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History of Guru Tegh bahadur in hindi| गुरु तेग बहादुर का इतिहास

Guru tegh Bahadur

Guru tegh bahadur: सिख धर्म की स्थापना गुरु नानक देव ने की थी यह सिखों के पहले गुरु है। गुरु नानक देव बाबर के समकालीन थे। इन्होंने अपनी आस्था और भक्ति से कई लोगों के जीवन को प्रभावित किया। इनकी अनुयायियों की संख्या में वृद्धि होती गई।

सिख धर्म मैं 10 गुरुओं को माना जाता है।

गुरु नानक देव जी के बाद, गुरु अंगद, इन्होंने गुरुमुखी लिपि का आविष्कार किया।
गुरु अमरदास, गुरु रामदास, गुरु अर्जुन देव, गुरु हरगोबिंद,
गुरु हर राय, गुरु हरकिशन, गुरु तेग बहादुर, गुरु गोविंद सिंह।

Guru tegh Bahadur का बलिदान

गुरु तेग बहादुर जी को उनकी बहादुरी और बलिदान के लिए जाना जाता है। प्रतिवर्ष 24 नवंबर को गुरु तेग बहादुर जी की पुण्यतिथि शहीदी दिवस के रूप में मनाई जाती है।

Guru tegh Bahadur का जन्म कब और कहा हुआ ?

गुरु तेग बहादुर जी का जन्म 21 अप्रैल 1621 को अमृतसर में हुआ था। गुरु तेग बहादुर सिखों के नौवें गुरु है। गुरु हरगोबिंद सिंह के घर जन्मे यह गुरु हरगोबिंद सिंह के पांचवे पुत्र थे। मात्र 13 वर्ष की आयु में ही इन्होंने मुगलों के खिलाफ लड़ाई में विजय प्राप्त कर प्रसिद्धि हासिल की।

Guru tegh का बहादुर नाम कैसे पड़ा

गुरु तेग बहादुर को त्यागमल के नाम से भी जाना जाता है। अपनी वीरता,साहस और निर्भीक चरित्र से प्रभावित होकर इनके पिता ने इन्हें तेग बहादुर नाम दिया, जिसका अर्थ है तलवार का धनी। इन्होंने शिक्षा के साथ-साथ घुड़सवारी तलवारबाजी और भी शस्त्र विद्या प्राप्त की। हरि कृष्णा राय जी की अकाल मृत्यु पहो जाने के कारण गुरु तेग बहादुर जी को सिखों का 9वां गुरु बनाया गया था। गुरु तेग बहादुर जी ने धर्म की रक्षा के लिए और स्वतंत्रता के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर दिया।

Guru Tegh bahadur की मौत कैसे हुई

मुगल काल में बादशाह औरंगजेब ने धर्म परिवर्तन के लिए गुरु तेग बहादुर जी को दो विकल्प दिया या तो वह इस्लाम धर्म कबूल करें या मौत। औरंगज़ेब को मना करने और इस्लाम धर्म कबूल ना करने के कारण औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर जी का सर कटवा दिया इस प्रकार गुरु तेग बहादुर जी ने शहीदी का दर्जा प्राप्त किया। धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने अपने प्राण को बलिदान कर दिया।

उनकी इसी बलिदान के कारण लोग उन्हें आज भी विश्व इतिहास में वीर पुरुष का दर्जा दिया जाता है। उनकी इसी बलिदान और स्वाभिमानी व्यक्तित्व के कारण उन्हें हिंदी की चादर भी कहा गया। दिल्ली में स्थित शीशगंज गुरुद्वारा सिख धर्म के 9 ऐतिहासिक गुरुद्वारों में से एक है।
यही गुरु तेग बहादुर की शहादत हुई थी।

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