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Rupee Vs Dollar: Rupee Touches 90 क्या हुआ है?
Rupee Vs Dollar: इस हफ़्ते भारतीय रुपया (INR) ने पहली बार अमेरिकी Dollar (USD) के मुकाबले ₹90.14 प्रति डॉलर तक गिरकर एक ऐसा रिकॉर्ड बनाया, जिससे हर तरफ हलचल मच गई। आसान ज़बान में कहें तो — अब एक डॉलर ख़रीदने के लिए 90 रुपये से भी ज़्यादा देने पड़ रहे हैं।
और सबसे हैरानी की बात ये है कि सिर्फ साल 2025 के अंदर ही रुपया करीब 5% तक कमज़ोर हो चुका है। यानी साल शुरू होते-ही रुपये की क़ीमत में ऐसा गिराव आया है कि एशिया के बड़े-बड़े देशों की करेंसी में भी रुपया सबसे ज़्यादा फिसलने वाली मुद्रा बन गया है।
लोगों की ज़ुबान में कहें तो “रुपया ऐसे गिर रहा है जैसे उस पर किसी ने ब्रेक ही नहीं लगाया और डॉलर सीढ़ियाँ चढ़ता जा रहा है।” मार्केट के जानकार भी बोल रहे हैं कि हालात कुछ ऐसे बने हैं कि भारत की करंसी पर काफ़ी दबाव आ गया है और इसका असर आम आदमी की जेब तक महसूस होगा।
Rupee Vs Dollar: गिरावट के पीछे प्रमुख कारण
अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि रुपया गिर क्यों रहा है? असल में, एक दो कारण नहीं कई चीज़ें एक साथ हो रही हैं, और सब मिलकर रुपये को नीचे धकेल रही हैं। विदेशी निवेशक लगातार पैसा निकाल रहे हैं
जो बड़े-बड़े विदेशी निवेशक भारत में शेयर मार्केट और कंपनियों में पैसा लगाते हैं जिन्हें FPI (Foreign Portfolio Investors) कहते हैं उन्होंने इस साल 2025 में बहुत तेज़ी से अपना पैसा वापस लेना शुरू कर दिया। जब वो पैसा निकालते हैं, तो उन्हें डॉलर की ज़रूरत होती है इसलिए वो मार्केट से डॉलर की खरीद बढ़ा देते हैं।
इससे क्या होता है?
Dollar की मांग बढ़ जाती है और Rupee की सप्लाई बाज़ार में ज़्यादा हो जाती है नतीजा, रुपया कमज़ोर पड़ जाता है। “बड़े खिलाड़ियों ने गेम से बाहर निकलना शुरू किया, तो रुपये की सांस फूलने लगी।”
आयात ज़्यादा, निर्यात कम यानी ट्रेड में गड़बड़
इस साल भारत ने बहुत ज़्यादा सामान बाहर से खरीदा (आयात किया) तेल, सोना और कई जरूरी चीज़ें। लेकिन हमने विदेशों को सामान कम बेचा (निर्यात कम हुआ)। इस वजह से देश को लगातार डॉलर देकर ही पेमेंट करनी पड़ रही है। पर जब Dollar की ज़रूरत बढ़ती है तो Rupee और गिरता जाता है।
और हां, सोने का आयात इस साल खास तौर पर बहुत बढ़ गया और इसी से Current Account Deficit भी बढ़ा। “सोना जितना भारत में चमका, रुपया उतना फीका पड़ता गया।”
दुनिया में अनिश्चितता — भरोसा कमजोर हो गया
अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में भी हालात शांत नहीं हैं, तेल की कीमतें ऊपर-नीचे हो रही हैं, कच्चे माल के दाम बढ़ रहे हैं विश्व व्यापार में उतार-चढ़ाव है
इन सबका असर सीधे भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। और ऊपर से, RBI (Reserve Bank of India) पहले की तरह लगातार हस्तक्षेप (इंटरफेयर) नहीं कर पा रहा इसलिए रुपये को “सहारा” कम मिल रहा है।
भारत-अमेरिका व्यापार समझौते में देरी
भारत और अमेरिका के बीच एक बड़ा ट्रेड डील होने की बात काफी समय से चल रही है। लेकिन वो बार-बार टल रहा है और ये देरी निवेशकों के मन में शक और घबराहट पैदा कर रही है। विदेशी निवेशक सोच रहे हैं “व्यापार समझौता पक्का नहीं है, तो पैसा लगाना अभी रिस्क है।” और जब पूँजी (foreign investment) कम आती है तो रुपया भी खुद-ब-खुद डगमगा जाता है।
रुपया किसी एक वजह से नहीं गिरा बहुत सारे दबाव एक ही समय पर एक ही दिशा में काम कर रहे हैं। “एक तरफ विदेशी पैसा बाहर जा रहा है दूसरी तरफ देश को Dollar की ज़रूरत बढ़ती जा रही है और ऊपर से दुनिया का माहौल भी बिगड़ा हुआ है तो रुपया बेचारा कहाँ तक संभले?”

INR की गिरावट इसका असर आपकी ज़िंदगी में कैसे और कितनी गहराई तक पहुँचता है
जब हम सुनते हैं कि रुपया Dollar के मुकाबले गिर रहा है, तो बहुत लोग सोचते हैं “अरे इसमें हमारा क्या?” लेकिन असलियत ये है कि रुपये की गिरावट सिर्फ़ अख़बार की हेडलाइन नहीं होती बल्कि ये धीरे-धीरे हर घर की रसोई, हर जेब के बजट, हर सपने और हर योजना पर असर डाल देती है। यानी ये घटना जितनी दूर दिखाई देती है, असल में वह उतनी ही पास होती है।
महंगाई सीधा वार आम इंसान की जेब पर
सबसे पहला और सबसे तेज़ असर महंगाई के रूप में आता है। हमारे रोज़मर्रा की ज़िंदगी की बहुत-सी चीज़ें विदेशों से आती हैं टीवी, फ्रिज, वॉशिंग मशीन, एसी, मोबाइल और लैपटॉप दवाइयाँ और मेडिकल इक्विपमेंट कार-बाइक के पार्ट्स गैजेट्स, बैटरी, कैमरा और मशीनरी, जब Dollar महंगा होता है, तो कंपनियों को ये सब चीज़ें लाने के लिए पहले से ज़्यादा रुपये खर्च करने पड़ते हैं।
वो कंपनियाँ यह बढ़ा हुआ खर्च अपने ऊपर नहीं लेतीं बल्कि प्रोडक्ट की कीमतें बढ़ाकर हमसे वसूलती हैं। मतलब बहुत सरल: “Dollar जितना चढ़ता है, बाज़ार की कीमतें भी उतनी ही ऊपर चढ़ जाती हैं और बिल आखिरकार हमारी जेब से जाता है।”
और बातें यहीं नहीं रुकतीं महंगी चीज़ों के कारण EMI बढ़ती है, बजट टूटता है, सेविंग कम हो जाती है, और घर चलाना और मुश्किल हो जाता है। “महंगाई की आग धीरे नहीं जलती ये चूल्हे से शुरू होकर पूरी ज़िंदगी को तपाती है।”
विदेश में पढ़ाई, घूमना या इलाज सपने अब ज़्यादा महंगे
आज एक बड़ा हिस्सा भारतीय परिवारों का सपना होता है: बच्चों को विदेश में पढ़ाना, परिवार के साथ विदेश यात्रा करना, या ज़रूरत पड़ने पर बाहर इलाज करवाना। लेकिन Dollar महंगा होने का मतलब है कि हवाई टिकट महंगे, होटल महंगे, ट्यूशन फ़ीस महंगी, इलाज और ऑपरेशन महंगे, खाना और ट्रैवल महंगा जो योजना पहले 8–10 लाख में पूरी हो सकती थी, वही अब 11–14 लाख तक भी पहुँच सकती है। “सपने वही रहेंगे — लेकिन खर्च दो-तीन गुना महसूस होगा।”
कंपनियाँ, फैक्ट्रियाँ और उद्योग — लागत बढ़ेगी और तकलीफ़ फिर जनता को
कई उद्योग कच्चा माल विदेश से मंगाते हैं जैसे स्टील, मशीनें, रसायन, इलेक्ट्रॉनिक्स पार्ट्स, तेल वगैरह।
रुपया गिरा → कच्चा माल महंगा
कच्चा माल महंगा → उत्पादन लागत महंगी
उत्पादन महंगा → जनता के लिए सामान महंगा
इसका असर कहाँ-कहाँ? पैक्ड फूड, कपड़े, कार, बाइक, स्कूटर, घरेलू इलेक्ट्रॉनिक्स, प्लास्टिक और हार्डवेयर सामान कुल मिलाकर: “उत्पादन की मशक्कत कंपनियाँ सहती हैं लेकिन कीमतों की चोट उपभोक्ता को झेलनी पड़ती है।”
स्टॉक मार्केट, निवेश, म्यूचुअल फंड — सब जगह दिक्कत
रुपया कमजोर होता है तो विदेशी निवेशक पैसा निकाल लेते हैं। जब बड़े निवेशक निकलते हैं शेयर मार्केट गिरता है। मार्केट गिरता है तो छोटे निवेशक घबरा जाते हैं। इक्विटी में गिरावट, पोर्टफोलियो नुक़सान दिखाता है, म्यूचुअल फंड SIP की रिटर्न कम होती है और ये डर का माहौल लंबा चल जाए तो कंपनियाँ निवेश कम करती हैं, नौकरियाँ भी कम पड़ सकती हैं।

पूरा असर — धीरे-धीरे पूरे सिस्टम में फैल जाता है
रुपये के गिरते ही एक लंबी “चेन रिएक्शन” शुरू होता है विदेशी सामान महंगे घरेलू प्रोडक्ट भी महंगे बजट बिगड़ा बचत घटी निवेश असुरक्षित मार्केट पर दबाव सपने महंगे चिंता बढ़ी यानि “रुपये की गिरावट अर्थव्यवस्था से शुरू होती है, लेकिन तकलीफ़ आख़िर में आम आदमी तक पहुँचती है।” और सबसे दर्दनाक बात ये है ये असर धीरे-धीरे आता है, लेकिन जब तक लोगों को महसूस होता है, जेब से बहुत कुछ निकल चुका होता है।
आगे रूपये का क्या हाल हो सकता है, अंदाज़ा क्या कहता है?
मौजूदा हालात और मार्केट विश्लेषण बताता है कि अगर अभी वाली गिरावट वाली रफ़्तार जारी रही, तो आने वाले समय में रुपया और कमज़ोर हो सकता है। कुछ बड़े विदेशी वित्तीय संस्थानों और एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगले साल तक रुपया ₹91.30 प्रति Dollar तक फिसल सकता है। सोचने वाली बात है कुछ साल पहले वही डॉलर लगभग ₹65 के आसपास था, फिर 70, फिर 80, अब 90… यानी भार धीरे-धीरे लेकिन लगातार हमारी जेब पर बढ़ रहा है।
लेकिन डरने की ज़रूरत नहीं हर तस्वीर का दूसरा रुख भी होता है। कई मार्केट फर्मों का मानना है कि 2025–26 में रूपया 90 के आसपास स्थिर भी हो सकता है, यानी बहुत तेज़ गिरावट शायद न हो।
ये चीज़ें रूपये को संभाल सकती हैं भारत का निर्यात अच्छा चले विदेशी निवेश (FDI और FII) फिर से भारत में बढ़े कच्चे तेल, गैस और अन्य आयातित सामान की मांग कम हो जाए अगर ये सब होता है, तो रूपया थोड़ा संभल जाएगा और डॉलर के सामने मज़बूत दिखेगा।
हम और आप क्या कर सकते हैं? थोड़ी समझदारी से बड़ी बचत
रुपये की गिरावट सिर्फ खबर नहीं है, इसका सीधा असर घर की जेब पर पड़ता है। इसलिए थोड़ा जागरूक रहना बहुत फायदा देगा विदेश जाने की प्लानिंग हो (पढ़ाई, ट्रीटमेंट या घूमने) बजट को फिर से सोचें, क्योंकि खर्च बढ़ने के पूरे चांस हैं। कोशिश करें अग्रिम भुगतान (advance payment) कर दें ताकि आगे डॉलर रेट और बढ़े तो नुकसान न हो।
इलेक्ट्रॉनिक या आयात वाला सामान ख़रीदने का plan हो अभी सोच-समझकर कदम उठाएँ, क्योंकि प्रोडक्ट्स जल्दी महंगे हो सकते हैं मोबाइल, लैपटॉप, कैमरा, दवाइयाँ वगैरह।
लंबी अवधि का निवेश (शेयर, म्यूचुअल फंड आदि) कंपनियों को देखकर निवेश करें। ऐसी कंपनियाँ चुनें जो निर्यात से कमाएँ क्योंकि डॉलर महंगा होने पर उनकी कमाई बढ़ती है। सिर्फ ऐसे सेक्टर में न जाएँ जो पूरी तरह आयात पर निर्भर हों।
बचत और रोज़मर्रा के खर्च बजट में थोड़ी समझदारी लाएँ, महंगाई आगे और बढ़े तो उसके लिए तैयार रहें। घरेलू प्रोडक्ट्स और लोकल ब्रांड अपनाने से खर्च कम रहेगा और देश की अर्थव्यवस्था भी मज़बूत होगी।
एक छोटी सी सलाह — जो आगे काम आएगी
दुनिया की अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव आते रहेंगे, डॉलर कभी ऊपर तो कभी नीचे जाएगा। लेकिन जो इंसान पहले से तैयारी रखता है, वही हर मुश्किल वक्त में मज़बूती से टिकता है।
रुपये की गिरावट हमें ये सिखाती है कि पैसों को जगह-जगह बाँटकर रखें एक ही स्रोत पर उम्मीद मत टिकाएँ समझदारी से खर्च करें और आराम से, बिना घबराए, हालात को समझकर फैसले लें क्योंकि इकॉनॉमी का खेल धीरे-धीरे चलता है, लेकिन असर एकदम सीधा हमारी जेब तक आता है।



