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Dr Babasaheb Ambedkar का जीवन | History of Dr Babasaheb Ambedkar

History of Dr Babasaheb Ambedkar

भारत में जन्मे महान Dr Babasaheb Ambedkar, भारत के महान व्यक्तियों में से एक है। देश में फैली अछूत और भेदभाव की भावना को जड़ से खत्म करने के लिए कठिन परिश्रम किया।

Dr Babasaheb Ambedkar निजी जीवन

इस प्रकार के महान विचार रखने वाले और भारतीय संविधान के निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को महू गांव मध्य प्रदेश में एक दलित परिवार में हुआ था।
बाल विवाह के प्रचलन के कारण,अप्रैल 1906 में लगभग 15 वर्ष की आयु में इनका विवाह केवल 9 साल की लड़की रमाबाई से कराया गया।

बचपन से ही उन्होंने भेदभाव और छुआछूत की भावना समाज में अच्छी है और उसका सामना भी किया है। किंतु वह इस सामाजिक मानसिकता में अपना अस्तित्व खोना नहीं चाहते थे उन्होंने दलितों के लिए समाज में उनका हक दिलाने का प्रयास किया।

Dr Babasaheb Ambedkar की शिक्षा

बाबासाहेब आंबेडकर एक प्रतिभाशाली छात्र थे उन्होंने कोलंबिया अरे विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की। यह 64 वि‌षय में मास्टर थे एवं 9 भाषा में महारत हासिल की थी एवं कुल 32 डिग्रियों को प्राप्त किया था।

बाबा भीमराव अंबेडकर विश्व के प्रथम व्यक्ति हैं जिन्होंने लंदन स्कूल आफ इकोनॉमिक्स से “डॉक्टर ऑफ साइंस” में डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की है।
उस्मानिया विश्वविद्यालय से डि.लीट. की उपाधि प्राप्त की। लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स एंड पॉलीटिकल साइंस से एमएससी की डिग्री प्राप्त की।
इन सबके अलावा भीमराव अंबेडकर जी के पास ब म बैरिस्टर डीएससी एवं डॉक्टरेट जैसी कई उपाधियां प्राप्त थी।

Dr Babasaheb Ambedkar का संविधान में विशेष योगदान

इन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया और भारत की संविधान निर्माण में भी विशेष योगदान दिया। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जब भारत बहुत ही नाजुक मोड़ पर था तो भीमराव अंबेडकर ने अपनी विवेकपूर्ण विचार और मजबूत इरादे से भारतवासियों के बीच एक क्रांति की लहर दौड़ गई जिससे उनकी सोच और विचारों में बदलाव आया। अंबेडकर जी द्वारा कथित, “छुआछूत गुलामी से भी बदतर है।”

Dr Babasaheb Ambedkar के साथ हुए भेदभाव

भीमराव अंबेडकर को महाराजा गायकवाड़ का सैन्य सचिव नियुक्त किया गया था परंतु दलित जाति का होने के कारण उनके साथ भेदभाव हुआ और उन्हें यह नौकरी छोड़नी पड़ी। इस घटना का वर्णन इन्होंने अपनी आत्मकथा “वेटिंग फॉर ए वीजा” में बयान की है।

अपने परिवार की पोषण के लिए उन्होंने पुनः काम की तलाश की और एक निवेश परामर्श व्यवसाय की स्थापना की किंतु यह भी सफल न हो सका क्योंकि यहां भी उन्होंने नीची जाति का होने के कारण इनका विरोध किया।

1918 में मुंबई के सीजन हम कॉलेज आफ कमर्स एंड इकोनॉमिक्स में होने राजनीतिक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर की पद पर काम किया यह एक सफल अध्यापक बने किंतु अन्य प्रोफेसर के साथ इन्हें भेदभाव और छुआछूत की भावना का सामना करना पड़ा।

Dr Babasaheb Ambedkar अछूतों और दलितों को समाज में हक दिलाने

भारत सरकार अधिनियम 1919, तैयार करने के लिए अंबेडकर को एक प्रमुख विद्वान के तौर पर आमंत्रित किया गया। इन्होंने दलित और अन्य वर्गों के लिए एक अलग निर्वाचिका और आरक्षण देने की मांग की।

मुंबई उच्च न्यायालय में विधि का अभ्यास करने के साथ-साथ इन्होंने अछूतों और दलितों की शिक्षा और समाज में उनका हक दिलाने के लिए कई सफल प्रयास किया।

15 अगस्त 1947 को जब भारत आजाद हो गया तब भारत में कांग्रेस की सरकार अस्तित्व में आई और इस सरकार ने भीमराव अंबेडकर को प्रथम कानून एवं न्याय मंत्री के पद पर कार्य करने के लिए आमंत्रित किया।

29 अगस्त 1947 को अंबेडकर जी, स्वतंत्र भारत के लिए बन रहे संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर इनकी नियुक्ति हुई। भीमराव अंबेडकर एक संविधान विशेषज्ञ थे एवं उन्होंने कई देशों के संविधान का अध्ययन भी किया हुआ था। इन्होंने भारतीय संविधान लिखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई इसलिए अंबेडकर जी को “भारत के संविधान का पिता” की मान्यता प्राप्त है।

बाबा भीमराव अंबेडकर मधुमेह रोग से ग्रसित थे और मानसिक तनाव और बढ़ते उम्र से इनका स्वास्थ्य धीरे-धीरे गिरता ही चला गया। 6 दिसंबर 1956 को अंबेडकर जी का दिल्ली में 64 वर्ष की आयु में उनके घर पर ही निधन हो गया।

मरणोपरांत, बाबा साहब अंबेडकर को 1990 में भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

“धर्म एक होने पर भारत एक हो सकता है नहीं तो नहीं।”

“धर्म में तो इसे सिखाता है कि कैसे जीना है लेकिन सामाजिक विज्ञान या सीखता है कि कैसे धर्म को बनाए रखना है।”
“ज्ञान शक्ति सबसे महान है।”

भीमराव अंबेडकर जी ने हम भारतीय नागरिकों को समान हक दिलाने के लिए हर संभव और सफल कोशिश की है और अपनी इस कोशिश में वह कामयाब भी रहे हैं। हम सभी भारतीय भीमराव अंबेडकर के योगदान के लिए आभारी है और इन्हें आने वाली पीढ़ियां भी इसी तरह याद करती रहेगी।

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