Mahatma Gandhi: भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी को हम सब कभी नहीं भूल सकते ना ही उन्हें इतिहास में कभी भुलाया जा सकता है वह एक अमर आत्मा है।
गांधीजी सत्य और अहिंसा के पुजारी थे ब्रिटिश शासन के दौरान हमारे देश को आजाद करने के लिए उन्होंने सत्य और अहिंसा का मार्ग अपनाया और अपनी बात मनवाने के लिए कई आंदोलन भी किये ।
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महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) द्वारा किए गया आंदोलन
जिनमें से प्रमुख असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह, दलित आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन, चंपारण सत्याग्रह आदि शामिल है जो लोगों को अपनी बात मनवाने के लिए सत्य और अहिंसा का रास्ता दिखाते हैं।
कई बार जेल जाने के बाद भी गांधी जी ने अपने अनशन को नहीं छोड़ा और सत्याग्रह के लिए लड़ते रहे। इंग्लैंड में हुए गोलमेज सम्मेलन से जनवरी 1932 में लौटने के बाद गांधी को पुनः गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया था। गांधी जी ने 16 सितंबर को ब्रिटिश सरकार के भारत की निर्वाचन प्रणाली को जाति के आधार पर अलग करने (जिसे सांप्रदायिक पुरस्कार के नाम से जाना गया)के फैसले के विरूद्ध आमरण अनशन की घोषणा की जो कि उन्होंने यरोवदा जेल में रहकर की थी।
यह आमरण अनशन की घोषणा का मुख्य कारण अछूतों के लिए आरक्षित पृथक निर्वाचन क्षेत्र के विरोध में थी। गांधी जी ने अहिंसा का उदाहरण देते हुए सदा ऐसे कई अनशन करके लोगों को उनके हक दिलाए हैं ।
इससे पहले अहमदाबाद में मजदूरों द्वारा की जाने वाली हड़ताल में उन्होंने अनशन कर उनके वेतन बढ़ाने की मांग को पूरा करवाया था। जेल में रहकर किए जाने वाले इस अनशन का लाभ सभी जाति और धर्म के लोगों के लिए था।
वह निर्वाचन क्षेत्र में होने वाले भेदभाव को पूरी तरह खत्म करना चाहते थे। आमरण अनशन के छठे दिन बाबा भीमराव अंबेडकर और गांधीजी “पुणे समझौते” पर राजी हो गए और अपने अनशन को वहीं समाप्त कर दिया।
गांधी जी को अपना संयुक्त निर्वाचन क्षेत्र मिल चुका था। अछूतों को विधानमंडल में उनके लिए जो सीट आरक्षित की गई थी, उससे दुगनी सीट मिल गई थी और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि प्राथमिक चुनाव के संशोधित रूप में उन लोगों को एक अलग निर्वाचन क्षेत्र देने की बात की गई गांधी जी द्वारा किए गए दूसरे आमरण अनशन में उनकी इस जीत का बोलबाला था।
महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की मृत्यु कैसे हुई ?
अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी जी का अंत हिंसक रूप में हुआ जिसकी कल्पना किसी ने भी नहीं की थी।
हिंदू कट्टरपंथियों का समूह जो महात्मा गांधी की विचारधारा से सहमत नहीं था और उनसे घृणा करता था। 29 वर्षीय नाथूराम गोडसे ऐसी ही कट्टरपंथी विचारधारा का व्यक्ति था जो गांधी जी का विरोध करता था। 30 जनवरी 1948 के दिन बिरला भवन में गांधीजी प्रार्थना में शामिल होने जा रहे थे तभी भीड़ से निकलकर नाथूराम गोडसे ने उनका अभिनंदन किया और सभी के सामने पिस्तौल निकाल कर उनको तीन बार लगातार गोली मारकर उनकी हत्या कर दी।
महात्मा गांधी की हत्या के बाद नाथूराम गोडसे ने खुद को गोली मारने का प्रयास किया लेकिन इस प्रयास में वह सफल नहीं रहा और उसे गिरफ्तार कर लिया गया। आसपास की भीड़ चिल्लाती रही कि उसे मार दो! नाथूराम गोडसे पर मुकदमा चला और उसे 15 नवंबर 1949 को अंबाला सेंट्रल जेल में फांसी दी गई थी।
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