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परमाणु ऊर्जा में ऐतिहासिक बदलाव: SHANTI Bill 2025
भारत की संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान लोकसभा ने आज “SHANTI Bill, 2025” पास कर दिया है। इस बिल का पूरा नाम है Sustainable Harnessing and Advancement of Nuclear Energy for Transforming India Bill। आसान शब्दों में कहें तो यह वही कानून है, जो अब देश के परमाणु ऊर्जा सेक्टर को निजी कंपनियों के लिए भी खोल देता है। अभी तक यह पूरा क्षेत्र ज़्यादातर सरकार के ही हाथों में था और बाहर की कंपनियों की इसमें सीधी एंट्री नहीं थी।
लोकसभा में इस बिल पर काफी गरमागरम बहस देखने को मिली। विपक्षी दलों ने सरकार पर सवाल उठाए और कहा कि इतना बड़ा फैसला जल्दबाज़ी में लिया जा रहा है। इसी नाराज़गी के चलते विपक्ष ने सदन से वॉकआउट भी कर दिया। दूसरी तरफ सरकार का कहना है कि यह कोई मामूली बदलाव नहीं, बल्कि देश की ऊर्जा ज़रूरतों को ध्यान में रखकर किया गया एक ज़रूरी और दूरगामी कदम है।
सरकार का तर्क है कि आने वाले सालों में बिजली की मांग तेज़ी से बढ़ने वाली है और सिर्फ सरकारी कंपनियों के भरोसे इस जरूरत को पूरा करना मुश्किल होगा। ऐसे में अगर निजी कंपनियों को भी मौका दिया जाए, तो निवेश बढ़ेगा, नई तकनीक आएगी और परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल ज़्यादा असरदार तरीके से हो सकेगा। सरकार इसे देश के लिए एक रणनीतिक ऊर्जा सुधार बता रही है, जो भारत को आत्मनिर्भर बनाने की राह में मदद करेगा।
वहीं विपक्ष का कहना है कि परमाणु ऊर्जा कोई आम सेक्टर नहीं है। इसमें सुरक्षा, ज़िम्मेदारी और जनता की हिफाज़त सबसे बड़ा मुद्दा है। उनका डर है कि अगर निजी कंपनियों को खुली छूट दी गई, तो कहीं न कहीं आम लोगों की सुरक्षा के साथ समझौता न हो जाए।
कुल मिलाकर, SHANTI Bill 2025 के पास होने के साथ ही भारत के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में एक नया दौर शुरू होने जा रहा है। इसे कोई तरक़्क़ी और बदलाव की नई राह मान रहा है, तो कोई इसे जोखिम भरा फैसला बता रहा है। आने वाले वक्त में यह साफ़ होगा कि यह क़दम देश के हक़ में कितना फायदेमंद साबित होता है।
SHANTI Bill 2025 — क्या है और क्यों महत्वपूर्ण है?
अब तक भारत में परमाणु ऊर्जा का पूरा मामला कड़े सरकारी क़ानूनों के तहत चलता रहा है। Atomic Energy Act, 1962 और Civil Liability for Nuclear Damage Act, 2010 जैसे कानूनों की वजह से इस सेक्टर पर सरकार का ही ज़ोरदार कंट्रोल था। निजी कंपनियों के लिए इसमें घुसने की गुंजाइश बहुत कम थी, लगभग न के बराबर। यानी परमाणु बिजली बनाना और चलाना सिर्फ सरकारी संस्थाओं का ही काम माना जाता था।
अब SHANTI Bill इस पूरी तस्वीर को बदलने वाला क़दम माना जा रहा है। यह बिल पुराने कानूनों की जगह एक नया, ज़्यादा आधुनिक और थोड़ा खुला सिस्टम लेकर आया है। आसान लफ़्ज़ों में कहें तो अब निजी कंपनियों को भी परमाणु ऊर्जा के मैदान में उतरने का मौका मिलेगा।
इस नए SHANTI Bill कानून के तहत निजी कंपनियाँ न्यूक्लियर पावर प्लांट बना सकेंगी, उन्हें चला सकेंगी और ज़रूरत पड़ने पर बंद भी कर सकेंगी। इतना ही नहीं, इन संयंत्रों का स्वामित्व और लाइसेंस भी अब पूरी तरह भारतीय कंपनियों के लिए खोला जा रहा है। यानी अब यह सेक्टर सिर्फ सरकार तक सीमित नहीं रहेगा।

SHANTI Bill में एक अहम बात ज़िम्मेदारी (लायबिलिटी) को लेकर भी कही गई है। अगर कभी कोई परमाणु हादसा होता है, तो उसकी पूरी ज़िम्मेदारी प्लांट चलाने वाली कंपनी की होगी, न कि मशीन या उपकरण देने वाले सप्लायर की। साथ ही, नुकसान की भरपाई की सीमा को अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक 300 मिलियन SDR तक तय किया गया है। सरकार का कहना है कि इससे निवेशकों का भरोसा बढ़ेगा और बड़ी कंपनियाँ आगे आएंगी।
सरकार की दलील है कि ये सारे बदलाव इसलिए ज़रूरी हैं ताकि परमाणु ऊर्जा की ताक़त बढ़ाई जा सके, देश में निवेश आए और साफ़-सुथरी ऊर्जा के लक्ष्य पूरे किए जा सकें। आज के दौर में जब पर्यावरण और बिजली की ज़रूरत दोनों बड़ी चुनौती बन चुकी हैं, तब परमाणु ऊर्जा को एक मजबूत विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है।
राजनीतिक और आर्थिक नज़रिए से भी यह बिल काफी अहम माना जा रहा है। सरकार ने साफ कहा है कि इस क़दम से भारत को 2047 तक 100 गीगावॉट परमाणु ऊर्जा क्षमता हासिल करने में मदद मिलेगी। अभी हालत यह है कि देश की परमाणु क्षमता सिर्फ 8 से 10 गीगावॉट के आसपास है, जो ज़रूरत के मुकाबले बहुत कम है।
यानी साफ है कि यह फैसला सिर्फ आज के लिए नहीं, बल्कि आने वाले दशकों को ध्यान में रखकर लिया गया है। यह कदम भारत की ऊर्जा सुरक्षा, स्वच्छ ऊर्जा मिशन और नेट-ज़ीरो 2070 जैसे जलवायु लक्ष्यों से सीधा जुड़ा हुआ है। सरकार इसे देश के मुस्तक़बिल के लिए एक ज़रूरी और दूरदर्शी फ़ैसला बता रही है, जबकि इस पर बहस अभी जारी है।
निजी कंपनियों और निवेशकों के लिये अवसर
अब तक भारत में परमाणु बिजलीघर बनाने और उन्हें चलाने का काम ज़्यादातर NPCIL (न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड) जैसी सरकारी कंपनियाँ ही करती थीं। यानी यह पूरा सेक्टर सरकार के ही भरोसे चलता आ रहा था और निजी कंपनियों की इसमें कोई खास हिस्सेदारी नहीं थी।
लेकिन SHANTI Bill लागू होने के बाद तस्वीर काफी हद तक बदलने वाली है। अब भारतीय निजी कंपनियाँ भी परमाणु संयंत्र लगाने के लिए लाइसेंस के लिए आवेदन कर सकेंगी। इतना ही नहीं, इन्हें न्यूक्लियर रिएक्टर बनाने, उसका मालिकाना हक़ रखने, उसे चलाने और ज़रूरत पड़ने पर प्लांट को बंद करने तक की इजाज़त दी जाएगी। आसान अल्फ़ाज़ में कहें तो अब यह पूरा काम सिर्फ सरकार तक सीमित नहीं रहेगा।
इस SHANTI Bill के बाद विदेशी निवेश (FDI) के रास्ते भी खुलने की उम्मीद है। इससे विदेशी कंपनियों की नज़र भारत के परमाणु ऊर्जा सेक्टर पर पड़ेगी और वे यहाँ पैसा लगाने और टेक्नॉलजी लाने में दिलचस्पी दिखा सकती हैं। सरकार मानती है कि इससे भारत को नई और बेहतर तकनीक, ज़्यादा पूंजी और अंतरराष्ट्रीय अनुभव मिलेगा।
कुल मिलाकर, यह बदलाव भारत के ऊर्जा सेक्टर में बड़ी आर्थिक हलचल पैदा कर सकता है। नए प्रोजेक्ट शुरू होंगे, रोज़गार के मौके बढ़ेंगे, टेक्नॉलजी का आदान-प्रदान होगा और देश में निवेश का माहौल मज़बूत होगा। सरकार इसे भारत के भविष्य की ऊर्जा ज़रूरतों के लिए एक अहम और दूरअंदेश क़दम मान रही है, जो लंबे वक़्त में देश को फायदा पहुँचा सकता है।
SHANTI Bill पर विपक्ष की आपत्तियाँ और विवाद
हालाँकि सरकार और उसके समर्थक इस SHANTI Bill को देश के लिए फायदेमंद बता रहे हैं, लेकिन विपक्ष और कई जानकार लोग इससे पूरी तरह मुतमइन नहीं हैं। उनका कहना है कि इस क़ानून में कुछ ऐसे बदलाव किए गए हैं, जो आगे चलकर मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं।
सबसे बड़ा एतराज़ लायबिलिटी यानी ज़िम्मेदारी को लेकर है। विपक्ष का इल्ज़ाम है कि नए बिल में पुराने कानून के मुकाबले सप्लायर की जवाबदेही कम कर दी गई है। उनका कहना है कि अगर कभी कोई बड़ा हादसा हुआ, तो सुरक्षा से जुड़ी चिंताएँ बढ़ सकती हैं और जवाबदेही तय करना मुश्किल हो जाएगा।
इसके अलावा निगरानी और नियमों को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। कुछ आलोचकों का मानना है कि इस SHANTI Bill में ऐसे प्रावधान रखे गए हैं, जिनसे निगरानी करने वाली संस्थाओं की आज़ादी कमज़ोर हो सकती है। साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि कुछ मामलों में अदालतों की भूमिका को सीमित किया गया है, जो लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिहाज़ से ठीक नहीं माना जा रहा।
विपक्ष का एक और बड़ा तर्क यह है कि इस बिल से बड़ी-बड़ी कॉरपोरेट कंपनियों को ज़्यादा फायदा होगा, जबकि आम जनता की सुरक्षा दांव पर लग सकती है। उनका कहना है कि परमाणु ऊर्जा कोई आम कारोबार नहीं है, यहाँ ज़रा सी चूक भी भारी नुकसान पहुंचा सकती है।
इन्हीं वजहों से विपक्ष के कुछ सांसदों ने मांग की है कि इस बिल को सीधे पास करने के बजाय JPC यानी जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी को भेजा जाए, ताकि हर पहलू की गहराई से जांच हो सके। उनका कहना है कि इतना अहम और संवेदनशील मामला जल्दबाज़ी में नहीं, बल्कि पूरी सोच-समझ के साथ तय किया जाना चाहिए।
SHANTI Bill Real Impact – अर्थ, नीति और सुरक्षा
आर्थिक नज़रिए से देखें तो इस बिल से ऊर्जा सेक्टर में तेज़ी आने की उम्मीद है। हाई-टेक टेक्नॉलजी आएगी, भारी निवेश होगा और इसके साथ-साथ नौकरियों के नए मौके भी पैदा होंगे। रिसर्च और डेवलपमेंट को बढ़ावा मिलेगा और परमाणु ऊर्जा को सिर्फ सरकारी योजना नहीं, बल्कि एक वाणिज्यिक यानी कमर्शियल विकल्प के तौर पर भी आगे बढ़ाया जा सकेगा।
जहाँ तक सुरक्षा और पर्यावरण का सवाल है, तो माना जाता है कि परमाणु ऊर्जा साफ़ और स्थिर ऊर्जा का अच्छा स्रोत है। इससे प्रदूषण कम होता है और बिजली लगातार मिल सकती है। लेकिन सच यही है कि इसमें खतरे भी जुड़े हुए हैं। अगर कभी कोई बड़ा हादसा हुआ, तो उसका नुकसान बहुत गंभीर हो सकता है।
इसी वजह से कड़ी निगरानी, सख़्त नियम और लगातार निरीक्षण बेहद ज़रूरी हैं। सरकार का दावा है कि SHANTI Bill इन जोखिमों को काबू में रखने के लिए मज़बूत निगरानी व्यवस्था और नए नियम लेकर आया है, लेकिन जानकारों के बीच अभी भी यह बहस जारी है कि क्या ये इंतज़ाम काफ़ी हैं या नहीं।
अब सवाल उठता है कि आख़िर भारत के लिए इसका मतलब क्या है? सबसे पहले तो यह कहा जा सकता है कि यह SHANTI Bill एक ऐतिहासिक मोड़ है। दशकों से जो पाबंदियाँ परमाणु ऊर्जा सेक्टर पर लगी थीं, उन्हें तोड़कर अब एक नया रास्ता खोला जा रहा है। निजी कंपनियों की एंट्री से भारत की ऊर्जा नीति को 21वीं सदी की ज़रूरतों के हिसाब से ढालने की कोशिश की जा रही है।
लेकिन इसके साथ-साथ विवाद और जोखिम भी कम नहीं हैं। सुरक्षा को लेकर सवाल हैं, कॉरपोरेट फायदे को लेकर आशंकाएँ हैं और निगरानी व्यवस्था पर भी उंगलियाँ उठ रही हैं। इसी वजह से यह बिल सिर्फ ऊर्जा नीति तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह आर्थिक हितों, राष्ट्रीय सुरक्षा और लोकतांत्रिक बहस का भी बड़ा मुद्दा बन चुका है।
आने वाले हफ्तों में जब यह SHANTI Bill राज्यसभा से भी पास होगा, तब उसकी असली तस्वीर और असर साफ़ होगा। अगर इसे समझदारी, पारदर्शिता और पूरी सुरक्षा के साथ लागू किया गया, तो यह भारत के ऊर्जा भविष्य को नई ऊँचाइयों तक ले जा सकता है। लेकिन अगर ज़रा भी लापरवाही हुई, तो इसके नुक़सान भी उतने ही बड़े हो सकते हैं। यही वजह है कि पूरा देश इस बिल पर गहरी नज़र बनाए हुए है।
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