे, वो एक कहानीकार थे। वो कहते थे “विज्ञापन कोई झूठ नहीं, ये बस सच्चाई को खूबसूरत लफ़्ज़ों में कहना है।” उनके लिए हर ऐड एक छोटा-सा नाटक था, जिसमें हर किरदार, हर लाइन, और हर म्यूज़िक नोट एक-दूसरे से पूरी ईमानदारी से जुड़ा होता था।

Piyush Pandey कुछ प्रमुख अभियानों की झलक

Piyush Pandey का नाम लेते ही हमारे ज़ेहन में कुछ ऐसे ऐड्स घूमने लगते हैं जो सिर्फ प्रोडक्ट नहीं बेचते ल्कि कहानी, जज़्बात और अपनापन बेचते हैं। उनकी सोच हमेशा यही रही कि विज्ञापन को समझाना नहीं चाहिए, उसे महसूस कराना चाहिए। और शायद यही वजह है कि उनके बनाए ऐड्स सिर्फ देखे नहीं जाते थे महसूस किए जाते थे।

“Fevicol ka jod” मज़ाक में लिपटी सच्चाई: कौन भूल सकता है वो Fevicol का मशहूर ऐड जहाँ एक पुराना ट्रक पहाड़ चढ़ रहा होता है, उसके पीछे दर्जनों लोग, बकरियाँ, बर्तन, और यहाँ तक कि मछलियाँ तक टिकी होती हैं और फिर स्क्रीन पर आता है वो लाइन “Fevicol ka jod hai, tootega nahi!”

वो ऐड सिर्फ एक गोंद का प्रचार नहीं था वो भारत की जुड़ाव वाली भावना का प्रतीक था। मजाक भी था, मगर यक़ीन भी था। यानी हँसी भी आई और भरोसा भी बना। ऐसा जादू सिर्फ पियूष पांडे ही कर सकते थे जो मजेदार और मतलबभरा दोनों हो।

“Cadbury – Kuch Khaas Hai” खुशियों का मीठा पल जब Cadbury Dairy Milk ने “Kuch Khaas Hai Zindagi Mein” कहा, तो वो लाइन बस एक ऐड नहीं रही वो हर भारतीय की मीठी यादों में दर्ज हो गई।

वो लड़की जो क्रिकेट ग्राउंड पर दौड़ती हुई आती है, सबके सामने झूमकर नाचती है वो आज़ादी, खुशी और मिठास का ऐसा लम्हा था जो हर किसी के अंदर के बच्चे को जगा देता था। पियूष पांडे ने दिखाया कि चॉकलेट सिर्फ बच्चों के लिए नहीं, बल्कि हर उस इंसान के लिए है जो ज़िंदगी के छोटे-छोटे लम्हों में खुशी ढूँढता है।

“Asian Paints – Har Khushi Mein Rang Laye” Asian Paints के लिए उनका बनाया कैंपेन भी दिल के बहुत करीब है “हर खुशी में रंग लाए”। इस लाइन में सिर्फ दीवारों की बात नहीं थी, बल्कि जीवन की हर खुशी को रंगीन बनाने की सोच थी।

घर का रंग बदलना, मतलब उस घर की यादें और एहसास को नया रूप देना ये विचार इतना सादा, मगर इतना गहरा था कि हर परिवार इससे जुड़ गया। पियूष जी ने दीवार को दीवार नहीं, दिल की सतह बना दिया था। “दो बूँद ज़िंदगी की” जब ऐड बना सेवा का संदेश वो दौर याद है जब पोलियो अभियान पूरे देश में चलाया गया था? उसका नारा “दो बूँद ज़िंदगी की” पियूष पांडे की सोच से ही निकला था।

छोटे से वाक्य में इतनी बड़ी बात साफ, सीधा और असरदार। वो जानते थे कि देश के कोने-कोने तक पहुँचने वाला संदेश भारी-भरकम अंग्रेज़ी नहीं, बल्कि सादे हिंदी लहजे में ही दिल तक जाएगा। उनका यही देसी टच हर ऐड को लोगों की जुबान और दुआ दोनों बना देता था।

“अब की बार, मोदी सरकार” राजनीति में भी उनका अंदाज़ यहां तक कि राजनीति की दुनिया में भी उनका असर दिखा। साल 2014 में आया मशहूर नारा “अब की बार, मोदी सरकार” देश के हर नुक्कड़-गली में गूंजा। वो लाइन सिर्फ चुनावी नारा नहीं थी, वो लोगों की भावना और उम्मीद का आइना बन गई।

Piyush Pandey को पता था कि शब्दों में ताक़त होती है अगर सही जगह इस्तेमाल किए जाएँ तो वो लोगों की सोच बदल सकते हैं। “हकीकत इतनी बड़ी नहीं होती, जितनी लोगों की कहानी होती है” पियूष पांडे की ये लाइन खुद उनकी सोच का सार है। वो मानते थे कि ब्रांड से बड़ा इंसान होता है, और हर इंसान की कहानी में एक ऐड छिपा होता है।

वो कहते थे “अगर तुम लोगों की बात सुन लो, तो तुम उनका दिल भी जीत लोगे।” और उन्होंने सच में यही किया। उन्होंने ऐड्स को हमारे जैसा बना दिया ऐसे कि देखने पर लगे, “अरे, ये तो हमारी ही बात है!”

“जन-जन तक पहुँची उनकी कहानी” पियूष पांडे ने अंग्रेज़ी-भाषी ऐड वर्ल्ड को चुनौती दी। उन्होंने दिखाया कि देसी अंदाज़, उर्दू की नर्मी और हिंदी की सादगी मिलकर वो असर पैदा कर सकती हैं जो किसी भी ग्लोबल कैंपेन से बड़ा है।

उनके ऐड्स में दिल्ली की आवाज़, मुंबई की चाल, लखनऊ की नफ़ासत, और जयपुर की मिठास सब कुछ था। यानी भारत की हर बोली, हर रंग, हर जज़्बा। पियूष पांडे ने सिर्फ ब्रांड्स नहीं बनाए, उन्होंने लोगों और ब्रांड्स के बीच रिश्ता बनाया।

उनकी बनाई हर लाइन, हर कहानी, आज भी भारतीय विज्ञापन की आत्मा को ज़िंदा रखे हुए है। उनका जाना वाकई एक दौर के ख़त्म होने जैसा है, मगर उनका असर आने वाली पीढ़ियों को ये सिखाता रहेगा कि सच्चा ऐड वो होता है जो बिके नहीं, बल्कि महसूस हो।

Piyush Pandey पुरस्कार-सम्मान एवं प्रतिष्ठा

Piyush Pandey को उनके अद्भुत काम, दूरदर्शिता और समाज-संस्कृति को समझने की काबिलियत के लिए कई बड़े पुरस्कार मिले।

Padma Shri (2016) – भारत सरकार की तरफ़ से उन्हें यह सम्मान दिया गया।

CLIO Lifetime Achievement Award (2012) – विज्ञापन की दुनिया में उनके असाधारण योगदान को पहचान मिली।

LIA Legend Award (2024) – एक और अंतरराष्ट्रीय स्तर की बड़ी मान्यता।

इन सभी उपलब्धियों की वजह से उन्हें विज्ञापन जगत में अक्सर “भारतीय विज्ञापन का पिता” कहा जाता है।

लेकिन Piyush Pandey सिर्फ बड़े नाम नहीं थे, बल्कि एक सच्चे इंसान थे। उनकी ज़ुबान हमेशा सरल थी, सोच में बारीकी और व्यवहार में मित्रता झलकती थी। कई लोग बताते हैं कि एक बार जब कोई छात्र मैराथन में भाग ले रहा था, पांडे जी खुद उस मार्ग पर खड़े होकर हाथ हिला कर उसे उत्साहित कर रहे थे। उन्होंने कहा “मैं भी थोड़ी देर तुम्हारे साथ चल लूंगा।”

ये छोटी-छोटी बातें उनके दिमाग और दिल की सादगी को दर्शाती हैं। यानी, उन्होंने सिर्फ ऐड क्रिएट किए ही नहीं, बल्कि लोगों के लिए एक मिसाल और इंसानियत का पैग़ाम भी छोड़ा।

Piyush Pandey: निधन और विरासत

24 अक्टूबर 2025 को हमें एक बहुत बड़ा नुकसान हुआ Piyush Pandey का निधन हो गया, वे 70 साल के थे। उनके जाने से सिर्फ विज्ञापन की दुनिया ही नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, ब्रांडिंग और कहानियों-बोलियों की दुनिया में भी एक युग का अंत हो गया। प्रधानमंत्री ने भी उन्हें श्रद्धांजलि दी, और उनके योगदान को देश ने याद किया।

पियूष पांडे की विरासत सिर्फ विज्ञापनों तक सीमित नहीं है। उन्होंने यह दिखा दिया कि विज्ञापन और कहानी एक-दूसरे के पूरक हो सकते हैं। कैसे किसी ब्रांड को भारतीय जीवन-दृष्टि, हमारी भावनाओं और संस्कृति से जोड़ा जा सकता है, यह उन्होंने बखूबी दिखाया।

उनका जीवन-संदेश हमेशा याद रखने योग्य है: भाषा और बोली को जानिए, जनता के बीच उतरिए। बड़ा काम करना हो तो दिल से कीजिए। ब्रांड के पीछे मानवीय भावना खोजो। विज्ञापन सिर्फ विक्रय का साधन नहीं, बल्कि कहानी बनाओ। जब आप जन-समूह में हों, तो आम बोलचाल की भाषा को कभी मत भूलो।

जब हम कहते हैं कि “भूल नहीं सकते”, तो पियूष पांडे का नाम उन कुछ चुनिंदा लोगों में शामिल है, जिनके काम ने ब्रांडिंग को भारतीय नेशनल कल्चर का हिस्सा बना दिया। उन्होंने हर विज्ञापन में सिर्फ उत्पाद नहीं, बल्कि हमारी भाषा, हमारी संस्कृति और हमारी यादों को ढाला।

उनका जाना एक बड़ी कमी है, लेकिन उनके बनाए काम, भूली-नहीं-आने वाली कहानियाँ, स्लोगन और जिंगल्स हमेशा जीवित रहेंगे। ये नई पीढ़ी को प्रेरित करते रहेंगे|विज्ञापन की दुनिया में जिस तरह उन्होंने “जोड़” और “कहानी” का संगम किया, वह आने वाले सालों तक सभी क्रिएटिव्स के लिए प्रेरणा बनी रहेगी।

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