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Bacchu Kadu का “Mahaelgar आंदोलन”किसानों की आवाज़ बन गया जनसैलाब बच्चू कडू के आंदोलन started a new political battle

Bacchu Kadu का "Mahaelgar आंदोलन"किसानों की आवाज़ बन गया जनसैलाब बच्चू कडू के आंदोलन started a new political battle

Bacchu Kadu के Mahaelgar आंदोलन की शुरुआत कब और क्यों हुई?

महाराष्ट्र की सियासत में Bacchu Kadu वो नाम हैं जो हमेशा अपनी बेबाक बातों और ज़मीनी जुड़ाव की वजह से सुर्खियों में रहते हैं। कभी युवाओं के हक़ के लिए सड़कों पर उतरना, तो कभी किसानों के दर्द को आवाज़ देना यही उनकी पहचान रही है। वो ऐसे लीडर हैं जो सिर्फ़ कुर्सी की बात नहीं करते, बल्कि ज़मीन पर उतरकर लोगों के मसले हल करना जानते हैं।

हाल ही में Bacchu Kadu ने किसानों के हक़ के लिए एक बड़ा और दमदार आंदोलन शुरू किया है जिसका नाम रखा गया है “Mahaelgar”, यानी महान एलान। ये कोई छोटा-मोटा धरना नहीं, बल्कि एक ऐसा आंदोलन है जो इस वक़्त पूरे महाराष्ट्र की राजनीति को हिला कर रखे हुए है। Bacchu Kadu और उनकी पार्टी प्रहार जनशक्ति पार्टी का कहना है कि अब सिर्फ़ वादों से काम नहीं चलेगा, सरकार को किसानों के लिए कुछ ठोस करना ही पड़ेगा।

ये आंदोलन साल 2025 के बीच में शुरू हुआ, जब लगातार सूखा, खराब मौसम और कर्ज़ के बोझ से परेशान किसान अब और चुप नहीं रहना चाहते थे। Bacchu Kadu ने अमरावती से इसकी शुरुआत की जहाँ उन्होंने लगातार सात दिन का उपवास रखा। उनका ये उपवास सिर्फ़ प्रतीक नहीं था, बल्कि किसानों के दर्द की सच्ची आवाज़ बन गया।

इसके बाद अक्टूबर 2025 में उन्होंने नागपुर-वर्धा रोड पर ट्रैक्टर मार्च निकाला। हजारों किसान ट्रैक्टर लेकर सड़कों पर उतरे, नारे लगाए – “अब बस बहुत हुआ, हक़ चाहिए, रहम नहीं!” वो नारा पूरे विदर्भ और मराठवाड़ा तक गूंजने लगा। धीरे-धीरे आंदोलन ने रफ़्तार पकड़ी, और हर ज़िले में किसान जुड़ते चले गए।

Bacchu Kadu का कहना है…Bacchu Kadu ने साफ़ कहा “अब सिर्फ़ बातों से कुछ नहीं होगा, सरकार को काम करना होगा। किसानों की हालत सुधरनी चाहिए, वरना हम और सख़्त कदम उठाएँगे।”

उनका अंदाज़ हमेशा की तरह जज़्बाती और सच्चा था।Bacchu Kadu ने कहा कि ये लड़ाई सिर्फ़ उनकी नहीं, बल्कि हर उस किसान की है जो अपनी मेहनत की रोटी उगाता है लेकिन बदले में उसे बस कर्ज़ और दर्द मिलता है।

किसानों की परेशानी क्या है?

महाराष्ट्र के कई इलाकों में सूखा और अनियमित बारिश ने फसलों को बर्बाद कर दिया है। किसान पहले से ही कर्ज़ में डूबे हुए हैं। बैंकों की वसूली और साहूकारों के दबाव ने उनकी ज़िंदगी मुश्किल बना दी है। कई जगहों से किसानों की आत्महत्या की ख़बरें आईं जिसने पूरे राज्य को हिला दिया।

इन हालातों में सरकार की तरफ़ से मिलने वाली राहत या तो बहुत देर से आती है या फिर अधूरी रह जाती है। यही वजह है कि Bacchu Kadu का आंदोलन अब सिर्फ़ एक “राजनीतिक शो” नहीं बल्कि किसानों की ज़िंदगी-मौत का सवाल बन गया है।

राज्य सरकार ने इस आंदोलन पर बयान दिया कि वे किसानों के मुद्दों को लेकर गंभीर हैं और जल्द नई राहत योजनाएँ लाने वाली है। कुछ मंत्रियों ने कहा कि Bacchu Kadu का विरोध “राजनीतिक दिखावा” है, लेकिन जनता ने इसे “सच्ची लड़ाई” के रूप में देखा।

कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सरकार इस आंदोलन को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती, क्योंकि Bacchu Kadu की लोकप्रियता खासकर विदर्भ और मराठवाड़ा में बहुत ज़्यादा है।

“Mahaelgar” अब सिर्फ़ महाराष्ट्र तक सीमित नहीं रहा। देशभर के किसान संगठन इस आंदोलन को सपोर्ट करने लगे हैं। सोशल मीडिया पर #MahaElgar ट्रेंड कर रहा है। Bacchu Kadu की इस जंग ने लोगों को फिर से याद दिलाया है कि राजनीति सिर्फ़ भाषणों से नहीं, बल्कि ज़मीन की हकीकत से बदलती है।

उनके समर्थक कहते हैं “Bacchu Kadu किसी पार्टी के नहीं, जनता के आदमी हैं। जो बोलेगा वही करेगा।” वहीं, कुछ लोग मानते हैं कि अगर सरकार और किसान नेताओं के बीच बातचीत हो जाए, तो कोई बड़ा समाधान निकल सकता है।

महाराष्ट्र की राजनीति में ये आंदोलन एक टर्निंग पॉइंट साबित हो सकता है। Bacchu Kadu का सीधा और ईमानदार अंदाज़ आम लोगों को पसंद आ रहा है। चाहे सरकार इस पर कैसी भी प्रतिक्रिया दे, लेकिन इतना तय है कि “महाऐलगार” ने किसानों की आवाज़ फिर से सियासत के बीच ला खड़ी की है।

“Mahaelgar” आंदोलन की मुख्य मांगें

महाराष्ट्र में चल रहे “Mahaelgar” आंदोलन का असली मकसद सिर्फ़ नाराज़गी दिखाना नहीं है, बल्कि किसानों की ज़िंदगी को आसान बनाना है। Bacchu Kadu और उनके साथ खड़े किसान संगठनों ने सरकार के सामने चार बड़ी और साफ़ माँगें रखी हैं जो किसानों के हक़, मेहनत और जीने के अधिकार से जुड़ी हुई हैं।

पूरी कर्ज़माफी “कर्ज़ नहीं, राहत चाहिए जनाब” किसान संगठनों की पहली और सबसे बड़ी माँग है पूरी तरह से कर्ज़माफी। उनका कहना है कि सिर्फ़ कुछ नामों की लिस्ट बनाकर या आधा-अधूरा माफ़ करने से कुछ नहीं होगा। हर बैंक चाहे वो राष्ट्रीय बैंक हो, सहकारी बैंक हो या ग्रामीण बैंक सबके कर्ज़ माफ़ किए जाएँ।

Bacchu Kadu ने साफ़ कहा है: “कर्ज़माफी कोई एहसान नहीं है, ये किसानों का हक़ है। अगर सरकार समय पर मदद नहीं दे सकती, तो फिर ऐसी सरकार का मतलब क्या है?” किसानों का दर्द यह है कि वो दिन-रात खेतों में मेहनत करते हैं, लेकिन मौसम और बाज़ार दोनों ही उनके खिलाफ़ हो जाते हैं। जब फसल नहीं बिकती या बरसात सब बर्बाद कर देती है, तो वही कर्ज़ उनकी ज़िंदगी पर बोझ बन जाता है।

फसल नुकसान की भरपाई “मेहनत हमारी, नुकसान भी हमारा क्यों?” राज्य के कई इलाकों में इस बार बेमौसम बारिश और सूखे ने किसानों की फसलें चौपट कर दीं। कुछ जगहों पर ओलावृष्टि हुई, तो कहीं खेत सूखे रह गए।

किसानों का कहना है कि सरकार ने बीमा योजना तो बनाई है, लेकिन बीमा की रकम कभी वक्त पर नहीं आती। फॉर्म भरने की झंझट, कागज़ी प्रक्रिया, और अफसरशाही के चक्कर में गरीब किसान को सिर्फ़ उम्मीद मिलती है मदद नहीं।

Bacchu Kadu ने इस पर कहा: “सरकार को अब दिखावे के बजाय काम करना होगा। जो किसान बारिश और सूखे से बर्बाद हो गए हैं, उन्हें तुरंत मुआवज़ा दिया जाए।” Bacchu Kadu का कहना है कि हर किसान के बैंक खाते में सीधी रकम पहुँचे, बिना किसी दलाल या बिचौलिये के।

सरकारी योजनाओं का असली फायदा “कागज़ों से निकलकर खेत तक पहुँचे मदद” किसानों का कहना है कि सरकार हर साल नई योजनाओं के बड़े-बड़े ऐलान तो करती है, लेकिन असलियत में वो योजनाएँ कागज़ों तक ही सीमित रह जाती हैं।

कई किसान कहते हैं कि योजनाओं के नियम इतने जटिल हैं कि आम आदमी समझ ही नहीं पाता। कभी दस्तावेज़ पूरे नहीं होते, कभी पोर्टल काम नहीं करता, तो कभी अफसर फ़ाइल दबा देते हैं।

Bacchu Kadu की माँग है कि “नियमों को आसान किया जाए, ताकि कोई भी किसान बिना डर और बिना परेशानी के सरकारी मदद पा सके। जो योजना गाँव तक नहीं पहुँचती, उसका क्या मतलब?”

उनका मानना है कि अगर सरकार सच्चे दिल से किसानों का साथ दे, तो आधी परेशानियाँ वैसे ही खत्म हो जाएँगी। स्थायी समाधान “हर साल कर्ज़माफी नहीं, पक्की खुशहाली चाहिए” किसानों का कहना है कि हर साल कर्ज़माफी से कुछ वक्त की राहत तो मिलती है, लेकिन जड़ की समस्या वहीं की वहीं रहती है।

क्यों न ऐसा सिस्टम बने कि किसान को हर साल कर्ज़ लेने की नौबत ही न आए? इसके लिए ज़रूरी है कि खेती की लागत घटाई जाए, बीज, खाद और बिजली सस्ती मिले, मंडियों में फसल का दाम तय और फ़ेयर हो, और किसानों की आमदनी बढ़ाने के ठोस कदम उठाए जाएँ।

Bacchu Kadu कहते हैं: “कर्ज़माफी इलाज नहीं, बस एक पट्टी है। जब तक किसानों की आमदनी नहीं बढ़ेगी, तब तक ये जख्म बार-बार खुलता रहेगा।”

Bacchu Kadu की आवाज़ “अब बात नहीं, नतीजे चाहिए” Bacchu Kadu का अंदाज़ हमेशा सीधा और दिल से होता है। वो कहते हैं: “सरकार को किसानों को दिखाने के लिए नहीं, निभाने के लिए काम करना चाहिए। हम सड़कों पर इसलिए उतरे हैं क्योंकि अब सब्र का बाँध टूट चुका है।”

उनकी ये बातें किसानों के दिल से निकलती हैं, इसलिए असर भी करती हैं। आज जब पूरे महाराष्ट्र में किसान “महाऐलगार” के झंडे तले इकठ्ठा हो रहे हैं, तो सरकार पर दबाव बढ़ता जा रहा है। ये आंदोलन सिर्फ़ एक विरोध नहीं, बल्कि एक उम्मीद है एक ऐसी उम्मीद कि शायद इस बार किसानों की आवाज़ सच में सुनी जाएगी। Bacchu Kadu और उनके साथियों ने जो चार माँगें रखी हैं, वो सिर्फ़ माँगें नहीं, बल्कि एक घोषणा है “अब हालात बदलेंगे।”

Mahaelgar महाराष्ट्र सरकार की प्रतिक्रिया

अब जब बच्चू कडू का “Mahaelgar” आंदोलन पूरे महाराष्ट्र में जोर पकड़ चुका है, तो सरकार को भी इस पर खुलकर जवाब देना पड़ा। राज्य के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस मसले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि सरकार किसानों के साथ है और उनकी हर जायज़ माँग को लेकर सकारात्मक सोच रखती है।

सरकार का बयान “हम किसानों से टकराव नहीं, समाधान चाहते हैं” देवेंद्र फडणवीस ने कहा “सरकार किसानों की माँगों को लेकर गंभीर है। बच्चू कडू और किसानों के प्रतिनिधियों से बातचीत जारी है। हम टकराव नहीं, समाधान चाहते हैं।”

उनका कहना था कि सरकार हर पहलू पर काम कर रही है, लेकिन कर्ज़माफी जैसे बड़े फैसले के लिए वित्तीय गणना (financial calculation) ज़रूरी होती है। उन्होंने साफ़ किया कि सरकार जल्दबाज़ी में कोई ऐसा कदम नहीं उठाना चाहती जिससे आगे चलकर आर्थिक संकट पैदा हो जाए।

3,200 करोड़ रुपये की राहत राशि जारी

सरकार ने तुरंत राहत देने के लिए 3,200 करोड़ रुपये की सहायता राशि जारी कर दी है। इस रकम से उन किसानों को मुआवज़ा दिया जा रहा है जिनकी फसलें बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि या सूखे से बर्बाद हो गईं।

फडणवीस ने कहा कि ये सिर्फ़ शुरुआत है, आने वाले दिनों में और राहत पैकेज भी लाए जा सकते हैं। “हम चाहते हैं कि कोई भी किसान भूखा न रहे या मजबूरी में खेत छोड़कर शहरों में पलायन न करे।”

कर्ज़माफी और फसल सहायता पर समिति बनाई गई

सरकार ने एक विशेष समिति (special committee) भी गठित की है जो कर्ज़माफी और फसल सहायता योजना पर रिपोर्ट तैयार करेगी। यह समिति ये देखेगी कि किस किसान का कितना कर्ज़ है, किन इलाकों में फसलों का सबसे ज़्यादा नुकसान हुआ, और किन्हें तत्काल मदद की ज़रूरत है। फडणवीस ने कहा कि जब तक समिति की रिपोर्ट नहीं आती, तब तक फैसला अधूरा लेना ठीक नहीं होगा।

विपक्ष का आरोप “सरकार किसानों को बस वादों में उलझा रही है”

वहीं, विपक्षी पार्टियाँ इस मौके को छोड़ने वाली नहीं थीं। एनसीपी और कांग्रेस ने सरकार पर तीखा हमला बोला और कहा कि सरकार किसानों की तकलीफ़ को “चुनावी एजेंडा” बना रही है।

कांग्रेस नेता ने कहा: “हर बार चुनाव के वक़्त सरकार किसानों के नाम पर राजनीति करती है, लेकिन ज़मीन पर कुछ नहीं बदलता। किसान आज भी उसी दर्द में है।” एनसीपी ने बच्चू कडू के आंदोलन को खुला समर्थन दिया और कहा कि ये लड़ाई किसानों की ज़िंदगी और इज़्ज़त दोनों के लिए है।

प्रशासन की चिंता “आंदोलन का असर आम जनता पर भी”

प्रशासन की ओर से कुछ चिंता भी जताई गई है। कई जगहों पर आंदोलन के दौरान सड़कें बंद हो गईं, ट्रैक्टर मोर्चे और धरनों के चलते ट्रैफिक जाम लग गया। कुछ जगहों पर एम्बुलेंस और आपात सेवाएँ भी देर से पहुँच पाईं।

हालाँकि, किसान संगठनों ने कहा कि उनका मक़सद किसी को तकलीफ़ देना नहीं है, लेकिन जब सरकार सुनती नहीं, तो सड़क पर उतरना ही आख़िरी रास्ता रह जाता है। इस वक़्त महाराष्ट्र में माहौल थोड़ा गरम है एक तरफ़ बच्चू कडू और किसानों की जिद है कि “अबकी बार नतीजे चाहिए”, तो दूसरी तरफ़ सरकार का कहना है कि “समाधान जल्द आएगा, लेकिन सोच-समझकर।”

राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि यह आंदोलन आने वाले महीनों की राजनीति की दिशा बदल सकता है। बच्चू कडू अपने साफ़-सुथरे और जनता से जुड़े अंदाज़ की वजह से एक बड़ा चेहरा बनकर उभर रहे हैं, और सरकार पर अब कड़ी निगरानी है कि वह अपने वादों को कब और कैसे निभाती है।

आंदोलन का असर और राजनीतिक प्रतिक्रिया

“Mahaelgar” आंदोलन ने वाकई में महाराष्ट्र की सियासत में ज़बरदस्त हलचल मचा दी है। जहाँ पहले ये एक छोटा-सा विरोध लग रहा था, अब ये आंदोलन पूरे राज्य में किसानों की आवाज़ और जनता की पुकार बन चुका है।

बच्चू कडू ने खुद इस आंदोलन को सिर्फ़ “किसानों की लड़ाई” नहीं, बल्कि “सिस्टम के खिलाफ़ आवाज़” बताया है। उनका कहना है कि अब वक्त आ गया है जब किसान सिर झुकाकर नहीं, सर उठाकर अपना हक़ माँगेगा।

“विदर्भ और अमरावती” बने आंदोलन का केंद्र

विदर्भ और अमरावती के इलाकों में इस आंदोलन को जबरदस्त जनसमर्थन मिला है। हज़ारों किसान अपने ट्रैक्टर और बैलगाड़ियों के साथ सड़कों पर उतरे, हाथों में झंडे और दिलों में जोश लेकर हर जुबां पर एक ही नारा गूंजा: “अबकी बार हक़ चाहिए, रहम नहीं!”

ग्रामीण इलाकों में बच्चे, महिलाएँ और बुज़ुर्ग तक इस आंदोलन में जुड़ गए हैं। लोग कह रहे हैं कि बच्चू कडू सिर्फ़ नेता नहीं, जनता का सच्चा साथी हैं जो बात करता भी ज़मीन की और सोचता भी गाँव के दिल से।

सोशल मीडिया पर भी छाया “#MahaElgar”

सोशल मीडिया पर भी “#MahaElgar” जबरदस्त ट्रेंड करने लगा है। इंस्टाग्राम, एक्स (Twitter) और फेसबुक पर लोग बच्चू कडू के भाषणों के क्लिप, किसानों की तस्वीरें और वीडियो शेयर कर रहे हैं। युवाओं ने इस आंदोलन को एक जनअभियान की शक्ल दे दी है।

कई लोगों ने लिखा “ये सिर्फ़ महाराष्ट्र का आंदोलन नहीं, बल्कि पूरे देश के किसानों की पुकार है।” और सच भी यही है, क्योंकि बच्चू कडू की बातों में वो ईमानदारी और ग़ुस्सा दोनों है, जो हर मेहनतकश आदमी को अपनी लगती है।

राजनीति में बढ़ा दबाव, सियासी तापमान चढ़ा

अब अगर सियासत की बात करें, तो इस आंदोलन ने सरकार पर सीधा दबाव बढ़ा दिया है। राज्य की सत्ता में बैठे नेताओं को एहसास हो गया है कि अगर जल्द कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो किसान नाराज़गी चुनावी नतीजों पर भारी पड़ सकती है।

देवेंद्र फडणवीस और मुख्यमंत्री शिंदे की टीम अब लगातार मीटिंग कर रही है, ताकि माहौल काबू में रहे। लेकिन दूसरी तरफ़ विपक्षी दलों कांग्रेस, एनसीपी, शिवसेना (उद्धव गुट) — ने इसे मौका समझकर सरकार पर हमला तेज़ कर दिया है।

विपक्ष का कहना है कि सरकार बस बातें कर रही है, जबकि बच्चू कडू और किसान ज़मीन पर लड़ रहे हैं। वो ये भी कहते हैं कि अगर किसान को राहत नहीं मिली, तो इसका असर राजनीतिक समीकरणों पर साफ़ दिखेगा।

जनता की राय — “किसान की आवाज़ दबाओगे तो सियासत हिलेगी”

गाँवों और कस्बों में अब लोग खुलकर कहने लगे हैं कि “अगर बच्चू कडू जैसा नेता न होता, तो हमारी बात कौन सुनता?”
लोगों को लग रहा है कि ये आंदोलन सिर्फ़ कुछ माँगों तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे सिस्टम को झकझोरने वाली कोशिश है।

एक बुज़ुर्ग किसान ने कहा “हमने सालों से वादे सुने हैं, लेकिन इस बार लग रहा है कि कोई हमारे साथ खड़ा है।”

“महाऐलगार” अब सिर्फ़ एक आंदोलन नहीं, बल्कि लोगों की उम्मीद का नाम बन गया है।
बच्चू कडू ने इस आग को गाँव-गाँव तक पहुँचा दिया है, और सरकार के सामने अब सवाल है —
क्या वो इस बार सच में किसानों की सुनेगी, या फिर एक और आंदोलन इतिहास में जुड़ जाएगा?

फिलहाल इतना तो तय है कि महाराष्ट्र की राजनीति में इस आंदोलन ने भूकंप ला दिया है,
जहाँ हर पार्टी सोच में है —
“कहीं किसानों की ये लहर आने वाले चुनावों में सियासत की दिशा ही न बदल दे.

बच्चू कडू का “Mahaelgar” आंदोलन: किसानों की आवाज़ बनकर उठी नई लहर

महाराष्ट्र की सियासत में इन दिनों बच्चू कडू और उनका “महाऐलगार आंदोलन” छाया हुआ है। ये आंदोलन अब सिर्फ किसानों के हक़ की बात नहीं कर रहा, बल्कि पूरे सिस्टम को आईना दिखाने का काम कर रहा है। बच्चू कडू ने साफ कहा “अब और नहीं झुकेंगे, ये लड़ाई इज़्ज़त की है, रोटी की है, और किसानों के अस्तित्व की है।”

राज्य सरकार की तरफ से अभी तक “पूरी कर्जमाफी” पर कोई साफ ऐलान नहीं हुआ है। लेकिन अंदरखाने से खबरें आ रही हैं कि जल्द ही एक आंशिक राहत पैकेज लाया जा सकता है, जिससे किसानों को कुछ हद तक राहत मिलेगी।

किसान संगठनों की चेतावनी

किसान संगठनों ने सरकार को साफ चेतावनी दी है अगर नवंबर 2025 तक कोई ठोस फैसला नहीं आया, तो आंदोलन का दूसरा चरण शुरू किया जाएगा, जो इस बार “राज्यव्यापी” होगा। इसका मतलब है कि विदर्भ से लेकर मराठवाड़ा तक हर ज़िले में किसान सड़कों पर उतरेंगे।

किसानों का कहना है, “अब वक़्त आ गया है कि सरकार सिर्फ भाषण नहीं, काम करके दिखाए। अगर कर्जमाफी हक़ है तो उसे पाने के लिए हम पीछे नहीं हटेंगे।” राजनीति में उठी हलचल

राजनीतिक माहौल भी इस आंदोलन की वजह से गर्म है। विपक्षी पार्टियाँ एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) सरकार पर आरोप लगा रही हैं कि वो किसानों के दर्द को “इलेक्शन एजेंडा” बना रही है। वहीं, सत्ताधारी दल बीजेपी और एकनाथ शिंदे गुट का कहना है कि “सरकार किसानों के साथ है और जल्द राहत दी जाएगी।”

पर असली सवाल यह है कब तक सिर्फ वादों से किसान का पेट भरेगा?

राजनीतिक विश्लेषकों की राय

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि ये आंदोलन सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि भावनात्मक लड़ाई भी है। एक वरिष्ठ विश्लेषक के शब्दों में “किसानों के मन में अब सरकार के प्रति भरोसा कम हो गया है।

बच्चू कडू ने उसी भावनात्मक जगह को छुआ है जहाँ उम्मीदें टूटीं, लेकिन हिम्मत अभी बाकी है।” “Mahaelgar” ने साबित कर दिया कि महाराष्ट्र का किसान अब चुप नहीं बैठेगा। उसे सिर्फ सहानुभूति नहीं, समाधान चाहिए।

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